Yashaswini - 22 in Hindi Fiction Stories by Dr Yogendra Kumar Pandey books and stories PDF | यशस्विनी - 22

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यशस्विनी - 22


लघु उपन्यास यशस्विनी: अध्याय 22: कोरोना काल: क्या मुझे और मास्क मिल सकते हैं?

इतिहास में संभवतः ऐसा पहली बार हुआ था जब कोरोना ने धर्मस्थलों के भी द्वार बंद करवा दिए।यशस्विनी विचार करने लगी कि कहीं न कहीं इस बीमारी के उद्भव और प्रसार में मानव की लापरवाही की बहुत बड़ी भूमिका है। देश की सवा अरब के लगभग आबादी घरों में कैद है।

 यशस्विनी ने रात में रोहित को फोन लगाया और कहा, "कैसे हो रोहित?"

" मैं ठीक हूं यशस्विनी, तुम कैसी हो?"

" मैं भी ठीक हूं रोहित। यह कठिन समय है। हमें कोरोनावायरस के शरीर पर पड़ने वाले प्रभावों के बारे में लोगों को अधिक से अधिक जागरूक करना होगा। किस तरह यह गले तक पहुंच कर और देर तक वहां रहकर अपना प्रभाव डालता है और फिर फेफड़े में उतर कर धीरे-धीरे उसको कमजोर कर श्वसन तंत्र को नष्ट कर देता है।ठीक न होने पर इसका बुखार जानलेवा साबित हो रहा है।"

" आप ठीक कह रही हैं यशस्विनी, हमें सरकार द्वारा उपलब्ध कराई जा रही चिकित्सा सुविधाओं और दवाओं के साथ-साथ अपने स्तर पर योग और अन्य देसी पद्धतियों के बारे में भी लोगों को जागरूक करना चाहिए …"

ऐसा कहते-कहते फोन पर रोहित की हल्की खांसी की आवाज सुनाई दी।यह सुनकर यशस्विनी चिल्ला उठी,"क्या हुआ रोहित,आप ठीक तो हैं?"

हँसते हुए रोहित ने कहा, "क्यों चिंता कर रही हो यशी, अब मैं भला तुमसे कोई बात छुपाउंगा?"

अचानक रोहित को लगा कि उसने यशस्विनी का इस तरह 'यशी' नाम लेकर अपनी हद पार कर दी है। उसने कहा- 'सॉरी।'

यशस्विनी ने खिलखिलाते हुए कहा, "इसकी कोई जरूरत नहीं है योगी महाराज….."

                  कोरोना ने पूरी जिंदगी को बदल कर रख दिया।संक्रमण से फैलने वाली महामारी इस कदर भयानक हो सकती है,यह किसी ने नहीं सोचा था। लोगों के चेहरों पर मास्क दिखने लगे। लोग घरों में कैद होकर रह गए। जो लोग सड़कों और कार्यस्थल पर थे,वे कोरोना योद्धा थे,जो अपनी ड्यूटी निभा रहे थे। जैसे प्रशासन के अधिकारी,पत्रकार, जमीनी स्तर के कर्मचारी,अस्पताल के चिकित्सक, नर्स, और पैरामेडिकल स्टाफ, सुरक्षा बल के जवान, पुलिस फोर्स और लॉकडाउन में आवश्यक वस्तुओं की सप्लाई करने वाले….. अस्पताल में मरीजों की बढ़ती भीड़….. लोगों के चेहरों पर लगे हुए मास्क….. 2 गज अर्थात 6 फीट की सुरक्षित दूरी…. सेनीटाइजर का बार-बार प्रयोग और सामाजिक दूरी जैसी अवधारणाएं पहली बार अस्तित्व में आईं। यशस्विनी को याद आया कि उसके पास भी अधिक दिनों का राशन नहीं है इसलिए लॉकडाउन की घोषणा के तीसरे ही दिन वह मार्केट गई। सब कुछ बदला बदला सा। चौराहे पर सायरन बजाती पुलिस की गाड़ी... दुकानदारों को ताकीद करते पुलिस के जवान और गाड़ी से किए जाने वाले अनाउंसमेंट …... आप निश्चिंत रहें आप लोगों को दोपहर 12:00 बजे तक खाने-पीने राशन दूध फल आदि वस्तुएं उपलब्ध हो जाएंगी….

    यशस्विनी ने अपने घर के पास वाले चौराहे पर एक छोटी सी दुकान के पास रुककर वहां से मास्क खरीदने की सोची।

 वहां एक आठ-नौ साल के लड़के को मास्क बेचते देखकर उसे हैरानी हुई। उत्सुकता वश उसने अपनी स्कूटी रोकी और पूछा, "यह मास्क कितने रुपए का है?"

" दीदी' यह 15 रुपए का है।"

जैसे लड़के को लगा कि 15 रुपये उसने बहुत ज्यादा बोल दिए हैं, इसलिए उसने तुरंत सुधार करते हुए कहा-" दीदी आपको ज्यादा लग रहा है और मैं इसे आपको 10 रुपये में दे दूंगा।"

" ऐसा क्यों?"

"वैसे सच बताऊं दीदी यह बड़ी मेहनत से तैयार हुआ है। मेरी मां ने खुद इसे अपने हाथ से बनाया है।"

" अच्छा हाथ से बनाया है। कैसे?" "उन्होंने मुझसे पास की दुकान से कपड़ा मंगवाया। इसके बाद अपने हाथों से छोटे-छोटे मास्क से थोड़ी बड़ी साइज के टुकड़े उन्होंने काटे और फिर सुई धागे से बड़ी मेहनत से उन्होंने इसे सिला है।"

यशस्विनी ने कहा, "यह तो बहुत अच्छी बात है और तुम्हारे मास्क की क्वालिटी भी तो बहुत ही अच्छी है। इसलिए मैं तुम्हें 15 रुपये दूंगी... और….  तुम इसे 10 रुपये में बेचने की बात क्यों कह रहे हो?

छोटे उस्ताद ने उत्तर दिया,"बात यह है दीदी कि आज  अब तक 1-2 लोगों ने ही मास्क खरीदा है। मुझे डर लग रहा है कि कहीं मेरे मास्क न बिके तो परेशानी खड़ी हो जाएगी।"

" तुम्हें क्या परेशानी है?"

" परेशानी की बात यह है दीदी कि घर में मेरी मां है जो बीमार है।वे कई घरों में काम पर जाती हैं।कल सुबह अनेक घरों के लोगों ने उन्हें फोन कर घर आने के लिए मना किया। अब महीना पूरा होने में चार-पांच दिन ही बचे हैं तो मेरी मां को उनकी इस महीने की तनख्वाह 1 तारीख को ही मिलती, तो बस महीने के आखिरी दिनों में घर में पैसों की कमी हो गई है……"

 

यशस्विनी ने पूरी बात सुनकर आहें भरते हुए कहा"ओह, तो छोटे उस्ताद यह बात है। और तुम्हारे घर में कौन-कौन हैं?" 

"अभी यहां मैं और मेरी मां रहते हैं। पिता काम करने के लिए विजयपुर गए हुए हैं। वे महीने में एक बार आते हैं लेकिन अभी कल ही उन्होंने फोन किया कि वे लॉकडाउन में फंस गए हैं अभी घर नहीं आ पाएंगे।"

  यशस्विनी सोच में पड़ गई। उसने कहा," ...तो मास्क बेचने के लिए तुम्हारी मां भी तो आ सकती थी न?”

“ नहीं, मां की तबीयत खराब है।"

    "छोटे उस्ताद क्या हुआ है तुम्हारी मां को?

" दीदी उस दिन एक घर में साफ सफाई के दौरान वे स्टूल पर चढ़ी थीं वहां से नीचे गिर गई और उनकी दाईं एड़ी में फ्रैक्चर आ गया है।.. उसी दिन रात से लॉक डाउन लग गया…  फिर भी मेरी मां किसी तरह काम करने के लिए घरों में जाने को तैयार थी…. एड़ी में आधा प्लास्टर चढ़ा होने के बाद भी…. दीदी इस पर मैंने ही उन्हें रोका कि आप काम पर मत जाओ…. मैं पैसा कमा कर लाऊंगा…."

 छोटे उस्ताद की कहानी सुनकर यशस्विनी का ध्यान गणेश की कहानी की ओर चला गया। ऐसी ही परिस्थितियों में गणेश दीवाली के दिन पटाखों का इंतजार कर रहा था और फिर मजदूरी के दौरान ऊंचाई से गिर पड़ी मां से गणेश की भेंट अस्पताल के बेड पर हुई थी। यशस्विनी को उसकी कहानी बड़ी मार्मिक लगी। उसने पूछा,"छोटे उस्ताद, तुम्हारा नाम जान सकती हूं?"

" हां दीदी,मैं पिंटू। स्कूल में मेरा नाम प्रवीण है।"

 "बहुत बढ़िया,तुम सचमुच अपने काम में ही नहीं अपनी बातों में भी प्रवीण हो पिंटू।

    यशस्विनी को पिंटू से सहानुभूति होने लगी। उसने एक के बदले 2 मास्क खरीदे और 20 के बदले जब उसने 30 रुपए देने चाहे तो पिंटू ने मना कर दिया। "नहीं दीदी... मैं 20 ही लूंगा क्योंकि आपसे मैंने इसी रेट के बारे में बातचीत की है। जबरदस्ती 10 रुपये अतिरिक्त देकर यशस्विनी पिंटू के ऊपर कोई अहसान लादना नहीं चाहती थी क्योंकि ऐसा करने पर उसके आत्मसम्मान को ठेस पहुंचती। इसलिए यशस्विनी ने उसे केवल 20 रुपये दिए। यशस्विनी ने इतना ही पूछा, "क्या मुझे और मास्क मिल सकते हैं?मैं एक सामाजिक संस्था में काम करती हूं…."

(क्रमशः)

 डॉ. योगेंद्र कुमार पांडेय