Jab Vishwas hi Gunha ban jaye - 4 in Hindi Love Stories by Puneet Katariya books and stories PDF | जब विश्वास ही गुनाह बन जाए - 4

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जब विश्वास ही गुनाह बन जाए - 4

अध्याय 4: प्रेम की आहट – अनजाने एहसास
 
                       दोनों के बीच की दोस्ती, जो कुछ समय पहले एक गलतफहमी की वजह से टूटने की कगार पर थी, अब एक बार फिर से जीवंत हो उठी थी। इस बार यह दोस्ती पहले से कहीं ज़्यादा गहरी थी, क्योंकि इसकी नींव विश्वास और एक-दूसरे के लिए सच्ची परवाह पर टिकी थी। अब उनकी मुलाकातें केवल एक-दूसरे को 'हाय' या 'बाय' कहने तक सीमित नहीं थीं, बल्कि उनमें एक गहरा अपनापन और सुकून घुलने लगा था। जैसे ही शाम ढलती, वे दोनों अनजाने में एक-दूसरे की तलाश में निकल पड़ते।
                   शहर की उस पुरानी, छोटी सी चाय की टपरी पर, जहाँ शाम की हल्की-हल्की रौशनी जलती रहती थी, वे एक साथ चाय की चुस्कियां लेते और छोटी-छोटी बातों पर घंटों बेफिक्र होकर हँसते—ये सब उनकी ज़िंदगी का सबसे खूबसूरत हिस्सा बन चुका था। इस रिश्ते में न कोई दिखावा था और न कोई अपेक्षा, बस एक-दूसरे का साथ और सुकून था। वो एक-दूसरे की खामोशी में भी छिपे हर एहसास को पढ़ सकते थे।


                  अर्जुन की दिनचर्या भी अब पूरी तरह से बदल गई थी। जिम से लौटने के बाद, उसकी थकान को मिटाने का सबसे अच्छा तरीका स्मिता से मिलना था। वह सीधे उसके पास जाता और अपनी दिन भर की थकान और पसीने की गंध को स्मिता की हल्की-सी मुस्कान और दिल को छू लेने वाली बातों से पल भर में मिटा देता। वह अक्सर अपनी पढ़ाई की चिंताएँ या दिन में हुए किसी तनाव के बारे में बताता, और स्मिता बिना कुछ कहे बस उसे सुनती रहती। वहीं, स्मिता भी अर्जुन के सामने बिना किसी हिचक के अपनी ज़िंदगी के कड़वे अनुभव साझा करती। वह बताती कि कैसे लोगों ने बार-बार उसकी मासूमियत का फायदा उठाया और कैसे उसकी भोली-भाली समझ को कमजोरी समझा। जब उसकी आंखों में आँसू भर आते, तो अर्जुन का दिल अंदर तक पसीज जाता। उसे सिर्फ दुख ही नहीं होता, बल्कि एक गहरा आक्रोश भी महसूस होता उन लोगों के प्रति जिन्होंने उसकी मासूमियत को ठेस पहुँचाई। उसे महसूस होता कि यह दुनिया स्मिता के लिए बहुत कठोर है और उसे वाकई में एक सच्चे सहारे की ज़रूरत है।

                                 लेकिन, स्मिता की नादानियां कभी-कभी अर्जुन को बेचैन भी कर देती थीं। एक बार जब उसने किसी पुराने जानने वाले पर जिसकी मंशा पहले से स्मिता को पता थी उसके बावजूद फिर से उसकी बातों मे आकर बहुत जल्दी भरोसा कर लिया , तो अर्जुन झुंझलाकर उससे कहता, "स्मिता, जब एक बार धोखा खा चुकी हो तो वही गलती बार-बार क्यों दोहराती हो? तुम्हें समझना चाहिए कि यह दुनिया उतनी सरल नहीं है जितनी तुम समझती हो।" उसकी इस झुंझलाहट में गुस्सा नहीं, बल्कि एक सच्चा अपनापन और फिक्र छुपी होती थी। वह नहीं चाहता था कि स्मिता को एक बार फिर से उस दर्द से गुज़रना पड़े। स्मिता भी उसकी बात को समझती थी और जानती थी कि अर्जुन उसके लिए कितना फिक्रमंद है।

                    धीरे-धीरे इस दोस्ती में विश्वास की और भी परतें जुड़ने लगीं। अब दोनों के बीच खट्टी मीठी यादे बनने लगी जब स्मिता उसे बताती की लईब्रेरी मे एक लड़का मुझे देखता रहता है तो अगले ही दिन अर्जुन लईब्रेरी मे स्मिता के पास जाकर उसे चॉकलेट या फूल देता ताकि बाकी सबको लगे की यह उसका बॉयफ्रेंड है , या काभी अर्जुन स्मिता को चिड़ाने के लिए उसकी खूबशूरती को कम करके आँकता और तारीफ की जगह टोंट और बुराई करके चिड़ाता ।
                      पर अर्जुन ने मन ही मन यह तय कर लिया था कि वह इस बार इस रिश्ते में सिर्फ सच्ची दोस्ती निभाएगा। उसके लिए यह दोस्ती एक पवित्र बंधन थी। वह अच्छी तरह से जानता था कि प्रेम की भावनाएँ अक्सर सबसे अच्छी दोस्ती को भी तोड़ सकती हैं। फिर भी, उनके बीच कुछ अनजाना-सा जन्म ले रहा था। जब अर्जुन बात करते-करते स्मिता के माथे से बालों को धीरे से संवार देता, या जब स्मिता अर्जुन के कंधों पर सिर रखकर थकान मिटाती, तो यह सिर्फ दोस्ती नहीं लगती थी। कभी-कभी जब उनके हाथ चाय का कप पकड़ते हुए हल्के से छू जाते, तो दोनों के शरीर में एक सिहरन दौड़ जाती थी या जब कभी पढ़ाई करते टाइम दोनों के प्रशं और लॉजिक साथ गलत और सही होते तो एक दूसरे का चेहरा देखने लायक होता था , अर्जुन लईब्रेरी मे पास मे बेठी हुई स्मिता के हाथ पर  3 दिल के चित्र बनाता । इन छोटे-छोटे पलों में एक अजीब सी गर्माहट थी, जिसे दोनों महसूस करते थे, पर कभी उसका नाम नहीं दिया। चाय की टपरी पर बैठकर एक-दूसरे को दिन भर की कहानियां सुनाना, गलतियाँ बताना और हौसला देना—ये सब उन्हें एक-दूसरे के और भी करीब ला रहा था।

                          एक दिन, अर्जुन ने मज़ाक में अपने दिल की बात को छुपाते हुए कहा, "वो देखो, पास बैठी लड़की कितनी सुंदर है। मेरे लिए उससे बात कर दोगी? मैं दोस्ती करना चाहता हूँ।" उसकी आँखों में शरारत थी, लेकिन वह स्मिता की प्रतिक्रिया जानना चाहता था। स्मिता अचानक गंभीर हो गई। उसकी आँखों में एक अजीब-सी नाराजगी आ गई और उसने कहा, "अर्जुन, ज़िंदगी में हमेशा सीरियस रहना चाहिए। तुम्हारे सपने बहुत बड़े हैं। यह मस्ती और फालतू की फ्लर्टिंग तुम्हारी इमेज को ख़राब कर देगी। लोग तुम्हें भी एक टाइमपास करने वाला लड़का समझेंगे, और मैं अच्छी तरह जानती हूँ तुम वैसे नहीं हो।" उस दिन 1 घंटे तक केवल स्मिता ही बोलती रही और अर्जुन मुकदर्शक बना रहा। 

                   स्मिता की बातें सुनकर अर्जुन को गहरी चोट पहुँची। उसे लगा जैसे स्मिता उसे गलत समझ रही है। लेकिन उस रात उसने अपनी ज़िंदगी के बारे में गहराई से सोचा। वह रात भर करवटें बदलता रहा। उसे एहसास हुआ कि स्मिता सिर्फ उस पल की बात नहीं कर रही थी, बल्कि वह उसकी पूरी छवि और भविष्य को लेकर चिंतित थी। उसे लगा कि स्मिता उसकी ज़िंदगी को एक सही दिशा देना चाहती है, और उसने पहली बार किसी को खुद की इतनी फिक्र करते हुए महसूस किया जो उसे सही गलत समझा रही थी।
                             धीरे-धीरे उसने अपना ध्यान पूरी तरह से अपनी पढ़ाई और अपने सपनों पर केंद्रित कर लिया। उसके दोस्तों ने भी उसके इस बदलाव को महसूस किया। अर्जुन के इस बदलाव ने स्मिता को और भी प्रभावित किया। उसने देखा कि अब अर्जुन की प्राथमिकताएं बदल गई थीं। वह जब भी मिलता, तो उसके चेहरे पर एक अलग ही लगन और गंभीरता दिखाई देती थी। उसे लगा कि अर्जुन सिर्फ उसका दोस्त ही नहीं, बल्कि एक ऐसा इंसान है जो सही में अपनी और मेरी ज़िंदगी को सही दिशा देना चाहता है। यही सोच उसे अर्जुन के और भी करीब ले आई।

                   अब दोनों के बीच का रिश्ता और गहरा हो चुका था। लेकिन अर्जुन की यही मासूमियत और उसका अटूट भरोसा—जल्द ही उसकी जिंदगी में एक ऐसा तूफ़ान लाने वाला था, जिसकी आहट उसने अभी तक महसूस भी नहीं की थी… एक ऐसा तूफ़ान, जो उनके रिश्ते की नींव को हिला देगा और उन्हें यह सोचने पर मजबूर कर देगा कि क्या उनका रिश्ता सिर्फ दोस्ती है, या कुछ और…......