भाग 2 |अध्याय 4
रचना:रचना:बाबुल हक लेखक
“धुंध में लिपटा अजनबी”
पिछले अध्याय से…
कमरे में धुंधलके के बीच, एक परछाईं खड़ी थी—
धीरे-धीरे उसकी तरफ़ बढ़ते हुए।
उस परछाईं की आवाज़ आई—
“तुम्हें यहाँ आना ही था… क्योंकि ये अधूरी दास्तान अब तुम्हारे बिना मुकम्मल नहीं होगी।”
नायरा के हाथ काँप रहे थे। उसकी उँगलियाँ अभी भी उस पुराने लिफ़ाफ़े को थामे थीं।
“तुम… कौन हो?” उसने हिचकते हुए पूछा।
परछाईं धीरे-धीरे रोशनी के क़रीब आई।
वो एक लंबा, दुबला-पतला नौजवान था। उसकी आँखों में गहराई थी, जैसे उनमें सदियों का दर्द छिपा हो।
उसके हाथ में एक टूटी हुई डायरी थी, जिसके पन्नों पर धूल जमी हुई थी।
“मुझे लोग युवराज कहते हैं…” उसने धीमे स्वर में कहा।
“और ये हवेली… ये हवेली मेरी भी नहीं रही। ये तो बस एक गवाही है—उस अधूरी मोहब्बत की, जो कभी श्रेया की थी।”
नायरा ने चौंककर उसकी ओर देखा।
“तुम… श्रेया को जानते हो?”
युवराज ने हल्की मुस्कान दी, मगर उस मुस्कान में ज़ख़्म छुपे थे।
“जानता था? नहीं… मैं आज भी उसे महसूस करता हूँ। क्योंकि वो सिर्फ़ इंसान नहीं थी, वो सुरों की धड़कन थी।
और यही हवेली… उसकी आख़िरी सरगम की गवाह है।”
कमरे में सन्नाटा छा गया।
दीवार पर टंगी श्रेया की तस्वीर की तरफ़ इशारा करते हुए युवराज बोला—
“तुम यहाँ आई हो, तो इसका मतलब है कि तुम्हें भी सच्चाई का हिस्सा बनना है।
लेकिन सच्चाई बहुत भारी है, नायरा… ये मोहब्बत का बोझ हर कोई नहीं उठा पाता।”
नायरा की आँखों में डर और उत्सुकता दोनों थे।
“मुझे बताओ… क्या हुआ था श्रेया के साथ?”
युवराज ने डायरी खोली।
पहले ही पन्ने पर खून से धुंधला एक नाम लिखा था—
आर्यन।
नायरा की साँसें थम गईं।
वो नाम जैसे उसके दिल में तेज़ से किसी ने दस्तक दी हो।
युवराज की आवाज़ भारी हो गई—
“आर्यन ही था वो… जिसकी अधूरी मोहब्बत ने श्रेया को इस हवेली से बाँध दिया।
और आज… उसी मोहब्बत का हिसाब तुमसे माँगा जाएगा।”
“सुरों में कैद मोहब्बत”
नायरा की धड़कनें तेज़ हो चुकी थीं।
युवराज ने टूटी हुई डायरी के पन्ने पलटने शुरू किए। हर पन्ना जैसे किसी गहरे दर्द से भीगा हुआ था।
“ये… श्रेया की लिखी हुई नहीं है,” युवराज ने धीमे स्वर में कहा,
“ये आर्यन की डायरी है। उसने अपने हर सुर, हर अल्फ़ाज़, हर दर्द को इसमें उतारा था।”
नायरा ने पन्ने के ऊपर झुककर पढ़ा—
"श्रेया, अगर तेरी आवाज़ मेरी साँसों तक पहुँचती है, तो शायद मैं ज़िंदा रह पाऊँगा।
तेरे बिना ये सुर बेसुरा है, ये धड़कनें बेजान हैं।
अगर मोहब्बत गुनाह है, तो मैं तौबा नहीं करना चाहता।"
नायरा की आँखें भर आईं। उसने हैरानी से युवराज की ओर देखा।
“क्या आर्यन… और श्रेया…?”
युवराज ने सिर झुकाकर हामी भरी।
“हाँ। आर्यन सिर्फ़ एक आशिक़ नहीं था… वो उसका पहला और आख़िरी हमनवा था।
दोनों की मोहब्बत हवेली की इन दीवारों में आज भी गूंजती है। लेकिन… उनकी दास्तान अधूरी रह गई।”
नायरा ने काँपती आवाज़ में पूछा—
“अधूरी… क्यों?”
युवराज ने गहरी साँस ली और खिड़की से बाहर झांकते हुए बोला—
“क्योंकि इस मोहब्बत को दुनिया ने कभी कबूल नहीं किया।
आर्यन और श्रेया ने हवेली की इसी कोठरी में वक़्त बिताया था।
यहीं वो अपने गाने लिखते, सुरों में मोहब्बत बुनते।
लेकिन एक रात… सब कुछ ख़त्म हो गया।”
युवराज की आवाज़ टूटने लगी।
“उस रात की चीखें, वो टूटा हुआ हारमोनियम, और खून से सने पन्ने… आज भी हवेली में पड़े हैं।
श्रेया ग़ायब हो गई, और आर्यन… उसकी मोहब्बत की परछाईं बनकर रह गया।”
नायरा की आँखें चौड़ी हो गईं।
“मतलब… श्रेया ज़िंदा थी? या फिर…?”
युवराज ने धीमी लेकिन ठंडी आवाज़ में कहा—
“उस रात का सच सिर्फ़ हवेली जानती है। और अब… तुम्हें भी जानना होगा।”
कमरे की बत्ती अपने आप झिलमिलाई।
पायल की वही आवाज़ फिर गूँजी।
जैसे श्रेया की रूह पास ही हो… और हर पन्ना उसके दर्द को बयान कर रहा हो।
अगले :अध्याय में युवराज डायरी का वो पन्ना खोलेगा, जिसमें श्रेया के ग़ायब होने की रात का पहला सुराग लिखा है। और हवेली के अलौकिक राज़ भी धीरे-धीरे सामने आने लगेंगे।