इतिहास के पन्नों से   9      From The Pages of History  9
भाग -9 
नोट - ‘ वैसे तो इतिहास अनंत है ‘ शृंखला  लेख में इतिहास की कुछ घटनाओं के बारे में पहले प्रकाशित भागों में  उल्लेख है, अब आगे पढ़ें  ….    
1 . अटलांटिक के पार गुलामों का व्यापार  ( Trans Atlantic  Slave Trade ) - 15 वीं से 19 वीं सदी के बीच यूरोपियन द्वारा बड़े पैमाने पर अफ्रीकी लोगों को गुलाम बना कर अटलांटिक महासागर के उस पार अमेरिका भेजा जा रहा था  .  स्पेन , पुर्तगाल , ग्रेट ब्रिटेन  , फ्रांस और डच आदि यूरोप  के देशों द्वारा वहां उपनिवेशवाद  था  . 
उन्हें श्वेत लोगों को सैटल करने के लिए अफ्रीका से लेबर की आवश्यकता थी   . पश्चिम और मध्य पश्चिम अफ्रीका के देशों से बलपूर्वक लोगों को यूरोपीय और अमेरिकी  जहाजों में ठूंस कर  अटलांटिक महासागर पार कर अमेरिका लाया जाता था   . अमेरिका लाने के लिए उन दिनों त्रिभुजाकार रूट था जिसे मिडिल पैसेज कहा जाता था  . कुछ तो रास्ते  में ही  दम तोड़ देते थे  . जो बचे  उन्हें यहाँ गुलाम या दासों की तरह बेच दिया जाता था  . उसे एक हिंसक युग कहा जा सकता है जो साम्राज्यवादियों को खुश और अमीर बनाने के लिए था  . 
लगभग सवा करोड़ अफ़्रीकी गुलामों को श्वेत अमेरिकी  और यूरोपियन लोगों के अधीन विषम परिस्थितियों में क्रूरतापूर्वक श्रम करना पड़ता था  .  कभी पीढ़ी दर पीढ़ी को गुलामी झेलनी पड़ती थी .  इस व्यवस्था ने  नस्लीय भेदभाव को जन्म दिया जिसका प्रभाव आज भी देखने को मिल सकता है  .  धीरे धीरे अफ़्रीकी मूल के वंशजों का प्रसार अमेरिका में और पश्चिमी यूरोप के देशों में होने लगा  . 
1776 में सभी उत्तरी अमेरिकी 13 ब्रिटिश कॉलोनी ने ब्रिटेन से  स्वतंत्रता की घोषणा की  . इसके बाद 18 वीं सदी में उन्मूलनवादी आंदोलन का आरम्भ हुआ और 1807  तक लगभग सभी ब्रिटिश उपनिवेशों में गुलामी प्रथा खत्म हुई  . अमेरिका में  1808 में स्लेव ट्रेड पर प्रतिबंध लगा दिया गया और सभी को समान अधिकार देने की प्रक्रिया शुरू हुई  . पर गुलामों के मालिकों ने इसका विरोध किया था  . अमेरिका में सिविल वार हुआ  . 1793 और 1850 में फ्यूजिटिव एक्ट बना जिसके अंतर्गत जो गुलाम भाग रहे थे उन्हें पकड़ कर उनके मालिकों को देना जरूरी था  . बाद में 1865 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन के समय दासता की प्रथा को पूर्ण विराम मिला  . 
 
2 . जीसस क्राइस्ट का सूली पर चढ़ाना - जीसस के  जन्म की सही जानकारी नहीं है  . मानना है कि 25 दिसंबर  ईसा पूर्व 6 या  4  BC में बेथलेहम  ( जेरूसेलम  के पास ) में  उनका जन्म  हुआ था  . पहली सदी में 30 / 33 ई तक जीसस  जीसस क्राइस्ट ( मसीहा ) के नाम से मशहूर थे  . वे पहली सदी के यहूदी के शिक्षक और यहूदियों के  धर्मगुरु थे  . लोगों का मानना था कि वे मृत को जीवित कर सकते थे और रोगियों को निरोग इसलिए उन्हें ईसा मसीह कहा गया  . ज्यादातर  ईसाइयों का मानना है  कि वे ईश्वर के अवतार थे  . 
रोमन साम्राज्य  को शक था कि जीसस एक राजनीतिज्ञ हैं , वे बगावत को हवा दे रहे हैं और खुद को यहूदियों का राजा मानते हैं   .  गिरफ्तार कर उन्हें ईशनिंदा के अपराध में सैन्हेद्रिन ( यहूदियों का कोर्ट ) द्वारा मौत की सजा दी गयी  .
कहा जाता है कि जेरूसलम के माउंट ज़िओन स्थित सिनेक्ल रूम में जीसस ने अंतिम रात्रि भोजन लिया था  . इस डिनर  को  ‘ द लास्ट सपर ‘ कहा जाता है और इसी दौरान उनके ही एक शिष्य जूडस  ने उन्हें धोखा दिया और उनकी गिरफ्तारी हुई  . जीसस ने इसे ‘ पास ओवर मील  ‘ कहा था जो यहूदियों का बसंत ऋतु होता है  . इसे प्रभु भोज भी कहा जाता है  . जूडस एक लालची आदमी था , वह  राजनैतिक महत्वाकांक्षी व्यक्ति  था जिसका जीसस से मोहभंग हो गया था  . इसके अतिरिक्त कहा जाता है कि वह जीसस के खजाने से रुपये चुराया करता था  . 
जीसस  शुक्रवार के दिन अंतिम रात्रिभोज में  मानव द्वारा किये गए पाप के दंड स्वरूप  खुद की बलि देना चाहते थे  .
उस समय मौत की सजा के लिए सूली ( क्रॉस ) पर चढ़ाया जाता था  . सूली पर चढ़ने के पहले उन्हें कोड़े भी लगाए गए  . उनकी मृत्यु की भी सही तिथि का ज्ञान नहीं है  . कहा जाता है कि उनकी मौत शुक्रवार के दिन 30 या 33 AD में हुई थी  .एक  मान्यता के अनुसार उनकी मौत 3 अप्रैल 33 AD को हुई थी  . 
3 . भयानक ज्वालामुखी विस्फोट -  ज्वालामुखी विस्फोट के इतिहास में 1815 में इंडोनेशिया में हुआ ज्वालामुखी विस्फोट अभी तक का सर्वाधिक विनाशकारी रहा है  . इंडोनेशिया में माउंट तम्बोरा ज्वालामुखी में हुए विस्फोट में लगभग  71000 -से 120000  लोगों के मारे जाने का अनुमान है  . इस विस्फोट से निकले लावा और गैस आदि के चलते तत्कालीन सभी फसल बर्बाद तो हुए ही थे , आगामी चक्र की कई फसलें भी बर्बाद हो गयीं थीं  . इसके चलते लोगों को अकाल ,भुखमरी और बीमारी का सामना करना पड़ा तथा  इस कारण मौत का आंकड़ा और भी ज्यादा हो सकता है  . 
इस ज्वालामुखी विस्फोट का असर दुनिया के मौसम पर पड़ा था जिसके चलते ‘ वॉलकनिक विंटर ‘ यानी तापमान में गिरावट हुई और फसलें नष्ट  हुईं  . 
सन 79 AD में  हुई विसुवियस ज्वालामुखी  विस्फोट के कारण रोमन साम्राज्य का एक शहर ‘ पोम्पेइ पूरी तरह ध्वस्त हो गया था  . 12 घंटों तक ज्वालामुखी से लावा , चट्टानें , राख  और गैस आदि निकलती रहीं जिसके चलते 25 अगस्त को पूरा शहर राख में बदल गया था .  इसके चलते सुनामी भी आयी थी  . इस त्रासदी में भी हजारों लोगों के मरने का अनुमान है ( एक अनुमान लगभग 16000 तक ) 
पोम्पेइ में पुनः 1631 में भी वॉलकनिक विस्फोट हुआ जिसमें लगभग 4000 लोगों के मारे जाने का अनुमान है  .  लगभग 1700 वर्षों तक यह शहर वीरान रहा था  .पोम्पेइ शहर को पुनः 1750 के करीब  खोज निकाला गया  . 
4 . वॉटरलू की लड़ाई - 1815 में वॉटरलू , बेल्जियम का युद्ध आधुनिक इतिहास में बहुत महत्वपूर्ण माना  जाता है  .   नेपोलियन बोनापार्ट फ्रांस का तत्कालीन सेनाध्यक्ष था  . उस समय हुए फ्रेंच क्रांति  के बाद उसने फ्रांस की सत्ता संभाली और वहां का राजा बना   . अपनी महत्वाकांक्षा के चलते यूरोप में उसने  सैनिक शक्ति के बल पर अपने साम्राज्य का विस्तार करना शुरू किया   . उसके इस अभियान के दौरान  यूरोप के कुछ देशों , मिश्र , सीरिया ,  रूस , लुइसियाना ( अब अमेरिका का राज्य ) तक सफलता मिली   . अंत में 1815 में  बेल्जियम में वॉटरलू की लड़ाई में उसे पराजय मिली   ग्रेट ब्रिटेन के ड्यूक ऑफ़ वेलिंग्टन और मार्शल ब्लूचर की सेना ने 18 जून को उसे परास्त किया   .नेपोलियन  को अपना ताज छोड़ना पड़ा और उसी के साथ फ्रेंच साम्राजयवाद का अंत हुआ   . नेपोलियन को निष्कासित सेंट हेलेना ( दक्षिण अटलांटिक महासागर में एक ब्रिटिश टापू ) में भेजा गया   . 5 मई 1821 को सेंट हेलेना में उसकी मृत्यु हुई   ..
5 . अनसिंकेबल सैम ( Unsinkable Sam ) - यह कथा एक काली और श्वेत बिल्ली की है जो सेकंड वर्ल्ड वॉर  के समय मशहूर हुई थी  . इस बिल्ली को एक ब्रिटिश  युद्धपोत HMS Cossack  पर तैनात एक नौ सैनिक ने बचाया था  . इसका सही नाम कोई नहीं जानता है पर उसने इसका नाम ऑस्कर ( Oscar ) रखा जो बाद में अनसिंकेबल सैम नाम से मशहूर हुई  . समुद्री लड़ाई के दौरान ब्रिटिश  युद्धपोत  HMS Cossack और   ब्रिटिश एयरक्राफ्ट कैरियर HMS Ark Royal ने मिलकर जर्मन युद्धपोत BISMARCK को  27 मई 1841 को डुबो दिया था  . इस युद्धपोत पर तैनात 2100 सैनिकों में सिर्फ 115 सैनिक और ऑस्कर जीवित बचे थे  . ऑस्कर जर्मन पोत  के किसी नौ सैनिक की रही होगी  जिसे “ अनसिंकेबल सैम “ कहा गया   . 
 
अनसिंकेबल सैम कुछ महीने HMS Cossack पर रही  . 24 अक्टूबर 1941 को एक जर्मन U - 563 ने इसे भी टॉरपीडो कर डुबो दिया  . इस पर तैनात 159 नौ सैनिक और अनसिंकेबल सैम बिल्ली फिर बच गयी  . 
ऑस्कर को ब्रिटिश एयरक्राफ्ट कैरियर HMS Ark Royal पर भेजा गया  . पर 14 नवंबर 1941 को माल्टा के पास इसे एक जर्मन U बोट ने टॉरपीडो कर डुबो दिया  . पर इस युद्धपोत के एक नौसैनिक छोड़ कर सभी सैनिक बच गए थे   एक नौ सैनिक और बिल्ली अनसिंकेबल सैम एक तख्ते के सहारे तैरते रहे थे जिन्हें एक मोटर लांच ने देखा और बचा लिया था  . 
अनसिंकेबल सैम को एक नौ सैनिक अपने साथ UK ले गया जहाँ 1955 में सैम की मौत हो गई  . 
Trivia  -  स्विट्ज़रलैंड को रोमन साम्राज्य से आज़ादी 1648 मिली थी पर महिलाओं को मतदान का अधिकार 1971  में मिला था जबकि हमारे देश में यह अधिकार महिलाओं को शुरू से ही मिला है  . हमारे लोकतंत्र के लिए  है न गर्व की बात !
क्रमशः