Dhumketu - 6 in Hindi Fiction Stories by mayur pokale books and stories PDF | धूमकेतू - 6

Featured Books
  • वो जो मेरा था - 15

    "वो जो मेरा था..."एपिसोड – 15हवा में ठंडी नमी थी, मानो मौसम...

  • Maargan - फ़िल्म रिव्यु

    फिल्में हमें हँसाती भी हैं, रुलाती भी हैं और कभी-कभी सोचने प...

  • मनहूस

    दोस्तों वर्तमान के समय में जो आजकल पत्नियां गुल खिला कर अख़बा...

  • वो पहली बारिश का वादा - 6

    --- पहला मोड़ – नील और सिया के रिश्ते की उलझनकॉलेज का माहौल...

  • अदाकारा - 7

    अदाकारा 7*    "जयसूर्या भाई। हमें क्या करना चाहिए?"चूँकि कां...

Categories
Share

धूमकेतू - 6

भाग 6 – लावा 

अजय की सांसें रुक-सी गईं।
गांव के रास्ते पर चलते हुए उसने जब अपना घर देखा, तो वो घर नहीं था… बस मलबे का ढेर पड़ा था।
कभी जहां उसकी हंसी-खुशी की दुनिया थी, अब वहां धूल और राख का साम्राज्य था।

उसकी आंखें कांप उठीं।
“नहीं… ये सपना है, ये सच नहीं हो सकता।”

लेकिन सच सामने था।
घर का टूटा दरवाज़ा, बिखरी हुई दीवारें और कोनों में बिखरे हुए सामान।

तभी उसे एक हल्की सिसकी सुनाई दी।
कोने में बैठी उसकी बहन गीता फूट-फूटकर रो रही थी।

अजय पागलों की तरह दौड़कर उसके पास आया।
“गीता… क्या हुआ? मां और पिताजी कहां हैं? कैसे हुआ ये सब?” उसकी आवाज़ कांप रही थी, जैसे दिल की धड़कनें टूट रही हों।

गीता ने कांपते हुए कहा—
“वो… वो जो उस दिन आया था, वही ले गया… अपने साथ मम्मी-पापा को। भैया, मुझे बहुत डर लग रहा है… उन्हें बचा लो।”

ये सुनकर अजय की आंखें लाल हो गईं।
गुस्से की आग उसके शरीर से बाहर झलक रही थी। उसकी सांसों के साथ ऊर्जा की तरंगें निकल रही थीं।

“प्रोफेसर गांधी…” अजय ने दांत भींचते हुए कहा।
और अगले ही पल वो हवा को चीरता हुआ उड़ गया।


---

प्रोफेसर का अड्डा

जहां कभी अजय को किडनैप करके रखा गया था, वही पुराना मकान अब एक काले अड्डे में बदल चुका था।
बाहर बरामदे में प्रोफेसर गांधी एक लकड़ी की कुर्सी पर आराम से बैठा था। उसके चेहरे पर वही शैतानी मुस्कान थी।

अचानक आसमान से एक चमकता हुआ साया उतरा।
अजय!
उसका शरीर ऊर्जा से जगमगा रहा था।

प्रोफेसर ने उसकी तरफ देखकर ठहाका लगाया।
“आख़िर आ ही गए! पता है, कितने दिन से ढूंढ रहा था तुम्हें। सोचा, तुम्हारे मां-बाप को उठा लेता हूं… तुम खुद भागे चले आओगे। और देखो… मेरा अंदाज़ा सही निकला।”

“तू…” अजय की आंखें खून उतार रही थीं।
उसने बिजली जैसी तेजी से उड़कर प्रोफेसर को एक ज़ोरदार पंच मारा।

धड़ाम!
प्रोफेसर कई मीटर दूर जाकर गिरा और ज़मीन धंसकर गड्ढा बन गई।

अजय उसकी तरफ झपटा ही था कि अचानक उसकी पीठ पर एक एनर्जी बीम टकराई।
“आह्ह…” अजय नीचे गिर पड़ा।

उसने सिर उठाया—
प्रोफेसर अब उठ चुका था। और उसके साथ खड़े थे चार और लोग।


---

प्रोफेसर का रहस्य

“कैसा लगा सरप्राइज़?” प्रोफेसर हंस रहा था।
“ये चार तुम्हारी तरह हैं, जिनमें मैंने शक्तियां जगाईं। दो और थे… मगर उन्होंने मेरी बात नहीं मानी। तो मैंने उनकी सारी ताक़त छीन ली और उन्हें खत्म कर दिया। अब तुम्हारी बारी है, अजय।”

अजय ने दांत भींचते हुए कहा—
“मेरे मां-बाप को छोड़ दे, ये लड़ाई सिर्फ हमारी है।”

“हाहाहा…” प्रोफेसर ठहाका लगाकर बोला,
“अब लड़ाई मेरी है… और शिकार पूरा तुम्हारा परिवार।”

अजय गुस्से में दहाड़ा।
उसके शरीर से नीली-सी लपटें निकल पड़ीं। उसने चारों दुश्मनों को झटका मारकर दूर फेंक दिया और प्रोफेसर को ज़मीन पर पटक दिया।

उसके पंच से ज़मीन कांप रही थी।
“ये सिर्फ हमारे बीच है! मेरे परिवार को मत घसीट!”

प्रोफेसर गुस्से से चीखा और एनर्जी ब्लास्ट से अजय को दूर फेंक दिया।
“तुम ताक़तवर हो… मगर मेरे बराबर नहीं!”

अचानक चारों लोग उठ खड़े हुए और अजय को पकड़ लिया।
प्रोफेसर ने अपने हाथ का डिवाइस निकाला और अजय की शक्तियां खींचने लगा।

“आह्ह्ह्ह…”
अजय दर्द से चीख रहा था।
शरीर से निकलती चमक उसकी ताक़त छीन रही थी।

“देखो अजय,” प्रोफेसर बोला,
“महान बनने के लिए मैंने अपने ही लोगों की कुर्बानी दी। तुम मेरे सामने कुछ भी नहीं।”

अजय की सांसें टूट रही थीं।
उसकी आंखों में हार साफ झलक रही थी।


---

रणजीत की वापसी

तभी आसमान से गड़गड़ाहट सुनाई दी।
एक त्रिकोण आकार का विमान तेज़ी से नीचे उतरा।

धड़ाम!
उससे एक मिसाइल निकली और सीधा उन मशीनों पर आकर गिरी, जो अजय की ताक़त खींच रही थीं।

धमाका!
मशीनें फट गईं और अजय की बेड़ियां टूट गईं।

विमान से बाहर रणजीत उतरा। उसके साथ ANACC की आर्मी थी।
अजय ने हैरानी से कहा—
“डायरेक्टर… आप!”

रणजीत मुस्कुराया,
“समय पर आना मेरी आदत है।”

लेकिन प्रोफेसर चौंक गया।
“तो ये सब तुम्हारा काम था रणजीत! तुमने इस लड़के को ट्रेनिंग दी… अफसोस, अब ये जिंदा नहीं बचेगा।”


---

स्ट्राइकर्स का आगमन

रणजीत ने चिल्लाकर आदेश दिया—
“स्ट्राइकर्स… अटैक!”

उसके पीछे से तीन लोग कूदकर आए। उनमें से एक लड़की थी।
वे बिजली-सी तेजी से प्रोफेसर पर टूट पड़े।

अजय चौंक गया।
“ओह… तो ये भी तुम्हारा राज़ था डायरेक्टर! इनका कभी जिक्र नहीं किया आपने।”

रणजीत ने गंभीरता से कहा,
“फिलहाल बातों का समय नहीं। दुश्मन को खत्म करना है।”


---

निर्णायक युद्ध

अब ज़मीन पर महायुद्ध छिड़ चुका था।
अजय और प्रोफेसर भिड़े हुए थे, जबकि स्ट्राइकर्स उसके साथियों को रोक रहे थे।

रणजीत ने अजय को एडवांस हथकड़ियां दीं।
“इनसे उनकी शक्तियां बेअसर हो जाएंगी।”

अजय ने पूरी ताक़त से उन्हें प्रोफेसर और उसके चारों साथियों पर फेंका।
ठक-ठक!
हथकड़ियां जकड़ गईं। अब वे शक्तियां इस्तेमाल नहीं कर पा रहे थे।

रणजीत चिल्लाया,
“कैच देम!”

ANACC की आर्मी ने उन्हें पकड़ने के लिए घेरा।

लेकिन तभी प्रोफेसर ने अचानक अपने डिवाइस को दबाया।
धड़ाम!
वो और उसके साथी ज़ोरदार ब्लास्ट में बदलकर लावा में पिघल गए।

उसकी आखिरी आवाज़ गूंजी—
“मैं हारता नहीं… ये दुनिया मेरी है…!”


---

परिवार की वापसी

अजय ने तुरंत अपने मां-बाप को ढूंढ निकाला और उन्हें गले लगा लिया।
तीनों रो पड़े।

“अब कोई हमें अलग नहीं कर सकता,” अजय ने कहा।

रणजीत पास आया,
“तो… क्या ख्याल है, वापस आने का?”

अजय मुस्कुराया,
“फिलहाल नहीं। मुझे अपने परिवार के साथ रहना है।”




लावा का पुनर्जन्म

लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं हुई।

उस लावा का ढेर धीरे-धीरे फिर से आकार लेने लगा।
वो इंसानी रूप में बदल गया।

प्रोफेसर गांधी…
लेकिन अब पहले से कई गुना ज्यादा शक्तिशाली।

उसकी आंखों में आग थी।
“कहा था न… मैं कभी हारता नहीं। अब अजय और रणजीत… दोनों को खत्म करूंगा।
दुनिया मेरी है… और मैं इसका राजा हूं… हाहाहा…”


---

सवाल

क्या प्रोफेसर अब और शक्तिशाली होकर अजय से बदला ले पाएगा?

क्या अजय फिर से रणजीत और ANACC के पास लौटेगा?

या अपने परिवार की सुरक्षा के लिए अकेले लड़ेगा?


जानिए आगे की कहानी अगले भाग में…




लेखक – मयूर