दो दोस्तों की कहानी
एक घने और हरे-भरे जंगल में दो दोस्त रहते थे। एक था बहुत ही शक्तिशाली, विशाल हाथी, जिसका नाम था बलवान और दूसरा था एक छोटा, नटखट चूहा, जिसका नाम था चतुर। उन दोनों की दोस्ती देखकर हर कोई हैरान था, क्योंकि हाथी इतना बड़ा था कि वह चूहे को एक ही पैर से कुचल सकता था, लेकिन बलवान हमेशा चतुर का ख़्याल रखता था।
बलवान बहुत सीधा-धाधा था और अक्सर दूसरों की बातों में आ जाता था, जबकि चतुर बहुत ही तेज़ और समझदार था। वह जानता था कि मुसीबत से कैसे निकला जाए।
एक दिन, जंगल में एक शिकारी आया। उसने एक बड़ा जाल बिछाया और उसमें कुछ फल और सब्जियाँ रख दीं, ताकि कोई जानवर उसमें फँस जाए। बलवान, जो फलों का शौकीन था, जाल में रखी हुई चीजें देखकर ललचाया। चतुर ने उसे दूर से ही देख लिया और कहा, "बलवान, रुको! मुझे लगता है कि यह कोई जाल है। इतनी आसानी से कोई खाना क्यों रखेगा?"
लेकिन बलवान ने उसकी बात नहीं मानी। "अरे, तुम छोटे से चूहे हो, तुम्हें क्या पता? मुझे भूख लगी है, मैं जा रहा हूँ।" बलवान अपनी ताक़त के घमंड में जाल के पास चला गया और जैसे ही उसने पहला कदम रखा, वह शिकारी के बड़े जाल में फँस गया।
बलवान ने बहुत कोशिश की, उसने अपनी पूरी ताक़त लगाई, लेकिन जाल इतना मज़बूत था कि वह उसे तोड़ नहीं पाया। वह बहुत घबरा गया और ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने लगा, "बचाओ! कोई मुझे बचाओ!"
उसकी आवाज़ सुनकर चतुर तुरंत वहाँ आया। बलवान ने उदास होकर कहा, "चतुर, मैंने तुम्हारी बात नहीं मानी और अब मैं फँस गया हूँ। मैं क्या करूँ?"
चतुर ने कहा, "घबराओ मत, दोस्त! मैं तुम्हें बाहर निकालूँगा।" बलवान को हंसी आ गई। "तुम इतने छोटे हो, तुम मुझे कैसे निकालोगे?"
चतुर ने मुस्कराते हुए कहा, "दोस्त, ताक़त हमेशा बड़े शरीर में नहीं होती। कभी-कभी छोटी चीज़ें भी बड़े काम कर सकती हैं।"
यह कहकर चतुर तुरंत जाल के पास गया। वह जाल के धागों को कुतरना शुरू कर दिया। एक-एक करके, उसने सारे धागों को अपनी तेज़ दाँतों से काट दिया। यह काम बहुत ही मुश्किल था और इसमें बहुत समय लगा। चतुर लगातार मेहनत करता रहा, बिना थके।
थोड़ी देर बाद, शिकारी वापस आया। उसने दूर से देखा कि जाल में हाथी फँसा हुआ है और वह बहुत खुश हुआ। लेकिन जैसे ही वह पास आया, उसने देखा कि जाल कटा हुआ है और हाथी आज़ाद हो रहा है।
शिकारी ने बहुत गुस्सा होकर चतुर को देखा और उसे पकड़ने की कोशिश की, लेकिन चतुर इतना फुर्तीला था कि वह शिकारी के हाथ नहीं आया और एक बिल में छुप गया।
इस बीच, बलवान पूरी तरह से जाल से बाहर निकल आया था। उसने तुरंत शिकारी को सबक सिखाने का फैसला किया। उसने अपनी सूँड से एक ज़ोरदार वार किया और शिकारी को दूर भगा दिया।
जब शिकारी भाग गया, तो बलवान ने चतुर को उसके बिल से बाहर बुलाया। बलवान ने शर्मिंदा होकर कहा, "चतुर, आज तुमने मेरी जान बचाई। तुमने सही कहा था, ताक़त शरीर में नहीं, दिमाग में होती है। मैंने अपनी ताक़त पर घमंड किया और तुम्हारी बात को हल्के में लिया। मुझे माफ कर दो।"
चतुर ने कहा, "अरे, यह दोस्ती में चलता है, दोस्त! हम दोनों की ताक़त अलग-अलग है, लेकिन जब हम साथ होते हैं, तो हम कुछ भी कर सकते हैं।"
उस दिन के बाद से, बलवान और चतुर की दोस्ती और भी गहरी हो गई। बलवान ने कभी भी अपनी ताक़त पर घमंड नहीं किया और हमेशा चतुर की सलाह मानी, और चतुर ने हमेशा अपने दोस्त का साथ दिया।
इस कहानी से क्या सीख मिलती है?
यह कहानी हमें सिखाती है कि दोस्ती में, एक-दूसरे की कमियों को नहीं, बल्कि उनकी ख़ूबियों को देखना चाहिए। हर किसी में कुछ न कुछ ख़ास होता है। जब हम अपनी ताक़त और दूसरों की बुद्धिमानी को मिलाते हैं, तो हम बड़ी से बड़ी मुश्किल को आसानी से पार कर सकते हैं।