Adhure Sapno ki Chadar - 18 in Hindi Love Stories by Umabhatia UmaRoshnika books and stories PDF | अधूरे सपनों की चादर - 18

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अधूरे सपनों की चादर - 18

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अध्याय 18

नई पहचान, नए अहसास(अधूरे सपनों की चादर)


समय जैसे पंख लगाकर उड़ गया। कॉलेज का पहला साल तमन्ना ने संघर्षों और नए अनुभवों में पार कर लिया। और जब नतीजे घोषित हुए तो सबकी आँखें खुली की खुली रह गईं—तमन्ना ने क्लास में टॉप कर लिया था।

घर में यह सुनकर जैसे किसी ने अविश्वास का ताला खोल दिया हो। माँ-बाबूजी के लिए यह खबर चौंकाने वाली थी। जहाँ उसके भाई पढ़ाई छोड़ चुके थे, वहीं तमन्ना ने न सिर्फ पढ़ाई जारी रखी बल्कि सबको पीछे छोड़ दिया। मोहल्ले में चर्चा थी—“तमन्ना बहुत होशियार लड़की है।”“देखो, लड़कों से भी आगे निकल गई।”गांव के बड़े  बुजुर्ग आए, बाबुजी को बधाई देने  लगे

,आप लड़की को पढ़ा रहे  हैं  दूर शहर बहुत बड़ी बात है. हमारी भी बेटी शहर जाती हे नौकरी  करने

कुछ पड़ोसी तो अपने बच्चों को पढ़ाने की गुज़ारिश लेकर आए। तमन्ना हैरान रह गई—“मैं? ट्यूशन? मुझे तो खुद पता नहीं कि कैसे पढ़ाना है।”

लेकिन बच्चों के माता-पिता ने जैसे जिद पकड़ ली—“तुम बस शुरू करो, हमारे बच्चे सीख लेंगे।”

यही उसकी पहली कमाई का साधन बन गया। पाँच बच्चे मिले पढ़ाने के लिए। सभी इंग्लिश मीडियम स्कूल से थे और तमन्ना खुद हिंदी मीडियम से पढ़ी हुई थी। शुरू-शुरू में उसे लगता कि वह क्या सिखा पाएगी, लेकिन धीरे-धीरे उसकी मेहनत और लगन रंग लाई। बच्चे भी उससे जुड़ते चले गए।

पहली बार हाथ में आए पैसों से उसने अपने लिए छोटे-छोटे ख़रीदारी की—कपड़े, एक अच्छी चप्पल, एक छाता। उसके पास पहले से एक घड़ी थी जो बाबूजी ने कभी दी थी। उसका शीशा बार-बार टूट जाता और तमन्ना बार-बार उसे ठीक करवाने जाती। वही छोटी-सी घड़ी उसके लिए किसी साथी जैसी थी। बारिश में छाता और समय में घड़ी—मानो जीवन की दो बड़ी ज़रूरतें अब उसके पास थीं।

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कॉलेज का रंग और दोस्ती की खुशबू

कॉलेज जीवन अब थोड़ा सहज हो चला था। स्ट्राइक, कैंटीन की हँसी-ठिठोली, ग्रुप स्टडी और सहेलियों का साथ—सब कुछ एक नई चमक भर रहा था।

तमन्ना की बचपन की सहेली पुन्नू अब उसकी सबसे गहरी दोस्त बन चुकी थी। दोनों दिन-रात साथ रहते। पुन्नू फैशन में आगे थी—नए कपड़े, झुमके, हेयर स्टाइल। तमन्ना अकसर उसके झुमके लेकर पहन लेती और आईने में खुद को निहारती। धीरे-धीरे उसने भी सजना-संवरना सीख लिया।

मोहल्ले में लोग अब उसे ध्यान से देखने लगे थे। वह बड़ी हो रही थी, निखर रही थी। लेकिन तमन्ना को इन बातों से कोई खास मतलब नहीं था। उसके लिए सबसे बड़ा आनंद अपनी सहेलियों के साथ बिताए पल थे।

अम्मा और बाबूजी उसे अब भी एक बेटे की तरह देखते थे—पढ़ाई में डूबी हुई, जिम्मेदार, सीधी-सादी। फिर भी कहीं न कहीं उनके दिल में एक डर था—“इतनी दूर अकेले पढ़ने जाती है, लड़कों के साथ क्लास में बैठती है… कहीं कुछ गलत न हो जाए।”

बाबूजी ने तो चुपके से अपने पड़ोसी के बेटे  जो बड़ी उम्र का था ,विश्वास के योग्य को कहा शहर जाता है ,जरा जाओ तमन्ना  के  कॉलेज ,भेजा यह जांचने के लिए कि वाकई तमन्ना टॉप हुई है या यह सिर्फ उसका दावा है। जब पड़ोसी बेटे ने लिस्ट में उसका नाम सबसे ऊपर देखा और घर आकर बताया, तभी माता-पिता का विश्वास पक्का हुआ कि  सब  ठीक  ही  चल  रहा  है

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राज और उसकी मुस्कान

इधर राज भी तमन्ना की दुनिया में धीरे-धीरे दाखिल हो रहा था। चुनाव हारने के बावजूद वह मायूस नहीं था। बल्कि, वह और उसके दोस्त हमेशा हँसते-मुस्कुराते नज़र आते।

लंच टाइम में जब तमन्ना और उसकी सहेलियाँ छत पर बैठकर घर से लाया खाना खोलतीं, राज और उसके दोस्त उधर से गुजरते। कभी-कभी मजाक में उनकी थाली से रोटी का टुकड़ा उठा लेते। तमन्ना गुस्सा होने का नाटक करती, सहेलियाँ खिलखिला उठतीं, और राज की आँखों में एक शरारती चमक तैर जाती।

राज का अपना ग्रुप था,नेता भी था तो  अक्सर  ग्रुप  बना कर  घूमते  रहते  थे  सब. लेकिन वह हिंदी मीडियम से पढ़ा था, इसलिए अंग्रेज़ी बोलने वालों से ज़्यादा घुलता-मिलता नहीं था। शायद यही कारण था कि वह तमन्ना और उसकी सहेलियों के करीब आने लगा।

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जीत और हार का जश्न

चुनाव खत्म हो चुके थे। जिनके उम्मीदवार जीत गए थे, वे ढोल-नगाड़ों के साथ नाचते रहे। जो हार गए थे, उन्होंने हार का ग़म मनाने के बजाय थिएटर में फ़िल्म देखने का प्रोग्राम बना लिया।

“चलो, फ़िल्म देखते हैं!”कॉलेज से बस भरी गई। तमन्ना की सहेलियों ने भी ज़िद की—“चलो तमन्ना, तू भी चल।”

तमन्ना के लिए यह पहली बार था। उसने कभी परिवार से अलग, दोस्तों के साथ अपनी मर्ज़ी से फ़िल्म नहीं देखी थी। उसके भीतर उत्साह भी था और डर भी।

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वह दिन, वह पल

बस भरी हुई थी, हँसी-मजाक का शोर था। सब अपनी-अपनी सीटों पर बैठे। थिएटर पहुँचे। फ़िल्म का नाम था—“बेताब”, सनी देओल की पहली रोमांटिक फिल्म।

तमन्ना को सीट नहीं मिली तो वह सबसे पीछे, एक कोने में बैठ गई। हॉल अंधेरे में डूबा, पर्दे पर रोशनी फैली और कहानी शुरू हुई।

कुछ ही देर में उसने महसूस किया—पास वाली खाली सीट पर कोई आकर बैठ गया है। हल्की-सी आहट, फिर उसका कंधा झुककर उसकी ओर। तमन्ना चौंकी। अंधेरे में चेहरा साफ नहीं दिखा, लेकिन अंदाज़ा हो गया—वह राज था।

दिल अचानक धड़क उठा।“राज यहाँ क्यों बैठ गया? इतने सारे लोग हैं, फिर भी मेरे पास क्यों?”

फ़िल्म पर उसकी नज़रें थीं, पर दिमाग़ में सवालों का सैलाब था। पर्दे पर रोमांस चल रहा था और उसकी अपनी ज़िंदगी में एक अनजाना रोमांच उतर आया था।

तमन्ना ने सिर झुकाकर स्क्रीन की तरफ देखा, पर भीतर से जैसे कोई कह रहा था—“यह लम्हा कुछ अलग है। यह मुलाक़ात सिर्फ यूँही नहीं है।”

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अधूरी चादर में नया रंग

उस दिन की फ़िल्म, वह अंधेरा हॉल, और राज का अचानक उसके पास आ बैठना—तमन्ना के जीवन की चादर में एक नया रंग भर गया। यह अहसास नया था, अनजान था, और कहीं न कहीं उसे भीतर तक छू गया था।

तमन्ना ने चाहा कि वह इस पल को नज़रअंदाज़ कर दे, पर दिल के किसी कोने में यह स्मृति गहराई से दर्ज हो चुकी थी।