📖 तेरे बिन लम्हा
कॉलेज की वो ठंडी सुबह थी, जब पहली बार मैंने उसे देखा था। लाइब्रेरी के कोने में बैठी, किताबों में खोई हुई। उसके चेहरे पर एक अजीब-सी मासूमियत थी और आँखों में गहराई। जैसे सारी कहानियाँ, सारे राज़ उसी की आँखों में छुपे हों।
मैं बस उसे देखता रह गया। शायद यही वो लम्हा था जिसने मेरी ज़िंदगी बदल दी।
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पहला सामना
उसका नाम रिया था। क्लास में सबसे शांत, लेकिन हर किसी की नज़र में सबसे अलग। दोस्त उसे चुपचाप, सीरियस टाइप की लड़की समझते थे, लेकिन मुझे उसमें कुछ और दिखता था।
एक दिन अचानक ही कैंटीन में मेरी और उसकी टक्कर हो गई। उसकी कॉफी मेरे शर्ट पर गिर गई। वो घबरा गई—
“सो-सॉरी… मैं ध्यान नहीं दे पाई।”
मैंने मुस्कुराकर कहा—
“कोई बात नहीं, वैसे भी तुम्हारी वजह से ये शर्ट अब यादगार बन गई।”
वो पल उसका पहला हल्का-सा मुस्कुराना था, और मेरे लिए पहली जीत।
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दोस्ती की शुरुआत
धीरे-धीरे बातें बढ़ने लगीं। लाइब्रेरी से लेकर कॉलेज के गार्डन तक, हम अक्सर मिलने लगे। वो अपनी फेवरेट किताबों के बारे में बताती और मैं अपनी बेमतलब की शायरियाँ सुनाता।
वो कहती थी—
“अभय, कभी-कभी लगता है लम्हे रुक जाने चाहिए।”
और सच कहूँ, उसके साथ बिताया हर पल मुझे वक़्त को रोक देने जैसा लगता था।
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इज़हार का लम्हा
कॉलेज फेस्ट का दिन था। चारों तरफ रोशनी, संगीत और हंसी-खुशी का माहौल। मैंने हिम्मत करके उसे स्टेज के पीछे बुलाया।
“रिया, मुझे नहीं पता ये कैसे कहूँ… लेकिन तेरे बिना हर लम्हा अधूरा लगता है। तू है तो सबकुछ है, वरना कुछ भी नहीं।”
वो चुप रही। उसकी आँखें नम थीं। मैंने सोचा शायद मैंने ग़लती कर दी। लेकिन अगले ही पल उसने कहा—
“तेरे साथ बिताया हर लम्हा मेरे लिए भी सबसे खास है।”
उस रात हमने चाँद के नीचे पहली बार एक-दूसरे का हाथ थामा।
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जुदाई की आहट
कहते हैं, मोहब्बत जितनी गहरी होती है, इम्तिहान उतने ही बड़े होते हैं।
ग्रेजुएशन के बाद रिया को जॉब ऑफर मिला—दिल्ली में। और मुझे रहना था अपने शहर में, अपने सपनों के लिए।
“हम कैसे रहेंगे एक-दूसरे से दूर?” मैंने पूछा।
वो बोली—“असली मोहब्बत लम्हों में नहीं, एहसासों में होती है। हम संभाल लेंगे।”
लेकिन हक़ीक़त इतनी आसान कहाँ होती है।
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तेरे बिन लम्हा
रिया दिल्ली चली गई। कॉल्स, वीडियो चैट्स सब होते रहे, लेकिन धीरे-धीरे फासले बढ़ने लगे।
रात को जब मैं अकेला होता, तो वही ख्याल आता—
तेरे बिना ये लम्हे कितने खाली हैं।
कॉलेज के बाद की वही कैंटीन अब सूनी लगती थी। लाइब्रेरी के कोने में बैठा मैं अब भी किताब खोलता, पर हर पन्ने पर बस उसका चेहरा नज़र आता।
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आख़िरी मुलाक़ात
करीब एक साल बाद, हम दोनों फिर मिले। वही पुराना गार्डन, वही पेड़ के नीचे वाली बेंच।
मैंने पूछा—
“रिया, क्या हम अब भी पहले जैसे हैं?”
वो मुस्कुराई, आँखों से आँसू बहते हुए बोली—
“प्यार वही है, बस लम्हे बदल गए हैं।”
उसने मेरा हाथ थामा और कहा—
“तेरे बिना जीना मुश्किल है, लेकिन तेरे साथ रहना शायद अब मुमकिन नहीं।”
उस दिन हम दोनों ने बिना कुछ कहे एक-दूसरे से जुदाई स्वीकार कर ली।
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यादों के सहारे
आज सालों बीत गए हैं। ज़िंदगी आगे बढ़ गई है, लेकिन जब भी मैं रात के सन्नाटे में अकेला होता हूँ, तो उसकी मुस्कुराहट याद आती है।
वो लम्हे, जब हम साथ थे, जब दुनिया सिर्फ हमारी थी।
शायद ज़िंदगी ने हमें अलग कर दिया, लेकिन मोहब्बत अब भी वही है।
क्योंकि सच्चा प्यार कभी खत्म नहीं होता, बस वो तेरे बिना लम्हों में बदल जाता है…
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✨ अंत ✨
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