Chapter- 2 : कनिष्क की घरवापसी 
[  दूसरे दिन सुबह 11 बजे  ]
       पुलिस की एक गाड़ी रमेश की कार के पास मौजूद है, कुछ पुलिस वाले वहां आस पास सर्च कर रहे है, *इंस्पेक्टर डी.डी.* खुद वहां पर हाज़िर हो कर तहकीकात कर रहे है कि आख़िर वहां हुआ क्या था ।
     एक दूसरी पुलिस की गाड़ी वहां आकर रुकती है, उसमें में से सब इंस्पेक्टर बाहर आता, वो इंस्पेक्टर डी डी को सैल्यूट करता है ।
सब इंस्पेक्टर कहता है :
“  सर… आगे एक और कार मिली है जिसका एक्सीडेंट हो गया था पर उसमें कोई भी मौजूद नहीं था ।  “
इंस्पेक्टर डीडी :
“  राकेश भी कल रात को अपनी फैमिली के साथ इसी कार में वापस शहर आ रहा था, पर वो और उसकी फैमिली कही गुम हो गये और सिर्फ ये कार यहां पर रह गई ।  “
सब इंस्पेक्टर : 
“  मैने अपने थाने पर फ़ोन किया, अब तक लोगों के गायब हो जाने की कंप्लेंट मिली है, पता नहीं कैसे ?  “
इंस्पेक्टर डीडी :
“  हा... ये काफ़ी अजीब है, एक ही रात में इतने सारे लोग शहर से लापता हो गए, लगता है कोई बड़ा खेल चल रहा है, हमे सतर्क रहना होगा ।  “
सब इंस्पेक्टर : 
“  सर… इसके पीछे किसी बड़े माफिया गैंग का हाथ हो सकता है ।  “
इंस्पेक्टर डीडी : 
“  हा… क्योंकि इतने सारे लोगों का गायब हो जाना काफी अजीब घटना है, कल रात को पूरे शहर में कोहरा फैला हुआ  था ।  “
सब इंस्पेक्टर : 
“  सही कहा, कुछ वक़्त के लिए तो कुछ भी साफ़ देख पाना मुश्किल हो गया था, इसी कोहरे में शायद कुछ हुआ हो… कहीं.. कही ये कोहरा ही… ” 
इंस्पेक्टर डीडी टोकते हुए कहता है :
“  देखो फालतू बाते मत करो, राकेश हमारे डिपार्टमेंट का सिपाही है, उसे पहले ढूंढना होगा, अगर पुलिस वाले खुद ही गुम हो जायेंगे तो पब्लिक का क्या होगा ।  “
[  शहर में एक पुरानी सोसायटी ]
     
       शहर की एक सोसाइटी में काफ़ी वक़्त से बंद पड़े एक मकान का दरवाज़ा खुला है, कनिष्क (28 उम्र) चार साल बाद अपने घर वापस आया है, चार साल पहले उसकी मां की मृत्यु और अपनी निजी मसलों के कारण कनिष्क घर छोड़ कर चला गया था ।
      कनिष्क फिलहाल अकेला है, उसका अब कोई परिवार नहीं, उसके पड़ोसी भी अब बदल गए है, जैसे आस पास उसे पहचानने वाला कोई ना हो, पर कनिष्क इतने साल बाद यहां वापस क्यों आया है,ल ?  ये बड़ा सवाल है । 
     कनिष्क अपने घर की दूसरी मंजिल की खिड़की से सामने की लाइन में तीसरे नंबर के घर पर नज़र रख रहा है, वो घर प्रोफेसर वी डी नारायण का है, थोड़ी देर मे कोई बाईक सवार लड़का कनिष्क के घर के सामने आकर रुकता है, कनिष्क सतर्क हो जाता है ।
    कनिष्क नीचे हॉल में जाता है, डोर बैल बजती है, कनिष्क दरवाज़ा खोलता है, वहां कनिष्क का पुराना दोस्त रिनेश गोल स्वेटर, शादी सी पेंट ओर राउंड सफेद चश्मे पहने हुए दरवाजे पर खड़ा मिलता है ।
रिनेश हंसते हुए कहता है :
“  कैसे हो दोस्त, कही मुझे भूल तो नहीं गये ??  “
कनिष्क के चेहरे पर मुस्कान होती है और वो कहता है :
“  मुझे लगा नहीं था कि कोई मुझे यहां पहचानेगा ।  “
रिनेश :
“  ये कैसी बात कर रहे हो यार… पुराना दोस्त होकर में तुम्हे ना पहचानु… ऐसा हो सकता है क्या ?  “
( रिनेश कनिष्क के गले लगता है )
कनिष्क :
“  तुम अभी भी वैसे ही हो, वही  अजीब सी स्वेटर, अब तक नहीं बदले ।  “
रिनेश :
“  हा वो तो है, पर…  लगता है तुम काफी बदल गए हो ।  “
कनिष्क : 
“  हा… बदलाव दुनिया का नियम है ।  “
रिनेश :
“  वो तो है… क्या ये ब्लैक कार तुम्हारी है ?  “
कनिष्क :
“  हा… ये मेरी है, कैसी लगी मेरी जर्मन ब्यूटी ?  “
रिनेश :
“  एक दम जबरस्त, फाड़ू कार है, कितने की है ये ?  “
कनिष्क :
“  सेकंड हैंड है, 20 लाख में ।  “
रिनेश :
“  बढ़िया है एक दम नई लगती है ।  “
कनिष्क :
“  हा इसी लिए तो 20 लाख दिए है, चलो अंदर आवो बैठ कर बातें करते है ।  “
     रिनेश कनिष्क के घर के अंदर जाता है, वो दोनों सोफे पर आमने सामने बैठते है, एक वक़्त था जब वो पक्के दोस्त हुआ करते थे, साथ पढ़ते थे, साथ घूमते थे, पर एक वक़्त ऐसा आया कि अचानक सब कुछ बदला गया ।
रिनेश :
“  मैने सुबह घर खुला देखा, तुम कब आए यहां ?  “
कनिष्क :
“  कल रात को ।  “
रिनेश : 
“  अरे… क्या कह रहे हो… कल की रात तो काफी अजीब थी, शहर में घना कोहरा और ऊपर से काफी लोग लापता हो गए ।  “
कनिष्क :
“  हा… मैने ये न्यूज में देखा था ।  “
रिनेश :
“  अबसे रात में सम्भल कर रहना पड़ेगा भाई, पता नहीं क्या चल रहा है यहां ।  “
कनिष्क :
“  हा.. हमेशा  सतर्क रहना चाहिए ।  “
रिनेश भावुक हो कर कहता है :
“  कनिष्क.. यार… तुम कहा थे इतने वक़्त तक ? हमने तुम्हे बहुत याद किया, मुझे लगा था अब तुम कभी नहीं मिलोगे । “
कनिष्क :
“  क्या करे हालत ऐसे हो गए थे, तुम तो जानते हो सब, मैने अपनी ओर से पूरी कोशिश की थी, लेकिन… “
रिनेश :
“  इट्स ओके यार, यही इस दुनिया का दस्तूर है ।  “
कनिष्क :
“  अब तो इसकी आदत सी पड़ गई है ।  “
रिनेश : 
“  तो बताओ… आज कल क्या कर रहे हो ? कोई नौकरी या फिर ऐसे ही घूमना  ?  “
कनिष्क सीरियस होकर कहता है : 
“  मुझे ये किसी से कहने की परमिशन तो नहीं पर तुम मेरे दोस्त हो तो में तुम्हें ये बात बता सकता हु… “
रिनेश : 
“  अरे… अब कह भी दो, इसमें क्या है ।  “
कनिष्क :
“  अच्छा ठीक है, में एक  'आई. बी.' ऑफिसर हु, 3 सालों से सर्विस में, फिलहाल छुट्टी पर ।  ”
रिनेश :
“  क्या सच में ??  “
कनिष्क सीरियस हो कर कहता है :
“  हा… अभी छुट्टी पर हु पर कॉल आने पर कभी भी वापस जाना पड़ सकता है ।  “
रिनेश :
“  ये तो अच्छा है, और बताओ, कोई नई गर्लफ्रेंड ? या शादी का कोई इरादा ?  “
कनिष्क :
“  ऐसा तो कुछ नहीं, इतना वक़्त ही नहीं मिलता, वैसे *प्राची* कहा है अभी ? उसकी कोई खबर ??  “
रिनेश थोड़ा उदास हो कर कहता है :
“  मेरे दोस्त तुम काफी लेट हो गए, एक साल पहले ही उसकी शादी हो गई ।  “ 
कनिष्क :
“  इट्स ओके… कोई बात नहीं… बता सकते हो कि वो अभी कहा है ?  “
रिनेश :
“  मुझे नहीं पता, मैने उस से फोन पर बात की थी जब तुमने उस से बात करना छोड़ दिया था, उस वक़्त उसने मुझसे तुम्हारे बारे में पूछा था, लेकिन तुम तो गायब थे कही पर ।  “
कनिष्क : 
“  क्या मुझे उसका कॉन्टेक्ट नंबर मिल सकता है ?  “
रिनेश : 
“  अरे यार, उसकी शादी हो गई है, अब उसे भूल जा, वैसे तो मुझे भी वो अच्छी लगती थी, तुम्हारे बाद मैने कोशिश की थी उस से बात करने की पर, क्या करे अब ।  “
कनिष्क सीरियस होकर कहता है :
“  मुझे उस से कुछ ज़रूरी बात करनी है, क्या मेरे लिए तुम उसका कॉन्टेक्ट नंबर ढूंढ सकते हो ?  “
रिनेश :
“  अच्छा ठीक है यार… उसकी दोस्त जागृति… शायद उसके पास होगा, लेकिन इसकी कोई गारंटी नहीं है कि वो हमे नंबर दे, पता नहीं मुझे मांग ने में भी शरम आएगी एक शादीशुदा लड़की का नंबर ।  “
कनिष्क :
“  अच्छा है, मिल जाए तो मुझे बताना  ।  “
रिनेश :
“  ये तुम्हारी आंखों को क्या हुआ है ? कुछ अजीब सी लग रही है ।  “
कनिष्क :
“  काम करते वक्त एक कैमिकल आंख में लग गया, ट्रीटमेंट करवाई हे और लेंस लगाए है इस लिए, बाकी सब ठीक ।  “
रिनेश :
“  ठीक… आज शाम को फ्री हो ?  “
कनिष्क :
“  हा… क्या करना है ?
रिनेश :
“  तुम्हारी कार बहुत बढ़िया है, इसे लेकर शाम को घूमने चले ? अपने पुराने दोस्तों से भी मिल लेंगे ।  “
कनिष्क :
“  क्यों नहीं… जरूर, चलते है शाम को ।  “
रिनेश :
“  तो चलो अब देर हो रही है, में चलता हु, शाम को मिलते है । “
कनिष्क :
“  ओके ठीक ।  “
[ शाम के साढ़े पांच बजे ]
    शाम का वक़्त, सूरज ढल रहा है, कनिष्क तेज़ रफ़्तार से अपनी कार ड्राइव करते हुए गलियों में घूमते हुए रिनेश के घर पहुंचता है, हॉर्न की आवाज़ सुन कर रिनेश जल्दी से घर के बाहर आता है ।
कनिष्क : 
“  तो मेरे दोस्त चलने के लिए तैयार हो ?  “
रिनेश एक्साइटेड हो कर कहता है :
“  हा जल्दी चलो… मजा आएगा ।  “
     रिनेश कार में बैठ जाता है, कनिष्क रफ़्तार से कार को आगे बढ़ाताहै, आस पास के लॉग इसे घूर कर देखते है ।
रिनेश :
“  आराम से भाई, छोटी गलिया है ।  “
कनिष्क :
“  अच्छा ठीक है… बताओ कहा जाना है ?  “
रिनेश :
“  सोहम कैफे पर चलो मैने सबको वहां आने को कहा है ।  “
कनिष्क :
“  कौन कौन आ रहा है ?  “
रिनेश : 
“  सारे दोस्तों को फोन किया है जो आया वो ठीक, बाकी भाड़ में जाए ।  “
      गलियों से निकल कर कार मेन रोड़ पर पहुंचती है, कनिष्क तेज़ रफ़्तार से ओवरटेक करते हुए कार चलाता है ।
रिनेश : 
“  बुरा ना मानो तो एक बात कहूं ?  “
कनिष्क :
“  हा बोल ।  “
रिनेश :
“  जिस तरह से तू किसी आवारा की तरह कार चला रहा है… ऐसा लगता नहीं कि तू कोई ऑफिसर है ।  “
कनिष्क :
“  शकल से तो तू भी कोई कमिना और बेरोजगार नहीं लगता… फ़िर भी तू वो है ।  “
रिनेश हंसते हुए कहता है :
“  अरे में तो मज़ाक कर रहा था ।  “
     थोड़ी देर में वो लोग कैफे पर पहुंचते है, कनिष्क कैफे के सामने अपनी कार पार्क करता है, फिर वो दोनों कार से बाहर निकलते है, बाकी दोस्त भी वहां बाहर खुले में एक बड़े टेबल पर बैठे हुए है, वो लॉग कनिष्क को देख कर कुछ कुसूर पुसुर बाते करने लगते है ।
रिनेश :
“  देखो वो रहे वहां बैठे हुए हे, मैने छे दोस्तो को फोन किया था और सिर्फ तीन आए है ।  “
कनिष्क :
“   कोई बात नही ।  “
      वो दोनों चलते हुए बाकी दोस्तों के पास जाते है, वहां *रोहित*, *वैभव* और *आकाश* बैठे हुए है, वो सभी एक दूसरे को हाय हेलो करते है, कनिष्क रोहित और वैभव से हाथ मिलता है पर आकाश से नहीं । 
आकाश :
“  क्या हुआ दोस्त, अभी भी पुरानी बाते नहीं भूले ? वो झगड़ा अब पुराना होगया ।  “
रिनेश :
“  हा यार… पुरानी बाते भूलों और आज में जियो । “
रोहित :  
“  वो बस छोटी सी लड़ाई थी, हमारी दोस्ती इस से कई गुना बड़ी है ।  “
कनिष्क :
“  हा… मुझे भी यही लगता है ।  “
वैभव :  
“  ये हुई न बात… चलो तो क्या प्लानिंग है आज की ?  “
रिनेश :
“  पहले कॉफी, फिर रेस्टोरेंट में खाना ।  “
रोहित : 
“  अरे सिर्फ कॉफ़ी ??  “
आकाश :
“  अब हम बड़े हो गए है, खाने के बाद शराब के जाम पीएंगे, बियर पीएंगे ।  “
वैभव :
“  हा बिल्कुल ।  “
रोहित :
“  अरे कनिष्क… तुम्हारी कार तो बहुत ही जबरस्त हैं।  “
वैभव :
“  कितने की है ?  “
कनिष्क :
“  में थक गया हु बार बार सबको इसके जवाब देते हुए, अब इसके बारे में ओर कोई सवाल नहीं, कुछ और बात… ।
      सारे दोस्त बैठ कर कॉफ़ी पीते है, 4 साल बाद सारे दोस्त साथ में बैठे है, अपने पुराने दिनों को याद करते है और इसके  किस्से सुनाते है ।
     आखिर में रेस्टोरेंट में खाना खाने के बाद वो लोग शराब  की शॉप से बियर की कुछ बोतले खरीदते है और शहर के एक खाली सुनसान इलाके में अपनी मंडली लगा कर पीने लगते है ।
    कनिष्क बार बार आकाश को घूर कर देखता है, ऐसा लगता है जैसे वो पुराना लड़ाई अभी तक भुला नहीं, कनिष्क की उस वक़्त की बेस्ट फ्रेंड प्राची को लेकर ही उन दोनों दोस्तो के बीच लड़ाई हुए थी ।
    कनिष्क प्राची से प्यार करता था, जबकि आकाश की नियत ठीक नहीं थी, वो चुपके से प्राची के नंबर पर मैसेज कर कर उसे परेशान कर रहा था, जिस वजह से उन दोनों दोस्तो के बीच लड़ाई हुई थी, अब प्राची तो जा चुकी है सिर्फ ये दोनों दोस्त आज मिले है ।
रिनेश :
“  कोई बता सकता है, हमारे कॉलेज का सबसे यादगार पल कौनसा था ?  “
रोहित :
“  वैभव को उसकी गर्लफ्रेंड के भाइयों ने बुरी तरह पीटा था वो वाला… हा.. हा.. ।  “
आकाश :
“  हा, ये सही है ।  “
वैभव :
“  मुझे अफसोस मार खाने का नहीं बल्कि तुम लोगो ने कोई  मदद नहीं की उसका है ।  “
कनिष्क :
“  में तो वहां नहीं था ।  “
रोहित :
“  तू प्राची के पीछे पीछे भाग रहा था उस वक़्त, और तू वहां होता तो भी क्या उखाड़ लेता ?
रिनेश :
“  हम क्या कर सकते थे, वो लॉग बड़े खतरनाक थे ।  “
वैभव :
“  चलो यार, उसके बारे में अब बात मत करो, मेरा मुड़ खराब हो जाता है ।  “
आकाश :
“  ओके अब इसके बारे में कोई बात नहीं ।  “
रोहित :
“  भाई लोग, अंधेरा होने वाला है, अब हमे घर जाना चाहिए ।  “
आकाश :
“  सही कहा, देर हो रही है ।  “
रिनेश :
“  आज कल रात का माहौल बहुत ख़राब चल रहा है, घर जाना ही ठीक है ।  “
वैभव :
“  चलो तो मिलते है किसी ओर दिन ।  ”
रोहित :
“  कनिष्क यार… तेरी गाड़ी में घूम कर मजा आया, किसी दिन इसे ड्राइव करने का मौका देना मुझे ।  “
कनिष्क :
“  हा, देखते है ।  “
आकाश :
“  कनिष्क यार, मेरा घर रिनेश के घर की ओर ही है, मुझे ड्रॉप कर देगा वहां तक ?  “
कनिष्क सोच कर कहता है :
“  ठीक है, आजाओ ।   “
     अंधेरा हो रहा है, कनिष्क की कार में रिनेश के साथ आकाश भी बैठ जाता है, इसके बाद वो लोग कार लेकर जाने लगते है ।
कार में बैठे आकाश कहता है :
“  कनिष्क, तुमने बताया नहीं कि तुम क्या काम करते हो ।  “
कनिष्क :
“  मुझे नहीं लगता कि ये बात तुम्हे बताने की जरूरत है और जिसे बताना चाहिए उसे में पहले ही बता चुका हु ।  “
आकाश :
“  में तो बस पूछ रहा हु, तुम तो नाराज़ हो गए ।  “
रिनेश :
“  अरे आकाश, वो सही कह रहा है, तुझे ये जान ने की जरूरत नहीं ।  “
आकाश :
“  कनिष्क यार… पुराने झगड़े को लेकर तुम अभी भी मुझसे नाराज़ हो ?  “
कनिष्क :
“  नहीं, में पुरानी फालतू बाते भूल चुका हु ।  “
    कुछ ही देर में कार रिनेश के घर पर पहुंचती है, रिनेश को ड्रॉप करने के बाद अब आकाश की बारी है, कनिष्क फिरसे अपनी कार को तेज रफ़्तार से आगे बढ़ता है और फिर वो लोग मेन रोड पर आगे बढ़ते है । 
आकाश :
“  कनिष्क यार, उस रोड पर मुड़ना था ने, मेरा घर उस ओर है ।  “
कनिष्क :
“  फ़िक्र मत करो, मुझे आगे से कुछ खास सामान लेना है इसके बाद वो दूसरे शॉर्टकट रास्ते से तुम्हे तुम्हारे घर पर ड्रॉप कर दूंगा ।  “
     कनिष्क आकाश को अजीब तरह से देखता है, कुछ देर बाद वो अपनी कार को शहर के बाहर जाने वाले रॉड पर मोड़ देता है आकाश उस से पूछते है तो वो अजीब बहाने बताता है ।
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