1. आत्मा की मृत्यु के बाद की यात्रा
गरुड़ पुराण के अनुसार जब मनुष्य की मृत्यु होती है, तो उसके शरीर से प्राण निकलकर यमदूतों द्वारा ले जाया जाता है।
यदि जीव ने सत्कर्म किए हों तो यमदूत बड़े सौम्य रूप में आते हैं।
यदि जीव ने पापकर्म किए हों तो यमदूत भयंकर रूप धारण करके आत्मा को बाँधकर खींचते हैं।
यात्रा का मार्ग (सूक्ष्म शरीर की गति):
मृत्यु के बाद आत्मा 12 दिन तक घर के आसपास मंडराती रहती है।
13वें दिन से यमलोक की ओर यात्रा आरंभ होती है।
यह यात्रा 17 दिनों से लेकर 348 दिनों तक की बताई गई है।
बीच-बीच में आत्मा को अपने कर्मों की झलक दिखाई जाती है।
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2. यमलोक पहुँचने पर न्याय
आत्मा को यमराज के दरबार में लाया जाता है। वहाँ
चित्रगुप्त पाप-पुण्य का लेखा पढ़ते हैं।
यदि पुण्य अधिक है तो आत्मा को स्वर्ग भेजा जाता है।
यदि पाप अधिक हैं तो आत्मा को नरक में यातनाएँ भोगनी पड़ती हैं।
यदि पुण्य और पाप बराबर हों तो पुनर्जन्म मिलता है।
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3. नरक का वर्णन
गरुड़ पुराण में 84 प्रकार के नरक बताए गए हैं।
कुछ प्रमुख नरक और पाप:
तमिस्र नरक – दूसरों की संपत्ति हड़पने वाले यहाँ यातना भोगते हैं।
अंधतमिस्र नरक – पत्नी के साथ छल करने वाले।
रौरव नरक – हिंसा और हत्या करने वाले।
महारौरव नरक – जीव-जंतु को पीड़ा देने वाले।
कुम्भीपाक नरक – व्यभिचारी, दूसरों की पत्नी से संबंध रखने वाले।
कालसूत्र नरक – माता-पिता का अपमान करने वाले।
असिपत्रवन नरक – धर्म का अपमान करने वाले, झूठे गुरु।
हर नरक में भयंकर यातनाएँ होती हैं –
आग में जलाना, काँटों पर गिराना, उबलते तेल में डालना, भूखे जानवरों से कटवाना इत्यादि।
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4. श्राद्ध और पिंडदान की कथा
गरुड़ पुराण में कहा गया है कि मृत आत्मा को यमलोक की यात्रा के दौरान बहुत कष्ट होते हैं।
श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण के द्वारा जीव की आत्मा को शांति मिलती है।
जो पुत्र पिंडदान करता है, वही अपने पितरों को नरक से छुड़ा सकता है।
यदि श्राद्ध न किया जाए तो आत्मा भटकती रहती है और उसे मोक्ष नहीं मिलता।
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5. मोक्ष की कथा
एक समय गरुड़ ने भगवान विष्णु से पूछा –
“हे प्रभु! मृत्यु का इतना भयावह रूप देखकर जीव कैसे मुक्त हो सकता है?”
भगवान विष्णु बोले –
जो मनुष्य सत्य, दया, दान और धर्म का पालन करता है,
जो सदा हरि नाम का स्मरण करता है,
जो अपने माता-पिता, गुरु और ब्राह्मणों का सम्मान करता है,
वह मृत्यु के पश्चात सीधे वैकुण्ठधाम जाता है और उसे पुनर्जन्म नहीं लेना पड़ता।
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निष्कर्ष
गरुड़ पुराण केवल मृत्यु और नरक का वर्णन ही नहीं करता, बल्कि यह बताता है कि जीवन का वास्तविक उद्देश्य मोक्ष है।
जो व्यक्ति पाप से बचे और धर्म व भक्ति के मार्ग पर चले, वही मृत्यु के भय से मुक्त होकर शाश्वत आनंद को प्राप्त करता है।
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"राधे राधे बोलो, मन खुश हो जाएगा,
कृष्णा के चरणों में सिर झुका लो, जीवन सफल हो जाएगा।" 🌺🎉
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1. आत्मा की मृत्यु के बाद की यात्रा
गरुड़ पुराण के अनुसार जब मनुष्य की मृत्यु होती है, तो उसके शरीर से प्राण निकलकर यमदूतों द्वारा ले जाया जाता है।
यदि जीव ने सत्कर्म किए हों तो यमदूत बड़े सौम्य रूप में आते हैं।
यदि जीव ने पापकर्म किए हों तो यमदूत भयंकर रूप धारण करके आत्मा को बाँधकर खींचते हैं।
यात्रा का मार्ग (सूक्ष्म शरीर की गति):
मृत्यु के बाद आत्मा 12 दिन तक घर के आसपास मंडराती रहती है।
13वें दिन से यमलोक की ओर यात्रा आरंभ होती है।
यह यात्रा 17 दिनों से लेकर 348 दिनों तक की बताई गई है।
बीच-बीच में आत्मा को अपने कर्मों की झलक दिखाई जाती है।
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2. यमलोक पहुँचने पर न्याय
आत्मा को यमराज के दरबार में लाया जाता है। वहाँ
चित्रगुप्त पाप-पुण्य का लेखा पढ़ते हैं।
यदि पुण्य अधिक है तो आत्मा को स्वर्ग भेजा जाता है।
यदि पाप अधिक हैं तो आत्मा को नरक में यातनाएँ भोगनी पड़ती हैं।
यदि पुण्य और पाप बराबर हों तो पुनर्जन्म मिलता है।
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3. नरक का वर्णन
गरुड़ पुराण में 84 प्रकार के नरक बताए गए हैं।
कुछ प्रमुख नरक और पाप:
तमिस्र नरक – दूसरों की संपत्ति हड़पने वाले यहाँ यातना भोगते हैं।
अंधतमिस्र नरक – पत्नी के साथ छल करने वाले।
रौरव नरक – हिंसा और हत्या करने वाले।
महारौरव नरक – जीव-जंतु को पीड़ा देने वाले।
कुम्भीपाक नरक – व्यभिचारी, दूसरों की पत्नी से संबंध रखने वाले।
कालसूत्र नरक – माता-पिता का अपमान करने वाले।
असिपत्रवन नरक – धर्म का अपमान करने वाले, झूठे गुरु।
हर नरक में भयंकर यातनाएँ होती हैं –
आग में जलाना, काँटों पर गिराना, उबलते तेल में डालना, भूखे जानवरों से कटवाना इत्यादि।
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4. श्राद्ध और पिंडदान की कथा
गरुड़ पुराण में कहा गया है कि मृत आत्मा को यमलोक की यात्रा के दौरान बहुत कष्ट होते हैं।
श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण के द्वारा जीव की आत्मा को शांति मिलती है।
जो पुत्र पिंडदान करता है, वही अपने पितरों को नरक से छुड़ा सकता है।
यदि श्राद्ध न किया जाए तो आत्मा भटकती रहती है और उसे मोक्ष नहीं मिलता।
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5. मोक्ष की कथा
एक समय गरुड़ ने भगवान विष्णु से पूछा –
“हे प्रभु! मृत्यु का इतना भयावह रूप देखकर जीव कैसे मुक्त हो सकता है?”
भगवान विष्णु बोले –
जो मनुष्य सत्य, दया, दान और धर्म का पालन करता है,
जो सदा हरि नाम का स्मरण करता है,
जो अपने माता-पिता, गुरु और ब्राह्मणों का सम्मान करता है,
वह मृत्यु के पश्चात सीधे वैकुण्ठधाम जाता है और उसे पुनर्जन्म नहीं लेना पड़ता।
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निष्कर्ष
गरुड़ पुराण केवल मृत्यु और नरक का वर्णन ही नहीं करता, बल्कि यह बताता है कि जीवन का वास्तविक उद्देश्य मोक्ष है।
जो व्यक्ति पाप से बचे और धर्म व भक्ति के मार्ग पर चले, वही मृत्यु के भय से मुक्त होकर शाश्वत आनंद को प्राप्त करता है।