Jab Vishwas hi Gunha ban jaye - 1 in Hindi Love Stories by Puneet Katariya books and stories PDF | जब विश्वास ही गुनाह बन जाए - 1

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जब विश्वास ही गुनाह बन जाए - 1

अध्याय 1 : प्रस्तावना – टूटा हुआ अतीत, नए सपनों की शुरुआत 
                     वह समय अर्जुन की ज़िंदगी का नया मोड़ था जब वह गांव की मिट्टी से निकलकर वह भोपाल जैसे बड़े शहर में MBA की पढ़ाई करने आया था। गाँव की सादगी और भोपाल की चकाचौंध में ज़मीन-आसमान का अंतर था, जहा गाव मे अनजाने से भी अपनत्व का भाव आता था वही शहर मे अपने भी पराए से हो जाते है ।
                                        इस नये शहर मे आकर अर्जुन ने कॉलेज मे एडमिशन लिया और निकाल पड़ा अपने लिए रहने लायक जगह तलाश करने , कुछ मेहनत करने पर उसे कॉलेज के पास ही एक कमरा मिल ही गया हा कमरा ज्यादा अच्छा तो नही था पर उतना बुरा भी नही था । अभी तो केवल कमरा ही मिल था बाकी सारी समस्या तो अभी बाकी ही थी जो अर्जुन को घर के कॉमफ़र्ट महोल मे काभी महसुष नही हुई , लेकिन अर्जुन का आत्मविश्वास और पढ़ाई के प्रति समर्पण इतना गहरा था कि वह बाकी दुनियादारी पर ध्यान दिए बिना अपनी पढाई मे पूर्ण समर्पण के साथ लग गया और जल्द ही वह कॉलेज के अध्यापकों का प्रिय विद्यार्थी बन गया।
                   कक्षा में उसकी समझ और मेहनत सबको प्रभावित करती थी। इसी बीच उसकी मुलाक़ात एक सहपाठी लड़की से हुई, और संयोगवस वह लड़की अर्जुन के पास के गाव से ही थी हालंकी अर्जुन उस से पहले काभी मिल नही था और अब वह अर्जुन के रूम के पास वाले मकान मे ही किराये पर रहती थी । 
             
                            शुरुआत में यह दोस्ती केवल पढ़ाई तक सीमित रही—दोनों एक-दूसरे की मदद करते, लाइब्रेरी में नोट्स साझा करते और कभी-कभी कैंटीन की चाय पर लंबी बातें करते, और कॉलेज से लोटते व्यक्त दोनों साथ ही आते । पर धीरे-धीरे यह रिश्ता दोस्ती से आगे बढ़ने लगा , लड़की के मन में अर्जुन के लिए भावनाएँ पनपने लगीं , क्युकी अर्जुन का इस पराए शहर मे मिल जाना और उसके साथ अपनेपन का वह अहसास जो अर्जुन के क्यरिंग स्वभाव मे दिखाई देता था । और इसी के चलते फिर एक दिन उसने साहस जुटाकर अर्जुन से अपने प्रेम का इज़हार किया।
               
                             अर्जुन ने मुस्कराकर उसकी भावनाओं का सम्मान किया, पर स्पष्ट कर दिया कि उसके जीवन के सिद्धांत अलग हैं—वह तभी प्रेम करेगा जब उसे यक़ीन हो कि सामने वाला उसका आज ही नहीं, बल्कि पूरी उम्र का साथी बनेगा। लड़की ने अनमने मन से उसकी बात मान ली, लेकिन मन ही मन वह और भी गहराई से अर्जुन की ओर खिंचती चली गई।
     
                           दिन बीतते गए। एक दोपहर अर्जुन अपने स्कूल के पुराने दोस्त से मिलने उसके कमरे पर पहुँचा। कमरे पर जाकर अर्जुन ने दरवाजा बजाया पर जब दोस्त ने दरवाजा नही खोल तो अर्जुन ने खिड़की के पास जाकर उस से देखने की कोशिश की , पर खिड़की खुलते ही उसने जो दृश्य देखा, वह उसकी आत्मा को हिला गया—उसकी वही सहपाठी लड़की और उसका सबसे करीबी दोस्त जो अर्जुन को भाई बोलत था , दोनों एक-दूसरे के प्रेम आलिंगन मे खोए हुए थे। पलभर में अर्जुन के पैरों तले ज़मीन खिसक गई।
         
                       उसने जब जवाब माँगा, तो दोनों के पास तैयार सफाई थी। लड़की बोली कि दोस्त उसे ब्लैकमेल कर रहा था, और दोस्त ने कहा कि लड़की ही उसके करीब आई थी। पर अर्जुन इतना भोला नहीं था। अगर लड़की सच कह रही थी तो उसने पहले ही अर्जुन को उसके दोस्त के बारे मे क्यों नहीं बताया? और अगर दोस्त सच्चा था तो उसने अपने सबसे करीबी मित्र की भावनाओं का इस तरह विश्वासघात कैसे कर दिया ? 
                     सच अर्जुन के सामने साफ़ था—खोट दोनों के मन में था। दोनों ही उसके भरोसे के क़ाबिल नहीं थे।

                           इस विश्वासघात ने अर्जुन को भीतर तक तोड़ दिया। कुछ दिनों तक वह अकेला और उदास रहा, पर धीरे-धीरे उसने खुद को संभालना सीख लिया। उसने सोचा, “शायद भगवान ने समय रहते मुझे सच दिखा दिया।” उसने खुद को यह दिलासा दिया कि वह लड़की उसकी जीवनसंगिनी कभी बन ही नहीं सकती थी, क्योंकि उसे क्षणिक आकर्षण चाहिए था, न कि स्थायी समर्पण।
    ( पर क्या वासना की भूख इतनी बड़ी होती है की लोग रिश्तों और भरोसों को भी तार-तार कर देते है , और अपनी मर्यादा को लांघ देते है प्रेम के नाम पर ........... 
और यदि एक पवित्र रिश्ते मे बांधने से पूर्व यह प्रेम आलिंगन करना प्रेम की निशानी है तो उस वैश्या को प्रणाम,
जो कम से कम दाम तो लेती है, प्रेम का ढोंग तो नहीं करती।........ )
लगाम दो अपनी चाहतों को,
वरना ये तुम्हें ही रौंद डालेंगी,
नादानी में किया गया शौक़,
कब गुनाहों की ज़ंजीर बन जाए,
पता ही नहीं चलेगा।
और जहाँ नैतिकता का मोल नहीं,
जहाँ चरित्र भी बाज़ार की तरह बिकता है,
ऐसी जगह पर अपनी ज़ुबान को बंद रखना ही सबसे बड़ी समझदारी है।


                   इस घटना ने अर्जुन के दिल को कठोर बना दिया। उसने ठान लिया कि अब न किसी को अपना दोस्त बनाएगा और न ही किसी को दिल के करीब आने देगा। फिर भी, इस घटना ने अर्जुन के दिल को कठोर बना दिया। उसने ठान लिया कि अब न किसी को अपना दोस्त बनाएगा और न ही किसी को दिल के करीब आने देगा। धीरे-धीरे उसे लोगों के पीछे छुपे स्वार्थ दिखने लगे। बातचीत के हर शब्द के पीछे का मतलब, हर मुस्कान के पीछे की मंशा वह समझने लगा। कॉलेज की चकाचौंध में उसे बार बार यह अनुभव हुआ कि कई लड़कियाँ केवल लड़कों का इस्तेमाल करती हैं, आज एक से मीठी बाते करती है तो कल अपना मतलब निकलने के बाद दूसरे से मीठी बाते करने लगती है । यह केवल उसका भ्रम नहीं था, बल्कि उसने इसे अपनी आँखों से महसूस किया था। इसी कारण उसके मन में लड़कियों के लिए नकारात्मक छवि बनने लगी—उसे लगता जैसे बहुत बड़ी संख्या में लड़कियों का स्वभाव नागिन सा होता है । उसकी भावनाएँ जैसे पत्थर बन गईं।


                         लेकिन किताबें उसका सहारा बनीं। जब उसने उपनिषदों और गीता का अध्ययन किया, खुद को योग और साधन मे ढालने लगा अब उसे कृष्ण ही प्यारे लगने लगे और अपने आपको सन्यासी जीवन मे ढालने लग गया ईसलिए अब धीरे-धीरे उसके भीतर की कठोरता पिघलने लगी। ज्ञान की रोशनी ने उसके दिल में फिर से अपनत्व और करुणा का दीप जलाया। उसे महसूस हुआ कि यह संसार उसका दुश्मन नहीं, बल्कि उसका अपना परिवार है। यही दृष्टि उसके आगे के जीवन की दिशा तय करने वाली थी।