Adhuri Ghanti - 3 in Hindi Horror Stories by Arkan books and stories PDF | अधूरी घंटी - 3

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अधूरी घंटी - 3

शीर्षक : "अधूरी घंटी"

Part 3 : अधूरी प्रार्थना

हवेली में उस रात आरव और विवेक ने जो देखा, उसने उनकी रूह तक हिला दी। घंटी की आवाज़ गूंज रही थी, दरवाज़ा अपने-आप बंद हो गया था और राधिका की आत्मा चीख रही थी—
"अब तुम लौट नहीं पाओगे… हवेली ने तुम्हें अपना लिया है।"

आरव ने टॉर्च जलाने की कोशिश की, पर बैटरी अचानक खत्म हो गई। कमरे में घुप्प अंधेरा और सिर्फ़ घंटी की गूंज—
"टन…टन…टन…"

विवेक डर से काँपने लगा। उसने आरव का हाथ पकड़कर कहा—"मैं यहाँ से जा रहा हूँ। यह सब पागलपन है। अगर तू रहना चाहता है तो रह, लेकिन मैं अब एक कदम भी आगे नहीं बढ़ाऊँगा।"

लेकिन तभी कमरे की दीवार पर धुंधली लकीरों जैसा कुछ उभर आया। आरव ने गौर से देखा—वह लकीरें किसी संस्कृत मंत्र जैसी थीं। उसे याद आया कि बाबा ने कहा था, “आत्मा की अधूरी प्रार्थना पूरी करनी होगी।” शायद यही वह मंत्र था।

आरव ने कांपते हुए उन लकीरों को पढ़ने की कोशिश की। जैसे ही उसने पहला शब्द बोला, घंटी की आवाज़ और तेज़ हो गई। विवेक घबराकर चीखा—"मत पढ़! यह मौत को बुलाना है!"

लेकिन आरव ने पढ़ना जारी रखा। अचानक कमरे में हवा का तूफ़ान उठने लगा, राख का ढेर हवा में उड़ने लगा और राधिका की परछाई और साफ़ दिखाई देने लगी। इस बार उसके चेहरे पर दर्द की जगह क्रोध था।

उसने चीखते हुए कहा—
"तुम्हें लगता है तुम मुझे मुक्त कर सकते हो? मूर्ख इंसान… मैं मुक्ति नहीं चाहती। मैं चाहती हूँ बदला!"

आरव सन्न रह गया। उसे समझ आया कि यह आत्मा सिर्फ़ शांति नहीं चाहती। उसकी मौत में कोई रहस्य छिपा है, शायद कोई धोखा, कोई गुनाह… और अब वह हर उस आत्मा को अपने साथ बाँधना चाहती है जो हवेली में आती है।

विवेक ने दरवाज़ा खोलने की कोशिश की, पर दरवाज़ा जाम था। तभी कमरे के कोने से एक परछाई और निकली—एक मर्द की काली आकृति। उसकी आँखें लाल जल रही थीं। राधिका की आत्मा ने उस परछाई की ओर इशारा करके कहा—
"यही है जिसने मुझे धोखा दिया था। यही कारण है मेरी मौत का। और अब मैं इसे कभी नहीं छोड़ूँगी।"

आरव ने महसूस किया कि यह हवेली सिर्फ़ राधिका की आत्मा से नहीं, बल्कि एक और अंधेरी ताक़त से बंधी हुई है।

घंटी लगातार बज रही थी—
"टन…टन…टन…"

आरव ने पूरा मंत्र पढ़ने की कोशिश की, पर आवाज़ इतनी तेज़ थी कि उसके कानों से खून निकलने लगा। विवेक ज़मीन पर गिर पड़ा और बेहोश हो गया।

अचानक घंटी रुक गई। पूरा कमरा सन्नाटे में डूब गया। और फिर, राधिका की आवाज़ फुसफुसाई—
"मंत्र अधूरा रह गया… अब तू भी कभी अधूरा ही रहेगा…"

अगली सुबह गाँव वालों ने हवेली के बाहर आरव और विवेक को बेहोश पाया। विवेक होश में आ गया, लेकिन उसके चेहरे पर इतना डर था कि उसने ज़िंदगी भर हवेली का नाम लेना छोड़ दिया।

आरव भी होश में आया, लेकिन उसकी आँखों में अजीब सी खालीपन थी। वह बार-बार बस एक ही शब्द बड़बड़ाता रहा—
"अधूरी… अधूरी… अधूरी…"



क्या आरव की आत्मा पर अब हवेली का कब्ज़ा हो चुका है?

राधिका की मौत का असली राज़ क्या है?

वह दूसरी काली परछाई कौन थी?

और सबसे बड़ा सवाल—क्या अधूरी घंटी कभी पूरी तरह शांत हो पाएगी?