Tahammul e Ishq - 2 in Hindi Motivational Stories by M choudhary books and stories PDF | तहम्मुल-ए-इश्क - 2

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तहम्मुल-ए-इश्क - 2

‎"आमिर !!‎आमिर साद अहमद ख़ान, उसका छोटा भाई, साद अहमद का सबसे छोटा सत्रह साल का बेटा, उम्र से पहले ही वो अपनी उम्र से बहुत ज़्यादा बड़ा लगता था, लंबा क़द, दरमियानी वुजूद, न मोटा न पतला, सफ़ेद गुलाबी रंगत, वो बिल्कुल जेरिश से मशाहबत रखता था।।‎‎"आमिर तुम यहाँ कैसे? जेरिश ने नज़रें चुराते हुए अपने भाई से पूछा।‎"क्यों आपी, मैं यहाँ नहीं आ सकता क्या? सवाल के बदले सवाल किया गया।‎"ऑफ़ कोर्स आ सकते हो, तुम्हारा ही तो रूम है, जब मर्ज़ी आओ, जेरिश ने फ़राख़दिल से उसको जवाब दिया था।।‎‎"आपी, आप रोती रही हैं न? आमिर ने अपनी जान से प्यारी बड़ी बहन की आँखों को देखते पूछा, अब वो जेरिश के बराबर से निकलता हुआ रूम में चला आया था।।‎‎"नहीं तो!!‎जेरिश ने तवील ख़ामोशी के बाद गर्दन नफ़ी में हिलाते हुए ड्रेसिंग टेबल की जानिब बढ़ी और फिर उसके सवाल का जवाब दिया।।‎‎"आपी, कब से अपने भाई को आपने इतना पराया कर दिया कि अब आप बातों को भी छुपाने लगी हैं? आमिर ने अपनी बड़ी बहन को कंधों से थाम कर उसको अपनी तरफ़ पलटा, और अपनी बहन का चेहरा देखते हुए अब वो गिला कर रहा था।।।‎‎"अरे मेरे शहज़ादे, भला मैं क्यों छुपाऊँगी कुछ तुमसे?‎‎"हाँ!!‎‎"और तुम्हें ऐसा क्यों लगा कि मैं रोती रही हूँ?‎उसने आमिर से नज़रें चुराई और फिर बात को संभालते हुए उसको अपने सवालों में बहलाने लगी।।‎‎"भले ही आप मुझे कुछ मत बताइए, लेकिन आपकी ये आँखें सब कुछ अयाँ कर रही हैं, ये आँखें आपका हर दर्द बयान कर रही हैं, ठीक है, आप नहीं बताना चाहतीं, मैं आप पर बताने के लिए फ़ोर्स नहीं करूँगा, लेकिन एक बात ज़रूर बोलूँगा।‎‎"आपी, ये दुनिया मज़लूम को ही हमेशा सताती है, कभी इतना मज़लूम नहीं बनना कि फिर आपको पछताना पड़े, अगर अपने हक़ के लिए ख़ुद को इंसाफ़ दिलाने के लिए अपनों के ही ख़िलाफ़ जाना पड़े तो कभी हिचकिचाहट से काम न लेना, आप ख़ुदमुख़्तार हैं, अपने फ़ैसले ख़ुद कर सकती हैं, अपना अच्छा-बुरा आप अच्छे से जानती हैं, जब भी आपको ऐसा लगे कि आपके साथ कुछ ग़लत हो रहा है या फिर ग़लत करने के लिए आप पर दबाव डाला जा रहा है, धमकियाँ दी जा रही हैं, तो जो फ़ैसला आपका दिल करे उस पर अमल कर लेना, जो होगा, उसके बाद देखा जाएगा। वो लड़का जो जेरिश से दो साल छोटा था, वो बात की तह को न खोल कर भी बहुत कुछ समझ गया था।।‎‎हाँ, वो जेरिश का भाई भले ही उसके बाप का बेटा न हो, लेकिन माँ ने एक ने है जनम दिया था उसको, भले ही वो आमिर रोहेल ख़ान नहीं था, लेकिन वो आमिर साद अहमद ख़ान जैसा बिल्कुल भी नहीं था।।‎‎जेरिश का दिल किया वो आमिर के सीने से लग कर बहुत रोए, इतना रोए कि सारे दुख आँसुओं के ज़रिए बाहर निकल कर बह जाए, उसकी आँखों में आँसू आ गए थे, जिसको आमिर ने पोंछा था और नफ़ी में गर्दन हिलाते हुए रोने से मना किया।‎"ये रोने के लिए नहीं है, ये तो मोहब्बत देखने के लिए है, अपने भाई को, इतना हैंडसम जो है, उसको देखने के लिए है। चले, अब जल्दी से मुस्कुराइए, फिर आपके लिए एक न्यूज़ भी है।" आख़िर में आमिर ने शरारत से अपनी बड़ी जान से प्यारी बहन के चेहरे पर मुस्कान लाने के लिए कहा था।।‎‎और वाक़ई वो कामयाब भी हो गया था क्योंकि जेरिश रोहेल ख़ान उसकी आख़िरी बात पर दिल खोल कर मुस्कुराई थी।।‎‎"ये हुई न मेरी बहन!! माशाल्लाह, बहुत प्यारी लग रही है, अल्लाह करें आपको सारी दुनिया की ग़लत नज़रों से महफ़ूज़ रखें, आमीन।" जेरिश ने दिल ही दिल में "आमीन" बोला, वो यही तो चाहती थी कि कोई उसके लिए ये दुआ करे और अल्लाह उसकी दुआ पर "कुन" बोल कर दुनिया की गलीज़ नज़रों से उसको महफ़ूज़ कर दें।।।‎‎"आपके लिए ब्रेकिंग न्यूज़ ये है कि आपने जो एमबीए में एडमिशन लेने के लिए एंट्रेंस एग्ज़ाम दिया था न, उसमें आपने टॉप किया है और आपका एडमिशन हैदराबाद की उस्मानिया यूनिवर्सिटी में हो गया है।‎‎"क्या आ आ आ?‎‎"सच्ची?? जेरिश को तो यक़ीन ही नहीं हुआ था, उसने ख़ुशी से चहकते हुए आमिर से जो सुना था, उसकी तस्दीक़ चाही थी।।‎‎"मच्‍छी!! आमिर ने उसके ही अंदाज़ में जवाब दिया, अपनी बहन की ख़ुशी को देख कर वो बहुत खुश था, बहुत ही ज़्यादा।।‎‎"यक़ीन ही नहीं होता।" जेरिश की आँखों में एक दम आँसू आ गए थे।‎"न्हाँ, रोना नहीं। अब आप बस यक़ीन कर लें और पैकिंग करनी शुरू कर दें। मैंने आपके लिए वहाँ अंकल के फ़ार्म हाउस की सफ़ाई करवा दी है। बस एक-दो दिन में मैं और आप दोनों हैदराबाद के लिए रवाना हो जाएँगे और मैं ख़ुद आपको लॉन्ग ड्राइव, यानी कि कार से लंबा सफ़र तय कर के ले जाऊँगा, एक यादगार दिन गुज़ार कर।" आमिर अब अपने प्लान से उसको आगाह कर रहा था।‎"अच्छा आपी, मैं थोड़ा काम निबटा कर आता हूँ, फिर हम दोनों आपके रूम में ही डिनर करेंगे, इंशाल्लाह।" वो ये बोलता जेरिश से नज़रें चुराते अपनी आँख का गोशा साफ़ करता रूम से चला गया था।।‎‎पीछे जेरिश ने एक लंबी आह भरी थी, वो अपना फ़ैसला तय करते बेड की तरफ़ बढ़ गई थी।।‎‎क्या जेरिश के लिए हैदराबाद का ये सफ़र उसकी ज़िंदगी बदल देगा?

‎---

‎"आज ढलती हुई शाम ने जब रंग बदले,

‎मुझे बदले हुए कुछ लोग बहुत याद आए"

‎कहते हैं जब बुरा वक़्त आता है तो कभी बता कर नहीं आता, बस आ जाता है। उसको किसी की इजाज़त नहीं लेनी होती। हमें नहीं पता कब बुरा वक़्त आ जाए? हाँ लेकिन ये ज़रूर पता होता है कि बुरा वक़्त किसकी वजह से आएगा। हमको ये पता होता है कौन हमारा दुश्मन है, बस ये नहीं पता होता कि वो हम पर सितम कब ढाएगा।

‎इसलिए इंसान को हमेशा मुहतात रहना चाहिए, हर अच्छे बुरे वक़्त के लिए। जो ये सोचते हैं ना कि उन पर तो कभी बुरा वक़्त आएगा ही नहीं, तो उनकी ये ख़ाम-ख़याली है।

‎दुनिया में आज तक कोई ऐसा पैदा नहीं हुआ जिस पर कभी बुरे वक़्त ने बहुत बुरी तरह ज़ख़्मी न किया हो। वक़्त की मार से वो नहीं बचे जो अल्लाह के नज़दीक थे, फिर हम क्या चीज़ हैं।

‎सुबह का सूरज طلوع हो चुका था, आज संडे था सब देर तक सो रहे थे। उसकी आँख सूरज की किरनों की तपिश चेहरे पर पड़ने से खुली थी। उसने कसमसा कर अपनी आँखों पर हाथ रखा, और फिर आँखें मूँद लीं और चेहरे पर चादर किए वो सोने की तैयारी पकड़ रही थी।

‎"क्या आपी आप भी हद करती हैं? जल्दी उठें, आज हमें शॉपिंग पर जाना है। आपकी यूनिवर्सिटी से कॉल आई है कि आपको परसों से यानी थर्सडे यूनि जॉइन करनी है। आपकी क्लासेस शुरू हो चुकी हैं।"

‎आमिर ने परदों को एक तरफ़ करते जेरिश को कंधों से हिलाया था। वो बेशक छोटा था जेरिश से, लेकिन अंदाज़ वहीं बड़े भाई वाले थे उसके।

‎"हाहाहा मेरे आमि, कभी कभी पता है मुझे क्या लगता है?" वो हँसती हुई अपने खुले बालों का जुड़ा बनाती हुई उसकी तरफ़ देख कर पुरसोच अंदाज़ अपनाते बोली।

‎"हम्म्म बताइए क्या लगता है मेरी आपी सहाबा को?" वो भी मुस्कुराते हुए वहीं बैठ गया था। अब वो अपनी बहन से पूछ रहा था।

‎"मुझे लगता है जैसे मैं छोटी हूँ और तुम बड़े। बिल्कुल बड़े भाइयों वाला अंदाज़ अपनाते हो तुम।" अब वो खुल कर मुस्कुराई थी।

‎"हाँ ये तो मैंने सोचा ही नहीं!" वो दिमाग़ पर उंगली मारते बोला।

‎"वैसे अगर मुझे अपनी प्यारी सी नन्ही सी प्रिंसेस जैसी आपी के लिए बड़ा भी बनना पड़ा ना तो मैं तह-ए-दिल से हाज़िर हूँ।" वो सर को एक अदा से झुकाए मुस्कुराया।

‎"अब बस्स बातें बहुत हो गईं, जल्दी से रेडी हो जाएँ और फिर हम चलते हैं शॉपिंग पर।" वो बेड पर से खड़ा होता अपनी जेरिश से बोला था।

‎"ओके बॉस!!

‎बस्स दस मिनट में यूँ आई।" वो अलमारी की तरफ़ बढ़ती हुई बोली और आमिर गर्दन हाँ में हिलाता हुआ रूम से बाहर चला गया था।

‎--

‎वो जब यूनिवर्सिटी आया तो शायान उसका इंतज़ार कर रहा था।

‎"जनाब को मिल गया वक़्त? ये जानते हुए भी कि यहाँ सर ज़फ़र ग़ुस्से में हैं।" शायान मुँह बिचकाकर बोला था।

‎"हाहाहाहा क्या हुआ, सर ज़फ़र ने कुछ कह दिया है क्या?" वो हँसते हुए पूछ रहा था।

‎"यार तुम न जलती पर मिर्च मत लगाओ समझे, जब तुम्हें पता था कि तुम लेट आओगे तो मेरा असाइनमेंट अपने पास रखने की क्या ज़रूरत थी? वो भड़क ही तो गया था।"

‎"हाहाहाहा…" बराबर से दो लड़कियाँ गुज़रती हुई निकली थीं।

‎"वाओ यार इस बंदे की मुस्कराहट तो देखो, हाए मेरा दिल तो इसकी हँसी पर क़ुर्बान ही हो गया।"

‎एक लड़की ने दूसरी लड़की से कहा और दूसरी ने भी उसकी ताईद करते सिमान अहमद की तरफ़ देखा था।

‎सिमान जो मुस्कुरा रहा था, एकदम उसके चेहरे पर संजीदगी दर आई थी, माथे पर कई सारी सलवटें दिखने लगी थीं और आँखों में ग़ुस्सा खूब अच्छे से नज़र आ रहा था।

‎शायान जो अपना मस्नूई ग़ुस्सा दिखा रहा था, उन लड़कियों का कमेंट सिमान के लिए सुनते ही उसने बेइख़्तियार सिमान का चेहरा देखा जहाँ ग़ुस्सा लौट आया था।

‎"ओह मेरे रोबोट, क्यों ग़ुस्सा करता है? छोड़ न, ये तो ए.वी. है।"

‎शायान जानता था कि अब ये सामने खड़ा उसका अकड़ू दोस्त क्या करने वाला है। इससे पहले हालात उसके हाथ से निकलें, उसने सिमान को समझाने की नाकाम कोशिश की थी। लेकिन हमारे मौसूफ़ जो ठहरे सिमान अहमद, किसी की बात ग़ौर से सुन लें और वो भी शायान ख़ान की बात—इम्पॉसिबल! मतलब कि दुनिया में उसकी इज़्ज़त ही तो घट जानी थी।

‎वो ग़ुस्से से क्लासरूम की तरफ़ चल दिया था। पीछे-पीछे शायान भी था।

‎"ओए सुन तो सही, यार क्यों इतना ग़ुस्सा कर रहा है?" शायान पीछे से उसको आवाज़ें दे रहा था लेकिन वो सुनकर भी अनसुना किए रहा।

‎वो क्लासरूम में आया तो सर इलियास का लेक्चर चल रहा था।

‎वो परमीशन लेकर क्लास के अंदर आया और जाकर अपनी सीट पर बैठ गया।

‎बेचारा शायान, "ओए सुन यार, क्या हो गया तुझे? कभी मेरी भी सुन लिया कर।" वो अपनी ही धुन में चलता हुआ सिमान को आवाज़ देते आ रहा था।

‎वो सीधा जैसे ही क्लास में बिना इजाज़त के घुसा तो सर इलियास ने उसको बहुत ही करख़्त आवाज़ में पुकारा:

‎Shayan!!

‎What nonsense is this?

‎"शायान ये क्या बेहूदगी है?"

‎और बेचारा शायान, वो तो इस आवाज़ पर शल ही हो गया था। एक पैर आगे और एक पीछे—बिलकुल ऐसा लग रहा था जैसे वो बचपन में बर्फ़-पानी वाला खेल बच्चे खेलते हैं, उनकी तरह स्टक हो गया था।

‎उसने अपनी दोनों आँखें बंद कर ली थीं, और ज़ुबान को दाँतों के नीचे दबाया, बिलकुल छोटे बच्चे की तरह जैसे उसकी ग़लती पकड़े जाने पर वो बच्चा करता है।

‎"हुई लो! मर गया बेटा शायान, आज तो तू गया।" वो आँखें बंद किए बड़बड़ाने लगा था।

‎सर इलियास हाथ में थामी बुक को टेबल पर रखते उसके पास आए, और उसको ग़ुस्से से घूरने लगे।

‎"What is this way of coming to class? Is there a thing called distinction?"

‎"क्लास में आने का ये तरीक़ा क्या है? क्या तुम्हें तमीज़ नाम की कोई चीज़ है?"

‎सर इलियास बहुत ही बुलंद आवाज़ में शायान को डाँट रहे थे और वो बेचारा करता क्या? बस "सॉरी" ही बोलता रहा था।

‎पूरी क्लास बहुत हँस रही थी, और ये सब सिमान की वजह से हुआ था। शायान को आज जो सबकी महसूस हुई थी, वो कभी उसको नहीं हुई थी। वो अब हक़ीक़त में ही सिमान से नाराज़ था।

‎होता भी क्यों न भाई! आख़िर को हमारे शायान ख़ान की भरी क्लास में आज सर इलियास के हाथों इतनी बेइज़्ज़ती जो हुई थी।

‎उसका ग़ुस्सा करना बनता था। आख़िर को बेइज़्ज़ती सिमान की वजह से हुई थी। अब वो ग़ुस्से से मुँह फुलाए कैफ़ेटेरिया में बैठा था और सिमान साहब—वो तो अनजान बने मोबाइल में मसरूफ़ थे या फिर अनजान बनने की एक्टिंग कर रहे थे।

‎वो कन आँखों से सिमान की तरफ़ देखते हुए खड़ा हुआ। सिमान जो मोबाइल में कुछ टाइप कर रहा था, उसके यूँ एकदम उठने पर अपना सर उठाया और शायान की तरफ़ देखा।

‎शायान ने पहले सिमान को देखा, उसके बाद खिड़की के पास वाली चेयर पर कुछ लड़कों की तरफ़ देखा था। उसका अंदाज़ ऐसा जताने वाला था कि जैसे सिमान—वो उससे बहुत नाराज़ है।

‎सिमान उसकी सारी कारगुज़ारी देख रहा था। वो अपनी हँसी मुश्किल से जब्त किए बैठा था वरना जो अंदाज़ शायान के थे, कुछ-कुछ पल ऐसे थे जब उसका क़हकहा बुलंद होने वाला था।

‎"हहहहह!!

‎मेरा नहीं है यहाँ कोई भी। चल शायान बेटा, चल तू सिकंदर लोगों की टीम में शामिल हो जा। वैसे भी किसी को कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता तेरे नाराज़ होने से।" वो बुलंद आवाज़ में बड़बड़ाता हुआ सिकंदर लोगों की तरफ़ चल दिया।

‎इससे पहले वो आगे क़दम बढ़ाता, सिमान ने उसका हाथ पकड़ते हुए एकदम से उसके गले जा लगा था।

‎"तुझे उनकी ज़रूरत नहीं है मेरे होते हुए, समझा? आई एम सॉरी मेरे भाई!! तुझे पता तो है मुझे लड़कियों से बहुत इरिटेशन है और ख़ासकर ऐसी लड़कियों से जो अपनी इज़्ज़त-आबरू की परवाह किए बग़ैर लड़कों पर कमेंट करती हैं, उनके पीछे भागती हैं।" वो उसके गले लगते हुए बोला था।

‎शायान के होंठों पर बहुत प्यारी मुस्कराहट आई। उसने सिमान के इर्द-गिर्द अपनी बाँहें कस दीं और उसकी पीठ को थपथपाते हुए बोला:

‎"मैं तुझसे नाराज़ नहीं हूँ। ये तो आज तुझसे गले लगने का दिल कर रहा था, उसके लिए ये छोटा सा ड्रामा तो बनता है न?"

‎वो उसकी बात पर दिल खोलकर मुस्कुराया था।

‎"अरे-अरे अब हँस मत, वरना फिर से कोई न कोई लड़की तुझ पर कमेंट करेगी और मुझे फिर से सर इलियास से डाँट पड़ेगी। उसके बाद मुझे ड्रामा करना पड़ेगा और उसके लिए बेटा जी एनर्जी बहुत चाहिए होती है… आज मेरी सारी एनर्जी ख़त्म हो गई है। चल अब जल्दी से कुछ मँगाते हैं खाने के लिए। तुझे पता भी है मैं खाने के मामले में कितना संजीदा मिज़ाज हूँ। तभी तो एक दुनिया शायान ख़ान की दिवानी है।"

‎वो एक ही साँस में बोलता चला गया था। आख़िर में उसने एक अदा से कॉलर को खड़ा करते हुए बोला, जिस पर सिमान का क़हकहा बेक़ाबू था।

‎"ओह्ह रियली!! वैसे कितनी तुम पर फ़िदा हो गई हैं जनाब।" वो शरारत से एक आँख दबाते बोला।

‎शायान ने मुँह बिचकाते हुए उसको देखा और फिर मुँह फुलाकर बोला:

‎"तू आने देगा कभी, नंबर मेरा तुझसे नज़र हटेगी उनकी तो मैं नाचीज़ तभी तो उनको नज़र आऊँगा। तू साए की तरह मेरे पीछे रहता है। हाहाहा… सच में यार, चल कोई नहीं, एक दिन तुझे भी कोई देखेगी। इंतज़ार कर।" वो हँसी दबाते हुए उसकी तसल्ली दे रहा था।

‎"चल देखा जाएगा, अब बात को टाल न और जल्दी से कुछ खाने को मँगा। बहुत भूख लगी है यार!!" वो पेट पर हाथ फेरते हुए बोला।

‎सिमान ने कैंटीन बॉय को आवाज़ देकर खाने के लिए कुछ मँगवाया और फिर वो दोनों बातों में मशगूल हो गए थे।

‎---

‎सब घर पर ही थे तो नाश्ता भी सबने लेट ही किया था। जेरिश तैयार होकर अपनी मामा से परमीशन लेने उनके रूम में ही जा रही थी। एकदम वो रुकी थी, रात वाला सआद साहब की बात उसको याद आई तो उसने अपने क़दम वापस ले लिए थे।

‎अब वो जल्दी-जल्दी आमिर के रूम की तरफ़ ❤️ चल दी। वहाँ जाकर उसने दरवाज़ा नॉक किया था। आमिर ने दरवाज़ा खोला तो सामने अपनी आपी को देखकर बोला:

‎"आईए आपी, बस मैं आपके ही रूम में आने वाला था। आप हो गईं रेडी?" उसने पूछा।

‎"हाँ आमिर, हो गई। आमिर मुझे तुमसे एक बात करनी थी।" वो बात को लफ़्ज़ों के मोती पहनाते हुए बोली।

‎"जी आपी, क्या बात करनी है आपने?"

‎वो दोनों रूम में आकर सोफ़े पर बैठ गए थे। आमिर ने अपनी आपी को देखते हुए पूछा।

‎"आमिर… वो मैं चाहती हूँ कि आज रात को ही हम हैदराबाद के लिए रवाना हो जाएँ। वो असल में एक जगह से जब दूसरी जगह जाते हैं तो वहाँ जाकर एडजस्ट होने में वक़्त लगता है और मैं चाहती हूँ कि मैं वहाँ जल्दी से एडजस्ट हो जाऊँ ताकि फिर स्टडी में मुझे कोई प्रॉब्लम न हो।" वो अपनी बात बोलकर आमिर को देखने लगी थी।

‎"आपी, जैसा आप चाहती हैं बिलकुल वैसा ही होगा। अब जल्दी से चलें ताकि आकर पैकिंग भी करें, उसमें भी वक़्त लगेगा।" वो खड़े होते हुए बोला, और जेरिश गर्दन हाँ में हिलाते हुए उसके साथ शॉपिंग पर चल दी।

‎आमिर और वो दोनों बाहर पोर्च में आए तो वहाँ सकीना बुआ मिल गई थीं। उनको देखते ही आमिर का एकदम से मूड ऑफ़ हुआ था। वो सलाम करता हुआ गाड़ी की तरफ़ बढ़ गया जबकि जेरिश ने उनको देखते हुए सलाम किया।

‎"अस्सलामु अलैकुम सकीना बुआ!! कैसी हैं आप?" उसने ख़ुशअख़लाक़ी से उनका हाल-चाल पूछा।

‎"वअलैकुम अस्सलाम बेटा!! अल्हम्दुलिल्लाह मैं ठीक हूँ। आप कैसी हो बेटा?" उन्होंने भी जेरिश से पूछा।

‎"मैं भी ठीक हूँ बुआ।" तबी तक आमिर गाड़ी स्टार्ट कर चुका था।

‎"बेटा, कहीं जा रही हो क्या?" सकीना बुआ ने गाड़ी को देखते हुए पूछा।

‎"हाँ बुआ, थोड़ी सी शॉपिंग करनी है बस उसके लिए ही।" वो जवाब देकर ख़ामोश हो गई थी।

‎"ओह अच्छा बेटा, चलो आप करो शॉपिंग, मैं आपकी मामा से मिल लूँ।"

‎ठीक है बुआ, वो ये बोलकर गाड़ी की तरफ़ बढ़ गई जबकि सकीना बुआ अंदर की तरफ़ चली गई थीं।

‎आमिर गाड़ी को रोड पर दौड़ाते हुए बोला:

‎"सच्ची में आपी, मुझे उनकी शक्ल देखते ही ख़ुद-ब-ख़ुद मूड ऑफ़ हो जाता है। पता नहीं उनकी शक्ल में ऐसा क्या है जो अच्छा-ख़ासा मूड बिगाड़ देती है ये।" वो ड्राइव करते हुए बोला।

‎"आमिर, ऐसा नहीं कहते। वो बड़ी हैं आपसे।" जेरिश ने उसको घूरते हुए समझाया।

‎"क्या आपी, सबकी रिस्पेक्ट करने का ठेका लिया हुआ है क्या आपने?" वो हँसते हुए बोला।

‎"नहीं ठेका नहीं लिया हुआ, लेकिन फिर भी इज़्ज़त करनी चाहिए हमें।" वो रोड पर दौड़ती हुई गाड़ियों को देखते हुए संजीदगी से बोली।

‎"आपी, एक बात बोलूँ? कभी-कभी इंसान को मशकूक नज़रों से भी देख लेना चाहिए क्योंकि हर इंसान आपकी तरह अच्छा नहीं होता। चेहरे पर कुछ और, दिल में कुछ और… सब झूठ का चेहरा लिए हुए हैं।"

‎अब वो भी बहुत संजीदा नज़र आ रहा था।

‎"हम्म्म…" वो ख़ामोश हो गई थी।

‎आमिर ने अपनी बहन की तरफ़ देखा था, जहाँ सिर्फ़ और सिर्फ़ संजीदगी ही थी और वो भी ख़ामोशी से गाड़ी ड्राइव करने लगा। ये सफ़र अब उनके ख़ामोशी से ही कटना था।

‎---

‎दोपहर के बारह हो रहे थे।

‎धूप बहुत तेज़ थी। हवा के नाम पर कुछ भी नहीं था। गर्मी की शिद्दत इतनी थी कि ए.सी. में भी पसीना नहीं सूख रहा था।

‎अरहा बेग़म मुलाज़िमों के साथ मिलकर दोपहर के खाने का इंतज़ाम कर रही थीं। आज संडे था जिसकी वजह से सबके ही कुछ-न-कुछ पसंदीदा डिश बना रही थीं। अरहा बेग़म मीठे में ख़ीर बना रही थीं जो कि सआद साहब को बहुत पसंद थी। वो ख़ीर में चमचा चला रही थीं जब आफ़ीरा किचन में आई।

‎"अम्मी, क्या बना रही हैं आप आज खाने में?" उसने पूछा।

‎"बेटा, आज आप सबकी पसंदीदा डिश बना रही हूँ।" उन्होंने मुस्कुराते हुए जवाब दिया।

‎"अच्छा!! वैसे अम्मी, आपको पता है आपी कहाँ हैं?" उसने पूछा था।

‎"होगी अपने रूम में!!" जवाब मिला।

‎"आपको नहीं पता अम्मी कि आपी शॉपिंग पर गई हैं भाई के साथ?" आफ़ीरा ने अपनी मामा का चेहरा देखते हुए पूछा था।

‎"नहीं, मुझे तो वो बताकर नहीं गई।" अरहा बेग़म ने जवाब दिया।

‎"वैसे अम्मी, जेरिश आपी अब आपको कुछ भी बताना ज़रूरी नहीं समझतीं। जहाँ मर्ज़ी आए, जहाँ मर्ज़ी जाएँ। आपको तो वो कुछ बताती ही नहीं हैं।" आफ़ीरा जेरिश के शॉपिंग पर जाने का ज़िक्र करके अरहा बेग़म के कान भरना शुरू कर चुकी थी। अंदाज़ ऐसा था उसका जैसे जेरिश उसकी बहन नहीं बल्कि दुश्मन हो। अब वो कन आँखों से मासूमियत का लिबास ओढ़कर अपनी मामा की तरफ़ देख रही थी।

‎"हम्म्म… ठीक बोल रही हो आफ़ीरा। पता नहीं क्या हो गया है उसको? कुछ बताती ही नहीं है वो, हर वक़्त ख़ामोश रहती है, न किसी के पास उठती-बैठती है। तुम्हारे डैड भी शिकायत कर रहे थे कि तुम्हारे घरवालों ने रोहैल और तुम्हारी बेटी की तर्बियत पता नहीं कैसी की है, एक घड़ी भी अगर हमारे पास बैठ जाए।" अरहा बेग़म परेशान-सी नज़र आ रही थीं।

‎"वैसे अम्मी, बाबा बिलकुल ठीक बोल रहे हैं।" वो अपने बाबा की बात की ताईद करते हुए बोली।

‎"अम्मी, मुझे ऐसा लगता है जैसे जेरिश आपी न…?"

‎वो अधूरे अल्फ़ाज़ छोड़कर अपनी मामा की तरफ़ देखने लगी।

‎अरहा बेग़म ने उसकी तरफ़ देखा और फिर उसको घूरते हुए बोलीं:

‎"क्या जेरिश?" उन्होंने पूछा।

‎"रहने दें अम्मी, फिर आप ग़ुस्सा करेंगी।"

‎वो चेहरे पर मस्नूई डर सजाए बोली।

‎"आफ़ीरा???" उन्होंने उसको घूरा था।

‎"अम्मी, बस आप आपी पर ग़ुस्सा न होना, मैं आपको सब बताती हूँ। आप होंगी तो नहीं न आपी पर ग़ुस्सा?" आफ़ीरा सआद अहमद बड़े ही कमाल से अपनी माँ यानी अरहा सआद अहमद ख़ान को अपनी बातों में जेरिश के ख़िलाफ़ करने की पूरी कोशिश कर रही थी और वो हो भी जाती थीं। आफ़ीरा अक़्सर ऐसा ही करती थी—जेरिश के ख़िलाफ़ कोई न कोई ऐसी बात बताकर अपनी मामा की नज़रों में जेरिश को मशकूक क़रार देना उसका मनपसंद काम था जिसे वो खूब दिल लगाकर अंजाम देती थी।

‎"आफ़ीरा, वो तुम नहीं तय करोगी समझी? बात को सुनकर मैं ख़ुद तय कर लूँगी। बस तुम बात बताओ।"

‎अरहा बेग़म ने अपनी छोटी बेटी को ग़ुस्से से देखते हुए तंबीह किया, जिस पर आफ़ीरा ने गर्दन हाँ में हिला दी जैसे उससे ज़्यादा तो कोई मासूम सीधी है ही नहीं।

‎"अच्छा, बताती हूँ।"

‎वो डरने की एक्टिंग करते बोली थी। उसको कोई नहीं बता सकता था कि ये कम उम्र लड़की इतनी आली एक्टिंग भी कर सकती है और वो भी अपनी ही बहन के ख़िलाफ़।

‎"अम्मी, आपी न रहीम या ज़ुबैर अंकल के बेटे से बात करती हैं। कुछ लोग कितने बेहिस होते हैं न… मतलब कि झूठ बोलते हुए उनके दिल में ज़रा भी ख़ौफ़-ए-ख़ुदा नहीं आता।"

‎वो बोलकर ख़ामोश हो गई थी। उसको जो करना था वो कर गई थी। वो तीली लगा चुकी थी, बस आग लगनी बाक़ी थी जिसका वो बहुत बेसब्री से इंतज़ार कर रही थी।

‎"तुम जाओ, देखो बाहर माली ने पौधों में पानी डाल दिया क्या।" अरहा बेग़म ने उसको जाने का कहा और वो गर्दन हिलाती हुई आने वाले तूफ़ान का इंतज़ार करने लगी।

‎पीछे अरहा बेग़म कुछ सोचते हुए ख़ीर में चमचा चलाने लगी थीं…

‎---

‎उन दोनों ने ज़रूरी सामान ले लिया था। गर्मी बहुत थी और उस वक्त जेरिश में और घूमने-फिरने की बिलकुल भी हिम्मत नहीं रही थी। तो आमिर की तरफ़ देखती हुई बोली:

‎"आमिर, मैं बहुत थक गई हूँ। प्यास भी बहुत लगी है और गर्मी भी। अब बस कर दो यार, और घर चलो।"

‎वो साँस लंबे-लंबे लेते हुए बोल रही थी। आमिर ने अपनी आपी की ये हालत देखी और फिर शॉपिंग करने का इरादा मुल्तवी करते हुए बोला:

‎"अच्छा आपी, ठीक है, नहीं करते और शॉपिंग…"

‎"चलो, वो देखो सामने आइसक्रीम पार्लर है न, उसमें चलते हैं। थोड़ी गर्मी दूर कर के आते हैं।"

‎वो अपनी बहन का हाथ पकड़ते हुए चलने का इशारा किया और जेरिश को न चाहते हुए भी चलना पड़ा।

‎अब वो दोनों आइसक्रीम खा रहे थे।

‎"आपी, एक बात पूछूँ?" आमिर ने सामने बैठी अपनी बड़ी बहन से अनुमति मांगी।

‎वो जो आइसक्रीम खा रही थी, आमिर के यूँ अचानक अनुमति मांगने पर रुक गई और आइसक्रीम स्टिक को बाउल में रखते हुए बोली:

‎"हाँ हाँ, पूछो भई! तुम्हें कब से अनुमति की जरूरत पड़ गई?"

‎उसने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा।

‎"बस ऐसे ही। खैर, आप कल बाबा के पास गई थी न?"

‎"जी!!" उसने एक शब्द में जवाब दिया और फिर ख़ामोश हो गई।

‎"क्यों गई थी आप? आई मीन, क्या कुछ काम था आपको? और फिर आप वहाँ जाने के बाद से आकर अपने रूम में रोना… बस इसलिए पूछ रहा हूँ कि कभी बाबा ने आपको कुछ कहा तो नहीं?"

‎वो अपने सवाल की وضاحت करते हुए उससे सवाल पूछ रहा था।

‎जेरिश के चेहरे पर एक साया उतर गया। उसको इस सवाल की उम्मीद नहीं थी। आमिर से वो घबराई हुई थी। तरह-तरह के सवाल उसके दिमाग़ में अपनी जगह बना कर एक شور मचा रहे थे।

‎"कहीं आमिर ने मेरे और अंकल के बीच होने वाली बात तो नहीं सुन ली? और अगर सुन ली तो क्या होगा?"

‎वो नज़रें चुराए, दिमाग़ में उठने वाले सवालों से बहुत घबराई हुई थी।

‎आमिर उसको बहुत गौर से देख रहा था, जैसे उसके अंदर चल रहे सवालों को पढ़ने की कोशिश कर रहा हो।

‎"बताया नहीं आपी अपने?" उसने फिर से पूछा।

‎"वो… कुछ नहीं मेरे भाई। बस कुछ स्टडी से संबंधित ही बात करने गई थी मैं उनसे। और मैं रो नहीं रही थी।"

‎वो आँखों में कुछ चला गया था, इसलिए थोड़ी थोड़ी रोने जैसी हो गई थीं। वो जीवन में आज ऐसे मोड़ पर थी जहाँ पहली बार उसे झूठ का सहारा लेना पड़ा। वो ख़ामोश हो गई, लेकिन उसके दिल में एक तूफ़ान खड़ा हो गया था।

‎"अच्छा, चले फिर ठीक है!!"

‎वो मान भी गया था या फिर मानने की एक्टिंग कर रहा था—ये तो अल्लाह जानता था। क्योंकि आमिर सआद अहमद इतनी जल्दी मानने वालों में से बिलकुल भी नहीं था।

‎वो दोनों आइसक्रीम फिनिश कर के बाहर निकले। आमिर आगे था, जबकि जेरिश उसके पीछे-पीछे ही थी।

‎वो दोनों पार्किंग में आए और आमिर ने डिग्गी खोल कर सारे शॉपर्स उसमें रखे। फिर अपनी आपी के लिए फ्रंट

डोर खोला, उसको बैठाया और वह खुद भी ड्राइविंग सीट पर बैठ गया।


‎गाड़ी को पार्किंग से निकालते हुए वो जी.टी. करनाल रोड पर स्थित स्प्लैश वॉटर पार्क की तरफ़ चला दिया।

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‎हर रहस्य की चाबी वक्त के पास है... और वक्त का अगला पन्ना सिर्फ अगले एपिसोड में खुले गा ।‎अगली एपिसोड में मिलते है।

गुड बाएं 🥰