(छाया और काशी परीक्षा के तनाव में जी-जान से पढ़ाई कर रही थीं। कॉलेज का माहौल पूरी तरह बदल चुका था। पहली परीक्षा कठिन रही, लेकिन दोनों ने एक-दूसरे का हौसला बढ़ाया। डैनी ने छाया से माफी मांगी, जिसे छाया ने अनजाने में नौकरी वाली साजिश से अनभिज्ञ रहते हुए माफ कर दिया। विशाल ने डैनी को चेतावनी दी। उधर छाया निराश होकर रो पड़ी, पर मां नम्रता ने उसे संभालते हुए हिम्मत दी। काशी के घर पर भी पढ़ाई को लेकर बात हुई और शादी फिलहाल टल गई। दोनों सहेलियाँ मेहनत और विश्वास के साथ अपने सपनों की ओर बढ़ती रहीं। अब आगे)
विशाल का आमंत्रण
छाया और काशी मन लगाकर पढ़ाई कर रही थीं और परीक्षा में भी अपना सर्वश्रेष्ठ देने की कोशिश कर रही थीं। लेकिन इसके बावजूद वे दोनों टेंशन बहुत ज़्यादा ले रही थीं। कॉलेज में सिर्फ वही नहीं, बल्कि कई अच्छे स्टूडेंट्स भी तनाव और डिप्रेशन से जूझ रहे थे। इसी वजह से कॉलेज में काउंसलिंग सेशन का आयोजन कराया गया था।
नंदिता, जो छाया के स्टडी ग्रुप की सदस्य थी, ने जब उनकी हालत देखी तो उन्हें तुरंत काउंसलिंग सेशन में ले गई। वहाँ से लौटने के बाद दोनों थोड़ा हल्का महसूस करने लगीं। नंदिता बहुत ही सुंदर, कम बोलने वाली और शर्मीली लड़की थी, लेकिन दूसरों की परवाह करना उसकी आदत थी। जब छाया ने उसे कुछ कहना चाहा तो उसने मुस्कुराते हुए कहा—
“देखो, परीक्षा की चिंता उतनी ही करो जिससे पढ़ाई अच्छे से हो सके। अगर ज़रूरत से ज़्यादा टेंशन लोगी तो पढ़ाई ही नहीं कर पाओगी, समझीं?”
छाया और काशी ने हामी भर दी और नंदिता वहाँ से चली गई। अब उनके दिमाग़ पर अनावश्यक टेंशन का बोझ नहीं था, मगर अच्छे अंकों की इच्छा ज़रूर बनी रही।
छाया ने पढ़ाई का समय थोड़ा बढ़ा दिया, लेकिन बीच-बीच में छोटे-छोटे ब्रेक लेने लगी। याद्दाश्त को तेज़ करने के लिए उसने काउंसलर की सलाह मानकर योग के कुछ आसन भी करने शुरू कर दिए। जब भी पढ़ाई में दिक़्क़त आती, वह सीधा विनय को फ़ोन कर देती और अगर वह फ़ोन न उठाता तो स्टडी ग्रुप के किसी और सदस्य से पूछ लेती। साथ ही उसने कई सालों के पुराने प्रश्नपत्र भी हल कर लिए।
धीरे-धीरे उसका आत्मविश्वास बढ़ता गया। और जब आख़िरकार उसके सारे एग्ज़ाम ख़त्म हुए, तो वह खुद को पहले से कहीं ज़्यादा संतुलित और मजबूत महसूस कर रही थी।
....
कॉलेज की परीक्षाएँ ख़त्म होने के बाद कुछ दिनों की छुट्टियाँ थीं। रात के खाने के दौरान जतिन ने छाया से पूछा—
“परीक्षा ठीक गईं तुम्हारी?”
छाया ने हल्की मुस्कान के साथ सिर हिलाया।
केशव ने गौर किया कि छाया परीक्षा के दिनों में काफ़ी नर्वस रहती थी। उसने माँ की ओर देखते हुए कहा—
“माँ! कल कहीं घूमने चलते हैं।”
ये सुनते ही छाया का चेहरा खिल उठा। वह अचानक ही केशव के गले लग गई।
अगले दिन जतिन और केशव पूरी फैमिली को घुमाने क़ुतुबमीनार ले गए। साथ ही काशी भी उनके साथ हो ली। छाया, नित्या और काशी पूरे दिन मस्ती में डूबी रहीं। उधर जतिन और नम्रता, विपिन और गौरी ऐतिहासिक स्मारक के कोने-कोने को ध्यान से देख रहे थे।
जब भी उन तीनों लड़कियों की नज़र किसी चीज़ पर टिक जाती, तो वे सब मिलकर केशव के पीछे पड़ जातीं। केशव पहले थोड़ा नखरे करता, लेकिन आखिरकार हर बार सब उनके लिए खरीद ही देता।
शाम तक सबने क़ुतुबमीनार का आनंद भरपूर लिया और फिर गाड़ी में लौट बैठे। गाड़ी में तीनों लड़कियाँ अपनी बातों में खोई हुई थीं, जबकि केशव भी बेहद खुश नज़र आ रहा था।
विपिन ने जतिन से कहा—
“अरे जतिन! बड़ा मज़ा आया आज।”
इस पर गौरी ने मुस्कुराते हुए नम्रता की तरफ़ देखा और बोली—
“हाँ, क़ुतुबमीनार देख कर सचमुच अच्छा लगा।”
केशव हँसते हुए बोला—
“ताईजी! अगली बार आगरा चलते हैं। वैसे भी तीन महीने बाद मेरी सैलरी बढ़ने वाली है।”
तभी छाया ने उत्साह में कहा—
“नए सेशन के लिए किताबें भी नई चाहिए… और कपड़े भी।”
इतना कहते ही उसे एहसास हुआ कि उसे ये बात शायद नहीं कहनी चाहिए थी। उसके चेहरे पर झिझक साफ़ झलक रही थी। तभी गौरी ने उसकी मनोदशा भांप ली और बोली—
“तू चिंता मत कर। तुझे जो भी चाहिए, मुझसे कह देना। कपड़े हों या किताबें… भाई को परेशान करने की ज़रूरत नहीं है। मैं हूँ ना, तुझे सब दिलाऊँगी।”
जतिन ने तुरंत हाथ हिलाते हुए कहा—
“न-ना भाभी, इसकी ज़रूरत नहीं है। हम ख़रीद लेंगे, आप चिंता मत कीजिए।”
विपिन ने हल्का झल्लाते हुए कहा—
“चुप रह! छाया और नित्या दोनों हमारी ही बच्चियाँ हैं। जो माँगेंगी, हम दिलाएँगे। खबरदार, बीच में बोले तो।”
ये सुनकर जतिन और नम्रता दोनों चुप हो गए। गाड़ी में एक गर्मजोशी भरी खामोशी छा गई, जिसमें सबके बीच अपनापन और गहराई और बढ़ गई थी।
करीब ढाई घंटे बाद सब घर पहुँचे। बैठक में सब एक साथ जमा हो गए। नित्या ने सबके लिए चाय बनाई और सब हंसी-ठिठोली करते हुए पल का आनंद लेने लगे। फिर देर रात सब अपने-अपने कमरों में लौट गए।
.....
छाया कमरे में आकर बिस्तर पर थोड़ी देर लेटी ही थी कि अचानक उसकी नज़र फोन पर पड़ी। स्क्रीन पर बहुत सारे मिस्ड कॉल्स थे। उसने गौर से देखा तो पता चला कि कॉल्स विशाल के थे।
छाया हैरान रह गई— “विशाल मुझे क्यों कॉल कर रहा है?”
असल में वह फोन घर पर ही छोड़कर घूमने गई थी, इसलिए उठा नहीं पाई थी।
तभी अचानक मैसेज आया— “क्या कल सुबह 11 बजे सनराइज होटल में आओगी?”
छाया ने तुरंत जवाब लिखा—“मुझे नहीं पता ये जगह कहाँ है।”
झट से रिप्लाई आया—“मैं कल गाड़ी भेज दूँगा।”
छाया को शक हुआ— “कहीं ये मैसेज किसी और ने तो नहीं भेजा? क्या विशाल का मोबाइल किसी और के पास है?”
उसने फौरन कॉल मिलाया। उधर से विशाल की जानी-पहचानी आवाज आई—“आओगी न तुम?”
छाया कुछ समझ नहीं पा रही थी, लेकिन उसकी आवाज सुनकर उसने अनजाने में ही ‘हाँ’ कह दिया।
विशाल बोला—“मैं तुम्हारा इंतज़ार करूँगा।” और फोन रख दिया।
छाया देर तक बिस्तर पर लेटी सोचती रही। दिनभर की थकान से कब नींद आ गई, उसे खुद भी पता नहीं चला।
...१. क्या विशाल और छाया का प्यार इज़हार तक पहुँच पाएगा?
२. क्या छाया परीक्षा में अच्छे अंक लाकर अपने सपनों की ओर कदम बढ़ा पाएगी?
३. क्या छाया किसी मुसीबत में फँसने वाली है
आगे जानने के लिए पढ़ते रहिए "छाया प्यार की "और जुडे रहिए छाया के प्यार और आत्मसम्मान के संघर्ष के साथ.