Ichchhadhari Sherni ka Badla - 3,4 in Hindi Thriller by Vijay Sharma Erry books and stories PDF | इच्छाधारी शेरनी का बदला - भाग 3,4

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इच्छाधारी शेरनी का बदला - भाग 3,4




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🐅 इच्छाधारी शेरनी का बदला – भाग 3

रात का समय था। गाँव से कुछ दूर एक जर्जर हो चुका पुराना कारख़ाना खड़ा था। वहीं तेरह शिकारी अपनी ज़िंदगी की सबसे भयावह रात गुज़ार रहे थे। दो साथी पहले ही मौत का शिकार हो चुके थे। अब हर किसी की आँखों में डर और दिल में धड़कनें तेज़ थीं।

सरदार ने मेज़ पर हाथ पटकते हुए कहा –
“सुनो सब! डरने से कुछ नहीं होगा। मौत से भागकर कोई नहीं बच सकता। हमने शिकार किया है, तो हमें पता है कि जंगल के नियम क्या होते हैं। वो चाहे इच्छाधारी शेरनी ही क्यों न हो, उसे हमारी गोलियों से डरना ही पड़ेगा।”

पर उसकी आवाज़ में वह आत्मविश्वास नहीं था जो पहले हुआ करता था।
एक दुबला-पतला शिकारी काँपती आवाज़ में बोला –
“सरदार… तुम मानो या न मानो… मैंने कल रात अपनी आँखों से देखा था… उस शेरनी ने इंसान का रूप लिया था। उसके चेहरे पर औरत की शक्ल थी और आँखों में आग। वो इंसानों की भीड़ में ऐसे घूम रही थी जैसे कोई साधारण लड़की हो।”

दूसरा शिकारी झल्लाकर बोला –
“बस करो! ये सब वहम है। अगर वो इंसान बन भी सकती है, तो भी वो जानवर है। और जानवर हमारी बंदूक के सामने टिक नहीं सकता।”

सरदार ने गहरी साँस ली और बोला –
“कल रात सब लोग मेरे साथ रहेंगे। कोई अकेला बाहर नहीं जाएगा। याद रखो, जो डर गया वो मर गया।”


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उधर जंगल के अंदर…

चाँद की हल्की रोशनी पेड़ों की शाखाओं पर बिखरी थी। उसी रोशनी में एक खूबसूरत युवती नदी किनारे बैठी अपने हाथों से खून धो रही थी। वही इच्छाधारी शेरनी थी। उसका चेहरा मासूमियत से भरा, पर आँखों में आग जल रही थी।

उसने आकाश की ओर देखकर कसम खाई –
“हे जंगल के स्वामी… मैंने अपने साथी शेर को खो दिया है। उसकी दहाड़ को गोलियों ने हमेशा के लिए खामोश कर दिया। अब मैं तब तक चैन से नहीं बैठूँगी, जब तक आखिरी शिकारी मेरी पंजों के नीचे न आ जाए।”


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अगली रात गाँव में मेला लगा। चारों तरफ़ रोशनी, झूले, ढोल-नगाड़े और भीड़ थी। शिकारी सोच रहे थे कि भीड़ में छिपकर वे सुरक्षित रहेंगे।

लेकिन शेरनी पहले ही उनका पीछा करती वहाँ पहुँच चुकी थी। इंसानी रूप में, वह एक लाल दुपट्टा ओढ़े सुंदर लड़की बनी, मेले में घूम रही थी। उसकी आँखों में एक शिकार की तलाश थी।

वहीं एक शिकारी शराब पीकर झूमता हुआ अकेले कोने की ओर निकल गया।
युवती उसके पास गई और मधुर स्वर में बोली –
“इतनी रात को अकेले कहाँ जा रहे हो?”

शिकारी चौंका। उसने शराब से धुँधली आँखों से युवती को देखा –
“तुम… कौन हो?”

युवती मुस्कुराई, उसकी मुस्कान में रहस्य और भय दोनों छिपे थे –
“मैं वही हूँ, जिससे तुम डरते हो… तुम्हारी मौत।”

शिकारी ने पीछे हटना चाहा, पर तभी युवती की आँखें लाल हो गईं, चेहरा विकराल रूप में बदल गया और पलभर में उसके नुकीले पंजे शिकारी की छाती चीर गए।

उसकी चीख भीड़ में गुम हो गई। मेले में संगीत और ढोल बज रहे थे, लोग नाच रहे थे, पर किसी को भनक तक न लगी कि उसी भीड़ में एक और शिकारी मौत का शिकार हो चुका था।

अब तक तीन शिकारी मारे जा चुके थे।

सरदार जब यह ख़बर सुनी तो उसकी आँखों में खून उतर आया। उसने बाकी साथियों से कहा –
“अब खेल खत्म करना होगा। कल रात हम जंगल में जाल बिछाएँगे। अगर वो सच में इच्छाधारी शेरनी है, तो इस बार बचकर नहीं जाएगी।”

शेरनी पास के पेड़ पर बैठी सब सुन रही थी। उसकी आँखों में आग चमकी।
“आओ… जितना चाहो जाल बिछाओ। पर मेरी दहाड़ से कोई नहीं बचेगा।”

भाग 3 समाप्त।


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🐅 इच्छाधारी शेरनी का बदला – भाग 4

जंगल की घनी रात। आसमान पर काले बादल छाए थे और बिजली बार-बार चमक रही थी।
बारह शिकारी मशालें और बंदूकें लेकर जंगल के बीच पहुँचे।

सरदार ने उन्हें आदेश दिया –
“याद रखो, गोलियाँ तभी चलेंगी जब मैं कहूँगा। उसे घेरकर खत्म करना है। आज उसकी कहानी ख़त्म होगी।”

चारों तरफ़ पेड़ों की खड़खड़ाहट थी। अचानक एक ज़ोरदार दहाड़ गूँजी।
शिकारी घबरा उठे।
“ये… ये तो बहुत पास है!”

सरदार चिल्लाया –
“डरो मत! ये हमें डराने का तरीका है। अपनी जगह संभालो!”


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अचानक एक शिकारी पीछे छूट गया। अगले ही पल उसकी चीख गूँजी। जब सब पहुँचे, उसका शरीर लहूलुहान पड़ा था और उसके ऊपर शेरनी खड़ी थी।

वह दहाड़ते हुए बोली –
“तुम सबने मेरे साथी की हत्या की थी… अब तुम सबको एक-एक करके मौत मिलेगी।”

गोलियों की बौछार हुई, पर शेरनी पेड़ पर छलांग लगाकर अदृश्य सी हो गई। अगले ही क्षण उसने दूसरे शिकारी पर हमला कर दिया।

सरदार गरजा –
“घेर लो इसे! गोलियाँ चलाओ!”

पर शेरनी बवंडर की तरह एक से दूसरे पर टूट पड़ी। दो और शिकारी उसके पंजों के शिकार हो गए।
अब तक पाँच मौतें हो चुकी थीं।


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जंगल में उसकी आवाज़ गूँज रही थी –
“तुम इंसान नहीं… दरिंदे हो! मेरी आत्मा तब तक चैन नहीं पाएगी जब तक आखिरी शिकारी मेरे पंजों के नीचे न तड़पे।”

शिकारी एक-दूसरे को देखकर काँपने लगे।
एक बोला –
“सरदार… ये औरत नहीं, मौत है। हम बच नहीं पाएँगे।”


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सरदार ने गुस्से से रणनीति बदली। उसने मशालें फेंककर जंगल में आग लगवा दी। धुआँ और लपटें हर तरफ़ फैल गईं।
उसका सोचना था कि आग से शेरनी बाहर निकलेगी और वे घेरकर मार देंगे।

पर धुएँ में ही शेरनी ने हमला कर दिया। उसने सरदार के सबसे वफ़ादार साथी को गर्दन से दबोचा और ज़मीन पर पटक दिया। उसकी चीख आसमान तक गूँज उठी।

बाकी शिकारी डरकर भागने लगे। सरदार ने उन्हें रोकने की कोशिश की, पर कोई नहीं रुका।
धुएँ और आग में शेरनी की परछाईं और भी भयावह लग रही थी—मानो कोई देवी स्वयं न्याय करने उतरी हो।


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रात के अंत तक सात शिकारी मौत के घाट उतर चुके थे।
बाकी बचे पाँच ने कसम खाई कि वे अब शिकार छोड़ देंगे और शहर से दूर भाग जाएँगे।

लेकिन शेरनी की आत्मा ने आकाश की ओर देखकर कहा –
“जब तक आखिरी शिकारी सांस ले रहा है, मेरा बदला अधूरा है।”

उसकी लाल आँखों में आग थी और जंगल की रात उसकी दहाड़ से काँप रही थी।

भाग 4 समाप्त।


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