❤️ राजा को रानी से प्यार हो गया ❤️
कहानी –
बहुत समय पहले की बात है। एक विशाल राज्य था – “मधुरगढ़”। यह राज्य अपनी समृद्धि, कला और संस्कृति के लिए दूर-दूर तक प्रसिद्ध था। यहाँ का राजा अर्जुनसिंह निडर, बुद्धिमान और प्रजा–हितैषी था। उसकी तलवार की धार जितनी तेज़ थी, दिल उतना ही कोमल और दयालु।
राजा अर्जुन ने बचपन से ही राज्य–प्रशासन और युद्ध–विद्या सीखी थी। उसने अपने जीवन को केवल प्रजा की सेवा और राज्य की रक्षा में समर्पित कर दिया था। लेकिन जीवन का एक कोना हमेशा खाली था – वह था प्यार।
🌸 पहली मुलाक़ात
एक दिन मधुरगढ़ के पड़ोसी राज्य सुहागपुर में राजमहल के उत्सव का निमंत्रण आया। उत्सव में नृत्य, संगीत और रंगारंग आयोजन होना था। राजा अर्जुन अपनी सेना और मंत्रियों के साथ वहाँ पहुँचे।
उसी महफ़िल में उसकी नज़र पड़ी – राजकुमारी रत्नावली पर।
रत्नावली की मुस्कान चाँदनी जैसी कोमल, आँखें झील जैसी गहरी और स्वभाव बेहद सरल था। जैसे ही राजा ने उसे देखा, उसका दिल तेज़ी से धड़क उठा। पहली बार अर्जुन को महसूस हुआ कि दिल सिर्फ़ युद्ध जीतने के लिए नहीं, बल्कि किसी को अपना बनाने के लिए भी धड़कता है।
रत्नावली भी अर्जुन को देखती रह गई। उसकी बहादुरी और सादगी दोनों ही उसे आकर्षित कर रहे थे। महफ़िल में संगीत गूँज रहा था, लेकिन दोनों के लिए जैसे समय थम गया।
🌸 अनकही भावनाएँ
महफ़िल के बाद कई दिनों तक दोनों राजमहलों में संदेश आते-जाते रहे। कभी राजनयिक बातें, तो कभी कविताओं और पंक्तियों के रूप में छिपे हुए भाव।
राजकुमारी रत्नावली अपनी सहेलियों से कहती –
“ये कैसे शब्द हैं, जो सीधे दिल को छू जाते हैं? लगता है जैसे मुझे कोई सच में समझ रहा हो।”
वहीं राजा अर्जुन अपने मंत्री से कहता –
“ये दिल अजीब है, तलवार से लड़ाइयाँ आसान हैं लेकिन आँखों की बात समझना कठिन।”
धीरे-धीरे दोनों की चिट्ठियाँ इज़हार-ए-मोहब्बत में बदल गईं।
🌸 मुश्किलों की राह
लेकिन कहानी इतनी आसान नहीं थी। दोनों राज्यों के बीच पुराने झगड़े थे। सुहागपुर का दरबार चाहता था कि रत्नावली की शादी किसी शक्तिशाली साम्राज्य से हो, ताकि गठबंधन मज़बूत हो सके।
जब रत्नावली ने अपने दिल की बात कही, तो उसके पिता राजा वीरेंद्रसिंह भड़क उठे।
“रत्ना! अर्जुन बहादुर है, लेकिन वह हमारे दुश्मन राज्य का राजा है। तुम्हारी शादी उससे असंभव है!”
रत्नावली की आँखों में आँसू आ गए। वह बोली –
“पिताजी, दुश्मनी राजाओं की हो सकती है, दिलों की नहीं। मैं अपने दिल से अलग नहीं हो सकती।”
उधर अर्जुन को भी अपने मंत्रियों का विरोध झेलना पड़ा। वे बोले –
“महाराज! राजनीति में भावनाओं की जगह नहीं होती। दुश्मन राज्य की राजकुमारी से विवाह करना सही नहीं होगा।”
लेकिन अर्जुन का उत्तर दृढ़ था –
“मैंने जीवन भर प्रजा के लिए निर्णय लिया है, पर इस बार मैं अपने दिल के लिए निर्णय लूँगा। रत्नावली मेरी रानी बनेगी, चाहे पूरी दुनिया विरोध क्यों न करे।”
🌸 प्रेम की जीत
राजा अर्जुन और रत्नावली ने तय किया कि वे अपनी मोहब्बत को अधूरा नहीं छोड़ेंगे। उन्होंने एक-दूसरे को वचन दिया –
“अगर साथ जिएँगे तो खुलकर, और अगर अलग रहना पड़ा तो सम्मान के साथ।”
कहानी का मोड़ तब आया जब पड़ोसी साम्राज्य ने सुहागपुर पर हमला कर दिया। उस समय अर्जुन अपनी सेना लेकर मदद को पहुँचा। उसने न सिर्फ़ युद्ध जीता, बल्कि सुहागपुर को भी बचाया।
राजा वीरेंद्रसिंह ने पहली बार देखा कि अर्जुन सिर्फ़ योद्धा ही नहीं, बल्कि सच्चा इंसान भी है।
युद्ध के बाद जब अर्जुन घायल अवस्था में दरबार में आया, तो रत्नावली की आँखों से आँसू बह निकले। उसने सबके सामने अर्जुन का हाथ थाम लिया।
“पिताजी, अगर यह व्यक्ति मेरी रक्षा और हमारे राज्य की रक्षा कर सकता है, तो बताइए, क्या यह मेरा जीवनसाथी नहीं हो सकता?”
राजा वीरेंद्रसिंह कुछ पल चुप रहे, फिर बोले –
“रत्ना, आज मैंने देख लिया कि अर्जुन केवल राजा ही नहीं, बल्कि सच्चा नायक भी है। अगर तुम्हारा दिल इसी पर आया है, तो मैं तुम्हारे निर्णय को स्वीकार करता हूँ।”
🌸 सुखद अंत
कुछ महीनों बाद पूरे राज्य में शहनाइयाँ गूँज उठीं। मधुरगढ़ और सुहागपुर के बीच न केवल वैवाहिक बंधन जुड़ा, बल्कि दोस्ती और विश्वास की डोर भी मज़बूत हुई।
राजा अर्जुन और रानी रत्नावली की प्रेमकहानी पीढ़ियों तक सुनाई जाने लगी।
लोग कहते –
“राजनीति से साम्राज्य बनते हैं, लेकिन मोहब्बत से इतिहास लिखा जाता है।”
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✨ Moral:
सच्चा प्यार कभी आसान नहीं होता। उसमें संघर्ष, त्याग और साहस की ज़रूरत होती है। लेकिन जब दो दिल सच में मिल जाते हैं, तो पूरी दुनिया भी उन्हें जुदा नहीं कर सकती।
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