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अध्याय 13 – बीमारी, गरीबी और रिश्तों की गर्माहट
जीवन की राह कभी सीधी नहीं होती। कभी स्वास्थ्य गिराता है, कभी गरीबी कसौटी पर कसती है, और कभी रिश्ते सुकून दे जाते हैं। तनु के जीवन का यह दौर भी कुछ ऐसा ही रहा।
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बीमारी का साया
एक दिन स्कूल में तनु की तबीयत अचानक बिगड़ गई।सुबह से ही उसका पेट गड़बड़ था, पर वह जिद करके स्कूल चली गई।कक्षा में बैठते-बैठते उसका चेहरा पीला पड़ गया।
टीचर ने देखा तो चिंता में पड़ गईं।उन्होंने तुरंत मधु से कहा—“इसे घर छोड़ आओ, यह बिल्कुल ठीक नहीं लग रही।”
गाँव बेलसरा की कच्ची गलियाँ अब भी खूबसूरत थी
मधु तनु को सहारा देकर घर लाई।वह इतनी कमजोर हो चुकी थी कि मुश्किल से कदम उठा पा रही थी।
घर पहुँचते ही उसके लूज मोशन शुरू हो गए।दिन-रात यही हालत रही।शरीर इतना सूख गया कि हड्डियाँ साफ दिखने लगीं।मां घबरा गई।
देसी इलाज पर इलाज किए गए—कभी बेलपत्र का काढ़ा,कभी जीरे का पानी,कभी हल्दी-नमक मिलाकर दही।
लेकिन हालत सुधरने का नाम नहीं ले रही थी।हर कोई यही कह रहा था—“बहुत नजर लग गई है इसको।”
आख़िर कई दिनों की मशक्कत के बाद तनु धीरे-धीरे ठीक होने लगी।पर उस बीमारी ने उसकी जान निकाल दी थी।कमजोरी इतनी बढ़ गई कि वह हड्डियों का ढांचा बनकर रह गई थी।
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छुट्टियाँ और मामा का घर
तनु और उसका छोटा भाई अक्सर मामा के घर छुट्टियों में जाते थे। बुआ जी दूसरे गांव में रहती थीं।
गाँव का खुला आकाश, हरियाली, तालाब और खेत—सब कुछ तनु को बेहद भाता। बुआ जी का ससुराल बहुत प्यार करने वाला था।ससुर, देवर, जेठानी सब बच्चों को दुलारते।
वहाँ जाते ही बच्चों की दावत शुरू हो जाती—खूब सारा दूध, मक्खन, दही,ताज़ी सब्ज़ियाँ और चूल्हे पर बने गरम-गरम रोटियाँ।
मां-बाबूजी के घर में जहाँ तंगी रहती थी,वहाँ दीदी के घर भरपूर खाने-पीने से तनु को सुकून मिलता।
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बड़े भैया का घर
एक बार बड़े भैया भी तनु और उसके भाई को अपने घर ले गए।उनकी बेटा हुआ था, और घर में खूब रौनक थी।
भाभी ने तनु को बहुत प्यार दिया।बाज़ार से अच्छे-अच्छे कपड़े दिलवाए।तनु को वे कपड़े बहुत अच्छे लगे।
लेकिन जब वह कपड़े पहनकर घर लौटी,तो बाबूजी ने देखा और डर गए।कपड़े थोड़े टाइट और फैशन वाले थे।
बाबूजी गुस्से से बोले—“ये क्या कपड़े पहना दिए हैं?इतनी बड़ी लग रही है इसमें!फौरन बदलो… अब कभी ऐसे सूट मत पहनना।”
तनु सहम गई।भाभी के दिए कपड़े अलमारी में रख दिए गए।
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गरीबी और कपड़े
तनु की मां बहुत जुगाड़ू थीं।नए कपड़े खरीदना आसान नहीं था।घर की हालत इतनी तंग थी कि कपड़े कई चरणों से गुजरते।
सबसे पहले कपड़ा नया होता,फिर बड़ा भाई पहनता,फिर छोटा भाई,फिर उससे छोटा।
जब वह भी घिस जाता,तो मां उसे काट-पीटकर तनु के लिए स्कर्ट या फ्रॉक बना देतीं।उसके बाद वही कपड़ा थैला बनता।और आखिर में पोछा।
जब तक कपड़ा पूरी तरह चिथड़ा न हो जाए,तब तक उसे घर से बाहर नहीं किया जाता था।
तनु कई बार सोचती—“काश मेरे पास भी नए-नए कपड़े होते,जो सिर्फ मेरे लिए बने हों।”
लेकिन गरीबी की मार इतनी गहरी थीकि यह इच्छा अक्सर दिल में ही दब जाती।
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मां की सिलाई-कटाई
मां बहुत मेहनती थीं।पुराने कपड़ों को काट-छांटकर नया बना देतीं।
कभी सलवार काटकर स्कर्ट,कभी फ्रॉक काटकर ब्लाउज़।तनु को जब भी मां के हाथ से नया बना कपड़ा मिलता,वह खुश होकर उसे पहन लेती।
उसे यह समझ आने लगी थी कि मां का यह हुनर ही उसकी सबसे बड़ी दौलत है।
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बचपन की सच्चाई
गरीबी का असर सिर्फ कपड़ों तक ही सीमित नहीं था।कभी खाने की कमी,कभी किताबों की कमी,कभी पढ़ाई के साधनों की कमी।
पर इन सबके बावजूद तनु और उसके भाई-बहनों ने हँसना नहीं छोड़ा।वे छोटी-छोटी चीज़ों में भी खुशी ढूंढ लेते।
जैसे—
आम के पेड़ से गिरी कच्ची अमिया उठाना,
मिट्टी में घरौंदा बनाना,
या फिर पुराने कपड़े पहनकर भी खेल में मस्त हो जाना।
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बाबूजी का डर
बाबूजी का स्वभाव सख्त था।वे चाहते थे कि बच्चे गलत रास्ते पर न जाएँ।जब तनु टाइट कपड़े पहनकर आई थी,तो बाबूजी का डर इसी कारण था—कि कहीं बेटी फिसल न जाए,कहीं समाज उंगली न उठाए।
उनकी सख्ती में प्यार छिपा था।लेकिन उस समय तनु को सिर्फ डांट ही महसूस होती थी।
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छोटी-सी ख्वाहिश
तनु के मन में एक छोटी-सी ख्वाहिश हमेशा रही—“मेरे भी नए कपड़े हों,मेरे भी अपने खिलौने हों।”
जब वह भाभी या दीदी के घर जाती और देखती कि वहाँ बच्चों के पास ढेरों कपड़े-खिलौने हैं,तो मन में ईर्ष्या भी होती और लालसा भी।
पर वापस आते ही हकीकत सामने होती—गरीबी की जकड़न।
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गाँव की खुशियाँ
हालाँकि, गरीबी के बावजूद छुट्टियों में गाँव जाकर तनु का मन खिल उठता।वहाँ खुला वातावरण,साफ हवा,नदी-तालाब,और खेतों की महक उसे नई ऊर्जा देते।
दीदी और भाभी का स्नेह उसके दिल पर मरहम जैसा लगता।उनके यहाँ तनु को वह सब मिलता,जो अपने घर की तंगी में अक्सर छूट जाता था।
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सीख और अनुभव
इन अनुभवों ने तनु को बहुत सिखाया।उसने जाना—
बीमारियों से लड़ना आसान नहीं, पर धैर्य जरूरी है।
गरीबी इंसान को तोड़ती है, पर हुनर और प्यार उसे जोड़ भी देते हैं।
और रिश्तेदारों का स्नेह किसी भी दुख को हल्का कर देता है।
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तनु का बदलता मन
धीरे-धीरे तनु बड़ी हो रही थी।अब उसमें संकोच भी आने लगा था।कपड़ों को लेकर शर्म,लोगों की नज़र से डर,और भविष्य को लेकर सोच।
पर भीतर से वह अब भी वही मासूम बच्ची थीजो पिल्लों से खेलती थी,पौधे लगाती थी,और चित्रहार देखकर खुश हो जाती थी।
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अध्याय का सार
तनु का यह जीवन अध्याय हमें दिखाता है कि—
बीमारी इंसान को कितना असहाय बना देती है,
गरीबी जीवन की हर परत को प्रभावित करती है,
और फिर भी रिश्तों का प्यार जीवन को संभाल लेता है।