वो सर्दियों की ठंडी शाम थी जब गांव की गलियों में हल्की धुंध तैर रही थी।
और वहीं से शुरू हुआ एक ऐसा सफ़र —
जहाँ एक ख़ामोश लड़की “एंजल” और एक
भावनात्मक लड़का “ज़हन” एक-दूसरे की दुनिया में उतरते हैं।
सिर्फ़ एक “छोटी सी स्कूल की मुलाकात ” ने दोनों की ज़िंदगी बदल दी।
धीरे-धीरे बातों ने दोस्ती का रूप लिया,
दोस्ती ने भावनाएँ जगाईं,
भावनाओं ने प्यार को जन्म दिया।
लेकिन किस्मत के खेल में ये रिश्ता आसान नहीं था।
एंजल का भाई, जो उसका रक्षक था,
ज़हन अपने परिवार, और समाजिक इज्ज़त के बोझ तले दबा था —
दोनों की राह में पहाड़-सी मुश्किलें थीं।
समाज ने ताने दिए,
लोगों ने हँसी उड़ाई,
ज़हन को “पागल” कहा गया,
पर उसने हार नहीं मानी।
वो टूटता रहा,
बार-बार गिरा,
कभी एंजल की याद में,
कभी दुनिया की बेरुख़ी में,
लेकिन उसके भाई का प्यार उसे बार-बार उठाता रहा।
सबसे अंधेरी रात
जब बार-बार की असफलताओं ने उसे अंदर से तोड़ दिया,
ज़हन के दिल में एक पल ऐसा भी आया जब उसने जीने की वजह खो दी।
वो सोचने लगा—
“शायद मैं सच में बेकार हूँ…
मैं सब पर बोझ हूँ…”
वो आख़िरी कदम उठाने ही वाला था ,
कि मोबाइल कंपन हुआ।
स्क्रीन पर नाम चमका — भैया।
उस एक कॉल ने मौत और ज़िंदगी के बीच की दीवार तोड़ दी।
भाई की आवाज़ आई—
“ज़हन, तू मेरी साँस है।
तेरे बिना मैं कुछ नहीं।
तू बस वादा कर,
अब कभी हार नहीं मानेगा।”
ज़हन रोता रहा, और उसी पल उसने कसम खाई —
“अब मैं जीऊँगा… अपने भाई के लिए।”
नई शुरुआत
अगले ही दिन भाई दिल्ली आ गया।
उसने तय किया — “अब ये बच्चा अकेला नहीं रहेगा।”
भाई ने ज़हन के साथ रहना शुरू किया,
उसके लिए टाइमटेबल बनाया,
खर्च का इंतज़ाम किया,
और हर दिन उसे अपने हाथों से खाना खिलाया।
धीरे-धीरे ज़हन का आत्मविश्वास लौटने लगा।
मॉक टेस्ट में उसने पहली बार अपना नाम टॉप लिस्ट में देखा।
भाई ने उसे गले लगाकर कहा—
“अब देख, तू कहाँ पहुँचेगा।”
पहली जीत
कई महीनों की मेहनत के बाद प्रीलिम्स का रिज़ल्ट आया।
लिस्ट में नाम पढ़ते ही ज़हन की आँखों से आँसू बह निकले।
भाई ने कहा—
“बेटा, तूने मेरी सांसें लौटा दीं।”
गाँव में मिठाई बँटी,
लोग बधाइयाँ देने आए,
वही लोग जो कभी कहते थे —
“ये तो पागल है।”
अब वही लोग बोले —
“हमारे गाँव का बेटा अफसर बनेगा।”
ज़हन ने आसमान की ओर देखा और फुसफुसाया—
“माँ, पापा… देखो, आपका बेटा लौट रहा है।”
आने वाला सफ़र
अब असली लड़ाई बाकी है।
मेन परीक्षा, फिर इंटरव्यू,
और ज़हन का सपना —
“दर्द से जीत तक”
पूरा होने के कगार पर है।
भाई उसके साथ है,
एंजल की यादें उसके दिल में हैं,
और आँखों में वो चमक, जो हार को कभी आने नहीं देती।
“ये तो बस शुरुआत है…
असली जीत अभी बाकी है।
रात की ख़ामोशी में भी उम्मीद की लौ जल रही थी।
ज़हन और उसका भाई —
दोनों के चेहरे पर सुकून था।
संघर्ष अब भी था,
लेकिन अब डर नहीं था।
थकान अब भी थी,
लेकिन अब हौसला भी था।
वो दोनों जानते थे —
जीवन ने उन्हें बहुत गिराया,
बहुत रुलाया,
पर अब उनकी नज़र सिर्फ़ ऊँचाई पर थी।
ज़हन ने भाई की ओर देखा और कहा —
“भैया, अब मैं हारने से डरता नहीं…
क्योंकि हर बार जब गिरा,
आपने मुझे थाम लिया।
भाई मुस्कुराया,
उसके कंधे पर हाथ रखा और कहा —
“अब तू सिर्फ़ मेरा नहीं…
उन सबका बेटा है,
जो हार मानने से पहले एक बार और कोशिश करना चाहते हैं।”
दोनों की आँखों में चमक थी —
आँखों में सपने, और दिल में सच्चा यकीन।
और तभी…हर दर्द में एक जीत छिपी होती है…
बस हिम्मत रखो।”
सुबह की ठंडी हवा में ज़हन आईने के सामने खड़ा था।
साफ़ इस्त्री की हुई शर्ट,
साधारण कोट,
और सीने पर एक छोटी-सी पहचान —
“विश्वास।
भाई पीछे खड़ा था, उसके कंधे पर हाथ रखे हुए।
वो बोला —
“डरना मत।
वहाँ अफ़सर नहीं, इंसान बैठे हैं।
तू अपनी सच्चाई बोल —
क्योंकि तेरी सच्चाई ही तेरी सबसे बड़ी ताकत है।
ज़हन ने सिर झुकाया, आँखें बंद कीं और धीरे से कहा —
“आपके आशीर्वाद से सब ठीक होगा।”
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इंटरव्यू रूम में प्रवेश
बड़े हॉल के अंदर सन्नाटा था।
टेबल के पीछे पाँच अधिकारी बैठे थे —
गंभीर चेहरे, तीखी निगाहें, और हाथों में फाइलें।
ज़हन ने दरवाज़ा खोला, विनम्रता से बोला—
“May I come in, sir?”
अंदर से आवाज़ आई—
“Yes, come in.”
वो अंदर आया, हल्की मुस्कान दी और बैठने की अनुमति मांगी।
कुर्सी पर बैठते वक्त उसका दिल तेज़ धड़क रहा था,
लेकिन इस बार डर नहीं था —
उसके पीछे अपने भाई का विश्वास था, और दिल में एंजल की दुआ।
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पहला सवाल:
“Mr. Zhan,
your background says you’re from a small village, Hindi medium.
What inspired you to choose civil services?”
ज़हन ने गहरी सांस ली और बोला —
“सर, मेरे गाँव में जब मैं बच्चा था,
लोग सोचते थे कि छोटे गाँवों के बच्चे कभी बड़ा नहीं सोच सकते।
मैंने वो सोच बदलने के लिए ये रास्ता चुना।
मैं चाहता हूँ कि कोई बच्चा अपने सपनों को गरीब देखकर छोटा न करे।”
कमरे में सन्नाटा छा गया।
एक अधिकारी ने मुस्कुराते हुए सिर हिलाया।
दूसरा सवाल:
“आपने अपनी ज़िंदगी में सबसे बड़ा संघर्ष क्या देखा?”
ज़हन की आँखें थोड़ी नम हो गईं।
उसने कहा —
“सर, खुद से लड़ना सबसे मुश्किल होता है।
कभी हार मानने का मन हुआ,
कभी लगा कि सब खत्म हो गया।
पर हर बार मेरे भाई की आवाज़ मुझे खींच लाई —
‘हार मानना गुनाह है।’
यही मेरी सबसे बड़ी सीख है।”
अधिकारियों ने एक-दूसरे की ओर देखा।
उनकी आँखों में अब सम्मान था।
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तीसरा सवाल:
“अगर आपसे पूछा जाए कि आपने अब तक की सबसे बड़ी जीत कौन-सी पाई है, तो क्या कहेंगे?”
ज़हन मुस्कुराया और बोला —
“सर, मैंने लोगों की नजरों में नहीं,
अपने भाई की आँखों में जीत देखी है।
वो गर्व जो उनके चेहरे पर पहली बार दिखा —
वो मेरी सबसे बड़ी सफलता थी।
उसके शब्द कमरे में गूँज उठे।
कोई और सवाल बाकी नहीं रहा।
बोर्ड ने मुस्कुराकर कहा—
“Thank you, Mr. Zhan. You may go.”
ज़हन उठकर बाहर निकला,
आँखों में सुकून था,
जैसे वो जानता हो —
अब उसका सफर पूरा होने वाला है।
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वो दिन – जब सपना सच हुआ
रिज़ल्ट वाला दिन।
सारे देश की नज़रें स्क्रीन पर टिकी थीं।
भाई और ज़हन साथ बैठे थे,
हाथ काँप रहे थे, साँसें थम गई थीं।
जैसे ही लिस्ट खुली…
Rank 18 – ZHAN
भाई चीख उठा—
“ज़हन! बेटा! तूने कर दिखाया!!”
दोनों फूट-फूटकर रो पड़े।
उस कमरे में कोई शब्द नहीं था,
सिर्फ़ रोशनी थी —
सालों के संघर्ष की, त्याग की, जीत की।
दृश्य --------------------
दिल्ली के मंच पर झंडे लहरा रहे थे।
मंच पर बुलाया गया —
“Mr. Zhan, Best Officer of the Year”
ज़हन ने ट्रॉफी लेने से पहले कहा —
“सर, ये ट्रॉफी मेरी नहीं है।”
सब चौंक गए
उसने कहा —
“ये मेरे भाई की है,
जिसने मुझे हर बार गिरकर भी उठना सिखाया।
वो मेरे लिए माँ-बाप दोनों हैं।”
वो मंच से नीचे उतरा,
भीड़ के बीच अपने भाई को बुलाया,
ट्रॉफी उसके हाथ में रखी और कहा—
“भैया, आज जो कुछ हूँ, आपकी वजह से हूँ।
भाई की आँखों से आँसू झरते रहे।
उसने कहा —
“अब मुझे कुछ नहीं चाहिए बेटा…
अब मैं चैन से सो सकता हूँ।”
दोनों गले मिले,
तालियाँ गूँज उठीं,
और आसमान में जैसे एक ही आवाज़ तैर गई —