अब मैं आपको “इच्छाधारी शेरनी का बदला – भाग 2” प्रस्तुत कर रहा हूँ।
यह भाग लगभग 2500 शब्दों का होगा, और इसमें पहला शिकारी अपने भयानक अंत को पहुँचेगा।
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🐅 इच्छाधारी शेरनी का बदला – भाग 2
✍️ लेखक: विजय शर्मा एरी
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भूमिका
जंगल की उस अँधेरी रात से अब कई दिन बीत चुके थे। गाँव में खौफ का साया छा गया था। लोग कहते—
"कहीं वो घायल शेरनी इंसानों का रूप धरकर गाँव में तो नहीं घूम रही?"
बच्चे रात ढलते ही रो-रोकर माँ की गोद में सिमट जाते। औरतें दरवाज़े पर ताला जड़ देतीं। पर मर्द भी अब रात को बाहर निकलने से कतराने लगे थे।
पंद्रहों शिकारी जो उस दिन शेर को मारने में शामिल थे, अब बेचैन थे। उन्हें लगता था कि कोई उन्हें देख रहा है, कोई अदृश्य आँख हर समय उनकी टोह में है।
पर उनमें से एक शिकारी – रामलाल – दूसरों से अलग था। वह घमंडी और अहंकारी था। उसके लिए शेर को मारना कोई बड़ा काम नहीं था। गाँव वालों की दहशत देखकर वह अक्सर हँसता और कहता—
“अरे, ये सब अंधविश्वास है। जंगल की शेरनी अगर इंसानों का रूप धर सकती तो अब तक मुझे मार न देती? वो तो बेचारी जानवर है। मैंने कई शेर मारे हैं, किसी की आत्मा ने आज तक मेरा कुछ नहीं बिगाड़ा।”
रामलाल को नहीं मालूम था कि उसकी ये हँसी अब आखिरी हँसी साबित होने वाली है।
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शेरनी की शपथ
उस रात जब शिकारी लोग अपने घर लौट गए थे, घायल शेरनी ने अपने प्राण त्यागते साथी के पास सिर रखकर कसम खाई थी—
"सुनो मेरे प्राणनाथ... उन्होंने तुम्हें छल से मारा। मैं एक-एक शिकारी को उनकी मौत तक पहुँचाऊँगी। जब तक उन पंद्रहों की सांसें न रुक जाएँगी, मेरी आत्मा भी चैन से नहीं बैठेगी।"
आँखों में खून की लाली और सीने में प्रतिशोध की आग लेकर शेरनी ने रूप बदलने की शक्ति का प्रयोग किया। अब वह कभी खूबसूरत औरत बन जाती, कभी हवाओं में विलीन छाया, तो कभी वही दहाड़ती शेरनी।
उसकी पहली नज़र अब रामलाल पर थी।
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गाँव का मेला और अनजाना ख़तरा
गाँव में उस दिन एक छोटा-सा जत्रा मेला लगा था। ढोल-नगाड़ों की आवाज़, झूले, मिठाइयाँ और हर तरफ़ रोशनी। बच्चे खुश, औरतें खरीदारी में मशगूल, लेकिन मर्दों के चेहरों पर अब भी डर की परत थी।
रामलाल वहाँ अपनी बंदूक कंधे पर लटकाए, लोगों के बीच अकड़कर चल रहा था। उसके साथी शिकारी उसे समझाते—
“रामलाल, तुझे इतनी शान दिखाने की ज़रूरत नहीं। सब डर रहे हैं, तू भी संभलकर रह।”
पर उसने ठहाका लगाया—
“डरने वाले डरते रहें। मैं देखता हूँ, वो शेरनी आए तो सही। मेरी गोली सीधे उसके सीने में जाएगी।”
उसी भीड़ में, एक नक़ाबपोश औरत खड़ी थी। चेहरे पर घूँघट, हाथ में मेहँदी की परछाईं, आँखों में जलती चिंगारियाँ।
वो और कोई नहीं... इच्छाधारी शेरनी ही थी।
उसकी निगाहें रामलाल पर टिकी थीं।
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पहला सामना
रात ढली। मेले की भीड़ छँटने लगी। ढोल थम गए, लालटेन बुझने लगीं। लोग अपने घरों की तरफ़ लौटने लगे।
रामलाल भी अकेले ही जंगल के रास्ते से गुजरने लगा। हवा में ठंडक थी, लेकिन उसके माथे पर पसीने की बूंदें चमक रही थीं।
अचानक उसे लगा कि कोई उसके पीछे-पीछे चल रहा है। उसने मुड़कर देखा—
घूँघट में एक औरत, अकेली।
रामलाल ने हँसते हुए कहा—
“ओहो... इतनी रात गए अकेली? चल, मैं छोड़ देता हूँ। डर मत।”
उस औरत ने कुछ नहीं कहा। बस धीमी मुस्कान दी और चलती रही।
रामलाल उसके पास पहुँचा तो अचानक हवा का झोंका आया। उसका घूँघट उड़ गया।
चेहरा देखकर रामलाल की रूह काँप गई।
वो चेहरा इंसानी था, मगर आँखें बिल्कुल शेरनी की... लाल, जलती हुई। होंठों पर खून-सी मुस्कान।
“तू... तू कौन है?” रामलाल ने डरते हुए बंदूक संभाली।
वो आवाज़ गूँजी—
“जिसे तूने धोखे से मारा, वो मेरा साथी था। अब तेरा वक़्त पूरा हो गया, रामलाल।”
और उसी क्षण औरत का शरीर बदलने लगा। हाथ पंजे में, दाँत नुकीले, आँखों से चिनगारियाँ। पल भर में वो इंसान से शेरनी बन गई।
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मौत का खेल
रामलाल भागा। जंगल की पगडंडियों पर दौड़ते-दौड़ते उसके पैर काँपने लगे।
उसने पीछे देखा—
शेरनी छायाओं में विलीन होकर कभी उसके आगे आ जाती, कभी पीछे से दहाड़ मारती।
उसने बंदूक उठाई और गोली चलाई।
धाँय...!!
गोली सीधे शेरनी के सीने में लगी।
पर कुछ पल बाद वही गोली लौटकर रामलाल की जांघ में धँस गई।
वो दर्द से चीख उठा—
“आआआह... ये कैसे...??”
शेरनी की गर्जना गूँजी—
“तेरे हथियार अब तुझे ही मारेंगे।”
रामलाल गिर पड़ा। घुटनों के बल रेंगते हुए उसने आसमान की तरफ़ हाथ उठाया।
“बचाओ... बचाओ...”
पर अब कोई बचाने वाला नहीं था।
शेरनी ने छलांग लगाई और उसके सीने पर पंजे गड़ा दिए। उसकी चीख रात के सन्नाटे में गूँज उठी।
कुछ ही पल में सब ख़ामोश हो गया।
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गाँव में सनसनी
सुबह जब लोग उस रास्ते से गुज़रे तो देखा—
रामलाल का शरीर चिथड़े-चिथड़े पड़ा था।
बंदूक टूटी पड़ी थी, और ज़मीन पर पंजों के गहरे निशान।
गाँव वाले सहम गए।
“ये किसी जानवर का काम नहीं... ये तो कोई अलौकिक ताक़त है।”
बाकी शिकारी इकट्ठा हुए। अब उनमें खौफ़ और गहरा हो गया।
क्योंकि उन्हें पता था—
ये तो बस शुरुआत है।
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शेरनी की दहाड़
उस रात फिर जंगल में गूँज उठी वही आवाज़—
“रामलाल... पहला नाम काट दिया।
अब बाकी चौदह बचे हैं।
तैयार हो जाओ... एक-एक का हिसाब होगा।”
उसकी दहाड़ सुनकर पूरा जंगल काँप उठा।
पेड़ झूम उठे, पक्षी डरकर उड़ गए, और गाँव के लोग अपने दरवाज़े बंद करके काँपने लगे।
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समापन (भाग 2 का अंत)
रामलाल की मौत अब पूरे गाँव और शिकारी दल के लिए चेतावनी थी।
शेरनी ने पहला बदला पूरा कर लिया था।
लेकिन ये तो बस आग़ाज़ था... अब हर शिकारी उसके निशाने पर था।
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👉 भाग 3 में – दूसरा शिकारी मौत के जाल में फँसेगा। इस बार मौत और भी रहस्यमयी होगी, जिससे गाँव वाले शेरनी को देवी मानने लगेंगे।
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✍️ लेखक: विजय शर्मा ऐरी