(छाया और काशी परीक्षा की तैयारी में डूबी हुई थीं। तनाव के बीच नंदिता ने उन्हें काउंसलिंग सेशन में ले जाकर मानसिक राहत दी। मेहनत और अनुशासन से छाया का आत्मविश्वास बढ़ा और उसने परीक्षा अच्छे से पूरी की। छुट्टियों में परिवार के साथ क़ुतुबमीनार घूमने गई, जहाँ सबने खूब आनंद लिया और आपसी अपनापन और भी गहरा हो गया। घर लौटकर जब छाया ने फोन देखा तो विशाल के कई मिस्ड कॉल्स थे। अचानक उसका मैसेज आया—“कल सुबह सनराइज होटल में मिलोगी?” संदेह के बावजूद विशाल की आवाज़ सुनकर छाया ने हामी भर दी और सोचते-सोचते नींद में खो गई। अब आगे)
प्यार की अधूरी कहानी
सुबह नींद खुलते ही उसने सबसे पहले फोन उठाया और बार-बार विशाल के मैसेज पढ़ने लगी। उसके चेहरे पर एक अजीब सी खुशी थी।
तभी नित्या कमरे में आ गई—“चल, उठ जा। आज तीनों पार्क चलते हैं।”
छाया ने आँखें बंद करके सोने का नाटक किया। नित्या उसके पास बैठकर बोली—“काशी नीचे खड़ी है, तेरा इंतज़ार कर रही है।”
छाया झल्लाई—“क्या दीदी! पार्क चलना था तो कल ही बता देतीं। आप दोनों जाओ, मुझे सोने दो।”
फिर अचानक उठकर बोली—“वैसे आज आप कॉलेज क्यों नहीं गईं?”
नित्या ने हाथ बाँधकर कहा—“आज टीचर्स की स्ट्राइक है।”
छाया नींद भरी आवाज़ में बड़बड़ाई—“मुझे तो एक साल हो गया, मेरे टीचर्स तो कभी स्ट्राइक पर नहीं गए।”
नित्या ने उसे खींचते हुए कहा— “चल जल्दी! थोड़ी देर बाद धूप आ जाएगी।”
...
मन मारकर छाया उठी और तीनों पार्क पहुँच गए। पार्क में कदम रखते ही छाया ने काशी से गुस्से में कहा— “ये मॉर्निंग वॉक का आइडिया आया कैसे तुम्हारे मासूम से दिमाग़ में?” काशी ने मुस्कुराते हुए इधर-उधर देखा।
पार्क में इंस्पेक्टर ठाकुर एक्सरसाइज कर रहा था। उनकी आँखें अचानक नित्या पर टिक गईं। लेकिन तभी एक बच्ची उनसे टकराकर गिर पड़ी। उन्होंने बच्ची को उठाकर खड़ा कर दिया. अब वह एक्सरसाइज पर ध्यान लगाने की कोशिश करने लगा।
तभी छाया ने शरारत से उन्हें आवाज़ दी और बहाने से बात करने पहुँची। “अरे! आप यहाँ कैसे?”
इंस्पेक्टर ठाकुर शांत लहजे में बोले— “मैं रोज़ यहाँ एक्सरसाइज करने आता हूँ। और आप?”
छाया ने इतराते हुए कहा— “मैं भी मॉर्निंग वॉक करने आई हूँ।”
ठाकुर ने हल्की सी मुस्कान दी और नित्या की ओर एक नज़र डालकर फिर से एक्सरसाइज में लग गया। उन्हें उम्मीद थी कि नित्या उनसे कुछ कहेगी, मगर वो जानता था—ऐसा नहीं होगा।
काशी और नित्या छाया को खींचकर पगडंडी पर ले गईं। तीनों हँसते-बतियाते वॉक करने लगे। लेकिन थोड़ी देर बाद छाया बार-बार घर जाने की जिद करने लगी। काशी ने नित्या से फुसफुसाकर कहा—“कल इसे नहीं लाएँगे।”
पर उन्हें क्या पता था कि छाया का मन कहीं और लगा था।
असल में उसे याद था—आज 11 बजे उसे विशाल ने बुलाया है। इसलिए जैसे ही घर पहुँची, झटपट नहा-धोकर तैयार हो गई। उसने किचन में काम करती नम्रता को आवाज़ लगाई—“माँ! मैं दो घंटे में आती हूँ।” इतना कहकर वह जल्दी-जल्दी बाहर निकल गई।
…...
थोड़ी देर बाद एक कार होटल के बाहर आकर रुकी। छाया ने नंबर देखा—वही था, जो विशाल ने बताया था। उसने बिना कुछ कहे कार का दरवाज़ा खोला और अंदर बैठ गई।
कार में वह कई सपने सजा चुकी थी
होटल पहुँचते ही मैनेजर ने मुस्कुराकर उसे रास्ता दिखाया और बोला—“सॉरी मिस, आगे आपको खुद जाना होगा।”
सनराइज होटल का पार्टी हॉल मानो किसी दुल्हन की तरह सजा हुआ था। हर कोने में फूल, रोशनी और चमक। विशाल ने सब खुद सजवाया था। उसने ब्लू जींस और व्हाइट शर्ट पहन रखी थी, और उस वक़्त वह पहले से कहीं ज़्यादा हैंडसम लग रहा था।
असल में विशाल को इतना तामझाम पसंद नहीं था, लेकिन वह जानता था कि छाया को यह सब अच्छा लगता है। इसलिए उसने मन से यह सब कराया था।
पूरे हॉल का रास्ता फूलों से सजाया गया था। सामने एक बहुत बड़ा ग्रीटिंग कार्ड रखा था। विशाल आख़िरी बार उसी को एडजस्ट कर रहा था। तभी उसने आहट सुनी।
उसने मैनेजर से इशारे में पूछा—“लड़की आ गई?”
मैनेजर ने हाँ में सिर हिला दिया।
विशाल ने उँगलियाँ चटकाईं—और एक झटके में सारी लाइट्स बुझ गईं।
अब सिर्फ़ उस फूलों के रास्ते पर रोशनी थी।
लड़की ने संकोच के साथ क़दम बढ़ाए। धीरे-धीरे वह चलते हुए ग्रीटिंग कार्ड तक पहुँची।
जैसे ही उसने कार्ड खोला—पीछे से किसी ने उसे कसकर बांहों में भर लिया।
विशाल की आवाज गूंजी—“आई लव यू… तुम मेरी ज़िंदगी हो।” वह लड़की भी भावुक होकर उसके गले लग गई।
तभी एकदम सारी लाइट्स जल उठीं। स्टाफ़ ने ज़ोरदार तालियाँ बजानी शुरू कीं।
लेकिन अगले ही पल सब ठहर गया। विशाल की नज़र सामने पड़ी—वहाँ छाया खड़ी थी। उसकी आँखों में आँसू थे… और चेहरा सवालों से भरा हुआ।
विशाल सन्न रह गया। उसने तुरंत पीछे खड़ी लड़की की तरफ देखा, फिर घबराकर छाया की ओर दौड़ा। “छाया… सुनो… बात सुनो मेरी…”
पर छाया का गुस्सा और दर्द दोनों छलक पड़े।
उसने उँगली होंठों पर रख दी और कहा— “कुछ मत बोलो! अगर तुम्हें किसी और से प्यार था तो मुझे क्यों बुलाया? ताकि मुझे बता सको कि मैं तुम्हारे लायक नहीं हूँ? चिंता मत करो, मैं वैसे भी तुम्हारे पीछे कभी नहीं आने वाली।”
विशाल हड़बड़ा गया— “नहीं छाया, ऐसा नहीं है। ये सब मैंने… ”
लेकिन छाया ने चीखकर कहा—“हाँ, ये सब मेरी औकात दिखाने के लिए किया है… है ना?” वह मुड़कर तेज़ क़दमों से बाहर निकल गई।
ड्राइवर तुरंत दौड़कर आया और कार का दरवाज़ा खोला, लेकिन छाया ने उसे नज़रअंदाज़ किया और सड़क से सीधा एक ऑटो पकड़ लिया।
विशाल वहीं ज़मीन पर बैठ गया। उसके सिर पर हाथ थे।
जब होश आया तो देखा—वहाँ अब कोई लड़की नहीं थी। सब जैसे गायब हो गया।
उसने छाया को बार-बार कॉल किया, मैसेज किया—पर कोई जवाब नहीं।
कुछ देर तक तो मन हुआ छाया के घर चला जाए। लेकिन फिर सोचा—“अगर उसके घरवालों ने कुछ पूछ लिया तो छाया और मुश्किल में पड़ जाएगी।”
इसलिए उसने तय किया—वह सिर्फ़ छाया के जवाब का इंतज़ार करेगा।
...
उधर छाया भारी मन से घर पहुँची। सीधे बाथरूम में चली गई।
नहाने के बहाने उसने अपने आँसुओं को खुलकर बहने दिया।
बाहर निकली तो बदन टूटा हुआ था। बिस्तर पर आकर लेट गई। तभी याद आया—सुबह से उसने कुछ खाया ही नहीं।
नीचे उतरी तो माँ ने खाना परोस दिया।
नम्रता ने उसकी आँखों में दर्द पढ़ लिया, पर कुछ कहा नहीं।
.....
१. क्या छाया का टूटा हुआ विश्वास दोबारा जुड़ पाएगा या उसका रिश्ता हमेशा के लिए ख़त्म हो जाएगा?
२. विशाल की इस ग़लतफ़हमी की सच्चाई आखिर क्या है—क्या सचमुच किसी और से उसका प्यार था या बस एक गलत समय पर हुई घटना?
३. क्या छाया अपने दर्द को छुपाकर पढ़ाई और जीवन में आगे बढ़ पाएगी, या यह चोट उसकी राह बदल देगी?
“छाया का दिल टूटा है, मगर कहानी अभी बाकी है… जानिए आगे ‘छाया प्यार की’ में"