Chapter 4

रात गहरी हो चुकी थी।
आसमान पर बादल फैले हुए थे और बीच-बीच में तेज़ हवा के झोंके सूनी गलियों में सीटी बजाते निकल जाते। कभी-कभार दूर से कुत्तों के भौंकने की आवाज़ सुनाई देती।
Bhai , जल्दी करिए, खाना खा लीजिए।” मैंने कहा।
रवि ने थके हुए अंदाज़ में कुर्सी पर बैठते हुए कहा—
“जाचु, आज मैं बहुत थक गया हूँ। लेकिन… सुना है, आज फिर कोई ग़ायब हो सकता है।”
मैंने काँपती आवाज़ में पूछा—
“आपको सच में लगता है कि कोई लोगों को ग़ायब कर रहा है? कौन है वो? कोई इंसान… या कुछ और?”
रवि ने गहरी साँस छोड़ी।
“कहना मुश्किल है। बहुत से लोग कहते हैं उन्होंने डरावनी आवाज़ें सुनी हैं। मैंने भी पहले सुनी थीं, लेकिन अब काफ़ी समय से चुप्पी है। फिर भी, हमें सतर्क रहना चाहिए।”
“क्या आपने कभी उसे देखा है?” मैंने धीमे से पूछा।
“नहीं… और मैं चाहता भी नहीं।” रवि ने कठोर स्वर में कहा। “हमें बस उससे दूर रहना है।”
उसने थकान से आँखें मलीं।
“मुझे अब नींद आ रही है। तू भी जा, सो जा।”
मैंने ज़िद की—
“नहीं, मुझे नींद नहीं आ रही। और बताइए न उसके बारे में, कोई कहानी ही सही।”
रवि मुस्कुराया।
“तेरे अंदर का writer जाग गया है। कहानियाँ सुनने का मन है? पहले ये लो… तेरे लिए मैंने खास गरमागरम छोले-भटूरे बनाए हैं।”
मैंने आँखें चमकाते हुए प्लेट उठाई—
“वाह भैया! आप तो कमाल करते हो। इतने टेस्टी हैं! लेकिन हर अमावस को आप मेरा पसंदीदा खाना क्यों बनाते हो? मैंने नोटिस किया है।”
रवि हल्की हँसी के साथ बोला—
“आज का दिन बहुत बोरिंग होता है। सबको घर में रहना पड़ता है। और तुझे भी तो मुश्किल लगता होगा। इसलिए तेरे चेहरे पर मुस्कान लाने के लिए… मैं तेरी पसंद का खाना बना देता हूँ।”
रवि (हँसते हुए)
"चलो, जल्दी-जल्दी खाना ख़त्म करो। मैं बर्तन धोने जा रहा हूँ। अपने बर्तन भी दे देना मुझे… किचन में ले जाऊँगा।"
जाचु (मुँह फुलाकर, लेकिन मज़ाक में)
"ठीक है, बॉस।"
रवि मुस्कुराते हुए किचन में चला गया।
उसके जाते ही टेबल पर अकेली बैठी जाचु धीरे-धीरे खाना खाती रही।
कौर मुँह में जाते ही, मन में ख्याल उठने लगे—
"ये जो भी है… जो भी लोगों को गायब कर रहा है… क्या वो सिर्फ़ उन्हें छुपाता है या… कहीं उन्हें मार तो नहीं देता?"
उसने घबराकर पानी का गिलास उठाया और जल्दी से घूँट भरा।
दिल की धड़कनें तेज़ हो गईं।
"और अगर इसमें यश शामिल हुआ तो? क्या पता… वो ही लोगों को गायब करता हो… और फिर उनके खून से अपनी प्यास बुझाता हो?"
उसके चेहरे पर पसीने की बूंदें चमकने लगीं।
कमरे का माहौल अचानक भारी-सा लगने लगा।
जाचु ने खुद को झटकते हुए कहा—
"नहीं… मुझे उससे दूर रहना होगा। बहुत दूर।"
लेकिन जैसे ही यह ख्याल आया, उसकी आँखें धीरे-धीरे भारी होने लगीं।
पलकों पर नींद का बोझ उतर आया।
खिड़की के पार से आती हवा ने परदे हिलाए…
दीवार पर लंबी, अजीब-सी परछाइयाँ रेंगने लगीं।
जाचु की साँसें गहरी हो गईं।
ओंछी जम्हाई लेते हुए वो कुर्सी पर ही सिर टिकाकर सो गई।
कमरे में अब सिर्फ़ घड़ी की टिक-टिक और बाहर की अजीब खामोशी रह गई थी।
मानो सन्नाटा भी किसी आने वाली आहट का इंतज़ार कर रहा हो।
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INT. RAVI & JACHU का घर – किचन
रसोई में बर्तनों की हल्की खनखनाहट गूँज रही थी।
रवि आवाज़ लगाता है—
रवि (हल्के मज़ाक में)
"जाचु… खा लिया तो बर्तन दे जा।"
कोई जवाब नहीं मिला।
वो दोबारा पुकारता है,
"जाचु… सुन रही है ना?"
खामोशी… बस घड़ी की टिक-टिक।
रवि टेबल की ओर बढ़ा और देखा—
जाचु खाने की प्लेट के पास ही झुकी हुई, गहरी नींद में थी। उसके होंठों से हल्की-सी खर्राटों की आवाज़ निकल रही थी।
रवि मुस्कुराया।
"वाह! जिन्हें नींद नहीं आ रही थी, वो यही सो गईं।"
धीरे से उसे बाँहों में उठाया और कमरे में ले जाकर बिस्तर पर सुला दिया।
धीमे स्वर में उसके माथे को देखते हुए बोला—
"कुछ कहानियाँ कभी अंत तक नहीं पहुँचतीं जाचु… समझना जल्दी।"
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EXT. गाँव के पिछवाड़े – SONAM & RAHUL
अँधेरी गलियों के पीछे से एक हल्की फुसफुसाहट गूँजी।
"…सोना…म?"
राहुल काँपते हुए कदम रख रहा था।
उसकी साँसें भारी थीं। पत्तों के हिलने से और भी बेचैनी बढ़ गई।
तभी लाल ड्रेस में, खुले लंबे बालों के साथ, चमकती लिपस्टिक लगाए सोनम बाहर निकली। उसकी मुस्कान गहरी और अजीब थी।
राहुल (नर्वस होकर)
"त.. तुम… आज बहुत ख़ूबसूरत लग रही हो।"
सोनम (धीरे-धीरे पास आते हुए)
"और तुम भी… तुम्हारी खुशबू मुझे अपनी तरफ खींच रही है। चलो… वहाँ चलते हैं… जहाँ कोई नहीं आता।"
राहुल ने हाँ में सिर हिलाया।
दोनों कार में बैठे और सन्नाटे में रास्ता तय करने लगे।
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INT. CAR – रास्ते में
कार की हेडलाइट्स अँधेरे को चीरते आगे बढ़ रही थीं।
बाहर सिर्फ़ पेड़ों की लम्बी कतारें और स्याह अंधेरा था।
राहुल (काँच से बाहर झाँकते हुए)
"ये… ये कौन-सा रास्ता है? लगता है हम जंगल में जा रहे हैं।"
सोनम (आँखों में अजीब चमक के साथ)
"हाँ… थोड़ी दूर और। मैं चाहती हूँ हमारे खास पल… जंगल की खामोशी के साथ हों।"
राहुल ने उसे देखा।
"तुम… आज कुछ अलग लग रही हो।"
सोनम मुस्कुराई और कार रुकवाकर बोली—
"आ गए…"
उसने राहुल का हाथ पकड़ा और जंगल के अँधेरे में खींच ले गई।
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EXT. जंगल – रात
जंगल के अंदर घुसते ही माहौल बदल गया।
चारों तरफ़ अजीब आवाज़ें…
कहीं उल्लू की हूटिंग, कहीं दूर से जानवरों की चीख, तो कहीं पत्तों को हिलाती तेज़ हवा।
राहुल ने घबराकर कहा—
"सोनम… हमें यहाँ से निकल जाना चाहिए। ये… ये सही जगह नहीं है।"
सोनम ने उसके होंठों पर उँगली रख दी।
"चुप… अब चुप रहो।"
उसकी आँखें अँधेरे में चमक रही थीं।
धीरे-धीरे उसने अपना टॉप उतारना शुरू किया।
राहुल के हाथ काँपते हुए उसके हाथ से टकराए।
अचानक उसके हाथ में कुछ नुकीला चुभ गया।
खून की पतली धार बहने लगी।
सोनम (ठंडी मुस्कान के साथ)
"कुछ नहीं हुआ… पास आओ राहुल…"
राहुल ने उसकी आँखों में देखा।
उसकी आँखें अब लाल हो चुकी थीं…
दाँत नुकीले होकर बाहर निकल आए थे।
सोनम (सन्न रहकर, काँपती आवाज़ में)
"ये… ये क्या हो रहा है तुम्हें, राहुल?"
राहुल की गर्दन हल्की-सी तिरछी हुई और उसने सोनम को अपनी तरफ़ खींच लिया।
सोनम (चीखते हुए)
"नहीं!!!"
उसकी चीख पूरे जंगल में गूँज गई।
पंछी अचानक उड़ने लगे, जानवरों की दहाड़ें और तेज़ हो गईं, और हवा भयंकर रूप से बहने लगी…
मानो पूरा जंगल उस आवाज़ से डर गया हो।
Countinue....
By pooja kumari