Dard se Jeet tak - 3 in Hindi Love Stories by Renu Chaurasiya books and stories PDF | दर्द से जीत तक - भाग 3

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दर्द से जीत तक - भाग 3

उस शाम बारिश नहीं हो रही थी, लेकिन हवा में अजीब-सी बेचैनी थी।
मैं खिड़की पर बैठी थी, और जहान मेरे पास।
उसकी आँखों में आज कुछ अलग था… जैसे वो कोई राज़ कह देना चाहता हो।

“Angel,” उसने धीरे से कहा,
“कभी सोचा है, अगर मैं तुम्हें हमेशा-हमेशा के लिए अपना बना लूँ तो?”

उसकी बात सुनकर मेरा दिल ज़ोर से धड़क उठा।
जैसे मेरे भीतर छुपा सच किसी ने अचानक बाहर खींच लिया हो।
मैं चुप रही, मगर मेरी आँखें सब कह गईं।

जहान ने मेरा हाथ थाम लिया।
उसका हाथ काँप रहा था, लेकिन उसकी आवाज़ ठोस थी—
“मुझे डर नहीं लगता, Angel।
ना समाज से, ना दुनिया से।
मुझे बस एक डर है… कहीं तुम मुझे छोड़ ना दो।”

मेरी आँखों से आँसू गिर पड़े।
मैंने पहली बार चाहा कि काश ये पल यहीं थम जाए।
काश न कोई भाई हो, न समाज, न कोई डर…
बस मैं और जहान।

मैंने हल्की मुस्कान के साथ कहा—
“जहान… शायद मैं भी तुम्हारे बिना अब अधूरी हूँ।”

ये सुनकर उसकी आँखों में चमक आ गई।
उसने मुझे अपने क़रीब खींच लिया, जैसे सदियों का इंतज़ार खत्म हो गया हो।

लेकिन तभी…
दरवाज़े के बाहर कुछ हलचल हुई।
मेरे भाई की आवाज़ थी—
“अंदर कौन है?”

मेरा दिल जैसे ज़ोर से धड़का और मैं सहम गई।
जहान ने तुरंत मेरा हाथ छोड़ दिया, लेकिन उसकी आँखों में डर नहीं था…
बल्कि एक अजीब-सी हिम्मत थी।

मैं समझ गई—
अब हमारे रिश्ते की असली परीक्षा शुरू हो चुकी है।

भाई की आवाज़ सुनते ही मेरा पूरा शरीर काँप गया।
दरवाज़ा खुला और भाई की नज़र हम दोनों पर पड़ी।
जहान थोड़ा पीछे हट चुका था, लेकिन फिर भी हमारी आँखों में जो भाव थे… वो छुप नहीं पाए।

भाई की भौंहें सिकुड़ गईं।

“ये यहाँ क्या कर रहा है?” उसकी आवाज़ कड़ी और भारी थी।

मैं चुप रही, शब्द जैसे गले में अटक गए हों।

जहान ने मेरी तरफ़ देखा और फिर पूरे आत्मविश्वास के साथ कहा—
“मैं… Angel का दोस्त हूँ।”

भाई हँस पड़ा, मगर उसकी हँसी तल्ख़ थी।
“दोस्त? या उससे भी ज़्यादा?”

उसकी आँखों में गुस्सा था, और मैं डर के मारे काँप रही थी।

जहान ने एक पल भी नहीं सोचा, सीधा जवाब दिया—
“हाँ। 

मैं Angel से सिर्फ़ दोस्ती नहीं करता… मैं उससे प्यार करता हूँ।”


मेरे दिल की धड़कन रुक-सी गई।
मैंने कभी सोचा नहीं था कि जहान इतनी आसानी से अपना दिल खोल देगा।

भाई का चेहरा और भी कठोर हो गया।

“ये नामुमकिन है,” भाई ने ठंडे स्वर में कहा।

“Angel मेरी ज़िम्मेदारी है।

 मैं उसे किसी अजनबी पर भरोसा नहीं करने दूँगा।”

मेरी आँखों से आँसू निकल पड़े।
मैंने पहली बार हिम्मत करके कहा—
“भाई… जहान अजनबी नहीं है।

 वो… वो मेरी दुनिया बन चुका है।”

भाई ने मुझे घूरा।

उसकी आँखों में दर्द और गुस्से का अजीब-सा तूफ़ान था।
 तुम दोनों को नहीं पता तुम दोनों अभी बच्चे हो ।
ज़हन ने जवाब दिया हम छोटे नहीं है ,

  हम अब 17 बरस के है ।

बहाने उसे घूरा 

“Angel, तुम्हें नहीं पता ये रास्ता कितना मुश्किल है।

समाज तुम्हें कभी स्वीकार नहीं करेगा।

 और मैं… मैं तुम्हें टूटते हुए नहीं देख सकता।”

जहान ने आगे बढ़कर कहा—

“मैं Angel को कभी टूटने नहीं दूँगा।

मैं लड़ूँगा, चाहे दुनिया से, चाहे हालात से… बस उसके लिए।”

कमरे में खामोशी फैल गई।

मेरे भाई, जहान और मैं—तीनों अपने-अपने डर और हिम्मत के बीच खड़े थे।

मुझे पता था…
अब ये रिश्ता आसान नहीं रहने वाला।


भाई ने उस रात साफ़ कह दिया—

“Angel, ये रिश्ता नामुमकिन है।

 अगर तुमने मेरी बात नहीं मानी, तो मैं तुम्हें जहान से कभी मिलने नहीं दूँगा।”


उसकी आँखों में सिर्फ़ गुस्सा नहीं था, उसमें डर भी था।

शायद वो सचमुच मुझसे बहुत प्यार करता था, और डर रहा था।
  कहीं समाज मुझे तोड़ न दे।

मैं चुप रही… मगर मेरे भीतर एक तूफ़ान उठ रहा था।

उस रात मैंने पहली बार अपनी डायरी में लिखा—
“क्या अपने दिल की सुनना गुनाह है?

क्या प्यार सचमुच इतना बड़ा अपराध है?”

दूसरी तरफ़ जहान हार मानने वालों में से नहीं था।

वो हर रोज़ मुझे हिम्मत देता—
“Angel, प्यार कभी आसान नहीं होता।

पर अगर हम सच में एक-दूसरे के लिए बने हैं, तो कोई ताक़त हमें जुदा नहीं कर सकती।”

धीरे-धीरे भाई ने मुझ पर नज़र रखनी शुरू कर दी।

मेरे बाहर जाने पर रोक, जहान से मिलने पर पाबंदी…
जैसे मेरे पंख काट दिए गए हों।

कभी-कभी मैं टूटने लगती।

रातों को रोते-रोते सो जाती, सोचती—
“क्या सचमुच मैं अपने भाई को खोकर जहान को पा सकती हूँ?

क्या ये सही होगा?”

पर हर बार जहान की आवाज़ मेरे कानों में गूँजती—
“Angel, अगर प्यार के लिए लड़ाई नहीं लड़ी, तो ये अधूरा रह जाएगा।”


और मैं फिर से हिम्मत जुटा लेती।

मेरे भीतर अब डर से ज़्यादा चाहत थी—
जहान के साथ अपनी ज़िंदगी जीने की चाहत।

मगर मैं जानती थी…
भाई इतनी आसानी से हमें साथ नहीं रहने देगा।
अब हमें न सिर्फ़ भाई से, बल्कि पूरे समाज से लड़ना था

।लेकिन भाई का गुस्सा दिन-ब-दिन बढ़ रहा था।
एक रात उसने साफ़ कहा—
“अगर तुमने जहान का नाम फिर लिया, तो मैं तुमसे सारे रिश्ते तोड़ दूँगा।”

मेरे पैरों तले ज़मीन खिसक गई।
भाई ही मेरा सहारा था… और अब वही मेरी दुनिया छीनने पर आमादा था।

उस रात मैंने जहान से मिलकर कहा—
“जहान, मैं थक गई हूँ… शायद ये रिश्ता नामुमकिन है।”

मेरी बात सुनकर जहान की आँखें भर आईं।
उसने मेरा चेहरा अपने हाथों में लिया और धीमे स्वर में कहा—
“Angel, नामुमकिन कुछ नहीं होता।
लेकिन हाँ… हमें अब कोई बड़ा फैसला लेना होगा।
या तो हम समाज से हार मान लें…

या फिर मिलकर दुनिया का सामना करें।”

उसकी आँखों में आँसू थे, पर साथ ही आग भी।
मैंने उसकी हथेली थाम ली।
उस पल मुझे एहसास हुआ—
मैं जहान को खोकर ज़िंदा नहीं रह सकती।

अब सिर्फ़ दो रास्ते थे—


या तो हम बिछड़ जाएँ…
या फिर सब कुछ दांव पर लगाकर अपने प्यार के लिए लड़ें।

जहान और मैंने तय किया—
हम भागेंगे नहीं, छुपेंगे नहीं।
हम भाई का दिल जीतेंगे।

मैं जानती थी, भाई का गुस्सा सिर्फ़ मुझे खोने के डर से था।
वो मुझे अपनी इज़्ज़त, अपनी ज़िम्मेदारी समझता था।
पर उसे ये समझाना ज़रूरी था कि मेरी खुशियाँ भी उसकी इज़्ज़त का ही हिस्सा हैं।

कई दिन तक जहान ने मुझसे मिलने की जिद नहीं की।
उसने कहा—
“Angel, अब वक्त है कि मैं तुम्हारे भाई से सीधा बात करूँ।
अगर उसने मुझे ठुकरा दिया, तो भी मैं आखिरी सांस तक कोशिश करता रहूँगा।”

मैं डर गई थी, मगर जहान के चेहरे पर सच्चाई थी।
आखिरकार वो दिन आ ही गया—
जहान मेरे भाई से मिलने आया।

भाई की आँखों में अब भी गुस्सा था।
उसने जहान से कहा—
“तुम्हें पता है न, ये रिश्ता कभी मंज़ूर नहीं होगा?”

जहान ने झुककर हाथ जोड़ लिए और बहुत धीमे स्वर में बोला—
“मुझे सिर्फ़ Angel की खुशियाँ चाहिए।
अगर उसकी खुशी आपसे अलग होने में है, तो मैं अभी पीछे हट जाऊँगा।
पर अगर उसकी खुशी मेरे साथ है… तो क्या आप सच में अपनी बहन का दिल तोड़ना चाहेंगे?”

भाई चुप हो गया।
उसकी आँखों में पहली बार गुस्से की जगह सोच दिखाई दी।

मैं आगे बढ़ी और रोते हुए उसके कदमों में बैठ गई—
“भैया… मैं आपकी इज़्ज़त कभी खराब नहीं करूँगी।
पर अगर मेरी ज़िंदगी जहान के बिना अधूरी रह गई, तो आप मेरी मुस्कान हमेशा के लिए खो देंगे।”

मेरे आँसू उसके पैरों को भिगो रहे थे।
भाई ने मुझे उठाया, उसकी आँखें भीग चुकी थीं।

उसने धीरे से कहा—
“Angel… मुझे डर था कि लोग क्या कहेंगे।
पर शायद मैंने ये सोचा ही नहीं कि तुम्हारे दिल का क्या होगा।”

उस पल लगा, जैसे सालों की दीवार ढह गई हो।
भाई का गुस्सा नरमी में बदल चुका था।
हालाँकि उसने हाँ नहीं कही, मगर उसके चेहरे पर अब इंकार भी नहीं था।

अब उम्मीद थी…
कि प्यार सिर्फ़ हमें नहीं, बल्कि पूरे परिवार को जोड़ सकता है।
भाई ने सीधे “हाँ” तो नहीं कही थी,
लेकिन उसके दिल में एक दरार पड़ चुकी थी।
गुस्से की जगह अब सवाल थे।

वो मुझे पहले की तरह रोकता-टोकता नहीं था,
पर जहान से मिलना अभी भी आसान नहीं था।
बस फर्क इतना था कि अब वो जहान से नफ़रत भरी निगाहों से नहीं,
बल्कि तौलती हुई आँखों से देखता।

एक दिन भाई ने अचानक कहा—
“अगर जहान इतना ही अच्छा है, तो उसे मेरे साथ आकर खेतों में काम करना चाहिए।
तभी मुझे पता चलेगा कि उसके इरादे कितने सच्चे हैं।”

मैं घबरा गई।
क्योंकि खेतों का काम आसान नहीं था।
धूप, पसीना, थकान—ये सब सहना हर किसी के बस की बात नहीं थी।

मैंने डरते हुए जहान को बताया।
वो बस मुस्कुरा दिया।
“Angel, अगर तुम्हारे भाई की इज्ज़त जीतने के लिए मुझे मिट्टी में पसीना बहाना पड़े,
तो ये भी मेरे लिए इबादत है।”

अगले ही दिन जहान भाई के साथ खेत चला गया।
गर्मियों की झुलसाती धूप में,
जहाँ हर कोई आधे घंटे में हार मान ले,
जहान ने पूरे दिन भाई के साथ काम किया।
हाथों में छाले पड़ गए, कपड़े मिट्टी से भर गए,
लेकिन उसके चेहरे पर शिकायत का नाम नहीं था।

शाम को भाई ने पहली बार जहान को पानी का गिलास पकड़ाया।
उस पल मैंने भाई की आँखों में थोड़ी नरमी देखी।

धीरे-धीरे जहान ने भाई के साथ सिर्फ़ खेत ही नहीं,
घर के छोटे-बड़े काम भी करने शुरू कर दिए।
कभी राशन उठाना, कभी बीमार पड़ोसियों की मदद करना।

गाँव के लोग भी कहने लगे—
“लड़का सच्चा लगता है।”

ये सुनकर भाई का चेहरा थोड़ा ढीला पड़ जाता।
उसकी सख़्ती कम होने लगी थी,
हालाँकि वो अब भी खुलकर कुछ नहीं कहता।

पर एक रात मैंने भाई को अकेले में सुना—
वो अपने आप से कह रहा था,
“अगर जहान सचमुच Angel का ख्याल ऐसे ही रखेगा…
तो शायद मैं गलत नहीं साबित होऊँगा।”

उस रात मेरी आँखें नींद से नहीं,
खुशी के आँसुओं से भीग गईं।
मुझे यकीन हो चला था कि
जहान धीरे-धीरे सिर्फ़ मेरा ही नहीं,
मेरे भाई का भी दिल जीत लेगा।

दिन बीतते गए।
जहान हर रोज़ मेरे भाई के सामने एक नई परीक्षा देता और हर बार पास हो जाता।
धीरे-धीरे भाई का चेहरा बदलने लगा था।
अब वो जहान को देखकर पहले जैसी सख़्ती नहीं दिखाता था।

एक शाम, जब सूरज ढल रहा था और खेत सुनहरी रोशनी में नहा रहे थे,
भाई और जहान दोनों थके-हारे चौपाल पर बैठे थे।
भाई ने अचानक कहा—
“तुम्हारे हाथों में अब छाले नहीं, ताक़त दिख रही है।”

जहान चुपचाप मुस्कुरा दिया।
उसने बस इतना कहा—
“ये ताक़त Angel की खुशियों के लिए है।”

भाई बहुत देर तक उसे देखता रहा।
फिर धीरे से बोला—
“Angel मेरी ज़िम्मेदारी है…
लेकिन आज पहली बार लग रहा है कि कोई और भी है,
जो उसे मुझसे ज़्यादा संभाल सकता है।”

मैंने ये सब कोने से सुना।
आँखों से आँसू बह निकले।
ये वही भाई था जिसने कभी कसम खाई थी कि मुझे जहान से कभी नहीं मिलने देगा।
आज वही भाई जहान को मेरी खुशियों का रखवाला मान रहा था।

उस रात, भाई मेरे पास आया।
उसकी आँखें नम थीं, पर चेहरा हल्का लग रहा था।
उसने मेरे सिर पर हाथ फेरते हुए कहा—
“Angel, शायद मैं अब तक सिर्फ़ लोगों से डरता रहा…
पर अब समझ आया कि असली ताक़त तेरी मुस्कान है।
अगर जहान तुझे खुश रख सकता है,
तो मैं इस रिश्ते के बीच दीवार क्यों बनूँ?”

मैंने भाई को गले से लगा लिया।
उसके सीने से लिपटकर मैं फूट-फूटकर रो पड़ी।
मेरे आँसू सिर्फ़ खुशी के थे।

उस रात मेरी डायरी में बस यही लिखा था—
“प्यार जीत गया…

और भाई भी हारकर जीत गया।”
भाई तो धीरे-धीरे मान गया था,
लेकिन अब एक नई लड़ाई सामने थी।
जहान के घरवाले।

जहान ने हिम्मत करके अपने घरवालों को सब सच बताया।
उसने कहा कि वो मुझे चाहता है,
और अपनी ज़िन्दगी मेरे साथ ही देखता है।

लेकिन उसके घरवालों का चेहरा सुनते ही सख़्त हो गया।
उसके पिता गरज उठे—
“क्या तुम्हारा दिमाग़ ख़राब हो गया है?
एक अनाथ लड़की?
जिसके पास न खानदान है, न पैसा, न कोई सहारा!
ऐसी लड़की हमारे घर की बहू कैसे बन सकती है?”

उसकी माँ ने भी आँचल मुँह पर रख लिया,
मानो जहान ने कोई बहुत बड़ा अपमान कर दिया हो।
“हमने तुम्हारे लिए अच्छे घराने की लड़कियाँ देखी हैं,
और तुम… तुम हमें इस बदनामी में डालना चाहते हो?”

जहान ने शांत स्वर में कहा—
“ये बदनामी नहीं, मेरी मोहब्बत है।
Angel मेरी रूह का हिस्सा है।”

लेकिन उसके शब्द पत्थर जैसे दिलों से टकराकर गिर गए।
उसके पिता ने साफ़ कह दिया—
“अगर उस लड़की से रिश्ता रखोगे,
तो हमारे घर से तुम्हारा रिश्ता ख़त्म समझो।”

जहान उस दिन खामोश होकर मेरे पास आया।
उसकी आँखों में पहली बार आँसू थे।
“Angel, मेरे अपने ही मेरे खिलाफ़ खड़े हो गए हैं।”

मैंने उसके हाथ पकड़ लिए।
“जहान, प्यार आसान नहीं होता।
ये इम्तिहान है।
अगर भाई की दीवार गिर सकती है,
तो तुम्हारे घर की दीवार भी गिरेगी।”

उसने मेरी आँखों में झाँका और हल्की मुस्कान दी।
“Angel, अगर तेरा साथ है,
तो मैं दुनिया से लड़ सकता हूँ।”

उस दिन मेरी डायरी में लिखा था—
“अब हमारी मोहब्बत की असली परीक्षा शुरू हुई है।”
जहान के घरवालों का विरोध अब सिर्फ़ जहान तक सीमित नहीं रहा।
उन्होंने मेरे भाई और हमारे घरवालों को भी निशाना बनाना शुरू कर दिया।

गाँव की चौपाल पर जब भी भाई जाता,
लोग जहान के पिता के शब्द दोहराते—
“अपनी बहन के लिए क्या यही लड़का मिला था?
न खानदान, न इज़्ज़त।
ये तो हमारे जहान को बरबाद कर देगी।”

कभी-कभी औरतें मेरी भाभी को घेर लेतीं—
“अरे, तुम्हारे घर की लड़की तो अब बड़े घराने की इज़्ज़त लूटने चली है।
क्या तुम लोगों को शर्म नहीं आती?”

भाई जब खेत में काम करता,
तो जहान के चाचा आकर ज़ोर से कहते—
“अपनी बहन का रिश्ता रोक लो वरना अंजाम बुरा होगा।”

भाई चुपचाप सब सहता रहा।
लेकिन उसकी आँखों में हर रोज़ दर्द गहराता जा रहा था।

एक रात, भाई घर लौटा तो गुस्से से भरा था।
उसने मेरी ओर देखा—
“Angel, तू समझती है ये आसान है?
जहान के घर वाले हमें जीने नहीं देंगे।
तेरे लिए अब पूरा गाँव ताना कसता है।
मैं तुझसे हार गया,
पर क्या मैं अपनी माँ-बाप की इज़्ज़त हार जाऊँ?”

उसकी आवाज़ कांप रही थी।
मेरे दिल पर चोट लगी।
क्योंकि पहली बार भाई मुझे देखकर टूटा हुआ लग रहा था।

जहान ये सब सुनता तो खुद को दोषी मानता।
वो कहता—
“Angel, तेरे भाई ने मुझे अपनाया,
और मेरे अपने ही उसे अपमानित कर रहे हैं।
ये नाइंसाफी है…
अब मैं चुप नहीं रहूँगा।”

उस दिन मेरी डायरी में लिखा था—
“प्यार का बोझ सिर्फ़ प्रेमियों पर नहीं,
कभी-कभी पूरे परिवार को झेलना पड़ता है।”

गाँव की चौपाल पर उस दिन बड़ा जमघट लगा था।
जहान के पिता ने सबको बुलाया था, मानो कोई पंचायत करनी हो।

मैं दूर से देख रही थी—
मेरा भाई, भाभी और जहान सब वहाँ खड़े थे।

जहान के पिता ने ऊँची आवाज़ में कहा—
“सुनो सब!
हमारे जहान पर इस लड़की का जादू चल गया है।
अनाथ, बेसहारा… औरत के नाम पर धब्बा!
ऐसी लड़की हमारे खानदान में बहू बनकर आएगी,
तो हम मुँह कहाँ दिखाएँगे?”

भीड़ में लोग कानाफूसी करने लगे।
कोई हँस रहा था, कोई ताना कस रहा था।

“देखो-देखो, जिस लड़की के माँ-बाप ही नहीं,
वो अब हमारे जहान की बीवी बनेगी!”
“इसके भाई की हिम्मत देखो,
कैसे अपने खानदान की इज़्ज़त बेच रहा है!”

भाई का चेहरा लाल हो गया।
भाभी आँचल मुँह पर दबाकर आँसू रोक रही थी।
पर जहान के पिता यहीं नहीं रुके।
उन्होंने सबके सामने भाई की ओर इशारा किया—

“तू क्या दे पाएगा अपनी बहन को?
दो वक्त की रोटी तक तो मुश्किल से जुटा पाता है!
हमारे जहान को तेरे घर की जिम्मेदारी उठानी पड़ेगी?
हमारा बेटा भीख माँग लेगा,
पर तेरी बहन को अपनी छत नहीं देगा!”

भीड़ ठहाकों से गूँज उठी।
गाँव की औरतें भाभी को घूरकर कहने लगीं—
“क्या यही सिखाया था?
इतनी ऊँचाई छूने का सपना दिखाया था अपनी ननद को?”

भाई की आँखों से आँसू छलक पड़े।
उसने पहली बार चिल्लाकर कहा—
“बस करो!
हम गरीब हैं, अनाथ हैं,
पर इज़्ज़त हमारी भी है!
मेरी बहन गुनाहगार नहीं है,
उसका कसूर सिर्फ़ इतना है कि उसने जहान को चाहा है!”

भीड़ एक पल को शांत हो गई।
लेकिन जहान के पिता ने ताने को और तेज़ कर दिया—
“तो सुन लो सब!
अगर जहान ने इस लड़की को चुना,
तो वो हमारा बेटा नहीं रहेगा।
उसका रिश्ता आज से हमारे घर से खत्म।”

उस पल जहान आगे बढ़ा।
उसने पूरे समाज के सामने अपने पिता की ओर देखा और कहा—
“अगर Angel को अपनाना गुनाह है,
तो मैं ये गुनाह हज़ार बार करूँगा।
आप बेटा नहीं मानते तो मत मानिए,
पर Angel मेरी रूह है,
मैं उसे कभी नहीं छोड़ूँगा।”

मैं दूर खड़ी काँप रही थी।
मेरा भाई अपमान से टूटा हुआ था,
जहान बगावत पर उतर आया था…
और पूरा समाज तमाशा देख रहा था।

उस दिन डायरी में मैंने लिखा—
“प्यार हमें जोड़ता है,
पर दुनिया हमें तोड़ने पर तुली है।”


उस दिन की चौपाल ने सब कुछ बदल दिया।
भाई की आँखों में लाचारी थी,
भाभी अपमान से कांप रही थी।
जहान ने खुलकर मेरा साथ तो दिया,
पर उसके पिता का ऐलान सब पर भारी पड़ गया।

रात को घर में सन्नाटा पसरा था।
भाई चुप बैठा था, बार-बार सिर झुकाए।
अचानक उसने कहा—
“Angel, अब और नहीं।
तेरे लिए मेरी इज़्ज़त रोज़ तार-तार हो रही है।
इस गाँव में हमारे लिए कोई जगह नहीं बची।”

मैंने धीरे से पूछा—
“भैया… तो हम क्या करेंगे?”

उसने गहरी साँस ली—
“कल सुबह हम यह गाँव छोड़ देंगे।
जहाँ लोग हमारी हँसी उड़ाते हैं,
जहाँ हर गली हमें ताना देती है,
उस जगह रहना अब मौत से कम नहीं।”

मेरे होंठ काँप उठे।
घर छोड़ना… अपने बचपन की यादें छोड़ना…
माँ-बाबा की परछाई छोड़ना…
ये सोचना ही मुश्किल था।

भाभी रोते हुए बोलीं—
“पर हम कहाँ जाएँगे?”

भाई की आवाज़ कड़ी थी,
पर उसके भीतर टूटन साफ़ थी—
“जहाँ मेहनत मिलेगी, वहीं घर बना लेंगे।
पर इस गाँव में अब नहीं रहेंगे।
कल सुबह से ही सब ख़त्म।”

मैं अपने कमरे में गई।
डायरी खोली, आँसू से शब्द धुंधले हो गए।

“क्या प्यार इतनी बड़ी सज़ा है,
कि इंसान को अपना घर, अपना गाँव छोड़ना पड़े?