Bandhan - 50 in Hindi Women Focused by Maya Hanchate books and stories PDF | बंधन (उलझे रिश्तों का) - भाग 50

Featured Books
Categories
Share

बंधन (उलझे रिश्तों का) - भाग 50

चैप्टर 50 
आज की रात सब पर भारी थी ,हर किसी के दिल में एक तूफान उठा हुआ था। किसी को अपनी अतीत बूला रही थी तो किसी को अपनी भविष्य की चिंता सता रही थी। हर किसी को किसी को खोने का डर सता रहा था। 
लेकिन सब इस बात से अनजान थे कि यह तो सिर्फ तूफान की शुरुआत थी, और अब उनकी जिंदगी की खुशियों का अंत।
आज की गहरी काली अंधेरी रात में सिर्फ हवाओं का शोर हो रहा था।
पूर्णिमा के चांद का भी चमक इस अंधेरी रात में फीका पढ़ चुका था।

वनराज और रुचिता के कमरे में 
रुचिता रमन जी से बात कर कर अपने कमरे में आती है ,तो देखती है ;कि बेड पर वनराज एक तक सीलिंग को देखते हुए कुछ सोच रहा था उसके आंखों में नींद ना के बराबर थी।

जिसे देखकर रुचिता को कहीं ना कहीं समझ आ रहा था कि इस वक्त वनराज क्या सोच रहा है जिसकी वजह से उसके दिल में हलचल  होने लगी थी  ,उसे  वनराज को खोने का डर सताने लगा था।

वह धीरे से जाकर बेड पर बैठ जाती है और एक टक वनराज को देखने लगती है, जब वनराज को अपने पास हलचल होते महसूस होता है तो वह अपने सोच से बाहर आकर रुचिता की तरफ देखता है।।जिसके आंखों में बहुत से बातें थी ,शिकायतें थीं ।।वह साफ-साफ देख सकता था।

वनराज धीरे से रुचिता को अपने बाहों में लेकर पूछता है... क्या हुआ इतनी परेशान क्यों नजर आ रही हो और तुम्हें इतनी देर क्यों हुई है कमरे में, आने में?
जिस पर रुचिता थोड़ी सी परेशान होकर बोली कुछ नहीं हुआ है और रही बात कमरे में देर से आने की तो वह कौरव को सुलाने में देरी हो गई थी वह सो ही नहीं रहा था। (उन्होंने बड़ी सफाई से वनराज से झूठ बोल दिया) 
रुचिता की बात पर वनराज कुछ नहीं बोलता और खामोश हो जाता है, रुचिता ने बड़े कसकर वनराज को गले लगाया, वनराज ने भी रुचिता को अपने बाहों में उतनी ही कस कर पकड़ा था जितना रुचिता ने पकड़ा था।

इस वक्त दोनों के बीच सिर्फ खामोशियां थी उनके इन खामोशियों की वजह से उनके दिलों की धड़कनों का धड़कना साफ-साफ पूरे कमरे में सुनाई दे रहा था।
कुछ देर ऐसे ही खामोश रहने के बाद रुचिता अपनी नजरों को नीचे करते हुए धीरे से बोली ..... राज I need you !
उनके यह तीन लफ्ज़ बड़ी मुश्किल से निकले थे और वह भी बहुत ही धीरे से। पर वनराज ने इन तीन लफ्जों को खामोशियों की वजह से अच्छे से सुना हुआ था। रुचिता की नजर अभी भी नीचे ही थी और उसक पूरा शरीर ठंडा पड़ चुका था जो वनराज अच्छे से महसूस कर रहा था। 
शायद 10 साल में यह पहली बार था कि रुचिता ने वनराज से सामने से कुछ मांगा था।।

रुचिता की बात सुनकर इतनी देर बाद वनराज के चेहरे पर एक छोटी सी पर बहुत ही मनमोहक मुस्कान आ जाती है। लेकिन यह मुस्कान रुचिता नहीं देख पाती है क्योंकि उसकी नजरें ,,अभी भी नीचे झुकी हुई थी जो शायद डर के मारे ऊपर उठ नहीं रही थी।
वनराज ने धीरे से रुचिता के चेहरे को ऊपर उठाते हुए उसे शरारती लेजा में पूछता है... क्या चाहिए? साफ-साफ बताओ मुझे समझ में नहीं आया। 

जिस पर रुचिता और ज्यादा शर्म के मारे अपने आंखों को नीचे करते हुए बोली ....कुछ नहीं इतना कहकर वह वनराज से दूर होने लगती है।
लेकिन वनराज रुचिता को दूर होने नहीं देता है वह और भी ज्यादा अपनी पकड़ रुचिता पर करते हुए बोला मैंने सुना है तुमने कुछ मांगा है तो बोलो साफ-साफ क्या चाहिए? (वनराज के एक्सप्रेशन कुछ ऐसे  थे; कि जैसे उसे सच में कुछ समझ में नहीं आया वह बिल्कुल एक भोलाराम की तरह एक्ट कर रहा था।।)
वनराज की बात सुनकर भी एक बार भी रुचिता ने अपने ,नजरों को ऊपर नहीं किया है और वह 
वनराज से दूर जाने के लिए छटपटा रही थी। 
जिसे देखकर वनराज अब रुचिता से मजाक करना बंद कर कर उसके लबों पर अपने लब रख देता है।
जिसकी वजह से रुचिता छटपटाना बंद कर देती है, और बस वनराज को फील करने लगती है।
इस किस में वनराज की तड़प साफ महसूस हो रही थी।
वही रुचिता बस वनराज में खोई हुई थी। 
कुछ देर किसके बाद वह दोनों एक दूसरे से अलग होते हैं अभी भी रुचिता की नजरे नीचे ही थी। जिसे देखकर वनराज के चेहरे पर हल्की मुस्कुराहट फिर से आता है और वह इस मुस्कान के साथ बोला बीवी शादी को 10 साल हो चुके हैं और हमारा एक बेटा भी है। तुम! अभी भी मुझसे ऐसे शर्मा रही हो जैसे हम नए-नए कपल्स हैं।
जिस पर रुचि तक कुछ नहीं बोलता है और वनराज के सीने से लग जाती है। 

उसे अपने  सीने से लगते देखकर वनराज ने  उसे खुद के और करीब करते हुए बोला .....फिक्र मत करो किसी के आ जाने से मैं तुमसे दूर नहीं हूंगा। यह जो उसके आने की वजह से तुम परेशान हो गई हो परेशान होना बंद करो। बस इतना याद रखो कि तुम वनराज कपाड़िया की बीवी हो और कोई तुमसे तुम्हारा पति नहीं छीन सकता।।
इस समय वनराज की बातें रुचिता के हलचल दिल में एक सुकून देता है।

वनराज अपनी बात बोलकर रुचिता के माथे पर अपने होंठ  रख देता है। जिसे महसूस कर कर रुचिता कि आंखें के खुद-ब-खुद बंद हो जाती है।
उसके बाद वनराज एक-एक कर रुचिता के दोनों आंखों पर गालों पर चूमने लगता है। ।
उसके बाद वह धीरे-धीरे से उसके गर्दन पर चूमने लगता है।। वनराज कभी रुचिता के चेहरे को चूमता तो कभी उसके गार्डन, कॉलर बोन par।

वह लोग अपने कमरे में एक दूसरे को महसूस कर रहे थे जिसकी सबूत उन दोनों की गहरी गहरी सांस और दिल की धड़कन दे रही थी।

शिवाय के कमरे में 
शिवाय दुर्गा से बहस कर कर अपने कमरे में आता है अपने दोनों बच्चों को इतनी सुकून से सोते देखकर वह उन दोनों के करीब जाकर उनके माथे को चूमता है और उन दोनों को देखते हुए अपने मन में बोला  आरोही को यह सच कभी पता चलने नहीं दूंगा। वरना वह मेरे साथ-साथ मेरे बच्चों से भी नफरत कर बैठेगी। जो मुझे कभी मंजूर नहीं है। 
जिस काम के लिए मैं यहां आया हूं वह पूरा कर कर अपने बच्चों के साथ अपनी दुनिया में वापस चला जाऊंगा, परिवार के साथ रहने की लालच में मैं अपने बच्चों खो को नहीं सकता।।।
इतना बोलकर वह अपने बच्चों को अपनी बाहों में भरते हुए सो जाता है। 

अस्पताल के अंदर। 
आरोही और तरुण रेस्टिंग रूम में बैठे थे क्योंकि सुबह से वह लोग अपने-अपने पापा के पास बैठे हुए थे ,उनका ख्याल रख रहे थे। 
कुछ देर पहले ही सिद्धार्थ जी के पास रावी आई थी, तो राम जी के पास अंकिता जी थी।। जिसकी वजह से वह दोनों रेस्ट करने के लिए रेस्ट रूम में आए थे।
इस समय आरोही और तरुण सोफे पर बैठे हुए थे आरोही ने तरुण के कंधे पर सर रखते हुए बोली अगर सब कुछ ठीक होता तो कल हमारी सगाई होती।।
जिस पर तरुण सिर्फ hmmmmm जवाब देता है। 

वह लोग ऐसे ही एक दूसरे से बातें करने लगते हैं।