शीर्षक : "अधूरी घंटी"
Part 4 : मौत का सच
आरव अब पहले जैसा नहीं रहा। उस रात के बाद से उसकी आँखों में हमेशा खालीपन रहता, जैसे उसकी आत्मा का कोई हिस्सा हवेली में अटक गया हो। गाँव वाले कहते—"इस पर हवेली का साया पड़ चुका है।"
विवेक ने बहुत कोशिश की कि आरव को संभाले, लेकिन आरव की हालत बिगड़ती चली गई। वह बार-बार कागज़ पर वही मंत्र लिखता, बीच-बीच में एक ही शब्द दोहराता—"अधूरी… अधूरी…".
आख़िर विवेक ने तय किया कि वह फिर से हवेली जाएगा और पूरा सच ढूंढेगा। उसने रामकिशन बाबा को मनाया कि वे उसके साथ चलें। पहले तो बाबा ने साफ़ मना कर दिया, लेकिन जब उन्होंने आरव की हालत देखी तो बोले—
"ठीक है बेटा, लेकिन याद रखो… अगर हवेली का सच जानना है तो तुम्हें वहाँ मौत से भी सामना करना पड़ेगा।"
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🌑 हवेली की तीसरी रात
इस बार विवेक और बाबा टॉर्च, धूप, गंगाजल और कुछ पुराने शास्त्रों के साथ हवेली पहुँचे। हवेली के दरवाज़े पर पहुँचते ही हवा ठंडी और भारी हो गई। अंदर कदम रखते ही घंटी अपने-आप बज उठी—
"टन…टन…टन…"
विवेक काँप उठा, पर बाबा ने मंत्र पढ़ते हुए आगे बढ़ाया।
अंदर उसी कमरे में राख का ढेर और टूटी घंटी अब भी पड़ी थी। दीवारों पर उभरे संस्कृत श्लोक और साफ़ हो गए थे, मानो किसी को उनका इंतज़ार हो।
तभी अचानक राधिका की परछाई सामने आ गई। उसका चेहरा और डरावना हो चुका था। उसने चीखकर कहा—
"क्यों लौटे हो? तुम भी उसी अधूरेपन में फँसना चाहते हो?"
बाबा ने डटकर कहा—"राधिका! तेरी आत्मा मुक्त हो सकती है। बता सच क्या है? तेरी मौत कैसे हुई?"
राधिका की आँखों में आँसू भर आए, और उसी वक्त कमरे का तापमान अचानक गिर गया। कोहरे के बीच वही काली परछाई फिर से उभरी। उसकी आँखें आग की तरह जल रही थीं।
राधिका ने काँपती आवाज़ में कहा—
"यह वही है… जिसने मुझे जिंदा जलाया। यह मेरा पति था। इसे मेरी प्रार्थना और मेरे विश्वास से नफ़रत थी। इसे लगा अगर मैं पूजा पूरी कर लूँगी तो इसकी बुरी करतूतें सामने आ जाएँगी। इसने मुझे कमरे में बंद किया और आग लगा दी।"
विवेक दंग रह गया। हवेली का सच अब सामने था—यह कोई हादसा नहीं, बल्कि धोखा और हत्या थी।
बाबा ने मंत्र पढ़ना शुरू किया ताकि उस आत्मा को मुक्ति मिले। लेकिन तभी काली परछाई गरजकर बोली—
"नहीं! यह हवेली अब मेरी है। यहाँ कोई मुक्ति नहीं पाएगा।"
हवेली की दीवारें हिलने लगीं, घंटी पागलों की तरह बजने लगी—
"टन…टन…टन…टन…"
विवेक और बाबा ने मिलकर मंत्र पूरा पढ़ने की कोशिश की। लेकिन अचानक आरव वहाँ आ गया। उसकी आँखें खाली और चेहरा सुन्न था। उसने दोनों की ओर देखा और कहा—
"अब कोई मंत्र पूरा नहीं होगा… मैं भी अब हवेली का हिस्सा हूँ।"
राधिका की आत्मा चीख उठी—"नहीं! तू अभी पूरी तरह मेरे अधीन नहीं हुआ। मंत्र पूरा कर… वरना तेरा अंत भी मेरे जैसा होगा।"
विवेक के हाथ काँप रहे थे। वह समझ नहीं पा रहा था—आरव को बचाए या आत्मा को मुक्त करे।
कमरे का दरवाज़ा बंद हो गया। चारों तरफ़ कोहरा छा गया। और घंटी की आवाज़ गूंजती रही—
"टन…टन…टन…"
क्या विवेक और बाबा मंत्र पूरा कर पाएँगे?
क्या आरव हमेशा के लिए हवेली का हिस्सा बन जाएगा?
राधिका की आत्मा सच में मुक्ति चाहती है, या वह भी बदले की आग में अं
धी हो चुकी है?
और सबसे अहम—क्या हवेली का श्राप कभी टूटेगा?