🌹 कभी तो पास मेरे आओ 🌹
कॉलेज की लाइब्रेरी का वो कोना… जहाँ किताबें ज्यादा और खामोशियाँ गहरी होती थीं। वहीं पर अक्सर आरव की नज़रें किसी और किताब में उलझ जाती थीं—किताबों में नहीं बल्कि उसकी मुस्कान में।
वो लड़की… जिसका नाम सिया था। सिया का अंदाज़ ही अलग था—बालों को हल्का-सा पीछे कर, आँखों में चमक लिए, हमेशा कुछ नया सीखने का जुनून। आरव की दुनिया जैसे उसी पल थम जाती जब वो पास से गुजरती।
आरव उसे कई महीनों से देख रहा था, मगर अब तक हिम्मत नहीं जुटा पाया कि जाकर कह दे—
"सिया, मुझे तुमसे कुछ कहना है।"
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पहली मुलाक़ात
एक दिन लाइब्रेरी में सीट कम थीं। आरव की किस्मत शायद उसी दिन उस पर मेहरबान थी। सिया धीरे से बोली—
“Excuse me, यहाँ बैठ सकती हूँ?”
आरव के दिल की धड़कनें तेज़ हो गईं। उसने हल्की मुस्कान दी और बोला—
“हाँ, ज़रूर।”
वो पहली बार था जब दोनों इतने पास बैठे थे। किताबें खुली थीं, मगर दोनों की नज़रें कभी-कभार एक-दूसरे पर चली जातीं।
उस दिन आरव को लगा—शायद अब वक्त आ गया है अपने दिल की बात कहने का।
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दोस्ती की शुरुआत
धीरे-धीरे लाइब्रेरी की मुलाकातें एक कॉमन रूटीन बन गईं। दोनों साथ-साथ नोट्स शेयर करने लगे। कैंटीन में कॉफ़ी पीने तक बात पहुँच गई।
सिया हँसते हुए कहती—
“तुम हमेशा इतने शांत क्यों रहते हो? लगता है जैसे कोई राज़ छुपा रखा है।”
आरव हल्का-सा मुस्कुराकर रह जाता। वो कैसे बताता कि उसका सबसे बड़ा राज़… खुद सिया ही है।
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इज़हार की कोशिश
एक दिन कॉलेज का कल्चरल फेस्ट था। पूरी यूनिवर्सिटी जगमगा रही थी। म्यूज़िक, लाइट्स और शोर-गुल के बीच आरव ने ठान लिया—आज नहीं तो कभी नहीं।
वो सिया को स्टेज के पास ले गया और धीरे से बोला—
“सिया, क्या मैं तुमसे कुछ कह सकता हूँ?”
सिया ने मुस्कुराते हुए कहा—
“हाँ, क्यों नहीं… तुम तो वैसे भी कम बोलते हो, सुनने का मन है।”
आरव ने गहरी साँस ली और बोल पड़ा—
“मैं… मैं तुम्हें पहली बार लाइब्रेरी में देखकर ही खो गया था। मुझे नहीं पता ये प्यार है या कुछ और, पर दिल बस यही कहता है… कभी तो पास मेरे आओ।”
सिया कुछ पलों के लिए चुप रही। उसकी आँखों में नमी और होंठों पर हल्की मुस्कान थी।
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सिया का जवाब
“आरव… तुम जानते हो, मैं भी तुम्हें नोटिस करती थी। तुम्हारी खामोशी मुझे हमेशा खींचती थी। शायद मैं भी यही चाह रही थी कि तुम कुछ कहो। और हाँ… मैं भी तुम्हारे साथ रहना चाहती हूँ।”
आरव की आँखें चमक उठीं। उसने पहली बार सिया का हाथ थामा। चारों ओर भीड़ थी, शोर था, मगर उस पल दोनों के लिए सब कुछ थम गया था।
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मोहब्बत का सफ़र
उस दिन से उनकी कहानी शुरू हुई—
कभी लाइब्रेरी के कोनों में हँसी-मज़ाक,
कभी कैंटीन की चाय पर अधूरी बहसें,
कभी सड़कों पर साथ चलते हुए सपनों की बातें।
आरव अब भी वही शांत लड़का था, मगर अब उसकी खामोशी में सिया की हँसी घुल चुकी थी।
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जुदाई की आहट
समय बीतता गया। कॉलेज का आख़िरी साल आया। अब दोनों को अलग-अलग शहरों में नौकरी मिल चुकी थी। सिया को दिल्ली और आरव को मुंबई जाना था।
स्टेशन पर विदाई के वक्त सिया की आँखों में आँसू थे। उसने कहा—
“आरव, अगर दूरी आ गई तो?”
आरव ने उसका हाथ कसकर पकड़ा और बोला—
“दूरी आएगी, लेकिन मेरा वादा है… हर रात जब तुम आसमान देखोगी, वहाँ वही तारे होंगे जो मैं देखूँगा। और हाँ, कभी तो पास मेरे आओगे ही।”
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दोबारा मिलन
छह महीने की जुदाई के बाद, एक शाम अचानक दरवाज़े पर घंटी बजी। सिया ने दरवाज़ा खोला—सामने आरव खड़ा था, हाथों में फूल और वही मुस्कान।
सिया के चेहरे पर चमक लौट आई। उसने बिना कुछ कहे आरव को गले से लगा लिया।
आरव ने धीरे से फुसफुसाया—
“देखा… कहा था न, कभी तो पास मेरे आओ।”
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✨ The End ✨
story pasand aaye to follow jarur kare 🌹