अध्याय 4 – छुपे हुए चेहरे
आरव पूरी रात सो नहीं पाया। उसका दिमाग बार-बार उसी कांच के टुकड़े और धमकी वाले नोट पर अटक रहा था। कौन था जो उसके कमरे में घुसा? और क्यों उसने सबूत चुराने की बजाय उसे वापस रख दिया?सुबह होते ही उसने तय किया कि वह इस केस में अकेले नहीं चलेगा। उसे किसी ऐसे साथी की ज़रूरत थी जिस पर वह भरोसा कर सके।वह सीधा रजत के पास पहुँचा। रजत अख़बार के कैफेटेरिया में चाय पी रहा था। आरव उसके सामने बैठा और धीमे स्वर में बोला –“रजत, ये केस बड़ा है। मुझे शक है कि पुलिस भी इसमें शामिल है। मुझे तेरी मदद चाहिए।”रजत ने हँसते हुए कहा –“तू हमेशा फिल्मी बात करता है। पर ठीक है, मैं साथ दूँगा। लेकिन ध्यान रख, अगर ये मामला सच में बड़ा हुआ तो दोनों की नौकरी खतरे में पड़ सकती है।”आरव ने गंभीरता से कहा –“नौकरी से बड़ी चीज़ सच है। और इस बार मैं पीछे नहीं हटने वाला।”---उस दिन आरव ने मृतक की पहचान पर और गहराई से काम किया। अख़बार के सूत्रों से पता चला कि मृतक का नाम निखिल त्रिपाठी था। आधिकारिक रूप से तो वह एक छोटे व्यापारी के रूप में दर्ज था, लेकिन उसकी डायरी और फोन में कई रहस्यमयी नंबर मिले थे।शाम को आरव और रजत दोनों हत्या वाली गली के पास गए। वहाँ उन्हें एक आदमी मिला जो कबाड़ बीनता था। उसका नाम हरिया था।आरव ने पूछा –“हरिया, तुम रोज़ इसी गली में रहते हो। कल रात तुमने कुछ देखा था?”हरिया पहले हिचकिचाया, लेकिन जब आरव ने उसे विश्वास दिलाया कि उसका नाम कहीं नहीं आएगा, तब वह बोला –“बाबूजी, मैंने बस इतना देखा कि वो आदमी (निखिल) किसी से बहस कर रहा था। दूसरा आदमी लंबा-सा था, और उसने काला कोट पहना हुआ था। उसका चेहरा साफ़ नहीं दिखा, पर आवाज़ बहुत भारी थी।”आरव का दिमाग तुरंत उस फोन कॉल की तरफ़ गया, जिसमें उसे धमकी दी गई थी।“क्या यह वही आदमी है?” – उसने सोचा।---रात को वापस घर पहुँचकर उसने इंटरनेट पर “VisionCraft – Made in Germany” चश्मे की खोज की। पता चला कि यह कोई साधारण कंपनी नहीं, बल्कि हाई-एंड प्रीमियम ग्लासेस बनाती है, जिन्हें अक्सर राजनेता और बड़े कारोबारी इस्तेमाल करते हैं।यानी हत्यारा कोई आम गुंडा नहीं, बल्कि किसी बड़े तबके से जुड़ा इंसान था।आरव ने अपनी डायरी में लिखा –मृतक: निखिल त्रिपाठीसुराग: डायरी (पुलिस के पास), कांच का टुकड़ा (VisionCraft glasses), धमकीसंदिग्ध: “काला कोट वाला आदमी” + शायद सिद्धार्थ वर्मा कनेक्शन---अगले दिन दफ्तर में एक और चौंकाने वाली घटना हुई। जब आरव अपने केबिन में बैठा था, तभी संपादक शुक्ला ने उसे बुलाया।“आरव, कल रात तुझसे मिलने कौन आया था?”आरव चौंका –“मुझसे? कोई नहीं।”शुक्ला ने धीरे से कहा –“झूठ मत बोल। यहाँ ऊपर से फोन आया है। उन्होंने कहा है कि तू इस केस से दूर रहे। वरना अखबार की मुश्किल बढ़ जाएगी।”आरव ने तमतमाकर पूछा –“ऊपर से मतलब? कौन है वो?”शुक्ला ने सिर्फ़ इतना कहा –“तूने जिनसे पंगा लिया है, वे लोग बहुत ताकतवर हैं। और याद रख, चेहरे हमेशा वैसे नहीं होते जैसे दिखते हैं।”आरव चुप रह गया। उसे महसूस हुआ कि शुक्ला खुद भी दबाव में है।---दफ्तर से लौटते समय आरव ने देखा कि एक काली गाड़ी कई बार उसके पीछे-पीछे आ रही है। उसने अपनी चाल तेज़ की, गली में मुड़ा, लेकिन गाड़ी वहीं रुकी रही। खिड़की का शीशा हल्का नीचे हुआ, पर चेहरा साफ़ नहीं दिखा।अचानक, गाड़ी तेजी से आगे बढ़ी और गायब हो गई।आरव का दिल तेज़ धड़क रहा था।“कौन हैं ये लोग? और क्यों चाहते हैं कि मैं पीछे हट जाऊँ?”---उस रात जब उसने लैपटॉप खोला तो उसे एक ईमेल मिला। प्रेषक का नाम अज्ञात था। ईमेल में सिर्फ़ एक फोटो थी—मृतक निखिल की, और उसके पीछे खड़ा एक आदमी धुंधले कैमरे में कैद था।उस आदमी ने काला कोट पहना था। चेहरा साफ़ नहीं था, लेकिन उसकी कलाई पर चमकती हुई घड़ी ने आरव का ध्यान खींचा। वह एक लिमिटेड एडिशन वॉच थी, जिसकी कीमत लाखों में थी।आरव ने फोटो को ज़ूम किया और खुद से बुदबुदाया –“यह कोई साधारण हत्यारा नहीं… यह शहर का कोई बड़ा चेहरा है… जो अपने असली चेहरे को छुपाए हुए है।”उसकी आँखों में दृढ़ निश्चय था।अब वह जान चुका था कि खेल बहुत गहरा है और सामने वाले चेहरे छुपे हुए हैं।---