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अध्याय 1 – अजीब रात
रात का सन्नाटा कुछ अलग ही था। शहर की गलियों में हल्की धुंध तैर रही थी। स्ट्रीट लाइट की टिमटिमाती पीली रोशनी इस धुंध को और रहस्यमयी बना रही थी। हवा ठंडी थी, लेकिन उस ठंडक में एक अजीब बेचैनी भी घुली हुई थी। मानो कोई अदृश्य खतरा पूरे शहर पर छाया हो।
पुराने बाज़ार के पीछे वाली गली अक्सर सुनसान रहती थी, लेकिन आज वहाँ हलचल थी। एक आदमी तेज़ी से भागता हुआ दिखाई दिया। उसके कदमों की आवाज़ कच्ची दीवारों से टकराकर गूंज रही थी। उसने बार-बार पीछे मुड़कर देखा, जैसे कोई उसका पीछा कर रहा हो। उसकी साँसें तेज़ थीं, चेहरे पर डर साफ़ झलक रहा था।
गली के कोने पर पहुँचते ही उसने रुककर जेब से कुछ निकाला—एक मुड़ा हुआ कागज़। वह उसे छाती से चिपकाकर इधर-उधर नज़र दौड़ाने लगा। अचानक, अंधेरे से किसी ने उसके कंधे पर हाथ रखा।
“तुम्हें यहाँ नहीं आना चाहिए था…” एक भारी और ठंडी आवाज़ गूँजी।
उस आदमी की आँखों में डर और फैल गया। उसने कुछ कहने की कोशिश की, लेकिन तभी धड़ाम की आवाज़ हुई। उसका शरीर ज़मीन पर गिर चुका था। चारों तरफ़ सन्नाटा और गहरा हो गया।
सिर्फ़ एक चीज़ बची थी—वह मुड़ा हुआ कागज़, जो अब ज़मीन पर पड़ा था। उस पर टॉर्च की हल्की रोशनी पड़ी और एक नाम चमक उठा…
“सिद्धार्थ”
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सुबह जब अख़बार निकला, तो पहले पन्ने पर बड़ी हेडलाइन थी—
“रहस्यमयी हत्या से शहर में दहशत”
मृतक का नाम पुलिस ने राज़ रखा था। बस यह बताया कि वह 35 से 40 साल का था और रात को पुराने बाज़ार के पास मृत पाया गया। किसी ने कुछ देखा नहीं, कोई गवाह नहीं। बस एक सीसीटीवी कैमरा था, जो धुंध और अंधेरे में कुछ धुंधली छायाएँ कैद कर सका।
यही वह खबर थी, जिसने युवा पत्रकार आरव मेहरा का ध्यान खींचा। आरव एक स्थानीय अख़बार “जनवाणी” में काम करता था। उसके ज़्यादातर साथी इस केस को “साधारण हत्या” मान रहे थे, लेकिन आरव को ऐसा नहीं लगा।
आरव ने अख़बार के दफ़्तर से निकलते हुए खुद से कहा –
“इस कहानी में कुछ है… जो दिखाई नहीं दे रहा।”
वह सीधे उस जगह पहुँचा जहाँ हत्या हुई थी। गली अभी भी पुलिस की पीली पट्टियों से घिरी थी। लोग दूर खड़े फुसफुसा रहे थे।
“सुना है, किसी बड़े आदमी का नाम इसमें जुड़ा है।”
“पुलिस सब दबा रही है, वरना खबर बाहर क्यों नहीं आने दे रहे?”
आरव भीड़ को चीरता हुआ आगे बढ़ा। पुलिस ने उसे रोका, लेकिन पत्रकार होने का कार्ड दिखाकर वह अंदर चला गया।
ज़मीन पर खून के धब्बे अब भी ताज़ा थे। गली की दीवार पर खरोंच के निशान थे, मानो वहाँ कोई ज़बरदस्त हाथापाई हुई हो। और तभी, आरव की नज़र उस कागज़ पर पड़ी, जिसे पुलिस शायद नज़रअंदाज़ कर चुकी थी। वह खून से हल्का सा भीगा हुआ था, और उस पर वही नाम लिखा था—
“सिद्धार्थ”
आरव ने धीरे से कागज़ को अपनी जेब में रख लिया।
उसकी आँखों में चमक आ गई। यह अब साधारण हत्या नहीं रही। यह किसी बड़े राज़ की शुरुआत थी।
वह जानता था कि अब से उसकी ज़िंदगी बदलने वाली है। क्योंकि जब भी सच के करीब पहुँचने की कोशिश होती है, सच अपने साथ डर, खतरे और मौत की परछाइयाँ लेकर आता है।
उसने आसमान की ओर देखा। धुंध और गहराती जा रही थी।
उसके मन में सिर्फ़ एक सवाल था—
“आख़िर ये सिद्धार्थ कौन है?”
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