रिधान झुंझलाकर घर पहुंचा, उसके मन में अभी भी यही बात घूम रही है कि दोनों साथ है? है भी तो क्यों?
उसे प्रकृति के कबीर से घर से निकलते वाला सीन याद आ गया। कबीर का झूठ बोलना .... उसने खुद को तसल्ली दी कि ऐसा कुछ नहीं है।
उसने एक बार फिर रिद्धि की केस फाइल खोली, और एक नाम उसे खटक गया.....
उसने फोन निकाला और अपनी असिस्टेंट को कॉल किया।
Ridhaan की उंगलियाँ धीरे-धीरे टेबल पर चलने लगीं, और फिर उसने धीरे से कहा —
“…Book my ticket. New York. First available flight.”
Call कटते ही उसकी नज़र फिर से file पर पड़ी — Aparna Mehta.
वो नाम, जो हर बार Riddhi के case से जुड़कर आता था।
“New York…” उसने फुसफुसाया, “Case के दो महीने बाद चली गई थी. Reason — Scholarship?”
वो हल्का हंसा, मगर आवाज़ में एक कसक थी —
“इतनी अमीर family की लड़की को scholarship की क्या ज़रूरत? Kuch to hai yahan…”
फिर उसने एक हल्का सा सिर झुकाया, “Maybe… I’m overthinking. But mujhe khud check karna hoga.”
✈️
Flight में बैठा Ridhaan खिड़की से बाहर देख रहा था।
बादलों के बीच से निकलती धूप उसके चेहरे पर पड़ रही थी।
दिल में सिर्फ एक ही नाम गूंज रहा था — Prakriti…
वो मन में खुद से लड़ रहा था —
“Esa kya kaam h dono ko ek sath office se chhutti lene ka…?”
फिर खुद को टोका, “Bas, stop it Ridhaan… kuch bhi sochta rehta hai tu… ye bas coincidence hai.”
लेकिन फिर भी, अंदर एक आवाज़ थी — “Ya shayad nahi…”
🌅
इधर अगली सुबह, प्रकृति के घर के बाहर कबीर खड़ा था, हाथ में coffee और कुछ documents लिए।
Bell बजते ही प्रकृति ने दरवाज़ा खोला —
“Tum phir aa gaye, Kabir?”
Kabir मुस्कराया — “Haan, bina tumhare case ke notes samajhna mushkil hai.”
प्रकृति ने धीमे से कहा — “Lagta hai iss case ne sabko hi restless kar diya hai…”
Kabir ने files रखते हुए बोला — “Aur lagta hai, kuch log abhi tak case nahi… ek dusre ko samajhne ki koshish kar rahe hain.”
प्रकृति ने उसे देखा, पर कुछ कहा नहीं।
वो बस balcony की तरफ मुड़ी, और धीरे से फुसफुसाई —
“Pata nahi… Ridhaan kahan hoga ab…”
और ठीक उसी पल, हजारों किलोमीटर दूर
Ridhaan के plane ने New York की हवा को छू लिया था —
एक नयी शुरुआत, और कुछ पुराने ज़ख्मों की तलाश में
इधर प्रकृति और कबीर दोनों काम में लगे हैं।
सुबह से दोनों — प्रकृति और कबीर — एक ही कमरे में बैठे थे। चारों तरफ बिखरी हुई फाइलें, पुराने ईमेल्स और कॉल लिस्ट। प्रकृति की आँखों में थकान थी, लेकिन चेहरे पर वही determination झलक रही थी जो उसे हर मुश्किल में आगे बढ़ाती है।
प्रकृति: “कबीर, इतने सारे लोगों से बात हो चुकी… पर कुछ हाथ नहीं लग रहा।”
कबीर: “तो चलो, एक काम करते हैं। दो लिस्ट बनाते हैं — एक उन लोगों की जिनसे बात हो गई, और दूसरी जिनसे अभी तक नहीं हुई। कुछ तो मिलेगा…”
दोनों फिर अपने-अपने काम में डूब गए।
फोन बज रहे थे, हर कॉल पर नई निराशा।
“Sorry wrong number…”
“I don’t remember Riddhi…”
“She left the country years ago…”
Google search, alumni database, old college forms — हर जगह सिर्फ खामोशी और निराशा।
कब सुबह दोपहर हुई, और कब शाम ढल गई, किसी को एहसास ही नहीं हुआ।
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उधर रिधान, न्यूयॉर्क पहुँच चुका था।
ठंडी हवा, चमकती सड़कों और भीड़ के बीच भी उसका दिमाग बस एक नाम पर अटका था — Aparna.
वो सीधे उस एड्रेस पर गया जो कॉलेज फाइल में लिखा था।
रिधान: “Hi, I’m looking for Aparna Mehta.”
बुजुर्ग आदमी: “Who? No one by that name here, son. I’ve lived here for 12 years.”
रिधान का चेहरा फीका पड़ गया।
वो रिकार्ड्स चेक करता है, scholarship forms, address details — सब फर्जी।
रिधान (मन में): “Aparna कभी यहाँ आई ही नहीं… ये सब झूठ था। लेकिन क्यों? किसने ये सब किया?”
फिलहाल उस फर्जी scholarship और झूठ का पता चलते ही, उसने तुरंत भारत लौटने का फैसला किया।