Veerana in Hindi Horror Stories by Vedant Kana books and stories PDF | वीराना

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वीराना


वीराना सिर्फ एक हवेली नहीं थी, बल्कि ज़मीन के भीतर दबी यादों की समाधि थी। सदियों पहले यहाँ एक कबीला रहा करता था जो आत्माओं को मारता नहीं था, बल्कि उनकी यादें चुरा कर मिट्टी में गाड़ देता था। 

कहते हैं हर इंसान की मौत के बाद उसकी यादें धरती को खुराक चाहिए होती थीं, तभी धरती उसे अपने भीतर समा लेती है। लेकिन उस कबीले ने लालच में जीवित लोगों की यादें चुरानी शुरू कर दीं। जिसके बाद पूरा गाँव ही मिट्टी में समा गया और उसकी जगह बचा सिर्फ वीराना।

समस्या यह थी कि वीराने की हवेली ज़िंदा लोगों की यादें खा लेती थी। जो अंदर जाता, वो धीरे-धीरे भूलने लगता कि वह कौन है, उसका नाम क्या है, उसका घर कहाँ है। वह खुद को पहचान नहीं पाता, और अंततः उस हवेली की दीवारों में हमेशा के लिए कैद हो जाता।

एक बार कुछ राहगीर यात्री वहाँ ठहरने आए। रात में जैसे ही उन्होंने दीवार पर हाथ रखा, उनकी उंगलियों से खून रिसने लगा और साथ ही उनकी आँखों में धुँधलापन आने लगा। एक आदमी बोला “मेरा नाम… मेरा नाम क्या था?” और अगले ही पल उसने पागलों की तरह दीवार को पीटना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे उसकी आँखें सफेद हो गईं और उसकी परछाई दीवार में खिंचकर गायब हो गई।

बाकी बचे लोग भागकर ऊपर के कमरे में घुसे, वहाँ उन्हें जमीन पर खून से लिखे अक्षर दिखे—
“याद रखना ही सबसे बड़ा श्राप है।”
और फिर उन अक्षरों से चीखें उठीं, जैसे सैकड़ों लोग अपने नाम पुकार रहे हों, पर उनकी आवाज़ें इतनी टूटी-फूटी थीं कि किसी को समझ नहीं आया।

हवेली के बीचों-बीच एक कुआँ था। कहा जाता था कि जो भी उस कुएँ में झाँकता है, उसे अपने बीते हुए पलों के बजाय किसी अजनबी की मौत का मंजर दिखता है। एक यात्री ने हिम्मत करके कुएँ में झाँका—उसने खुद को देखा, लेकिन वह मर रहा था, गला घुट रहा था, और उसके मुँह से यही निकल रहा था—“मैं कौन हूँ?”

बाकी यात्री चीखते हुए भागे, मगर बाहर का दरवाजा बंद था। हर तरफ बस वही परछाइयाँ थीं जिनके पास चेहरा नहीं था, सिर्फ खाली गड्ढों जैसे आँखें थीं। उन परछाइयों ने यात्रियों को घेर लिया और धीरे-धीरे उनके नाम छीनने लगीं। जब सुबह गाँव वाले पहुँचे, हवेली वैसी ही थी, मगर उसकी दीवारों पर चार नए नाम खुदे हुए थे खून से।

गाँव वाले समझ गए कि अब हवेली सिर्फ आत्माओं को नहीं, बल्कि यादों को निगलने लगी है। और सबसे डरावनी बात ये थी कि उन यात्रियों के घरवाले भी गाँव में भूलने लगे कि उनके पास कभी कोई अपना था। मानो वो लोग कभी जन्मे ही न थे।

वीराना अब मौत से भी बड़ा डर बन चुका था—भूल जाने का डर।
और कहते हैं, अगर कोई हवेली के पास भी जाता है, तो उसे धीरे-धीरे छोटी-छोटी बातें भूलने लगती हैं… पहले अपना रास्ता, फिर अपना नाम, और आख़िर में यह कि वो ज़िंदा है भी या नहीं।

रात का अंधेरा जब और गहरा हुआ तो वीराना की हवेली ने करवट ली। दीवारें ऐसे कांप रही थीं जैसे कोई ज़िंदा जिस्म साँस ले रहा हो। अचानक हवेली के बीचों-बीच का पुराना कुआँ खुद ब खुद हिलने लगा, और उसके भीतर से सड़ी-गली लाशों की बदबू फैल गई। उन लाशों के गले से सिर्फ एक ही आवाज़ गूंज रही थी—
“मेरा नाम लौटा दो… मेरा नाम लौटा दो…”

जिन चार यात्रियों के नाम हवेली ने निगल लिए थे, उनकी परछाइयाँ अब स्थायी रूप से उस हवेली की दीवारों पर चिपक चुकी थीं। लेकिन सबसे भयानक बात यह थी कि उन परछाइयों के चेहरे धीरे-धीरे बदलकर गाँव के जिंदा लोगों जैसे होने लगे। गाँव वालों को समझ आया कि हवेली अब हवेली तक सीमित नहीं रही वह गाँव में भी फैलने लगी है।

कुछ दिनों बाद, गाँव का एक बच्चा अचानक अपने माता-पिता को पहचानने से इनकार करने लगा। वह कहने लगा, “तुम कौन हो? मेरा असली घर हवेली है।” उसके बाद बच्चा गायब हो गया, और अगले ही दिन हवेली की दीवार पर उसके छोटे-छोटे हाथों की खून से लथपथ छापें मिल गईं।

गाँव वालों ने मिलकर हवेली को आग लगाने की कोशिश की, पर जैसे ही मशाल दीवारों से लगी, आग बुझ गई और उसी धुएँ से सैकड़ों नाम चीखते हुए बाहर निकले। वे नाम गाँव वालों के कानों में ऐसे गूंजे कि सब लोग अपने-अपने नाम भूल गए। और फिर… पूरा गाँव खाली हो गया।

कहते हैं उस रात के बाद से वीराना सिर्फ हवेली नहीं रहा। अब वह पूरा इलाका, पूरा जंगल, पूरा गाँव सब मिलकर एक ज़िंदा स्मृति बन चुका था। आज तक कोई यह नहीं जान पाया कि असली कौन है और कौन हवेली की दीवारों में कैद परछाई।

सबसे खतरनाक बात यह है अगर तुम कभी उस वीराने के रास्ते पर जाओ, तो अचानक तुम्हें भी लगेगा कि तुम अपना नाम याद नहीं कर पा रहे। और अगर तुमने ज़बरदस्ती याद करने की कोशिश की… तो तुम्हारी आवाज़ अगले ही पल वीराने की दीवारों में गूंजेगी, हमेशा के लिए।

क्योंकि वीराना मौत से बड़ा श्राप है भूल जाना कि तुम कौन थे।