📖 मेरा नाम तू
कॉलेज का वो पहला दिन… भीड़ में सैकड़ों नए चेहरे थे, लेकिन उन सबके बीच एक चेहरा ऐसा था जो भीड़ से अलग ही चमक रहा था।
वो चेहरा… न जाने क्यों दिल की धड़कनों को अनजानी सी रफ़्तार दे रहा था।
मैं, अभय — एक साधारण लड़का।
ना दिखने में हीरो टाइप, ना ही पढ़ाई में सबसे अव्वल। पर हाँ, सपनों में बड़ा।
उस दिन मेरी नज़र उस लड़की पर पड़ी, जिसके आने से कैंपस जैसे अचानक रोशन हो गया हो।
उसने सफेद दुपट्टा संभालते हुए क्लास में कदम रखा, और मैं… जैसे वहीं ठहर गया।
दोस्त ने कंधे पर हाथ मारा,
“अबे! ऐसे क्या देख रहा है? नाम जानता है क्या उसका?”
मैं चुप रहा, क्योंकि सच तो ये था कि मैं उस वक़्त सिर्फ़ उसका नाम सुनना चाहता था।
नाम में ही तो पूरी दुनिया छुपी थी।
पहला परिचय
कुछ दिनों तक मैं दूर से ही देखता रहा। वो लाइब्रेरी में किताबें लेती, कभी कक्षा में नोट्स बनाती, तो कभी अपनी सहेलियों संग हँसते हुए कैंटीन से बाहर निकलती।
हर रोज़ उसके आसपास कई लोग रहते, पर मुझे लगता वो भीड़ में भी अकेली सी है।
एक दिन हिम्मत करके मैंने कहा,
“हाय… मैं अभय हूँ।”
उसने हल्की मुस्कान दी और बोली,
“हाय… मीरा।”
बस! उस एक पल ने जैसे मेरे जीवन को नई परिभाषा दे दी।
मीरा… नाम सुनते ही मन में ख्याल आया – मेरा नाम तू।
दोस्ती की शुरुआत
धीरे-धीरे हम अच्छे दोस्त बन गए।
पढ़ाई के नोट्स शेयर करने से लेकर कैंटीन में कॉफ़ी तक, हमारी बातें लंबी होती चली गईं।
वो अपने सपने बताती, और मैं उन्हें सुनते-सुनते अपने ख्यालों में खो जाता।
कभी-कभी जब वो हँसती, तो लगता जैसे पूरा कॉलेज थम गया हो।
मेरे दोस्त अक्सर मज़ाक उड़ाते,
“भाई, तू तो पूरा आशिक़ बन चुका है। बता दिया उसे अपने दिल की बात?”
लेकिन मैं… डरता था।
क्या पता उसने हँसते-हँसते मना कर दिया तो?
क्या पता दोस्ती भी खो दूँ?
वो खास दिन
कॉलेज का फ्रेशर्स डे था।
स्टेज पर सब अपने-अपने टैलेंट दिखा रहे थे।
मीरा को भी बुलाया गया।
उसने माइक उठाया और एक खूबसूरत गाना गाया – वही गाना, जो मेरे दिल का भी था।
“मेरा नाम तू…”
मेरे पूरे बदन में जैसे बिजली दौड़ गई।
क्या ये संयोग था या इशारा?
उसने गाना खत्म किया और नज़रें मेरी तरफ़ उठा दीं।
उस पल लगा जैसे हम दोनों के बीच कोई अनकहा रिश्ता जुड़ चुका है।
इज़हार
कई दिन तक मैं सोचता रहा।
फिर एक शाम कॉलेज कैफ़े में हिम्मत जुटाकर मैंने कहा –
“मीरा, एक बात कहूँ? …मुझे तुम्हें खोने से डर लगता है।”
वो थोड़ी देर चुप रही।
फिर बोली –
“अभय, मुझे भी…”
मेरे कानों पर यक़ीन नहीं हुआ।
“क्या मतलब?” मैंने काँपती आवाज़ में पूछा।
वो हल्का मुस्कुराई,
“मतलब… मेरा नाम अगर कोई पुकारे, तो मैं चाहती हूँ कि वो सिर्फ़ तुम हो।”
उसकी ये बात सुनकर मेरी आँखें भर आईं।
उस दिन मुझे समझ आया कि असली प्यार वही होता है, जहाँ दो दिल बिना कहे भी सब कुछ समझ लेते हैं।
सफ़र आगे का
उसके बाद हमारी ज़िंदगी बदल गई।
दोस्ती ने प्यार का रूप ले लिया।
कभी हम लाइब्रेरी में साथ पढ़ते, तो कभी छत पर बैठकर सपनों के आसमान गिनते।
वो कहती,
“अभय, अगर लोग हमसे पूछें कि तुम्हारा नाम क्या है, तो मैं सिर्फ़ एक ही जवाब देना चाहती हूँ – मेरा नाम तू।”
और मैं… हर बार मुस्कुराकर कह देता –
“बस यही तो मेरी पहचान है।”
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🌹 अंत
ज़िंदगी में चाहे कितनी भी मुश्किलें आएँ, लेकिन जब तुम्हारे साथ कोई ऐसा हो जो हर बार तुम्हें याद दिलाए – मेरा नाम तू…
तो यक़ीन मानो, हर सफ़र आसान हो जाता है।
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