🌹 हम दोनों कब मिलेंगे 🌹
कॉलेज की भीड़-भाड़ वाली गलियों में, एक चेहरा था जो हर रोज़ नज़र आता था। न जाने क्यों, भीड़ में भी वही चेहरा सबसे साफ़ दिखता था। उसकी मुस्कान, उसकी चाल और उसकी आंखों की चमक, सब कुछ मुझे अपनी ओर खींच लेता था। शायद यही पहली नज़र का प्यार था, या फिर वो अनजानी डोर, जो दिल से दिल को जोड़ देती है।
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पहली मुलाकात (ना होते हुए भी मुलाकात)
मैंने उसे पहली बार लाइब्रेरी में देखा था। वो शांति से बैठकर किताब पढ़ रही थी और बीच-बीच में बालों की लटों को कान के पीछे करती जा रही थी। उसकी सादगी ही उसकी सबसे बड़ी खूबसूरती थी। मैं बस दूर से उसे देखता रहा। उसके सामने बैठने की हिम्मत तो थी नहीं, लेकिन दिल ने वहीं तय कर लिया था — "यही वो लड़की है, जिसके साथ मुझे अपनी पूरी ज़िंदगी बितानी है।"
लेकिन किस्मत का खेल देखो, मैं उसे देखता रहा और वो अनजान रही।
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वो अनकहा सफर
दिन हफ्तों में और हफ्ते महीनों में बदलते गए। हर रोज़ मैं उसे देखता, पर कुछ कह नहीं पाता। वो कभी कैंटीन में दोस्तों के साथ बैठी मिलती, तो कभी गार्डन में अकेली किताब पढ़ते हुए। उसकी हंसी पूरे कैंपस को रौशन कर देती थी।
मेरे दोस्त मज़ाक उड़ाते —
"यार, तू कब जाकर बात करेगा?"
मैं सिर्फ़ मुस्कुरा देता और कह देता —
"हम दोनों कब मिलेंगे, ये वक्त तय करेगा।"
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सोशल मीडिया का सहारा
एक दिन हिम्मत करके मैंने उसे इंस्टाग्राम पर फॉलो कर लिया। हैरानी की बात ये थी कि उसने भी रिक्वेस्ट एक्सेप्ट कर ली। अब मैं उसकी स्टोरीज देखता, उसके पोस्ट पर लाइक करता, लेकिन मैसेज करने की हिम्मत अभी भी नहीं जुटा पाया।
उसकी एक फोटो पर उसने लिखा था —
"कभी-कभी सबसे अच्छा रिश्ता वही होता है, जो बिना कहे भी दिलों में बना रहता है।"
ये पढ़कर ऐसा लगा मानो उसने मेरी ही हालत बयां कर दी हो।
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एक खास दिन
कॉलेज का वार्षिक समारोह था। भीड़ में अचानक मेरी नज़र उसी पर पड़ी। उसने नीली ड्रेस पहनी थी और जैसे ही मुस्कुराई, दिल ने कहा — "अब और इंतजार नहीं।"
हिम्मत जुटाकर मैं उसके पास गया और बोला —
"हाय, मैं तुम्हें अक्सर लाइब्रेरी में देखता हूं। तुम बहुत अच्छे से पढ़ती हो।"
वो मुस्कुराई और बोली —
"ओह, तो आप वही हो जो चुपचाप देखते रहते हो?"
मैं चौंक गया। मतलब वो भी मुझे नोटिस करती थी!
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बातें और मुलाकातें
उस दिन के बाद हमारी बातचीत शुरू हो गई। पहले लाइब्रेरी में "हाय-हैलो", फिर कैंटीन में कॉफ़ी, और धीरे-धीरे पूरी शामें साथ बिताने लगीं। हमने अपने सपनों, अपनी कहानियों और अपने डर तक साझा किए।
लेकिन फिर जिंदगी ने एक मोड़ लिया।
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दूरियां
कोविड लॉकडाउन लग गया। कॉलेज बंद हो गया। हम दोनों अपने-अपने शहर लौट आए। अब सिर्फ़ ऑनलाइन क्लासेस और वर्चुअल बातें बचीं। हर रोज़ कॉल्स, चैट्स और वीडियो कॉल्स के बावजूद, एक सवाल हमेशा दिल में खटकता था —
"हम दोनों कब मिलेंगे?"
वो भी यही कहती थी —
"स्क्रीन पर तो रोज़ मिल लेते हैं, लेकिन एक बार सामने बैठकर कॉफ़ी पीने की ख्वाहिश है।"
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उम्मीद और इंतजार
दिन बीतते गए। हमारी दोस्ती अब मोहब्बत में बदल चुकी थी। वो भी मुझे उतना ही चाहती थी, जितना मैं उसे। लेकिन मिलना अब भी मुश्किल था।
हम दोनों अक्सर वीडियो कॉल पर खामोश होकर बस एक-दूसरे को देखते रहते। और फिर वो कहती —
"कभी सोचो, अगर अचानक मैं तुम्हारे सामने खड़ी मिल जाऊं तो?"
मैं हंसकर कहता —
"तो शायद यकीन ही ना कर पाऊं।"
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वो लम्हा
कई महीनों बाद, अचानक उसने मुझे मैसेज किया —
"क्लास खत्म होने के बाद कैंटीन आना। एक सरप्राइज है।"
दिल धड़कने लगा। मैं वहां पहुंचा, और देखा — वो सामने खड़ी थी। वही मुस्कान, वही चमक, और वही आंखें… बस फर्क इतना था कि अब वो मेरी थी।
वो बोली —
"देखो, आखिरकार हम दोनों मिल ही गए।"
उस पल ऐसा लगा जैसे दुनिया थम गई हो।
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कहानी का सच
कभी-कभी मिलन इतना देर से होता है कि इंतजार ही सबसे खूबसूरत याद बन जाता है। हमारी कहानी भी ऐसी ही है। हम दोनों का मिलना आसान नहीं था, लेकिन शायद इसी इंतजार ने हमारी मोहब्बत को और गहरा बना दिया।
और आज भी जब हम पुराने दिनों को याद करते हैं, तो वही सवाल गूंजता है —
"हम दोनों कब मिलेंगे?"
और जवाब आता है —
"जब भी दिल चाहे, क्योंकि अब तो ज़िंदगी भर साथ रहना है।"
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