Jinn Jadi and Tailor's love horror story in Hindi Horror Stories by Mohammad Ajim books and stories PDF | जिन्न जादी और दर्जी का प्यार डरावनी कहानी

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जिन्न जादी और दर्जी का प्यार डरावनी कहानी

मेरा नाम रशीद है। सब मुझे शीदा दर्जी कहते थे। मैं एक गांव में रहता था और मेरा अपना काम ठीक चल रहा था। लेकिन जिंदगी में कभी-कभी ऐसा वक्त आ जाता है कि इंसान को वो जगह भी छोड़नी पड़ती है जहां उसने सालों गुजारे होते हैं। मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। एक दिन गांव के एक बासर शख्स से मेरी किसी बात पर तल्ख कलामी हो गई। और उसके बाद वो मेरे दुश्मनों में शामिल हो गया। उसने मेरे खिलाफ माहौल बनाना शुरू किया। मेरे ग्राहकों को मेरे खिलाफ करना शुरू किया और आहिस्ता-आहिस्ता मेरी दुकान वीरान होने लगी। मैंने बहुत बर्दाश्त किया, बहुत सब्र किया। लेकिन जब मामला जान को खतरे तक पहुंच गया तो मैंने सोचा कि अब यहां रहना बेवकूफी है। तब मैंने फैसला किया कि किसी और गांव चला जाता हूं और वहां से नई जिंदगी शुरू करता हूं। मैंने अपना थोड़ा बहुत सामान समेटा और अगली सुबह ही एक नए गांव के लिए रवाना हो गया। यह गांव जहां मैं पहुंचा निस्बतन बड़ा और तरक्क याफ्ता इलाका था। यहां बाजार भी अच्छा खासा था और चहल-पहल भी थी। मैंने सोचा कि अगर यहां काम शुरू हो जाए तो दोबारा जिंदगी संवर सकती है। मैंने बाजार का जायजा लिया और मुख्तलिफ दुकानों के बाहर बैठे लोगों से पूछा कि क्या कहीं कोई दुकान खाली है? लेकिन हर कोई यही कहता कि यहां तो कोई भी दुकान खाली नहीं है। पहले से ही सब कुछ बिका हुआ है और अगर कोई छोड़ भी दे तो फौरन कोई ना कोई ले लेता है। मुझे बहुत मायूसी हुई क्योंकि दर्जन औरतें तो घर से भी काम चला लेती हैं। लेकिन दर्जी को तो दुकान पर बैठना ही पड़ता है। गुजरने वाला हर शख्स जब देखे कि फलां दर्जी की दुकान है तो ही कपड़े देगा और ऊपर से मेरी शादी भी नहीं हुई थी। ना कोई बीवी थी ना बहन जो घर आकर खवातीन से बात करके आर्डर ले लेती। मुझे तो लाजमी दुकान चाहिए थी। इसी परेशानी में जब मैं बाजार की दूसरी तरफ गया तो मुझे एक कोने में एक दुकान नजर आई जो बाकी दुकानों से हटकर थी। वो मार्केट की बिल्कुल आखिरी दुकान थी। उसके बाद दीवार आ जाती थी और रास्ता बंद हो जाता था। दुकान बाहर से काफी पुरानी और गंदी लग रही थी। कुछ-कुछ खंडहर का सा मंजर पेश कर रही थी। मैंने वहीं खड़े होकर एक शख्स से पूछा कि यह दुकान तो खाली पड़ी है। तुम लोग तो कह रहे थे कि कोई दुकान खाली नहीं है। वो शख्स हल्का सा मुस्कुराया और बोला कि यह दुकान है तो खाली लेकिन इसका मालिक इस दुनिया में नहीं रहा और इसका कोई वली वारिस भी नहीं है। मैंने कहा कि हां बैठ जाऊं तो कोई मसला तो नहीं होगा। उसने मेरी तरफ देखा और बोला कि क्यों तुम्हें अपनी जिंदगी से प्यार नहीं है? मैं जरा चौंक गया और पूछा क्या मतलब? वो बोला यह दुकान आसिफजदा है। यहां भूतों का साया है। और जो भी यहां बैठा है वो चार दिन भी ठहर नहीं सका। मैंने दिल में थोड़ा सा डर महसूस किया लेकिन फिर दुकान की तरफ दोबारा देखा तो सोचा कि इतनी भी बुरी नहीं है। वैसे तो कॉर्नर की दुकान है और सबसे पहले इसी पर नजर पड़ती है जब कोई ग्राहक बाजार में दाखिल होता है। बस इसकी हालत कुछ खराब है। झाड़ू पोछा हो जाए तो साफ सुथरी हो जाएगी। मैंने उस शख्स से पूछा कि यहां क्या हुआ था? उसने कहा इस दुकान की कहानी अजीब है। यहां पहले एक आदमी दूध दही की दुकान खोलकर बैठा था और जिसने भी वहां से दूध खरीदा वो बीमार हो गया। वो आदमी कुछ परेशान रहने लगा और कहने लगा कि रात को जिन्नात के बच्चे आकर मेरा सारा दूध पी जाते हैं। वो अक्सर दुकान खोलकर सो जाता था और सुबह देखता कि दूध गायब होता है। फिर वो एक दिन खामोशी से दुकान छोड़कर चला गया। उसके बाद और लोग भी आए। किसी ने कपड़े का काम किया। किसी ने मोबाइल मरम्मत की दुकान बनाई। लेकिन कोई भी ज्यादा देर नहीं टिक सका। सबको किसी ना किसी अजीबोगरीब मसले का सामना करना पड़ा। पिछले 8 साल से यह दुकान बंद पड़ी थी और इसका मालिक एक बूढ़ा आदमी था जो बाहर के मुल्क अपने बेटे के पास चला गया। अब उसका कोई पता नहीं कि वो जिंदा है या नहीं और ना ही उसने दुकान किसी को दी। मैंने सोचा कि अगर मैं यहां बैठ जाऊं तो मुझे किसी को किराया भी नहीं देना पड़ेगा क्योंकि ना मालिक है ना कोई वारिस। वो शख्स बोला तुम चार दिन भी यहां ना बैठ पाओगे। मैंने कहा तो चलो देखते हैं किस्मत आजमाते हैं। मैं बाजार की इंतजामिया के पास गया। उन्होंने साफ अल्फाज में कहा कि हम जिम्मेदार नहीं होंगे। जो भी करना है अपनी मर्जी से करो। हमने पहले भी लोगों को मना किया है। लेकिन अगर तुम चाहो तो बैठ सकते हो। और मैंने कहा मैं खतरा मोल लेने के लिए तैयार हूं। क्योंकि यहां बाकी दुकानों का किराया 6000 से शुरू हो रहा है और मेरे पास इतने पैसे नहीं है कि शुरू में ही इतना किराया दूं। मैंने एक पुराना झाड़ू लिया और दुकान की सफाई शुरू कर दी। अंदर कुछ पुराना सामान भी पड़ा था। मेज कुर्सियां पड़ी हुई थी। एक आईना भी लगा हुआ था जो गर्द से अटा हुआ था। मैंने दिल ही दिल में सोचा कि मुझे तो यह सब मुफ्त में मिल गया। सामान भी खरीदने की जरूरत नहीं पड़ी। जैसे लॉटरी लग गई हो। मैं बहुत खुश था और सोच रहा था कि काम शुरू करते हैं और किस्मत बदलते हैं। मुझे सब कह रहे थे कि तुम पागल हो। तुम्हें क्या अपनी जान प्यारी नहीं है। तुम अकेले हो। तुम्हारा कोई अपना नहीं है। अगर होता तो कभी भी तुम्हें इस दुकान में बैठने ना देता। सबका कहना था कि जहां इंसान अपनी जिंदगी के बारे में संजीदा होता है, वहां ऐसी जगह पर बैठने का सोचता भी नहीं। लेकिन मैंने इन सब बातों को एक कान से सुना और दूसरे से निकाल दिया। क्योंकि मेरे लिए अब पीछे हटने का मतलब था कि मैं अपनी हार तस्लीम कर लूं और मैं कभी हार मानने वाला नहीं था। हां, यह जरूर था कि जब मैं दुकान साफ कर रहा था, तो एक चीज मुझे बहुत अजीब लग रही थी और वह था इस दुकान का एक कोना जो बिल्कुल दुकान के आखिरी हिस्से में था। वो कोना निहायत ही अंधेरा था और जितना भी मैं उसे साफ करता या रोशनी करता उसमें एक अजीब सी घुटन रहती थी और दिल में एक बेनाम सा खौफ महसूस होता था। मुझे याद आया कि मेरे दादा कहा करते थे कि जिन्नात हमेशा कोनों में छुपते हैं और खासतौर पर सफर के महीने में तो यह चीजें ज्यादा मुतहरिक हो जाती हैं। मेरा दिल चाहा कि छोड़ दूं यह सब लेकिन फिर सोचा कि शायद यह सब वहम है या हो सकता है कि लोगों ने इतना डरा दिया है कि मेरा जहन खुद ऐसी बातें सोचने लगा है। मैंने अपने आप को तसली दी और सोचा कि दिन को दुकान खोलूंगा और जैसे ही शाम होगी दुकान बंद कर दूंगा। मैं यहां रात नहीं गुजारूंगा। मैंने दुकान को अच्छी तरह साफ कर लिया। अंदर पड़ी पुरानी मेज को थोड़ा सीधा करके इस्तेमाल के काबिल बनाया और अपनी सिली हुई चंद नमूना कमीसिंग जो पहले से मेरे पास थी उन्हें दीवार पर टांग दिया ताकि आने वाले ग्राहक को अंदाजा हो कि मैं कैसा काम करता हूं। मेरी दो मशीनें थी। एक पुरानी और एक नई। दोनों को मुनासिब जगह पर रख दिया। कुछ धागे और सुयाम जो मेरे बैग में थी, वह निकालकर तरतीब से रख दी और फिर मैंने बिस्मिल्लाह पढ़ी। दो नफ्ल अदा किए और दुकान के कोने में बैठ गया। मैंने तो सोचा ही नहीं था कि अगर पूरे गांव में यह मशहूर है कि यह दुकान आसिफजादा है। इस दुकान में आएंगे भी कैसे? कोई दुकान के अंदर कदम रखने से पहले 10 बार सोचेगा। लेकिन मैंने अंदाजा लगाया कि अगर दुकान के अंदर ना भी आए तो मैं बाहर खड़े होकर सामान ले सकता हूं और बातचीत हो सकती है। कुछ ना कुछ तो चलेगा। एक उम्मीद थी कि शायद कोई औरतें एतमाद करके आ जाएंगी। क्योंकि मेरे सिवा यहां सिर्फ एक ही दर्जी था और वह भी काफी बूढ़ा हो चुका था। सब लोग कहते थे कि उसके हाथों में अब वह बात नहीं रही जो पहले थी। इसी उम्मीद पर मैंने वह दिन गुजारा पूरा दिन बैठा रहा। एक-एक लम्हा गुजारा लेकिन किसी ने झांक कर भी नहीं देखा। दोपहर में एक आदमी पास से गुजरा और हैरत से बोला। वाकई बैठ गए हो इस दुकान में। मैंने मुस्कुरा कर कहा, "अल्लाह का नाम लेकर बैठा हूं।" वो सर हिलाकर चलता बना। जैसे कह रहा हो कि यह ज्यादा देर नहीं टिकेगा। रात का वक्त करीब आ रहा था। बाजार की दुकानें बंद हो रही थी और सब लोग घर जाने की तैयारी में थे। मैं भी सामान समेटने ही वाला था कि अचानक से एक लड़की आई जिसने मुकम्मल नखाब किया हुआ था। उसका लिबास मुकम्मल पर्दे वाला था। लेकिन उसके बावजूद उसकी खूबसूरती और जवानी ऐसे झलक रही थी जैसे कोई चांद बादलों में छुप कर भी अपनी रोशनी ना छुपा सके। वो मेरे सामने आकर रुक गई और नरम सी आवाज में बोली मुझे कुछ कपड़े सिलवाने हैं। मैंने कहा जी बिस्मिल्लाह आइए अंदर आइए। वो बिना किसी झिझक के अंदर आ गई और काउंटर पर आकर खड़ी हो गई। उसने अपने हाथ में पकड़े हुए एक बड़े से स्याह रंग के शॉपर से एक काला सा कपड़ा निकाला। कपड़ा मुकम्मल तौर पर काला और भारी किस्म का था। मैंने हाथ लगाया तो महसूस हुआ कि कपड़ा बहुत उम्दा है। मैंने कहा आपको क्या सिलवाना है? तो वो बोली एक लंबा सा चोखा बनवाना है 7 फुट लंबा। मैंने हैरत से कहा 7 फुट लंबा। तो वो मुस्कुरा कर कहने लगी हां मुझे ऐसा ही चाहिए। अब क्योंकि वह मेरी पहली ग्राहक थी। मैंने ज्यादा सवाल जवाब नहीं किए। मैंने कहा क्या इस पर कोई लेस या बटन वगैरह भी लगाने हैं या सिर्फ सादा रखना है? तो वह बोली नहीं सिर्फ सादा काला चोखा हो। कुछ भी ना लगाना। हो सके तो मुकम्मल स्याह धागे से सिलो। और एक बात और यह मेरे साइज का नहीं बनाना। मैंने हैरानी से पूछा अगर आपके साइज का नहीं है तो किसके लिए है? तो वह मुस्कुरा कर बोली कि मेरे लिए है भी नहीं। यह बात मुझे कुछ देर के लिए उलझा गई। लेकिन मैंने फिर भी ज्यादा सवाल ना किए क्योंकि मेरे लिए काम अहम था। मैंने कहा कि इसके पैसे ज्यादा लगेंगे क्योंकि 7 फुट का चोखा है और सादा होते हुए भी काम ज्यादा है। उसने कहा कि कितने पैसे लेंगे? मैंने कहा कि ₹1400। वह बोली कि ठीक है पैसों की फिक्र मत करें। काम अच्छा होना चाहिए। मैं तो हैरान रह गया कि आजकल के दौर में कोई यूं आसानी से काम देकर बिना बहस किए कईमत मान ले। फिर भी दिल में इत्मीनान हुआ और खुशी भी कि चलो पहला दिन है और अल्लाह ने ग्राहक भेजा है। वो लड़की काम देकर चली गई और मैंने उसी रात उस चोखे पर काम शुरू कर दिया क्योंकि मेरे पास और कोई काम नहीं था। अगले ही दिन उसे तैयार कर दिया। लेकिन मैंने उसे तीसरे दिन बुलाया ताकि वह आए और मैं मुकम्मल तैयारी से काम पेश कर सकूं। जब तीसरे दिन वह आई तो मैंने चोखा दिखाया। वह बहुत खुलश हुई। मैंने कहा कि अब इसके पैसे दे दीजिए। तो उसने अपने शॉपर से कुछ नोट निकाले और काउंटर पर रखे। ऊपर ऊपर देखने में 100 के नोट थे। मुझे लगा कि शायद उसने कम पैसे दिए हैं। मैंने कहा कि शायद मुझे धोखा दे गई है क्योंकि ऊपर सिर्फ 100 का नोट था। लेकिन जब मैंने पैसे गिने तो हैरान रह गया क्योंकि अंदर 5-5,000 के दोनों नोट निकले। कुल ₹10,000 थे। मैं तो परेशान हो गया कि यह क्या हुआ? यह तो जरूरत से ज्यादा ही दे गई है। मैंने इधर-उधर देखा लेकिन वह तो कप की जा चुकी थी। मैंने दिल ही दिल में कहा कि शायद अल्लाह ने मेरी नियत का सिला दिया है। मैं तो सोच रहा था कि मुझे छूना लग गया है। लेकिन यह तो उल्टा मुझे बरकत दे गई। अगले दिन मैं सुबह सवेरे बाजार आ गया। और मुझे यह बात शुरू में ही अजीब लगी कि आज पूरा बाजार बंद पड़ा था। हालांकि इस बाजार की सबसे बड़ी खासियत यही थी कि यहां जिंदगी सुबह के वक्त ही शुरू हो जाती थी। कपड़ों के रंग करने वाले, दुपट्टे पर छापे लगाने वाले, केमीज़ के पीस वर्क करने वाले, जेबें काटने और बटन लगाने वाले और दर्जियों के छोटे-छोटे कारखाने सभी दिन चढ़ते ही काम पर लग जाते थे। और यहां का माहौल आमतौर पर काफी मशरूफ और पुर रौनक होता था। लेकिन आज मुझे हैरत हुई कि एक भी दुकान का शटर नहीं खुला हुआ था। सड़क गली सुनसान पड़ी थी। और कुछ देर तो मैं खड़ा होकर सोचता रहा कि कहीं आज कोई छुट्टी का दिन तो नहीं या शायद कोई त्यौहार है जिसकी वजह से दुकानें बंद हैं। लेकिन ऐसी कोई बात मुझे याद ना आई और मैंने सोचा कि खैर मैं अपनी दुकान खोल लेता हूं। मैंने दुकान के ताले खोले और अंदर दाखिल हो गया। जैसे ही दुकान के अंदर कदम रखा मेरी सांस जैसे रुकने लगी। क्योंकि सामने जो मंजर था वो मेरी सोच से कहीं ज्यादा अजीब और खौफनाक था। वही कोना जो हमेशा से मुझे खौफजदा करता था। जहां रोशनी डालने पर भी रोशनी नहीं जाती थी। जहां सफाई करने के बावजूद एक घुटन और बोझ महसूस होता था। आज वहां एक शख्स जमीन पर बैठा हुआ था और अपनी उंगलियों से जमीन पर कुछ लिखने की कोशिश कर रहा था। उसके बाल बिखरे हुए थे। उसका चेहरा झुका हुआ था और वो मुसलसल बड़बड़ा रहा था। मुझे लगा कि शायद कोई नशई या पागल आकर बैठ गया है। मैंने आवाज दी। कौन हो भाई? क्या कर रहे हो यहां? लेकिन उसने मेरी तरफ ना देखा और ना जवाब दिया बल्कि वह अपनी ही हालत में लगा रहा जैसे वह किसी और ही दुनिया में हो। मैंने एक बार फिर बुलंद आवाज में कहा भाई सुनो तुम कौन हो? यहां क्या कर रहे हो? यह मेरी दुकान है। लेकिन फिर भी वो खामोश रहा। बस रोने की सी आवाज आ रही थी। मैंने डरते-डरते एक कदम आगे बढ़ाया और कहा, "मेरी तरफ देखो। तुम हो कौन?" और जब उसने आहिस्ता-आहिस्ता अपना चेहरा ऊपर उठाया और मेरी तरफ देखा तो मेरे जिस्म में जैसे बिजली सी दौड़ गई और मेरे कदमों तले जमीन निकल गई क्योंकि वो चेहरा मेरा अपना चेहरा था। मैं खुद को देख रहा था। लेकिन ऐसा बिगड़ा हुआ खुद कि जिसे पहचानना भी मुश्किल हो जाए। आंखों के नीचे नीलाहट और सूजन थी जैसे दिनों से रो रहा हो। होंठ सूखे हुए और उन पर सफेद सी तह जमी हुई थी। बाल बेतरतीब बिखरे हुए और कपड़े फटे हुए थे। वो मैं ही था। लेकिन एक ऐसा मैं जिसे देखकर कोई भी इंसान खौफजदा हो जाए। मैं हैरत और खौफ के मारे पीछे हटने लगा। लेकिन वो मुझ पर चीखने लगा। वो कहने लगा भाग जाओ। अभी के अभी यहां से चले जाओ। तुम्हें कुछ पता नहीं है। तुम्हें अंदाजा नहीं है कि तुम क्या करने जा रहे हो। यहां जो आया वो खत्म हो गया। तुम भी खत्म हो जाओगे। मैं उसकी चीख पुकार से इतना डर गया कि मैंने अपने कानों पर हाथ रख लिए और जोर-जोर से चिल्लाने लगा। नहीं नहीं मैं कुछ नहीं कर रहा। मुझे कुछ नहीं पता। मुझे छोड़ दो। मैं भागना चाहता था लेकिन मेरे पांव जैसे जमीन में धंस गए हो। मैं अपनी जगह से हिल नहीं पा रहा था। मैं मुसलसल चीख रहा था और वो मेरा बिगड़ा हुआ चेहरा बार-बार यही कहे जा रहा था। भाग जाओ भाग जाओ। वरना तुम्हें भी उसी अंजाम का सामना करना पड़ेगा। और इतने में अचानक मेरी आंख खुल गई और मैं बिस्तर पर बैठा। पसीने में सराबोर हांपता हुआ मौजूद था। मेरे दिल की धड़कन बहुत तेज हो चुकी थी। मेरे गले से आवाज नहीं निकल रही थी और मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि मैं ख्वाब से निकला हूं या वो सब कुछ हकीकत में हुआ था। मैंने खुद को टटोला और तसली दी कि मैं अपने घर में हूं। मैंने पानी पिया और आहिस्ता-आहिस्ता अपने आप को पुरसुकून करने की कोशिश की। मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मैं अभी भी उस ख्वाब के अंदर हूं। लेकिन हकीकत यह थी कि वह एक ख्वाब था। मगर इतना सच्चा कि मुझे लगा कि मैं वाकई उस सब से गुजर रहा हूं। मुझे जिंदगी में कभी ऐसा ख्वाब नहीं आया था। ऐसा भयानक, ऐसा दिल दहला देने वाला ख्वाब जो मेरी रूह तक को हिला दे। मैंने घड़ी देखी तो फज्र का वक्त करीब था। मैंने वजू किया और मस्जिद जाने से पहले ही अजान हो गई। मैंने नमाज पढ़ी और दिल में अजीब सी ठंडक महसूस की। जैसे कुछ बोझ हल्का हुआ हो। नमाज के बाद मैं देर तक बैठा सोचता रहा कि आखिर यह ख्वाब क्यों आया और मुझे यही ख्याल आया कि शायद यह ख्वाब इसलिए आया क्योंकि मैं हर वक्त उसी दुकान के बारे में सोचता रहता हूं। उसी की बातें, लोगों की कहानियां, उसी का तसवुर मेरे जेहन में बैठ गया है और यही चीज मेरे ख्वाबों में डरावना रूप लेकर आ गई है। मैंने तहैया किया कि अब उस दुकान के बारे में मनफी बातें नहीं सोचूंगा और अपने काम पर तवज्जो दूंगा क्योंकि अगर दिल कमजोर हो तो साया भी दुश्मन लगता है। इस ख्वाब के बाद पता नहीं क्यों मेरी हालत वैसी नहीं रही जैसी पहले दिन थी। अब मैं पहले जैसा पुरजोश नहीं था। दुकान में बैठता तो नजर बार-बार उस कोने की तरफ ही जाती। जहां उस ख्वाब में मुझे मेरा ही बिगड़ा हुआ चेहरा दिखाई दिया था। वह कोना मुझे दिन के उजाले में भी खौफज़दा करने लगा था। हालांकि मैं जानता था कि दिन की रोशनी में किसी साए या किसी जिनभूत का जोर नहीं होता। फिर भी एक अजीब सी कपकपी मेरे जिस्म में दौड़ जाती थी जब भी नजर उस तरफ पड़ती। आखिरकार मैंने फैसला किया कि उस कोने के आगे कुछ ना कुछ लगा देना चाहिए। ताकि वह नजरों से ओझल हो जाए। मैंने दुकान में इर्द-गिर्द देखा कोई मुनासिब कपड़ा तो नहीं मिला। लेकिन एक आधा सा पर्दा पड़ा था जो कहीं से फटा हुआ भी था और काफी मैला भी था। मगर मेरे पास कोई और चीज नहीं थी। तो मैंने उसी को इस तरह से टांग दिया कि वो कोना कुछ हद तक छुप जाए। पूरी तरह से नहीं छुपा क्योंकि पर्दा काफी छोटा था। लेकिन इतना जरूर हो गया कि नजर उस तरफ कम पड़े और जहन कुछ हद तक पुरसुकून हो। पूरा दिन मैं दुकान में ऐसे ही बैठा रहा और हर आहट पर चौंकता रहा। कोई ग्राहक नहीं आया और ना ही कोई जान पहचान वाला उधर से गुजरा। बस एक अकेला मैं और वह खामोश दुकान। मेरे पास वही रकम थी जो उस नखाबपश लड़की ने दी थी। जिसकी बदौलत कम अस कम खाने-पीने का खर्च निकल रहा था। मैं ज्यादा परेशान नहीं था क्योंकि एक बंदे का क्या खर्च होता है। सुबह शाम खाना और चाय और बस थोड़ी बहुत जरूरतें। लेकिन दिल तो चाहता है कि दुकान पर रौनक हो। लोग आए जाएं, कपड़े दें, तारीफ करें और थोड़ा सा कारोबार बढ़े। लेकिन वो सब कुछ जैसे इस दुकान की दहलीज से बाहर रह गया था। इसी दौरान अचानक मेरी नजर उस पर्दे की तरफ गई और मेरे जिस्म में जैसे सनसनाहट सी दौड़ गई क्योंकि पर्दा नीचे से काफी ऊंचा था और साफ-साफ दिखाई दे रहा था कि उसके पीछे कोई खड़ा है और जो चीज सबसे ज्यादा खौफनाक थी वो यह कि उसके पांव उल्टे थे ना सिर्फ उल्टे बल्कि साकेत और साकेत होने के बावजूद भी उनसे एक अजीब सी लजती हुई फजा निकल रही थी जैसे हवा थम गई हो जैसे वक्त थम गया हो मैं एक लम्हे को बिल्कुल जम सा गया हो फिर जैसे मेरे मेरे अंदर की चीख बाहर निकलने के लिए बेताब हो गई और मैंने एक जोरदार चीख मारी। इतनी जोरदार कि शायद सारी मार्केट को गूंज गई हो और मेरी चीख के साथ ही अचानक आवाज आई। क्या हो गया? और जैसे ही मैंने सामने देखा तो वही नखापश लड़की खड़ी थी। मैं बुरी तरह से बैठती हाफ रहा था। मेरा दिल तेजी से धड़क रहा था। मेरी सांसे बेकाबू हो रही थी। वो लड़की बड़ी सादगी से कहने लगी। अगर कोई मसला है तो मैं बाद में आ जाती हूं। मैंने फौरन संभलने की कोशिश की और कहा नहीं कोई मसला नहीं है। बस गर्मी ज्यादा लग गई है और तबीयत थोड़ी खराब हो गई है। मैंने करीब रखा हुआ पानी का गिलास उठाया और जल्दी-जल्दी पानी पिया। फिर भी मेरी नजरें एक लम्हे के लिए भी उस पर्दे से नहीं हट रही थी। और मैं बार-बार तिरछी नजर से देखने की कोशिश कर रहा था कि कहीं वह पांव अब भी मौजूद तो नहीं। लेकिन वहां अब कुछ नहीं था। कोई भी नहीं था। जैसे सब कुछ मेरे जहन का फरेब हो। जैसे फिर से मुझे वहम हुआ हो। लेकिन अजीब बात यह थी कि यह लड़की ऐसे वक्त पर कैसे आ गई और इतनी खामोशी से आ गई कि मुझे उसकी आहट भी महसूस नहीं हुई। मैंने उससे बात बदलने के लिए फौरन कहा। उस दिन आपने जो पैसे दिए थे वह तो मेरे हिसाब से बहुत ज्यादा थे। तो वह बड़ी सादगी से बोली ज्यादा नहीं थे। आपके काम से खुश होकर दिए थे। और जब बंदा खुश होता है तो देने का दिल भी करता है और लेने वाले की इज्जत भी बढ़ जाती है। यह सुनकर मैं कुछ देर के लिए खामोश हो गया क्योंकि मेरे जेहन में तो यही था कि वह पैसे गलती से ज्यादा दे गई है। लेकिन अब वह दोबारा आई थी और इस बार भी वह मेरे लिए काम लेकर आई थी। उसने कहा इस बार इस तरह के पांच चौके सिलवाने हैं और फिर एक कपड़े का बड़ा सा धान सामने रख दिया। जब मैंने उस कपड़े को हाथ लगाया तो वह आम कपड़ों के मुकाबले में बहुत ज्यादा वजनी महसूस हुआ। जैसे किसी लोहे या चमड़े की तहों वाला कपड़ा हो या जैसे कई बार भिगोया गया हो। लेकिन मैंने कुछ नहीं कहा। बस सर हिला दिया और कहा ठीक है। बताइए कितने दिनों में चाहिए। उसके बाद उसने जो बात की वो सुनकर मैं हैरान रह गया। वो कहने लगी इस काम के ₹500 दूंगी। मैंने फौरन कहा देखिए पैसे मिलने पर किसी को बुरा तो नहीं लगता लेकिन ₹00 तो इस काम के नहीं बनते। यह काम ज्यादा से ज्यादा 67000 का है तो आप इतने पैसे क्यों देंगी? वो मुस्कुरा कर कहने लगी मुझे आपका काम पसंद है और मैं कीमत काम की नहीं खुशी की देती हूं। यह सुनकर मैं तो खामोश हो गया। लेकिन दिल में कहीं ना कहीं यह सवाल जरूर था कि उस सादे से चोखे में ऐसा क्या था जो उसको इतना पसंद आया था। ना तो मैंने उसमें कोई खूबसूरती डाली थी, ना कोई खास डिजाइन लगाया था। बस सादा सा काले रंग का चोखा था। खैर मैं थोड़ा लालची हो गया क्योंकि बंदे को जब बगैर मेहनत के ज्यादा मिले तो वह इंकार नहीं करता और मैंने कहा कि ठीक है पांच दिन बाद आ जाएंगे। मैंने अगले पांच दिन में वह पांचों चोगे तैयार कर दिए और छठे दिन के लिए उसे बुलाया। वो बिल्कुल छठे दिन ही आई और आकर चुपचाप एक लिफाफे में से ₹50 निकाले और मेरे काउंटर पर रख दिए और खामोशी से चली गई। बगैर कोई बात किए बगैर कोई सवाल किए और मैं सिर्फ उसे जाते हुए देखता रह गया। मुझे पैसे गिनते हुए सामने वाली दुकान पर जो आदमी बैठा था जिसकी कपड़ों की दुकान थी उसने देख लिया। मेरी हक हलाल की कमाई थी। मैंने गिनती जारी रखी और पैसे जेब में डाल लिए। वो लड़की दोबारा आई और इस बार वो पहले से भी ज्यादा खामोश और पुर असरार लग रही थी। उसके चलने की रफ्तार इतनी हल्की थी जैसे हवा में तैर रही हो। और जब वो दुकान के अंदर आई तो उसके कदमों की आवाज तक नहीं आई। और जब वह मेरे सामने खड़ी हुई तो मेरे अंदर एक अनजाना सा खौफ फिर से जाग उठा। लेकिन मैंने उस खौफ को अंदर ही अंदर दबा लिया क्योंकि मेरे दिल में अब लालच ने जगह बना ली थी। मैं उसके बारे में कुछ भी सोचने से पहले उसकी बात सुनना चाहता था। क्योंकि अब मैं जान चुका था कि जब यह आती है क्योंकि बारिश करके जाती है। वो बोली इस दफा मुझे 10 चोगे सिलवाने हैं। और यह कपड़ा लो और यह लो ₹1 लाख। और उसने वह मोटे नोटों की गड्डी मेरे काउंटर पर रख दी और बगैर कुछ और कहे वापस मुड़ गई और दुकान से बाहर चली गई। मैं वहीं बैठा रह गया। हैरत, खुशी और खौफ तीनों जज्बात मेरे अंदर एक साथ हलचल मचा रहे थे। मैं सोच रहा था कि यह लड़की आखिर है कौन? और इतने ज्यादा पैसे क्यों दे रही है? क्या उसे मेरे अंदर कुछ खास नजर आता है? या फिर यह सब कुछ किसी और वजह से हो रहा है। मेरे दिल में बार-बार यह सवाल उठता। लेकिन हर बार मैं खुद को यह कहकर खामोश कर देता कि दुनिया में ऐसे लोग भी होते हैं जिनकी समझ आम अकल से बाहर होती है और मैं उनके बारे में ज्यादा सोचूंगा तो पागल हो जाऊंगा लेकिन सब कुछ वही नहीं रहता जैसे पहले दिनों में था। एक दिन ऐसा आया कि मैं दुकान में बैठा कपड़ों की कटिंग कर रहा था कि बाहर से शोर सुनाई देने लगा। पहले तो मैंने नजरअंदाज किया लेकिन जब आवाजें तेज हुई और नाम लेकर मुझे बुलाया गया तो मैं बाहर निकला। देखा तो बाजार के सारे दुकानदार इकट्ठा हो चुके थे और सबके चेहरे पर गुस्सा और शक का मिलाजुला तासुर था। एक ने मुझे आवाज देकर कहा इधर आ जरा बात करनी है। मैं जैसे ही आगे बढ़ा तो उनमें से एक ने मेरे गरेबान को पकड़ लिया और जोर से झिंझोड़ते हुए कहा जब से तुम यहां आए हो 3 महीने हो चुके हैं। और तुम्हारी दुकान पर आज तक एक ग्राहक भी नहीं आया। रोज हम देखते हैं तुम अकेले बैठे होते हो लेकिन फिर भी हर रोज तुम पैसे गिनते हो और चेहरे पर खुशी होती है। एक और दुकानदार बोला हमें शक है कि बाजार में जो हालिया चोरी हुई है उसमें तुम्हारा हाथ है। तुम्हें किसी ने नहीं देखा किसी से बात करते हुए और कोई तुम्हारी दुकान पर आता जाता भी नहीं है। तो तुम्हारे पास पैसे कहां से आ रहे हैं? अब बताओ चोरी का माल कहां छुपाया है? मैं इस इल्जाम पर बिल्कुल सन्नाटे में आ गया। मैंने कहा तुम लोगों को किसने कहा कि मेरे पास कोई ग्राहक नहीं आता? मेरे पास एक लड़की आती है जो कपड़े सिलवाती है और वही मुझे पैसे देकर जाती है। यह सुनकर सब ने एक दूसरे की तरफ देखा और फिर एक बंदा बोला हम सब यहां पूरा दिन बैठे होते हैं और आज तक हमने तुम्हारी दुकान पर किसी लड़की को आते-जाते नहीं देखा और अगर कोई लड़की वाकई आती है तो क्या वो किसी और गांव से आती है क्योंकि हमारे गांव की तो कोई औरत इस दुकान पर नहीं आती। सबको खौफ है यहां के बारे में। सब डरे हुए हैं। मैंने जल्दी से कहा। अभी परसों की ही बात है जब वह आई थी और कपड़े दिए थे और मैंने कपड़े वाले की तरफ इशारा किया और कहा तुम ही बताओ तुम तो सामने वाली दुकान पर बैठे थे तुमने देखा था जब वह पैसे देकर गई थी उसने बड़ी बेतीनाई से कहा हां मैंने तुम्हें पैसे गिनते देखा था लेकिन मैंने किसी लड़की को नहीं देखा मेरे तो होश उड़ गए कि यह सब क्या हो रहा है क्या वाकई वो सिर्फ मुझे ही दिखाई देती है क्या वो सब कुछ जो मैं महसूस करता हूं वो सिर्फ मेरे ही ज़हन में है इतने में वह सब मेरे खिलाफ होने लगे और जोर-जोर से बोलने लगे कि तुमने ही चोरी की है और तुमसे ही माल बरामद होगा। एक बंदा तो आगे बढ़कर मुझे मुक्के मारने के लिए तैयार हो गया। मैंने डर के मारे इधर-उधर देखा और मेरी नजर जैसे ही दुकान की तरफ गई तो मैंने देखा कि वही नखापश लड़की वहां खड़ी है। दुकान के एन सामने। मैंने जल्दी से कहा देखो वो खड़ी है। वही लड़की जिसकी मैं बात कर रहा था। अभी मैं उसे बुलाकर तुम सबके सामने ले आता हूं ताकि तुम्हें भी यकीन आ जाए। जैसे ही मैं आगे बढ़ा और उनसे पीछे हटने को कहा ताकि उसे बुला सकूं तो उन्होंने मेरा गरेबान छोड़ दिया। लेकिन पीछे हटते ही उनके चेहरों पर एक खौफनाक सा तासुर आ गया जैसे उनके रोंगटे खड़े हो गए हो। एक बंदा बड़बड़ाया और बोला वहां तो कोई भी नहीं खड़ा। लगता है कि तुम पर जिन्नात का असर हो गया है। यह सुनकर मेरी भी हालत खराब हो गई और दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। मैं वहीं रुक गया और उस लड़की की तरफ देखा तो वह अब भी वहीं खड़ी थी। बिल्कुल खामोश। बगैर किसी हलचल के और फिर अचानक उसने उन लोगों की तरफ देखा और हवा में अपने हाथ को ऐसे घुमाया जैसे एक दायरा सा खींचा हो जैसे किसी नजर ना आने वाले ताकती दायरे को खोल रही हो। फिर जो मंजर मेरे सामने आया वो नाकाबिल यकीन था। वो सारे लोग जिन्होंने मुझे अभी-अभी घेर रखा था वो एक-एक करके जैसे बेखबर हो गए जैसे उनकी याददाश्त मिट गई हो। और वह सब अपनी-अपनी दुकानों की तरफ चल दिए। किसी ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। किसी ने दोबारा सवाल नहीं किया। बल्कि सब ऐसे चाय पीने में मशरूफ हो गए जैसे कुछ हुआ ही नहीं था। जैसे मेरी बातों और उनके सवालों का कोई वजूद ही ना हो। और वह लड़की अब भी दुकान के सामने खड़ी थी और मुझे खामोशी से देख रही थी। अब मैं क्या करता? मेरी हालत अजीब हो गई थी। मेरे हाथ कांप रहे थे। मेरे कदम मंजमिद हो चुके थे और मेरे जेहन में सिर्फ यही सवाल गर्दिश कर रहा था कि यह सब क्या है और क्यों है? क्या मैं वाकई किसी ऐसी मखलूक के साथ जुड़ गया हूं जो इंसानों को नजर नहीं आती मगर मेरे लिए असल है। अब मैं उसके पास जाकर क्या कहता और कैसे उसकी बात सुनता। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मेरे कदम आगे बढ़ाऊं या पीछे हट जाऊं। मैं चलता-चलता अपनी दुकान में चला गया। उसके पास से गुजर गया। वो मुझे पत्थर आंखों से देखती रही और फिर मेरे सामने खड़ी हो गई। आज उसने अपना नखाब भी हटा दिया। थी तो बहुत खूबसूरत। मैंने कहा कौन हो तुम? मेरी जुबान कांप रही थी तो कहने लगी कि जिनजादी हूं तुझसे काम करवाती हूं डरो नहीं मुझसे मैंने उनकी याददाश्त मिटा दी वह कभी तुमसे सवाल नहीं करेंगे मैंने कहा खुदा के लिए मुझे छोड़ दो मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है वो कहने लगी डरने की जरूरत नहीं है बस मुझे तुमसे काम करवाना था और तुम मुझे अच्छे लगे हम लोग इसी दुकान में रहते हैं मेरे साथ कुछ और भी हैं वो तुम्हें पसंद नहीं करते इसीलिए तो डरा रहे थे लेकिन मैंने उन्हें समझा दिया। अब ऐसा कुछ नहीं होगा। तुम अच्छे इंसान हो। इसीलिए हमने तुम्हें कुछ नहीं कहा। मैंने कहा मैं इस दुकान में काम नहीं करूंगा। मैं जा रहा हूं। वो कहने लगी भागने की जरूरत नहीं है। अकल से काम लो। मैं तुमसे यह काम करवाती रहूंगी और तुम्हारा काम चलता रहेगा। और अब यह लोग भी तुमसे कभी सवाल नहीं करेंगे। क्या मसला है? तुम्हें सिर्फ डर है तुम्हारे अंदर। मैंने कहा डर बहुत खतरनाक जज्बा है। इंसान को पागल कर देता है। वो कहने लगी डरने की जरूरत नहीं है। अब मैं तो अपना चेहरा भी दिखा चुकी हूं। यह मेरा असली चेहरा नहीं है। लेकिन क्यों डर रहे हो तुम? मैं चुप हो गया। उसने कपड़े का पूरा थान टेबल पर रखा और कहा 15 चोघे सिलवाने हैं तुमसे। और इसका मतलब समझते हो कि कितने पैसे मिलेंगे तुम्हें? मैं चुप हो गया। वो कहने लगी डरो नहीं। अल्लाह ने तुम्हारा रिज़्क शायद इसी तरह लिखा है। बस किसी से बात नहीं करना। तुमसे भी कोई सवाल नहीं करेगा। मैं चुप हो गया। और इसी तरह मेरी दुकानदार चली। जिन्नात के लिए चोखे सीता हूं। और मैं हूं शीदा दर्जी। मुझे आज भी याद है जब पहली बार मैंने वो चोखा सिया तो उसके बटन खुद ब खुद लगे थे। धागा खुद ही सुई में आ गया था। कैंची किसी इंसानी हाथ के बगैर चलती थी और मेरे सामने एक नजर ना आने वाली दुनिया के बाशिंदों की कतार खड़ी होती थी। सबके पास अपने-अपने पैमाइश के पर्चे होते थे और जब मैं दिन भर के काम के बाद थक कर बैठता तो मेरे सामने गरमागरम चाय का कप और पराठे आ जाते थे। यह सब चीजें आसमान से तो नहीं उतरती थी लेकिन बनाने वाला मुझे नजर नहीं आता था। कई बार मेरे कानों में हंसी की आवाजें आती लेकिन जब मैं देखता तो कोई ना होता। हां वो जिनजादी अक्सर दिखाई देती थी। कभी बारिश के पानी की तरह, आंखों में उतरती तो कभी शोले की तरह मेरे वजूद में लिपट जाती। वह अपने बारे में बहुत कम बताती थी। सिर्फ इतना कहती थी कि हम बहुत पुराने हैं। सदियों पुराने और जब हम किसी इंसान से ताल्लुक बना लें तो उसका साथ कभी नहीं छोड़ते। बस शर्त यह है कि तुम किसी को कुछ ना बताओ। और जब मैंने एक बार हिम्मत करके उससे पूछा कि अगर मैं किसी को बता दूं तो फिर क्या होगा? तो उसकी आंखें सुर्ख हो गई और वह कहने लगी फिर तुम्हारे सारे टांके उधड़ जाएंगे। तुम्हारी सिलाई उल्टी चलने लगेगी। कपड़ा खुद ब खुद जल जाएगा और दुकान में दाखिल होने वाले हर शख्स की शक्ल बिगड़ जाएगी। मैं उस दिन बहुत डर गया था। लेकिन अजीब बात यह थी कि डरने के बाद भी मैं दुकान छोड़ ना सका क्योंकि हर रात मेरे घर में अशरफियों से भरी थैली आती। मेरे बच्चों के स्कूल की फर्स्ट वक्त पर अदा हो जाती। मेरी बीवी की दवाइयों का बंदोबस्त हो जाता। मेरे बुढ़ापे के वालिदैन को गोश्त मिलने लगा। मेरे घर की छत जो बरसों से टपक रही थी वो अचानक बन गई। और मोहल्ले वाले हैरान थे कि शीदा दर्जी रातोंरात अमीर कैसे हो गया। लेकिन मैं किसी को कुछ ना बता सका। बस सिलाई करता रहा। चोगे बनते रहे और चाय आती रही और पराठे खिलते रहे और कभी-कभी जब देर हो जाती तो जिनजादी मुझे खुद घर छोड़ने आती थी। वो हमेशा नखाब में होती लेकिन उसकी आंखों की चमक मेरे ख्वाबों में भी आती और जब मेरी बीवी पूछती तुम कहां रह गए? तो मैं बस इतना कहता दुकान पर काम ज्यादा था और वह खामोश हो जाती। फिर एक दिन जब मैंने उस जिंजादी से पूछा क्या तुम सिर्फ काम के लिए मेरे साथ हो? तो उसने बड़ी अजीब बात कही। शीदा तुम पहले इंसान हो जिससे मैंने मोहब्बत की है और जिसे मैंने नुकसान नहीं पहुंचाया। तुम बस सिलाई करते रहो और बदले में मैं तुम्हें खलोश रखूंगी। उस दिन मेरे अंदर से सारा डर निकल गया था और मैंने चोघे सीना अपना मुकद्दर मान लिया था और अब सालों बाद भी मैं वही सीधा दर्जी हूं जो जिन्नात के लिए कपड़े सीता है और हर रोज अशरफियां गिनता है लेकिन किसी को कुछ नहीं बताता क्योंकि यह शर्त है और मैं जानता हूं कि अगर मैंने जुबान खोली तो मेरी सिलाई उल्टी हो जाएगी। मेरे टांके उधड़ जाएंगे। मेरी कैंची टूट जाएगी। कान से पराठे और चाय गायब हो जाएंगे। इसलिए मैं चुप हूं क्योंकि मैं हूं शीदा दर्जी जिनजादी का दर्जी।