अध्याय 1 : गाँव की मिट्टी और सपने
सुबह के पाँच बजे थे। गाँव की गलियों में अभी भी हल्की-हल्की धुंध फैली हुई थी। मिट्टी की सोंधी खुशबू हवा में घुली थी। दूर से बैलों की घंटियों की आवाज़ आ रही थी। खेतों में हल चलाने वाले किसान दिन की शुरुआत कर चुके थे।
राजु की आँखें धीरे-धीरे खुलीं। उसका कमरा साधारण था – मिट्टी की दीवारें, फूस की छत और कोने में रखा हुआ पुराना लकड़ी का चौकी। छत से झूलती एक लालटेन टिमटिमा रही थी। यही लालटेन रात में उसकी सबसे बड़ी साथी थी।
उसकी माँ ने धीरे से दरवाज़ा खोला और बोली –
“राजु बेटा, उठ जा। सूरज निकल आया है। स्कूल नहीं जाना क्या?”
राजु ने उनींदी आँखों से माँ को देखा और सिर हिलाया। जल्दी से उठकर उसने अपना फटा-पुराना बैग उठाया। बैग में मुश्किल से कुछ कॉपियाँ और पुरानी किताबें थीं, जिन पर पहले से लिखे नाम अब धुंधले हो चुके थे।
रसोई में माँ ने उसके लिए गुड़ और सूखी रोटी रखी। वह हँसते हुए बोली –
“ज्यादा तो कुछ नहीं है बेटा, पर इसे खाकर तेरे पेट को ताक़त मिलेगी।”
राजु ने रोटी खाई और पानी पिया। उसके पिता खेत के लिए निकल चुके थे। उनके चेहरे पर मेहनत की लकीरें साफ़ दिखती थीं।
स्कूल गाँव से पाँच किलोमीटर दूर था। राजु नंगे पैर ही चल पड़ता। रास्ते में कई बार लोग उसे देखकर हँसते –
“अरे राजु! इतना पढ़-लिखकर करेगा क्या? तेरे बाप-दादा ने खेती की, तू भी वही कर।”
राजु चुप रहता, बस अपने कदम तेज़ कर देता। उसके दिल में एक सपना पल रहा था –
“मैं एक दिन कुछ बड़ा करूँगा। मेरी ज़िंदगी गाँव के दूसरों जैसी नहीं होगी।”
जब वह स्कूल पहुँचा तो क्लास के बच्चे हँसने लगे –
“देखो-देखो, राजु की किताबें कितनी पुरानी हैं।”
“इसके कपड़े तो हमेशा फटे रहते हैं।”
राजु ने सुना, लेकिन अनसुना कर दिया। उसके लिए यह ताने नए नहीं थे। उसने सोचा –
“लोगों को बोलने दो, मैं पढ़ाई करके ही दिखाऊँगा।”
शाम को जब स्कूल से लौटकर घर आया तो पिता खेत से पसीने में लथपथ लौट रहे थे। उनके हाथों में दरारें थीं। उन्होंने बेटे की तरफ देखा और धीमे स्वर में बोले –
“राजु, पढ़ाई आसान नहीं है। हमारे पास इतना पैसा भी नहीं कि तुझे बड़े शहर भेज सकें। सोच ले बेटा, आगे का रास्ता कठिन है।”
राजु ने दृढ़ आवाज़ में कहा –
“बाबा, मैं कठिनाई से डरने वाला नहीं। मैं पढ़ूँगा, चाहे हालात कैसे भी हों।”
पिता ने उसकी आँखों में चमक देखी और चुप हो गए। माँ दरवाज़े पर खड़ी मुस्कुरा रही थी। उसके दिल को तसल्ली थी कि उसका बेटा बड़े सपने देख रहा है।
रात को लालटेन की मंद रोशनी में राजु बैठा था। बाहर खेतों में झींगुरों की आवाज़ गूँज रही थी। वह कॉपी पर झुका और धीरे-धीरे लिखने लगा। उसकी आँखों में चमक थी। मन में एक ही ख्याल –
“एक दिन मैं सफल होकर दिखाऊँगा। यही मिट्टी मुझे सपने देखने की ताक़त देती है।”
✨ इस तरह पहला अध्याय खत्म होता है। इसमें राजु के बचपन, उसके परिवार की स्थिति और उसके सपनों की नींव दिखाई गई है।
आपका हर कहानी कैसा लगा समीक्षा कर कर जरूर बताए । जल्द लेकर आ रहे है अध्याय 2
नमस्कार मित्रहरु