Ek Ladki ko Dekha to aisa laga - 26 in Hindi Love Stories by Aradhana books and stories PDF | एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा - 26

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एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा - 26


प्रकृति जा चुकी थी।
कबीर वहीं खड़ा सोचता ही रह गया… दिमाग में एक ही ख्याल गूंज रहा था –
“मैं तो बस अपने दोस्त को इस गिल्ट से बाहर निकालना चाहता हूँ… पर अब क्या करूँ? कैसे करूँ? अगर प्रकृति सच में चली गई तो रिद्धान कभी सच्चाई जान ही नहीं पाएगा।”

वो बेतहाशा टहलने लगा… सिर पकड़कर बैठ गया… “क्या करूँ… क्या करूँ…”


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उधर ऑफिस में रिद्धान अब भी बैठा हुआ था।
पूरा स्टाफ जा चुका था, बत्तियाँ बुझ चुकी थीं, पर उसके केबिन में फाइलें, नोट्स और केस का सारा डेटा बिखरा हुआ था।
उसकी आँखें लाल हो चुकी थीं, नींद का नामोनिशान नहीं था।

वो बुदबुदा रहा था –
“रिद्धि कॉलेज में हमेशा किसी और जैसा बनना चाहती थी… उसे शायद अपने दोस्तों के बीच हमेशा आउटकास्टेड फील होता था… हाँ, ये क्लियर है।”
वो अगली फाइल पलटता है –
“फिर उसे कॉलेज में प्रकृति दिखी… बिलकुल वैसी जैसी वो खुद बनना चाहती थी। कॉन्फिडेंट, स्ट्रॉन्ग, स्मार्ट… और तभी रिद्धि उससे प्रभावित हो गई। ओके… समझ आया।”

रिद्धान गहरी सांस लेता है और अगले पेज पर झुकता है –
“लेकिन जब प्रकृति अचानक कॉलेज छोड़कर चली गई, तब रिद्धि का कॉन्फिडेंस फिर टूट गया। सब कुछ उसके लिए खत्म सा हो गया…”

वो कुछ पल रुकता है। उसकी आँखों में बेचैनी तैरती है।
“लेकिन… क्या यही वजह हो सकती है उसके सुसाइड की? क्या सिर्फ एक लड़की की अनुपस्थिति इतनी बड़ी बात थी कि वो अपनी जान दे दे? नॉनसेंस… कुछ और भी है।”

वो कुर्सी से पीछे टिकता है और खिड़की के बाहर घूरता है।
“अगर इस कहानी से प्रकृति को हटा दूँ… तो क्या एंगल बन सकता है? किसी लड़के का? हो सकता है! शायद…”

उसने तय किया –
“ओके… अब इस केस को प्रकृति के एंगल से हटाकर सोचूंगा।”


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दूसरी तरफ…
प्रकृति कमरे में सुइटकेस पैक कर चुकी थी।
उसने चुपचाप आईने में खुद को देखा। चेहरा थका हुआ, आँखें सूजी हुई… लेकिन मन में एक ही ठान चुकी थी –
“कल मैं भोपाल चली जाऊंगी… माँ-पापा के पास। वहीं सुकून मिलेगा… वहीं आराम मिलेगा।”

उसने लाइट बंद की और बिस्तर पर बैठकर साँस छोड़ी ही थी कि अचानक फोन बज उठा।

कमरे की खामोशी में वो रिंगटोन और भी डरावनी लगी।
प्रकृति ने धीरे-धीरे फोन की ओर हाथ बढ़ाया। स्क्रीन पर नज़र गई—

Unknown Number.

वो ठिठक गई।
“इस वक़्त… कौन…?”

दिल की धड़कन तेज़ हो गई।
हाथ काँपते हुए उसने फोन उठाया।

Hello ma’am, main Citu Hospital se bol rahi hoon… Miss Riddhi Raghuvanshi ki halat bohot kharab hai… aapko abhi hospital aana hoga.”

ये सुनकर प्रकृति की आँखें चौड़ी हो गईं।
उसके होंठ कांपे, पर आवाज़ गले में अटक गई।

“क्या…? रिद्धि…??”

उसके मुँह से बस इतना ही निकल पाया था कि कॉल अचानक कट गई।
उसने फोन स्क्रीन को घूरा… ‘No Service’ लिखा आ रहा था।

कमरे में सन्नाटा फैल गया।
दिल धड़कने लगा जैसे सीने से बाहर निकल जाएगा।

“ये… ये कैसे हो सकता है? रिद्धि तो…”
उसके हाथों से फोन लगभग गिर ही गया।

पैर अपने आप काँपने लगे।
उसकी आँखों में वो सारी बातें घूमने लगीं— रिद्धान का शक, कबीर की बातें, और अब ये कॉल।

उसने घड़ी देखी – आधी रात से ऊपर हो चुका था।
दिमाग कह रहा था – “ये कोई प्रैंक भी हो सकता है।”
पर दिल चीख रहा था – “नहीं… ये सच है… कुछ बहुत बड़ा हो रहा है।”

उसने पलकें बंद कीं और एक पल में फैसला कर लिया –
“मुझे जाना होगा… चाहे कुछ भी हो।”


प्रकृति का पूरा शरीर कांप रहा था।
“रिद्धि के लिए मुझे कॉल क्यों आया…? रिद्धान कहाँ है…? क्या हो रहा है ये सब…”
उसके दिमाग में सवालों की बाढ़ थी, लेकिन अब सोचने का वक्त नहीं था।
उसने झट से फोन उठाया और घर से निकल पड़ी।

गाड़ी पूरे रास्ते हॉर्न देती भाग रही थी… और उसके सीने में धड़कन ऐसे धड़क रही थी जैसे अभी बाहर निकल जाएगी।
हर सेकंड उसके लिए भारी हो रहा था।

हॉस्पिटल पहुँचते ही वो रिसेप्शन पर भागकर पहुँची और घबराते हुए बोली –
“रिद्धि रघुवंशी… कहां है? कैसी है?”


प्रकृति ने हकलाते हुए जवाब दिया –
“म…मुझे कॉल आया था… रिद्धि के बारे में… बहुत क्रिटिकल कहा था…”

रिसेप्शनिस्ट ने फाइल चेक की और ठंडी सांस लेकर कहा –
“मैडम, रिद्धि रघुवंशी हमारी VIP पेशेंट हैं। उनके बारे में कोई भी कॉल अगर जाएगा तो सिर्फ Mr. Raghuvanshi को जाएगा। आपको जरूर किसी ने मज़ाक किया है।”

प्रकृति की आँखें फटी रह गईं।
“क्या…?”

रिसेप्शनिस्ट बोली –
“जी हाँ, रिद्धि बिल्कुल स्टेबल हैं।”

उसी पल पीछे से एक भारी आवाज़ आई –
“हाँ, रिद्धि तो स्टेबल है… लेकिन मेरा दोस्त नहीं।”