बेताल की आत्मा कहाँ गई....
अब आगे...........
आदिराज घोषणा करते हैं की उनकी बेटी के जन्म की खुशी में पूरे गांव को दावत के लिए कहते हैं , जिससे पूरे गांव में खुशी का माहौल था , ,
आदिराज देविका के पास जाते हैं जिन्हें देखकर देविका उनकी इतनी खुशी का कारण पूछती है...." आप आज बेटी के जन्म पर पूरे गांव को दावत क्यूं देना चाहते हो....?..."
आदिराज देविका के हाथ को अपने हाथ में लेते हुए कहते हैं....." देविका पहली जब हमने बेटे के जन्म पर पूरे गांव को दावत दी थी तो हम बेटी के जन्म पर कोई कसर क्यूं छोड़े.... दूसरी बात हमारी बेटी वनदेवी का रूप है , उसके देह सांसारिक है किंतु आत्मा दिव्य है , वो एक अकेली शक्ति है जो किसी भी पिशाच को खत्म कर सकती हैं या तो उसे अमर बना सकती है , , इसलिए याद रखना कभी भी अदिति के सामने उस रहस को उजागर मत करना , , ..!
देविका आदिराज की बात पर सहमति देती है , , आज का दिन पूरे गांव में उत्सव का दिन था , सबने खा पीकर खूब नाचे गाये जिससे थक कर सब आज बहुत गहरी नींद में सो चुके थे, , तो वहीं गामाक्ष रात के अंधेरे हाथ में लालटेन लिए मंदिर के पीछे के दरवाजे से अंदर आता है......गामाक्ष धीरे धीरे मंदिर के प्रांगण से होता हुआ, तहखाने वाले कमरे में पहुंचता है , जहां आदिराज के साधनों की सारी चीजें एक एक खाने में रखी हुई थी , , जिसे गामाक्ष हटाते हुए लालटेन की मदद से कुछ ढूंढने की कोशिश कर रहा था और आखिर में उसे शायद वो चीज मिल जाती है , ,
गामक्ष अलमारी के खानो में से एक लाल कपड़े में लिपटी हुई किताब को बाहर निकालता है , जिसपर काफी धुल जम चुकी थी , गामाक्ष लालटेन नीचे रखकर उस किताब को झाड़कर उसे लाल कपड़े में से निकाल लेता है , उस किताब को खोलने से उसके ऊपर बनी भंयकर आकृति की लाल आंखे खुल जाती है और उसे गुस्से में देखने लगता है , तभी गामक्ष अपने थैले में से एक छोटी सी शीशी निकालकर उसमें इकट्ठा की हुई खून की बूंदें को उसके चेहरे पर डाल देता है जिससे वो आकृति वापस अपनी आंखें बंद कर लेती है और किताब पर से ताला खुल जाता है....
जिसे देखकर उसके चेहरे पर एक शैतानी हंसी आ जाती है और उस किताब को देखते हुए कहता है ..." बहुत मेहनत की थी काले उल्लू के खून की बूंदें इक्ट्ठा करने में , अब बस ये प्रेत शक्तियां मुझे मिल जाए फिर मैं उस आदिराज की ख्याति के साथ उसे खत्म कर दूंगा... कितना चतुर समझता है अपने आप को , उस बेताल की बेटी अगर सौंप देता तो कुछ हो जाता , लेकिन नहीं उस अमोघनाथ को सौंप दी और खुद वनदेवी का बाप बन बैठा , , ...."
गामाक्ष उस किताब को लेकर वहां से चला जाता है , ,
धीरे धीरे समय बीत चुका था , अब अदिति एक साल की हो चुकी थी जिससे आदिराज आज खुश थे क्योंकि आज अदिति के जरिए वो उस पिशाच को खत्म करवा देंगे , इसलिए आदिराज आज अदिति को अपने साथ लेकर मंदिर आए थे , वो अदिति और अमोघनाथ के साथ तहखाने वाले कमरे में पहुंच जाते हैं , ,
आदिराज अमोघनाथ से पूछते हैं ......" क्या गामाक्ष अभी तक नहीं आया...?...."
" नहीं आदिराज जी , , क्या उसे किसी काम से भेजा है...?.."
" नहीं अमोघनाथ , , वो कह रहा था उसकी मां की तबीयत ठीक नहीं है इसलिए उसे कुछ दिन उनके पास रहना है , तभी मैंने उसे जाने दिया था....खैर तुम ये छोड़ो और उस यज्ञ कुंड को प्रज्वलित करो..."
आदिराज की बात सुनकर अमोघनाथ यज्ञ कुंड में अग्नि प्रज्वलित कर देता है और इस कुंड के सामने दो कुश के आसान बिछा देता है....
एक आसन पर आदिराज बैठ जाते हैं और दूसरे आसन पर अमोघनाथ अदिति को अपनी गोद में लेकर बैठ जाता हैं......
आदिराज धीरे धीरे अपनी विधि शुरू करते हैं , , उनके मंत्रों के उच्चारण से पुरा तहखाना गूंज उठता है, , धीरे आगे लपटें तेज होने लगती है जिससे सब अंधेरा खत्म हो जाता है , ,
आदिराज अदिति के माथे पर अंगूठा लगाते हुए मंत्रों का उच्चारण करते रहते हैं फिर अपने अंगूठे को हल्के से कट करके उससे निकलने वाली खून की बूंदों को अपने सामने रखें खंजर पर डालते हैं फिर अदिति के हाथ को पकड़कर उसकी छोटी सी उंगली पर सुई से हल्के से मारकर उसकी उंगली के खून की बूंद को भी उसी खंजर पर डालकर एक मंत्र को धीरे से बुदबुदाते है जिससे तुरंत उस खंजर से रोशनी निकलने लगती है , जिसे देखकर वो काफी खुश हो जाते हैं और उस खंजर को उठाकर अमोघनाथ से कहते हैं......" हम अपनी सिद्धी में सफल हुए अमोघनाथ , , अब उस बेताल पिशाच को खत्म कर सकते हैं , ये खंजर उसका नामोनिशान मिटा देगा...."
अमोघनाथ उस खंजर को देखते हुए पूछता है....." आदिराज जी ! ये खंजर चमक क्यूं रहा है...?..."
" तुम भूल गए , मेरी बेटी किसका रूप है , वनदेवी और उसके रक्त में एक ऐसी ऊर्जा शक्ति है जो किसी भी निर्जीव को जीवन दे सकती है , इसलिए ये खंजर उसकी ऊर्जा से चमक रहा है....अब तुम जल्दी से उस अभिमंत्रित घेरे में दबी उस शीशी को निकालकर ले आओ...."
अमोघनाथ आदिराज के बताए अनुसार उस घेरे में खोदकर उस बोतल को ढूंढ़ने लगा , लेकिन काफी गहरा खोदने के बाद भी उसे कुछ नहीं मिलता तो वो परेशान हो जाता है। .......
आदिराज अग्नि कुंड के पास बैठे उसी को देख रहे थे , जब अमोघनाथ कभी उन्हें देखता और कभी उस खोदते हुए घेरे को देख रहा था तभी आदिराज उसके चेहरे पर आने वाली परेशानी से समझ जाते हैं कुछ तो जरूर हुआ है इसलिए आदिराज अदिति को गोद में उठाकर उसके पास जाकर पूछ्ते है....." क्या हुआ अमोघनाथ ..?उस शीशी को निकालने में इतना समय , ..."
अमोघनाथ पूरी तरह घबराए होने की वजह से पसीने से तरबतर हो चुका था , और लड़खड़ाते हुए कहता है...." आ आदिराज ..जी ....वो शीशी यहां नहीं है...?..."
आदिराज हैरानी से पूछते हैं...." क्या कह रहे हो ..?..वो कोई साधारण शीशी नही है , उसमें उस बेताल की आत्मा कैद है और तुम कह रहे हो वो यहां नहीं है....इस घेरे में कुछ नहीं कर सकता.... फिर कहां गई वो शीशी....?.."
...............to be continued...........