Chhaya - Bhram ya Jaal - 17 in Hindi Horror Stories by Meenakshi Mini books and stories PDF | छाया भ्रम या जाल - भाग 17

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छाया भ्रम या जाल - भाग 17

भाग 17 

डॉ. मेहता ने रात को ही अपनी गाड़ी पकड़ी और दिल्ली से हिमालय की तलहटी की ओर निकल पड़े। उनका मन बेचैन था, एक तरफ अमावस्या की रात का दबाव था, तो दूसरी तरफ दुष्ट शक्ति की बढ़ती ताकत का डर। उन्हें उम्मीद थी कि ऋषि अग्निहोत्री, उनके गुरु, इस विकट परिस्थिति में उनकी मदद कर पाएंगे।

उनकी यात्रा आश्चर्यजनक रूप से शांतिपूर्ण रही। सड़कें साफ थीं, और रास्ते में उन्हें किसी भी तरह की अजीबोगरीब घटना या बाधा का सामना नहीं करना पड़ा। जैसे-जैसे वे पहाड़ों के करीब पहुँचते गए, हवा में एक शुद्धता महसूस होने लगी, और मन को शांति देने वाली सुगंध आने लगी, जो शहर के प्रदूषण और अपार्टमेंट के भयानक माहौल से बिलकुल अलग थी। डॉ. मेहता को लगा जैसे कोई अदृश्य शक्ति उन्हें सही रास्ते पर ले जा रही है।

अगले दिन दोपहर तक, वे हिमालय की तलहटी में एक छिपी हुई घाटी में पहुँच गए। यहाँ मोबाइल नेटवर्क काम नहीं करता था, और चारों ओर सिर्फ़ घने जंगल और बर्फ से ढकी चोटियाँ दिख रही थीं। घाटी के बीचों-बीच, उन्हें पत्थरों से बना एक साधारण सा आश्रम दिखाई दिया, जो प्रकृति के साथ पूरी तरह से घुल-मिल गया था। यह ऋषि अग्निहोत्री का आश्रम था।

आश्रम में पहुँचते ही, डॉ. मेहता ने एक अजीब-सी शांति महसूस की। कुछ शिष्य आश्रम के मैदान में जड़ी-बूटियाँ इकट्ठा कर रहे थे या ध्यान कर रहे थे। डॉ. मेहता उन्हें पहचानते थे, क्योंकि वे सालों पहले यहाँ अपने गुरु से मिलने आए थे।

एक शिष्य ने उन्हें पहचान लिया और सम्मानपूर्वक उनका अभिवादन किया। "डॉ. मेहता, गुरुदेव आपका ही इंतज़ार कर रहे थे। कृपया अंदर आइए।"

डॉ. मेहता आश्रम के मुख्य कक्ष में गए। वहाँ, एक शांत कोने में, ऋषि अग्निहोत्री पद्मासन में बैठे ध्यान कर रहे थे। उनकी आँखें बंद थीं, और उनके चेहरे पर एक असीम शांति थी। उनके चारों ओर एक हल्की आभा चमक रही थी। वे उम्रदराज थे, उनकी दाढ़ी और बाल बर्फ जैसे सफेद थे, लेकिन उनके चेहरे पर ज्ञान और अनुभव की गहरी लकीरें थीं।

डॉ. मेहता उनके सामने आदरपूर्वक झुक गए। जैसे ही उन्होंने झुकाया, ऋषि अग्निहोत्री ने अपनी आँखें खोलीं। उनकी आँखें गहरी और बुद्धिमान थीं, जो सब कुछ देख और समझ सकती थीं।

"आओ, मेहता," ऋषि अग्निहोत्री ने एक शांत, गहरी आवाज़ में कहा, जैसे उन्होंने डॉ. मेहता के आने की भविष्यवाणी पहले ही कर ली हो। "मुझे पता था तुम आओगे। अमावस्या पास है, और तुम्हारी मुसीबत गहरी है।"

डॉ. मेहता हैरान रह गए। "गुरुदेव, आप... आपको कैसे पता?"

ऋषि अग्निहोत्री ने एक हल्की मुस्कान दी। "मेरी आँखें भौतिक संसार से परे भी देखती हैं। जिस दुष्ट शक्ति से तुम जूझ रहे हो, उसकी ऊर्जा इस संसार में बहुत पुरानी है। मैंने तुम्हें यहाँ तक बिना किसी बाधा के आने में मदद की। दुष्ट शक्ति ने तुम्हारे रास्ते में कई भ्रम और खतरे पैदा करने की कोशिश की, लेकिन मैंने अपने ध्यान के माध्यम से उन बाधाओं को दूर कर दिया।"

यह सुनकर डॉ. मेहता को गहरी राहत मिली। अब उन्हें समझ आया कि उनकी यात्रा इतनी सहज क्यों थी। उनके गुरु ने दूर से ही उनकी रक्षा की थी।

डॉ. मेहता ने ऋषि अग्निहोत्री को पूरी कहानी विस्तार से बताई – अपार्टमेंट में शुरू हुई घटनाएँ, दुष्ट शक्ति का रहस्य, बेसमेंट का दरवाज़ा, नीला फूल की तलाश में अरावली की यात्रा, कवच का मिलना, और कैसे उनके छात्रों पर दुष्ट शक्ति का प्रभाव पड़ रहा था ।

ऋषि अग्निहोत्री ने ध्यान से सब कुछ सुना।

"यह कवच बहुत शक्तिशाली है," ऋषि अग्निहोत्री ने कहा। "यह सिर्फ़ भौतिक ढाल नहीं है, बल्कि एक ऊर्जा कवच है जो नकारात्मक ऊर्जा को सोख लेता है और उसे निष्क्रिय कर देता है। इसे प्राचीन ऋषियों ने उसी समय बनाया था जब उस दुष्ट शक्ति को पहली बार बांधा गया था। यह उन लोगों के लिए था जो भविष्य में इसका सामना कर सकें।"

उन्होंने आगे समझाया, "जो दुष्ट शक्ति तुम लोगों के अपार्टमेंट में है, वह 'काली छाया' कहलाती है। यह किसी आत्मा या भूत से कहीं ज़्यादा पुरानी और दुर्भावनापूर्ण है। यह सिर्फ़ एक जगह तक सीमित नहीं रहती, बल्कि अपने बंधन के कमज़ोर होते ही आसपास के लोगों और वातावरण में फैलने लगती है। इसका मुख्य उद्देश्य मुक्त होकर इस दुनिया पर पूर्ण अंधकार फैलाना है।"

"क्या हम इसे फिर से बांध सकते हैं?" डॉ. मेहता ने पूछा।

"हाँ, लेकिन यह उतना आसान नहीं है जितना  लगता है," ऋषि अग्निहोत्री ने गंभीरता से कहा। तुम्हारे पास नीला फूल है, और कवच भी है। लेकिन अनुष्ठान को सफल बनाने के लिए, तुम्हें दुष्ट शक्ति की सबसे बड़ी कमजोरी को जानना होगा: उसकी निराशा। वह अपनी पूरी शक्ति निराशा से खींचती है। तुम्हें और तुम्हारे छात्रों को अनुष्ठान के दौरान अपने मन में पूर्ण आशा और दृढ़ संकल्प बनाए रखना होगा। ज़रा सा भी डर या संदेह उसे और मजबूत करेगा।"

ऋषि अग्निहोत्री ने डॉ. मेहता को एक पुराना ताम्रपत्र दिया, जिस पर और भी जटिल प्रतीक और एक अतिरिक्त मंत्र खुदा हुआ था। "यह मंत्र तुम्हारे मूल मंत्र से कहीं ज़्यादा शक्तिशाली है। यह 'काली छाया' के वास्तविक नाम का एक हिस्सा है, जिसे बोलने से उसकी शक्ति को सीधे चुनौती मिलेगी। इसे केवल तभी बोलना जब अनुष्ठान चरम पर हो, और जब तुम्हें लगे कि तुम उसे नियंत्रित कर पा रहे हो। अगर सही समय पर नहीं बोला गया, तो यह खतरनाक भी हो सकता है।"

उन्होंने आगे कहा, "तुम्हारे छात्र भी प्रभावित हुए हैं क्योंकि उनकी आत्माएं शुद्ध हैं, और दुष्ट शक्ति को ऐसी आत्माओं को दूषित करने में खुशी मिलती है। खासकर श्रीमती शर्मा, वह अपने जीवन में पहले से ही कमज़ोर थीं, इसलिए उन पर प्रभाव सबसे ज़्यादा पड़ा है।"

"तुम्हें अनुष्ठान से पहले अपने छात्रों को मानसिक रूप से और भी मजबूत करना होगा। मैं तुम्हें कुछ ध्यान की विधियाँ सिखाऊँगा, जिन्हें तुम उन्हें सिखा सकते हो। यह उनकी आंतरिक शक्ति को बढ़ाएगा और उन्हें दुष्ट शक्ति के भ्रम से बचाएगा।"

अगले दिन डॉ. मेहता ने आश्रम में ऋषि अग्निहोत्री के साथ बिताया। उन्होंने ध्यान की गहराईयों को सीखा, दुष्ट शक्ति की कमजोरियों को समझा, और कवच का सही उपयोग कैसे करें, इस पर गुरु से मार्गदर्शन प्राप्त किया। ऋषि के शिष्यों ने भी डॉ. मेहता को कुछ दुर्लभ जड़ी-बूटियाँ दीं, जो अनुष्ठान के दौरान ऊर्जा को स्थिर करने में मदद कर सकती थीं।

अमावस्या की रात करीब आ रही थी। डॉ. मेहता अब पहले से कहीं ज़्यादा तैयार थे। उनके पास न सिर्फ़ सामग्री थी, बल्कि उनके गुरु का ज्ञान और आशीर्वाद भी था। वह जानते थे कि यह लड़ाई आसान नहीं होगी, लेकिन उनके पास अब लड़ने की एक नई उम्मीद और शक्ति थी। उन्हें वापस अपार्टमेंट जाना था और अपने छात्रों के साथ मिलकर उस दुष्ट शक्ति का सामना करना था।