केंद्रीय बोर्ड की परीक्षाएं स्थगित होने की घोषणा के अगले दिन ही श्री कृष्ण प्रेमालय स्कूल में प्राचार्य की बुलाई गई आकस्मिक बैठक में सभी कक्षा शिक्षकों को परिणाम तैयार करने के लिए सभी अंक सूचियां अपने साथ घर ले जाने के निर्देश दिए गए थे क्योंकि सभी को यह संभावना दिखाई दे रही थी कि स्कूल कॉलेज अचानक बंद किए जा सकते हैं। इसलिए जब जनता कर्फ्यू के बाद अचानक लॉकडाउन लगा और स्कूल बंद हुआ तो लोग घरों से ही अपना रिजल्ट संबंधी बाकी कार्य करने के लिए सुविधाजनक स्थिति में थे।विद्यालयों में बोर्ड के साथ-साथ बाकी परीक्षाएं भी महत्वपूर्ण होती हैं। आजकल सारे रिजल्ट एक सॉफ्टवेयर में अंकों की प्रविष्टि के माध्यम से बनाए जाते हैं।
श्री कृष्ण प्रेमालय स्कूल के लिए यह सॉफ्टवेयर रोहित ने ही तैयार किया था।जब यशस्विनी स्कूल में पढ़ती थी तो सारा कार्य मैनुअल होता था और उनके शिक्षक हाथ से रिजल्ट रजिस्टर और प्रगति पत्र में बच्चों के अंक लिखा करते थे और कहीं गलत प्रविष्टि हो जाने पर व्हाइटनर का उपयोग किया जाता था। अब चीजें बदल गई हैं। तकनीक के इस बदलते युग में कोराना जैसी चुनौतियों का सामना करने में लोगों की दृढ़ इच्छाशक्ति, संकल्प व धैर्य के साथ-साथ चिकित्सकीय ज्ञान और जीवन के अनेक क्षेत्रों में तकनीकी सहायता की बहुत आवश्यकता होती है।
यशस्विनी ने तो क्या, बड़े बुजुर्गों ने भी कोरोना की इस महामारी जैसा नजारा पहले कभी नहीं देखा था।सड़कें वीरान और सुनसान।लोग घरों में दुबके हुए और कर्फ्यू का सा नजारा। लॉकडाउन तोड़ने वालों और बेवजह घूमने वालों पर पुलिस की सख़्ती…..। टेलीविजन चैनलों पर इन सब घटनाओं का लाइव प्रसारण…….।
एक अप्रैल से नया शैक्षणिक सत्र शुरू हुआ। ऐसा पहली बार हुआ जब बच्चे घरों में थे और उनकी कक्षाएं स्थगित कर दी गई थीं।उनकी कक्षाएं फिर कब से शुरू होंगी,यह भी पता नहीं था। देशव्यापी आंकड़ा जो भी था लेकिन अप्रैल महीने के पहले हफ्ते में शहर में कोरोना का पहला मामला मिला।पूरे शहर में हड़कंप मच गया। जिले को रेड जोन घोषित कर दिया गया। शहर के जिस मोहल्ले में वह मरीज था उसे कंटेनमेंट एरिया घोषित कर मरीज को तुरंत अस्पताल में भर्ती कर दिया गया और इसके लिए एक विशेष एंबुलेंस आई।
शहर के लोगों ने पहली बार पी पी ई सूट पहने हुए स्वास्थ्य कर्मियों को गाड़ी से नीचे उतरते देखा।यशस्विनी ने देखा कि अंतरिक्ष यात्रियों की तरह कपड़े पहने हुए लोग एक मरीज का इंतजार कर रहे हैं और वह मरीज है कि चलते हुए एम्बुलेंस की ओर बढ़ रहा है। आसपास की छत पर भीड़ इकट्ठा थी।अब उस व्यक्ति पर क्या गुजर रही है, सहृदय होने के कारण यशस्विनी इसका अनुमान लगा पा रही थी। वह व्यक्ति गंभीर संकट में था और लोग थे कि इसे भी तमाशा बनाकर आनंद ले रहे थे। कुछ लोगों ने तो अपनी छत से ही एंबुलेंस और उस पर सवार होते मरीज के साथ दूर से ही सेल्फी लेने की कोशिश की।उस मरीज में कोरोना होने पर कोई गंभीर लक्षण नहीं दिखाई दे रहा था,लेकिन शुरुआती दौर में सतर्कता इतनी थी कि प्रत्येक रोगी को अस्पताल भेजा जा रहा था।
यशस्विनी ने अपनी डायरी में लिखा, "जिस संकट को उसने चीन के वुहान शहर तक सीमित है,ऐसा सोच रखा था, वह एक ही महीने में पांव पसारते-पसारते हमारे देश,हमारे राज्य और फिर हमारे नगर और हमारे मोहल्ले तक आ पहुंचा है। विदेश से लौटने वाले हर व्यक्ति को संदिग्ध मानकर उनका सैंपल लिया जा रहा है। जिले में बाहर से आने वाले हर व्यक्ति को मुख्य जिला चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी के कार्यालय में एक फार्म भरना होता है और उनके लिए कोरोना का एंटीजन या पीसीआर टेस्ट कराना अनिवार्य कर दिया गया है।"
कोरोना का कहर गरीब लोगों पर मुसीबत बनकर टूटा।दिहाड़ी मजदूरों की रोजी-रोटी छिन गई।सरकार की ओर से राहत सहायता पहुंचाने की कोशिश शुरू हुई।स्वयंसेवी संस्थाओं के लोग सड़कों पर उतरे। शहर के ओवर ब्रिजों के नीचे रात गुजारने वाले और गरीब लोगों के लिए नगर निगम द्वारा बनाए गए रैन बसेरा में अपने दिन और रातें किसी तरह से बिताने वाले गरीब लोगों तक खाने के पैकेट पहुंचाने की कोशिश की गई। सभी राजनैतिक दलों के युवा कार्यकर्ताओं ने दलगत राजनीति से ऊपर उठकर लोगों तक सहायता पहुंचाने की कोशिश की।
महेश बाबा के मार्गदर्शन में यशस्विनी, रोहित और संस्था के स्वयंसेवियों की टीम ने पूरे शहर में राहत पहुंचाने की कोशिश में प्रशासन को मदद की पेशकश की।सुरक्षा उपायों का ध्यान रखने के बाद और स्वयंसेवक के रूप में उनका पंजीकरण करने के बाद उन्हें इसकी अनुमति दे दी गई।डबल मास्क पहनने,ग्लव्स लगाने और सैनिटाइजर का बार - बार प्रयोग करने के बाद भी यशस्विनी, रोहित और अन्य स्वयंसेवक संक्रमण के सर्वाधिक खतरों के बीच काम कर रहे थे।
पहली बार कोरोना योद्धा की संकल्पना सामने आई। टेलीविजन पर कोरोना वार्ड व आईसीयू में भर्ती मरीजों की देखरेख कर रहे अनेक डॉक्टर इस बीमारी से संक्रमित हुए और उन्हें अपने प्राण गंवाने पड़े। लॉक डाउन का पालन कर रहे राज्य पुलिस और जिला प्रशासन के तहसीलदार, मजिस्ट्रेट और अन्य लोग कई जगहों पर नियुक्त थे और उन्हें संदिग्ध लोगों से भी एकदम नजदीक से बातचीत करनी पड़ती था। उनकी जांच करनी पड़ती थी। अपने कर्तव्य का पालन करते हुए अनेक पुलिसकर्मी, नगर निगम के सफाई कर्मी, राहत कार्यकर्ता आदि संक्रमित हुए और जीवन-मृत्यु से संघर्ष करने के बाद उन्होंने अपने जीवन का उत्सर्ग कर दिया। अनेक लोग इस वायरस के प्रभाव से गंभीर रूप से बीमार हुए और इसका उनके स्वास्थ्य पर स्थाई रूप से बुरा असर पड़ा।
अमेरिका, ईरान, इटली आदि देशों में कोहराम मचा हुआ था। टेलीविजन के दृश्यों के अनुसार शवों को दफनाने की जगह भी नहीं मिल रही थी और अस्पतालों के बाहर लोगों के शव पड़े हुए दिखाई देते थे। ब्रिटेन समेत अनेक देशों के शासनाध्यक्ष इस घातक बीमारी की चपेट में आ गए और इस बीमारी ने व्यापारियों, सेलिब्रिटीज से लेकर गरीब लोगों तक किसी को भी नहीं बख्शा। इस बीमारी के स्रोत को लेकर विभिन्न देशों में आरोप-प्रत्यारोप भी शुरू हो गए। एक विशेष अभियान चलाकर हवाई जहाज से विभिन्न देशों में फंसे हुए भारतीयों को वापस लाया गया और उन्हें 14 दिनों के लिए सबसे अलग - थलग क्वॉरेंटाइन में रखा गया।
डॉ. योगेंद्र कुमार पांडेय