"क्या हो अगर आख़िरी ट्रेन… कभी आपको वापस न लाए?
आर्यन आधी रात की ट्रेन में सवार होता है, लेकिन जल्द ही उसे अहसास होता है कि उसके यात्री ज़िंदा नहीं हैं—और उसका ठिकाना किसी नक़्शे पर नहीं मिलता। यह है एक सिहरन भरी कहानी—रहस्यों की, ज़िंदा रहने की जद्दोजहद की और उन फुसफुसाहटों की जो आत्मा को अपने साथ खींच सकती हैं।
आख़िरी ट्रेन की फुसफुसाहटें
आर्यन ने आधी रात के सुनसान स्टेशन पर कदम रखा। ठंडी हवा उसके गालों पर चोट कर रही थी और हल्की बारिश की बूँदें उसके काले जैकेट पर गिर रही थीं। स्टेशन पर सन्नाटा था—केवल कभी-कभार दूर से आती ट्रेन की आवाज़ और पुरानी बेंचों पर पड़ी धूल की हल्की गंध।
“आख़िरी ट्रेन… बस आज देखना है,” उसने अपने आप से कहा। उसकी आवाज़ खुद को विश्वास दिलाने की कोशिश कर रही थी। प्लेटफ़ॉर्म पर खड़ी ट्रेन उसकी नजरों के सामने धीरे-धीरे प्रकट हुई। पुराने डिब्बों में से धुंधली रोशनी झलक रही थी।
आर्यन ने टिकट खरीदी और डिब्बे में चढ़ा। अंदर सन्नाटा था। कुछ सफ़ेदपोश लोग खिड़कियों के पास बैठे थे, पर उनके चेहरे अजीब और फीके थे। जैसे ही ट्रेन ने हिलना शुरू किया, उसने महसूस किया कि बाहर का दृश्य बदल रहा है। प्लेटफ़ॉर्म, स्टेशन, गाँव—सब धुंध में घुल रहे थे।
फुसफुसाहटें पहली बार उस समय सुनाई दीं। धीमी, लगभग कानों के पास—“आर्यन… लौट आ…” उसने चारों तरफ देखा, पर डिब्बे में कोई नहीं था। आवाज़ फिर आई—“आर्यन… अब बहुत देर हो चुकी है…”
आर्यन ने अपने आप से कहा, “ये बस आवाज़ें हैं। डरना बेवजह है।”
लेकिन जैसे ही उसने डिब्बे के दूसरे छोर की ओर देखा, एक बूढ़ा आदमी वहां बैठा था। उसकी आंखें पूरी तरह काली थीं और चेहरे पर एक अजीब, स्थिर मुस्कान।
“तुम इस ट्रेन पर नहीं रह सकते,” बूढ़े ने फुसफुसाते हुए कहा। “एक बार जो यहाँ आता है, वह वापस नहीं लौटता।”
आर्यन का दिल जोर से धड़कने लगा। “मैं… मैं सिर्फ देखना चाहता था… डरना नहीं।”
बूढ़ा आदमी खिड़की की तरफ इशारा करने लगा। आर्यन ने देखा—बाहर की दुनिया गायब थी। केवल अंधेरा, धुंध, और रेल की पटरी अनंत तक फैली हुई थी।
धीरे-धीरे, डिब्बे में बैठे यात्रियों की फुसफुसाहटें बढ़ने लगीं। कोई अपनी अधूरी मोहब्बत, कोई अनकही ख्वाहिश, कोई अपराध की सज़ा—सब बोल रहे थे। उनके शब्द हवा में गूंज रहे थे, जैसे उनकी आत्माएँ इस दुनिया से अलग होकर यहाँ फंसी थीं।
आर्यन की साँसें तेज़ हो गईं। उसने खिड़की से बाहर देखा। बचपन की यादें, स्कूल की घंटी, दोस्तों की हँसी, माँ की मुस्कान—सब वहाँ थे, लेकिन धीरे-धीरे धुंधले होने लगे।
ट्रेन की गति बढ़ गई। फुसफुसाहटें अब चीख़ में बदल गईं। आर्यन ने दरवाज़ा खोलने की कोशिश की, लेकिन वह बंद था। डिब्बा जैसे दर्पण में बदल गया था—आर्यन को अपना चेहरा भी पहचान नहीं आया।
अचानक सब शांत हो गया। ट्रेन धीमी हुई। आर्यन ने महसूस किया कि वह किसी नए स्टेशन पर पहुँच गया है। पर यह स्टेशन भी जीवित नहीं था। केवल यात्रियों की परछाइयाँ और फुसफुसाहटें थीं।
बूढ़ा आदमी उसके पास आया। “आर्यन, तुम्हें फैसला करना होगा। या तो तुम यहाँ रुक जाओगे, या वापसी का रास्ता ढूँढोगे। पर वापसी आसान नहीं। याद रखो, कुछ अनुभव आत्मा की परीक्षा के लिए होते हैं।”
आर्यन ने गहरी साँस ली और तय किया कि वह वापसी करेगा। उसने डिब्बे के बीचों-बीच से होकर अगले डिब्बे में कदम रखा। जैसे ही उसने कदम रखा, ट्रेन की फुसफुसाहटें धीमी हुईं, पर पूरी तरह नहीं रुक पाईं।
ट्रेन धीरे-धीरे रुकने लगी। प्लेटफ़ॉर्म दिखाई दिया। बाहर की ठंडी हवा और चाँद की रोशनी ने उसे जीवन की वापसी का एहसास दिलाया। आर्यन ने ट्रेन से उतरते हुए पीछे देखा। डिब्बे खाली थे, पर कुछ साया जैसे अभी भी ट्रेन में अटका हुआ था।
आर्यन ने महसूस किया कि यह अनुभव उसे हमेशा याद रहेगा। ट्रेन की फुसफुसाहटें अब भी उसके कानों में गूँज रही थीं—“फिर आना… फिर आना…”
वह धीरे-धीरे घर की ओर चला। हर कदम पर ट्रेन की याद और फुसफुसाहटें उसके साथ थीं। उसने समझा कि कुछ रास्ते सिर्फ अनुभव देने के लिए होते हैं, और कुछ फुसफुसाहटें सच बोलती हैं।
उस रात आर्यन ने जाना कि डर केवल आँखों के सामने नहीं, बल्कि उस अज्ञात में है, जो दिखाई तो नहीं देता, पर महसूस किया जा सकता है। और आख़िरी ट्रेन? वह केवल एक शुरुआत थी—एक ऐसी यात्रा, जो कभी खत्म नहीं होती।