Adhure Sapno ki Chadar - 7 in Hindi Women Focused by Umabhatia UmaRoshnika books and stories PDF | अधूरे सपनों की चादर - 7

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अधूरे सपनों की चादर - 7

अध्याय ७ : नई सहेली और नई भाभी

गली के नुक्कड़ पर एक नया परिवार आकर बसा।परिवार में पाँच बहनें और उनकी अकेली माँ थीं।गाँव में जब भी कोई नया आता, बच्चों के मन में उत्सुकता जग जाती।तनु भी रोज़ अपने घर के आँगन से झाँक-झाँक कर देखती रहती कि ये कौन हैं, कैसे रहते हैं।उसी परिवार की सबसे छोटी लड़की का नाम था पुन्नू।संयोग से वह भी तनु के ही स्कूल में और उसी की कक्षा में पढ़ने लगी।धीरे-धीरे दोनों के बीच बातें होने लगीं और देखते ही देखते गहरी दोस्ती हो गई।अब तनु को लगता कि उसकी तन्हाई पूरी हो गई है।---दोस्ती की पहली ख़ुशबूतनु और पुन्नू हर वक्त साथ दिखाई देतीं।कभी पुन्नू अपने घर बुलाती तो कभी तनु उसे अपने घर ले जाती।दोनों मिलकर खेलतीं, पढ़तीं और अपनी-अपनी छोटी-छोटी खुशियाँ बाँट लेतीं।पुन्नू का परिवार तनु के परिवार से थोड़ा बेहतर स्थिति में था।घर में सलीके से रखा सामान, कपड़े भी अच्छे और खाने-पीने में भी थोड़ी समृद्धि थी।तनु को वहाँ जाकर लगता कि वह कुछ नया सीख रही है।धीरे-धीरे पुन्नू ने तनु की दुनिया बदल दी।अब उसे लगा कि वह भी किसी के बराबर है, वह भी खेलों और पढ़ाई में हिस्सा ले सकती है।अब तनु अकेली नहीं थी।---छोटी सी टीसलेकिन पुन्नू की बड़ी बहनें तनु को पसंद नहीं करती थीं।उनकी नज़र हमेशा तनु की टांगों पर जाती।दरअसल तनु की टाँगों पर अक्सर छोटे-छोटे फोड़े निकल आते थे, जिन पर माँ नीली दवाई लगाकर रखती थी।वह नीला धब्बा देखने में भद्दा लगता।पुन्नू की बहनों को यह सब अच्छा नहीं लगता था।वे अक्सर ताने कस देतीं –“अरे पुन्नू, तू हमेशा इसी के साथ क्यों खेलती है? देख तो कैसी लगती है इसकी टाँगें।”तनु चुप हो जाती।दिल में हल्की-सी टीस होती, पर पुन्नू उसका हाथ पकड़ लेती और कहती –“चल, हम खेलते हैं… दूसरों की बातें मत सुन।”पुन्नू की यही सादगी और सच्चाई तनु के दिल में गहरी उतरती चली गई।---नया सहेलियों का समूहधीरे-धीरे पुन्नू की और भी सहेलियाँ तनु से मिलने लगीं।अब तनु का एक छोटा-सा समूह बन गया था।पहले वह जो अकेलापन महसूस करती थी, वह मिटने लगा।उसका आत्मविश्वास बढ़ा।उसे लगा कि अब वह भी और बच्चों की तरह खेलों, पढ़ाई और छोटी-छोटी खुशियों का हिस्सा है।उसका जीवन मानो बदल रहा था।चौथी कक्षा तक पहुँचते-पहुँचते तनु के भीतर बचपन की मासूमियत के साथ-साथ आत्मसम्मान की भावना भी पनपने लगी थी।---भैया की शादी की तैयारीइसी बीच घर में एक बड़ी ख़बर आई –भैया की शादी होने वाली थी।भैया का रंग गोरा-चिट्टा था।पूरा गाँव उनकी प्रशंसा करता था।जब भाभी के लिए लड़की देखने का सिलसिला शुरू हुआ तो एक रिश्ता पक्का हुआ।लड़की पढ़ी-लिखी थी और भैया के ही ऑफिस में नौकरी करती थी।रिश्ता मामाजी ने सुझाया था।पर जब बात भैया तक पहुँची तो उन्होंने साफ़ इनकार कर दिया।“मुझे अभी शादी नहीं करनी। और वो लड़की… मुझे पसंद नहीं है।”घर में हंगामा मच गया।बाबूजी, माँ और बाकी रिश्तेदार भैया को समझाते रहे।बहुत समझाने-बुझाने के बाद आखिरकार शादी तय हो गई।---नई भाभी का आगमनशादी के दिन घर सज-धज कर तैयार था।बारात धूमधाम से निकली।भैया की शादी बड़ी धूमधाम से हो गई।नई भाभी घर में आईं।वे पढ़ी-लिखी, समझदार और बेहद सलीकेदार थीं।हालाँकि उनका रंग थोड़ा साँवला था, लेकिन नक्श बहुत ही सुंदर और व्यक्तित्व आकर्षक।धीरे-धीरे पूरे घर ने उन्हें अपनाना शुरू किया।---तनु और ड्रेस का सपनाशादी के उत्सव ने तनु के मन में भी कई सपने जगा दिए।उसे याद आया कि हाल ही में पड़ोस की एक लड़की के भाई की शादी हुई थी।उस लड़की ने बहुत सुंदर सफ़ारी सूट जैसा ड्रेस पहना था।तनु के मन में जिद जागी –“माँ, मुझे भी ऐसा ही ड्रेस चाहिए।”लेकिन घर की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि महंगे कपड़े खरीदे जा सकें।माँ ने बहुत सोच-विचार किया और अंत में बाज़ार से एक मोटी चादर खरीद लाई।दर्जी के पास जाकर उसी चादर से तनु के लिए पैंट-शर्ट बनवा दिया गया।ड्रेस तैयार हुआ तो तनु की आँखें चमक उठीं।वह बड़े गर्व से कहती –“देखो, मेरा नया सूट… बिलकुल पड़ोस वाली दीदी जैसा।”शादी में जब उसने वह मोटी चादर से बना पैंट-शर्ट पहना तो वह खुद को किसी राजकुमारी से कम नहीं समझ रही थी।---मासूम खुशी और बाद की शर्मउस वक्त तनु बेहद खुश थी।उसे लगा जैसे उसने अपना सबसे बड़ा सपना पूरा कर लिया हो।वह बारात में इतराती फिरती, बच्चों के साथ खेलती और सबको अपने ड्रेस की ओर इशारा करती।लेकिन समय बीतने के बाद, जब तनु थोड़ी बड़ी हुई और पीछे मुड़कर देखा तो उसके मन में हल्की-सी शर्मिंदगी आई।“मैंने कैसी ड्रेस पहनी थी… मोटी-सी चादर का बना पैंट-शर्ट।”पर यही तो बचपन की मासूमियत थी।तब छोटी-सी चीज़ भी सबसे बड़ा सुख लगती थी।और वही मासूम खुशियाँ जीवन भर की याद बन जाती हैं।---अंतर्निहित सबक
इस पूरे अनुभव ने तनु को सिखाया –गरीबी कभी भी सपनों को रोक नहीं सकती।माँ ने अपनी सामर्थ्य के अनुसार तनु की इच्छा पूरी की थी।वह चादर का बना पैंट-शर्ट सिर्फ एक ड्रेस नहीं था,बल्कि माँ के त्याग और तनु की मासूम खुशी का प्रतीक था।तनु ने समझा कि जीवन में सच्चा सुख चीज़ों में नहीं,बल्कि अपनेपन और भावनाओं में छिपा होता है।---