Adhure Sapno ki Chadar - 15 in Hindi Women Focused by Umabhatia UmaRoshnika books and stories PDF | अधूरे सपनों की चादर - 15

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अधूरे सपनों की चादर - 15

अध्याय १५ – नई राहें और नए डर


दसवीं की सफलता तनु के जीवन में नई उम्मीद लेकर आई थी।पर सफलता के साथ-साथ नई चुनौतियाँ भी सामने खड़ी थीं।हर लड़की की तरह तनु भी चाहती थी कि वह अच्छे स्कूल में पढ़े,नई किताबें हों, अच्छे कपड़े हों, और भीड़ में आत्मविश्वास से खड़ी हो सके।लेकिन हकीकत हमेशा चाहत से अलग होती है।--

-सहेलियों का बिछोह

दसवीं की परीक्षा के बाद तनु की सारी सहेलियाँ अपने-अपने परिवारों के साथ बेहतर स्कूलों में एडमिशन लेने लगीं।सबका मानना था कि पुराने स्कूल में आगे बढ़ने के मौके बहुत कम हैं।पन्नू, जो तनु की सबसे खास सहेली थी,उसने भी एक नामी स्कूल में दाखिला ले लिया।तनु जब उसके साथ गई तो उसने सोचा कि शायद वह भी नए स्कूल में एडमिशन ले लेगी।लेकिन वहाँ जाकर उसने देखा—लड़कियों के पास अच्छे कपड़े थे,उनकी बोली, उनका रहन-सहन सब अलग था।वह स्कूल सच में अच्छा था,लेकिन वहाँ पढ़ने के लिए सिर्फ दिमाग नहीं,बल्कि जेब भी चाहिए थी।बस का खर्च, फीस, ड्रेस, किताबें—इन सबका बोझ तनु के लिए उठाना संभव नहीं था।तनु ने सोचा—“मैं चाहकर भी उनके साथ नहीं चल पाऊँगी।बेहतर यही है कि कोई पास का साधारण स्कूल चुन लूँ।”--

-नए स्कूल की शुरुआत

तनु ने पास के एक स्कूल में अकेले ही जाकर एडमिशन ले लिया।नए स्कूल का माहौल अलग था।यहाँ ना तो पन्नू थी,ना बाकी पुरानी सहेलियाँ।पहले कुछ दिन तनु को बहुत अजीब लगे।ना किसी से बात करने का मन करता,ना खेलने का।वह अक्सर कोने में बैठी रहती और किताबों में खो जाती।लेकिन तनु ने मन ही मन ठान लिया—“अकेली हूँ तो क्या, मैं रुकूँगी नहीं।”धीरे-धीरे नए स्कूल के बच्चे भी उसे पहचानने लगे।कभी कोई पेंसिल माँग लेता,कभी कोई किताब।धीरे-धीरे तनु का अकेलापन थोड़ा कम होने लगा।उसकी दिनचर्या घर से स्कूल और स्कूल से घर तक सिमट गई।पर उसके भीतर की आग—आगे बढ़ने की—बुझी नहीं।---

गाँव का परिवेश और परंपराएँ

इन दिनों गाँव की दुनिया भी बदल रही थी।सुबह होते ही गलियों में चिड़ियों की चहचहाहट गूँजती।औरतें पीतल या पीतल जैसी चमकती बाल्टियों और घड़ों में पानी भरने निकलतीं।कुआँ और हैंडपंप ही पानी का मुख्य सहारा थे।गाँव की चौपाल अब भी वैसी ही थी—बुजुर्ग हुक्का गुड़गुड़ाते और राजनीति,  की बातें ,परिवारों में आपसी मेलजोल बहुत था।अगर किसी घर में कोई खुशी या दुख होता,तो पूरा गाँव उसमें शामिल होता।शादी-ब्याह में हर कोई काम बाँट लेता।माँ अक्सर कहतीं—“बेटा, गाँव में सब एक-दूसरे के अपने होते हैं।यहाँ अकेला कोई नहीं रहता।”गाँव की इन परंपराओं ने तनु के दिल में अपनापन तो भरा,पर साथ ही लड़कियों के लिए बनी कुछ पुरानी मान्यताएँ भीउसके सामने दीवार की तरह खड़ी हो गईं।--

-भाइयों का बिखराव

घर के हालात अब भी स्थिर नहीं थे।तनु के भाई बार-बार फेल हो रहे थे।बाबूजी बहुत परेशान रहते।आखिरकार, छोटे-छोटे कोर्स करके वे बड़े भैया के गाँव चले गए।वहीं एक छोटी नौकरी मिल गई।गाँव में दादाजी की जमीन, खेत-खलिहान और तीन हवेलियाँ थीं।वहीं बाकी भाई भी टिक गए और किसी तरह अपना जीवन चला रहे थे।अब मां के पास सिर्फ तनु और उसका छोटा भाई ही रह गए थे।इससे मां को थोड़ी राहत मिल गई।--

-मां की बदलती दुनिया

मां अब घर के काम के साथ-साथथोड़ा समय अपने लिए भी निकालने लगीं।वे सत्संग में जातीं, भजन गातीं और खुश रहने लगीं।तनु को यह देखकर अच्छा लगता।मां के चेहरे पर चमक आने लगी थी।उनका स्वभाव पहले से ज्यादा सकारात्मक हो गया था।मां अक्सर कहतीं—“सब खुश रहो, सुखी रहो।”उनकी दुआओं से तनु को भी शक्ति मिलती।मां थोड़ी-बहुत पढ़ना-लिखना सीख चुकी थीं।घर में एक भजन की किताब थी।वह किताब हाथ में लेकर दिनभर कहतीं—“बेटा, मुझे यह भजन सुना दे।”तनु भजन पढ़ती और मां उसकी धुन बनातीं।कभी-कभी तो पूरा घर भक्ति-रस में डूब जाता।तनु को यह देखकर हैरानी होती किइतनी समस्याओं के बावजूद मां हमेशा हँसना जानती थीं,खुश रहना जानती थीं।---सादा-सहज परिवार और पुराने ख़यालात तनु का परिवार साधारण था—ना ज्यादा आडंबर, ना आधुनिकता की चकाचौंध।घर में परंपराओं और मर्यादाओं की पकड़ बहुत गहरी थी।लड़कियों को सादगी से रहना चाहिए,सिर झुकाकर चलना चाहिए,घर की इज्ज़त सबसे ऊपर है—ऐसी बातें रोज़ सुनने को मिलतीं।कभी कोई रिश्तेदार आकर कहता—“बेटी बड़ी हो रही है, इसका चाल-चलन देखना ज़रूरी है।”तो कभी कोई पड़ोसी ताना मार देता—“आजकल की लड़कियाँ पढ़ाई में लग गई हैं,घर के काम करना भूल जाएँगी।”ये बातें तनु के मन पर गहरी छाप छोड़तीं।वह सोचती—“क्या सचमुच लड़कियों को अपनी पसंद का जीवन जीने का हक नहीं?”--

-भाऊजी से पहला डर

अब तक तनु को अपने भाऊजी से कोई खास डर नहीं लगता था।लेकिन एक दिन ऐसा हुआ जिसने तनु के मन में उनके लिए खामोश डर बसा दिया।हुआ यूँ कि बहन ने पन्नू की एक सुंदर लंबी ट्रेंडी ड्रेस दिखाई।उन्होंने बाबुजी दिखाते हुए कहा—“बाबूजी, मुझे भी ऐसी ही ड्रेस चाहिए।”बाबूजी ने जैसे ही वह ड्रेस देखी,वे भड़क उठे।गुस्से में उन्होंने ड्रेस उठाकर फेंक दी और बोले—“ये सस्ती और सस्ती सोच की निशानी है!हमारी बेटियाँ और बहुएँ ऐसी चीप कपड़े नहीं पहनेंगी!”उस दिन पहली बार तनु ने बाबूजी को इतने गुस्से में देखा।उस पल उसके मन में एक अजीब-सा डर बैठ गया।वह समझ गई कि कपड़े, फैशन और इच्छाओं की दुनियाउसके लिए आसान नहीं है।उस रात तनु देर तक जागती रही।उसके कानों में बाबूजी की कठोर आवाज़ गूँजती रही।उसके मन में सवाल था—“क्या लड़कियों की इच्छाएँ हमेशा गलत मानी जाएँगी?”तनु को यह डर तो था,लेकिन भीतर कहीं यह जिद भी पनपने लगी—“एक दिन मैं अपनी पसंद की दुनिया खुद बनाऊँगी

तनु के जीवन की यह कड़ी डर और हिम्मत, दोनों का संगम है।कभी सहेलियों से जुदाई, कभी नए स्कूल का अकेलापन,तो कभी समाज और परिवार की परंपराओं की दीवारें—इन सबके बीच एक लड़की का मन कितना कुछ झेलता है।


 क्या  तनु  की  कहानी आपको भी अपने जीवन से जोड़ती है?आपकी राय और अनुभव तनु की यात्रा को और जीवंत बनाएँगे। ✨