जानवी ने विराज की डायरी को कई बार पढ़ा। हर बार एक नई बात समझ आई।
> “मैंने तुम्हें कभी छोड़ा नहीं, बस खुद से लड़ता रहा।”
उसने खुद से पूछा — क्या विराज की खामोशी में सचमुच प्यार था?
क्या वो डर था या मोहब्बत की गहराई?
उस रात बारिश हो रही थी। जानवी ने अपनी माँ की पुरानी साड़ी पहनी — वही जो विराज को पसंद थी। वो मंदिर की ओर निकल पड़ी — जहाँ विराज अक्सर अकेले बैठा करता था।
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विराज वहीं बैठा था — मंदिर की आखिरी सीढ़ी पर।
उसके हाथ में जानवी का दिया हुआ कड़ा था।
उसने आँखें बंद कीं और मन ही मन कहा:
> “अगर आज वो आ जाए, तो मैं सब कह दूँगा।”
जानवी आई। चुपचाप। बिना कोई शब्द बोले।
विराज ने उसकी आहट पहचानी — जैसे दिल ने कहा हो, “वो आ गई।”
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जानवी ने विराज के पास बैठते हुए कहा:
> “तुम्हारी खामोशी अब मुझे डराती नहीं, क्योंकि अब मैं उसमें अपना नाम सुन सकती हूँ।”
विराज की आँखें भर आईं।
उसने कहा:
> “मैंने तुम्हें खोया नहीं था, जानवी। मैं बस खुद को ढूंढ रहा था — और जब पाया, तो सबसे पहले तुम्हारा नाम लिया।”
जानवी ने उसकी हथेली थामी।
> “तो अब क्या? फिर से शुरुआत करें?”
विराज ने सिर हिलाया — लेकिन कहा:
> “अगर तुम चाहो, तो मैं फिर से तुम्हारा हो सकता हूँ। लेकिन इस बार मैं खुद को खोने नहीं दूँगा।”
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जानवी ने कहा:
> “एक शर्त है — इस बार अगर तुम चुप रहोगे, तो मैं नहीं रुकूँगी।”
विराज मुस्कुराया।
> “इस बार मेरी खामोशी सिर्फ तुम्हारे लिए होगी — लेकिन जब तुम चाहो, मैं बोलूँगा।”
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बारिश तेज हो गई थी।
जानवी ने कहा:
> “हर बार जब बारिश होती है, मैं तुम्हें याद करती हूँ। अब चाहती हूँ कि हर बारिश में तुम मेरे साथ रहो।”
विराज ने उसका हाथ थामकर कहा:
> “अब हर बूंद में सिर्फ हम होंगे।”
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बारिश थमी थी, लेकिन जानवी के मन में अब भी हलचल थी।
विराज ने चाय बनाते हुए कहा:
> “हम हर शाम साथ बिताते हैं… क्या अब एक सुबह साथ शुरू करें?”
जानवी ने उसकी आँखों में देखा —
> “तुम घर की बात कर रहे हो?”
विराज मुस्कराया:
> “मैं साथ की बात कर रहा हूँ — घर तो बस उसका पता है।”
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जानवी ने अपनी स्केचबुक में एक नया चित्र बनाया —
एक घर, जिसमें दो खिड़कियाँ थीं, एक दरवाज़ा खुला था, और दीवार पर एक पौधा उग रहा था।
नीचे लिखा:
> “अगर मोहब्बत दीवारों में साँस ले सके… तो वो घर बन जाती है।”
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रीमा ने जानवी से कहा:
> “घर बनाना आसान नहीं — लेकिन अगर तुम दोनों एक-दूसरे की खामोशी समझते हो, तो दीवारें खुद बोलने लगती हैं।”
जानवी चुप रही — लेकिन उसकी आँखों में एक फैसला बन रहा था।
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घर बसाने की बात होते ही विराज थोड़ा पीछे हट गया।
उसने कहा:
> “मेरे अतीत में कुछ दरवाज़े अब भी बंद हैं… क्या तुम उन्हें खोलना चाहोगी?”
जानवी ने जवाब दिया:
> “अगर तुम मेरे साथ हो, तो मैं हर दरवाज़े पर दस्तक दूँगी।”
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दोनों ने मिलकर एक छोटा सा घर देखा —
पुराना, लेकिन उसमें एक खिड़की थी जहाँ से सूरज सीधा अंदर आता था।
जानवी ने कहा:
> “ये घर नहीं… ये हमारी कहानी का अगला अध्याय है।”
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रात को दोनों नए घर की छत पर बैठे —
जानवी ने दीवार पर पहला स्केच बनाया:
एक दिल, जिसमें बूंदें गिर रही थीं… और बीच में लिखा था:
> “अब मोहब्बत सिर्फ छुपी नहीं… वो घर माँग चुकी है।”
विराज ने तस्वीर ली — और पहली बार, उसने उसे सबके साथ साझा किया।
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✨ Writer: Rekha rani