Chhaya - Bhram ya Jaal - 19 in Hindi Horror Stories by Meenakshi Mini books and stories PDF | छाया भ्रम या जाल - भाग 19

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छाया भ्रम या जाल - भाग 19

भाग 19

बेसमेंट का दरवाज़ा एक प्राचीन, भयावह रहस्य की तरह खड़ा था। जैसे ही डॉ. मेहता ने उसे खोला, एक सड़ी हुई, नम गंध ने उनके नथुनों पर हमला किया, जो सदियों से बंद किसी कब्र जैसी थी। अंदर घना अँधेरा था, जिसे टॉर्च की मंद रोशनी भी पूरी तरह भेद नहीं पा रही थी। हवा में एक भारीपन था, जैसे ऑक्सीजन की कमी हो, और चारों ओर एक भयानक, ठंडी चुप्पी पसरी थी जो किसी भी सामान्य आवाज़ को निगलने को तैयार थी। विवेक ने डर से एक गहरी साँस ली, उसके हाथ में कवच का वजन उसे थोड़ा सहारा दे रहा था। रिया ने छाया का हाथ कसकर पकड़ लिया, और अनुराग उनके पीछे-पीछे सावधानी से चल रहा था। सूर्य और अवंतिका ने बिना किसी घबराहट के कदम आगे बढ़ाए, उनकी शांत उपस्थिति ने ग्रुप को थोड़ा आत्मविश्वास दिया।

"हमें जल्द से जल्द अनुष्ठान शुरू करना होगा," डॉ. मेहता ने फुसफुसाते हुए कहा, उनकी आवाज़ अँधेरे में गूँज उठी। "अमावस्या की शक्ति चरम पर है।"

वे धीरे-धीरे उस प्राचीन दरवाज़े की ओर बढ़े, जहाँ दुष्ट शक्ति को बांधा गया था। वहाँ की हवा सबसे ठंडी और भारी थी, और दीवारों पर अजीबोगरीब आकृतियाँ बनी हुई थीं, जो सदियों पुरानी किसी अज्ञात भाषा में चेतावनी दे रही थीं। डॉ. मेहता ने उस स्थान को चिन्हित किया जहाँ चबूतरा बनाना था। उन्होंने तुरंत मिट्टी से एक छोटा चबूतरा बनाना शुरू किया, जैसा कि ऋषि अग्निहोत्री ने बताया था। सूर्य और अवंतिका ने बिना कहे उनकी मदद की, उनके हाथों की गति में एक लय थी। विवेक ने अपनी टॉर्च की रोशनी को केंद्रित रखा, जबकि रिया, छाया और अनुराग ने आसपास की भयानक चुप्पी के बावजूद खुद को शांत रखने की कोशिश की।

जैसे ही मिट्टी का चबूतरा पूरा हुआ, डॉ. मेहता ने सावधानी से उस पर नीला फूल रखा। फूल की नीली आभा अँधेरे में हल्की-सी चमकने लगी, जो एक आशा की किरण जैसी लग रही थी। फिर उन्होंने लोहे के टुकड़े उसके चारों ओर रखे, हर टुकड़े को रखते समय एक प्राचीन मंत्र बुदबुदाते रहे। यह सब काली छाया को बांधने की तैयारी थी, उसकी शक्ति को सीमित करने की कोशिश।

और फिर, दुष्ट शक्ति ने हमला किया।

अचानक, बेसमेंट की सारी लाइटें एक साथ झिलमिलाकर बंद हो गईं, जिससे चारों ओर घना, असहनीय अँधेरा छा गया। टॉर्च की रोशनी भी बुझ गई, जैसे किसी अदृश्य हाथ ने उन्हें कसकर पकड़ लिया हो। चारों ओर से भयानक, चीखने-चिल्लाने की आवाज़ें आने लगीं – बच्चों के रोने की, औरतों के कराहने की, पुरुषों के डरावने अट्टहास की। ऐसा लगा जैसे बेसमेंट में हजारों आत्माएं एक साथ पीड़ा और क्रोध में चीख रही हों। यह सब काली छाया का भ्रम था, उनकी हिम्मत तोड़ने की कोशिश। रिया के कानों में एक डरावनी फुसफुसाहट गूँजी, "तुम सब मरने वाले हो... कोई नहीं बचेगा...।" छाया को लगा जैसे कोई अदृश्य हाथ उसके बाल खींच रहा हो, और अनुराग को लगा कि उसके शरीर पर बर्फ जैसा ठंडा कुछ रेंग रहा है। विवेक ने चीखने की कोशिश की, लेकिन उसके गले से कोई आवाज़ नहीं निकली।

"डरना मत!" डॉ. मेहता की तेज़ आवाज़ अँधेरे में गूँजी। "यह सिर्फ भ्रम है! अपनी आँखें बंद करो और मंत्र दोहराओ!"

सूर्य और अवंतिका ने तुरंत अपनी आँखें बंद कर लीं और ध्यान मुद्रा में बैठ गए। उनके चारों ओर एक हल्की-सी पीली आभा फैलने लगी, जो दुष्ट शक्ति के भ्रम को कुछ हद तक रोकने में मदद कर रही थी। डॉ. मेहता ने भी आँखें बंद कीं और जोर-जोर से मंत्र का जाप करने लगे। सबने हिम्मत करके आँखें बंद कीं और मंत्र दोहराने लगे – "ॐ आत्म-शान्ति, परम् शक्ति, दुष्ट-विनाशनी..."। शुरुआत में उनकी आवाज़ें काँप रही थीं, लेकिन जैसे-जैसे उन्होंने मंत्र दोहराया, उनमें थोड़ी दृढ़ता आने लगी।

काली छाया का हमला और तेज़ हो गया। दीवारों पर अदृश्य, भारी चीज़ें टकराने लगीं, जिससे तेज़ धमाकों की आवाज़ें आने लगीं। ऐसा लगा जैसे बेसमेंट की दीवारें ढहने वाली हों। ठंडी हवा के झोंके इतने तेज़ हो गए कि उन्हें लगा जैसे कोई बर्फीला तूफान उनके चारों ओर घूम रहा हो। रिया को लगा जैसे किसी ने उसे ज़ोर से धक्का दिया हो, वह लड़खड़ाकर गिर पड़ी। अनुराग को एक ज़ोरदार तमाचा पड़ा, और छाया को लगा जैसे कोई उसके गले को दबा रहा हो।

"कवच!" डॉ. मेहता ने विवेक को निर्देश दिया, उनकी आवाज़ में बेचैनी थी। "इसे अभी धारण करो!"

विवेक ने आँखें बंद रखते हुए भी कवच को महसूस किया और उसे अपने सीने पर रखा। जैसे ही कवच ने उसकी त्वचा को छुआ, एक तेज़, गर्म ऊर्जा उसके पूरे शरीर में दौड़ गई। कवच से एक चमकदार, सुनहरी आभा निकली, जो अँधेरे बेसमेंट को रोशन कर रही थी। यह आभा काली छाया के भ्रम को चीर रही थी, और चीखें और भयानक आवाज़ें अचानक धीमी पड़ गईं।

काली छाया क्रोधित हो उठी। अब उसके हमले और अधिक प्रत्यक्ष हो गए। बेसमेंट के कोने से काले, धुएँ जैसे साये उठने लगे, जो मनुष्यों की विकृत आकृतियाँ ले रहे थे। उनकी आँखें लाल थीं और वे डरावनी, अमानवीय आवाज़ें निकाल रहे थे। वे सबकी ओर बढ़ने लगे, उनका लक्ष्य स्पष्ट था – अनुष्ठान को रोकना और उन्हें नष्ट करना।

"अपने मन को शांत रखो! भय को अपने ऊपर हावी मत होने दो!" अवंतिका ने ऊँची आवाज़ में कहा, उसकी आँखें अब भी बंद थीं, लेकिन उसकी आवाज़ में अटल विश्वास था। "हमारी आशा ही हमारी शक्ति है!"

सूर्य ने अपने हाथों को ऊपर उठाया, और उसके शरीर से निकलने वाली पीली आभा और तेज़ हो गई। उसने कुछ प्राचीन शब्द बुदबुदाए, और एक अदृश्य शक्ति ने काले सायों को रोकने की कोशिश की। काली छाया ने अपने सबसे शक्तिशाली भ्रम और हमलों को एक साथ फेंक दिया था। उन्हें पता था कि यह अंतिम युद्ध था, और उन्हें हर कीमत पर जीतना था। श्रीमती शर्मा की आवाज़ें ऊपर से बेसमेंट तक गूँज रही थीं, उनकी पीड़ा बढ़ रही थी, जो इस बात का संकेत था कि काली छाया कितनी शक्तिशाली हो चुकी थी।

डॉ. मेहता ने मंत्र जाप की गति बढ़ा दी। विवेक, कवच की सुनहरी आभा में घिरा हुआ, अपने पैरों पर खड़ा हो गया। उसने देखा कि काले साये कवच की चमक से डर रहे थे, वे उसके करीब नहीं आ पा रहे थे। रिया, छाया और अनुराग ने अब भी आँखें बंद रखी थीं, लेकिन वे मंत्र का जाप पूरे संकल्प के साथ कर रहे थे। उन्हें पता था कि इस लड़ाई में उनका मन ही उनका सबसे बड़ा हथियार था।

बेसमेंट का वातावरण और अधिक तीव्र हो गया। यह सिर्फ एक जगह नहीं थी; यह एक युद्ध का मैदान बन गया था जहाँ भौतिक और आध्यात्मिक शक्तियाँ आपस में टकरा रही थीं।