Jinn Girl and Poor Boy Story Horror in Hindi Horror Stories by Mohammad Ajim books and stories PDF | जिन्न लड़की और गरीब लड़के की कहानी हॉरर

Featured Books
Categories
Share

जिन्न लड़की और गरीब लड़के की कहानी हॉरर

एक लड़का जो रेगिस्तान में अपने अब्बा के साथ रहता था, जो आंखों से अंधे थे, हमेशा उदास रहता था। उसे दुनिया से कोई वास्ता नहीं था। एक दिन उसकी मुलाकात नूरा नाम की एक बहुत खूबसूरत लड़की से हुई। वह जिन्हों की नस्ल से थी। वह लड़का पहली बार किसी लड़की के प्रति आकर्षित हुआ। लेकिन नूरा एक झिन्न थी। इसलिए लड़का उसके साथ रहने से हिचकिचाता था। नूरा ने वादा किया कि वह उसके अब्बा की आंखों की रोशनी लौटा देगी और बोली अगर तुम मेरी बात मानो तो तुम्हें वह सब मिलेगा जो तुम चाहते हो। इसके बाद लड़के को नूरा बहुत अच्छी लगने लगी। दोनों ने मिलकर ऐसे काम किए जिन्हें सुनकर कोई भी हैरान रह जाए। नूरा को भी यह सब करके बहुत अच्छा लगता था। रात के गहरे सन्नाटे में रेगिस्तान किसी अनंत समाधि की तरह पसरा हुआ था। इसी बेपनाह वीराने के बीच रेत के एक टीले के दामन में एक टूटी फूटी झोपड़ी अपनी आखिरी सांसे गिन रही थी। झोपड़ी के बाहर ठंडी रेत पर एक बूढ़ा आदमी पड़ा था। उसके कपड़े तार-तार हो चुके थे और हवा के झोंकों से किसी जख्मी परिंदे के परों की तरह फरफरा रहे थे। होंठ सूखे और पपरी जमाए हुए थे और धनंसी हुई आंखों के कोनों में बस उम्मीद की एक आखिरी कांपती हुई लौ टिमटिमा रही थी। भूख और प्यास उसके वजूद को भीतर से खोखला कर रहे थे। उसके करीब ही उसका जवान बेटा आरिफ बैठा था। जिसकी नजरें आसमान के उन बेमतलब टिमटिमाते तारों में कोई जवाब तलाश रही थी। आरिफ के सीने के अंदर भी एक ऐसा ही रेगिस्तान था जहां उसके सपनों के हरेभरे नखलिस्तान कब के सूख चुके थे। वह भी इस घुटन भरी जिंदगी से इस कैद से छुटकारा पाना चाहता था। कभी उसने भी शहर के लड़कों की तरह हंसने खेलने के ख्वाब देखे थे। कॉलेज जाना, दोस्तों के साथ बाइक पर हवा से बातें करना, एक रोशन भविष्य की कल्पना करना। पर अब यह रेगिस्तान ही उसका मुकद्दर था और अपने नाबीना अंधे अब्बा की खिदमत ही उसकी जिंदगी का एकमात्र मकसद। आरिफ की सुबह सूरज की पहली किरण के साथ होती थी। वह उन खेतों में काम करने जाता था जहां जमीन पत्थर जैसी सख्त थी और पानी की एक-एक बूंद के लिए आसमान की तरफ देखना पड़ता था। दिन भर तपती धूप में हल चलाना, पसीने में तर-बतर होना और शाम को किसी तरह दो सूखी रोटियों का इंतजाम करना ही उसकी दिनचर्या थी। उसकी जिंदगी मुसीबतों के एक ऐसे चक्रव्यूह में फंसी थी, जिससे बाहर निकलने का कोई रास्ता उसे नजर नहीं आता था। उसकी सबसे बड़ी आजमाइश उसके अब्बा थे। सलीम आंखों से देख नहीं सकते थे। आरिफ उन्हें अपने मजबूत कंधों का सहारा देकर एक जगह से दूसरी जगह ले जाता। वह उनके लिए सहारा ही नहीं उनकी आंखें भी था। उन्हें अपने हाथों से खाना खिलाता। उनकी हर छोटी बड़ी जरूरत का ख्याल रखता। उसकी देखभाल में रत्ती भर भी कमी नहीं थी। पर जब रात को रेगिस्तान की बर्फीली हवाएं चलती और सियार के रोने की आवाजें गूंजती, तो आरिफ का दिल किसी अनजाने खौफ से धड़कने लगता था। उसे लगता है जैसे यह हवाएं और यह आवाजें उसकी बची खुची हिम्मत को भी अपने साथ उड़ा ले जाएंगी। फिर भी वह अपने अब्बा की सेवा को ही अपनी जिंदगी का हासिल समझकर सब कुछ बर्दाश्त करता था। एक रात जब चांद पूरा था और उसकी शीतल रोशनी हर रेत के जर्रे को रहस्यमई बना रही थी। आरिफ अपने अब्बा के पास बैठा बेहद उदास था। उसने अब्बा के शांत चेहरे को देखा। उन बंद पलकों को जिन्होंने बरसों से दुनिया का कोई रंग कोई रोशनी नहीं देखी थी। उसके दिल की गहराइयों से एक हुक उठी एक खामोश फरियाद वो मन ही मन बुदबुदाया या खुदा काश काश मेरे अब्बा की आंखें वापस आ जाती। काश वो एक बार मुझे जी भर के देख पाते। इस दुनिया को देख पाते जिसे वह सिर्फ महसूस करते हैं। वह इन्हीं ख्यालों के समंदर में गोते लगा रहा था कि अचानक उसे अपने कंधे पर एक नरम और ठंडा सा एहसास हुआ। किसी ने उसे पीछे से बड़ी नरमी से छुआ था। आरिफ का दिल उछल कर हलक में आ गया। वह बुरी तरह चौंक गया। डर गया। इस वीराने में जहां इंसान तो क्या परिंदा भी पर मारने से पहले 100 बार सोचता था। यह कौन हो सकता था? उसने खौफ और हैरत के मिलेजुले भाव से पलट कर देखा और जो मंजर उसकी आंखों के सामने था उसे देखकर उसकी सांसे जहां की तहां थम गई। उसके सामने एक लड़की खड़ी थी। वह इतनी खूबसूरत थी कि आरिफ को एक पल के लिए यकीन ही नहीं हुआ कि वह हकीकत देख रहा है। उसे लगा कि वह कोई सपना है या शायद रेगिस्तान का कोई धोखा। उसके बाल रात से भी ज्यादा काले और घने थे जो हवा में धीरे-धीरे लहरा रहे थे। उसकी आंखें किसी गहरी झील की तरह पुरसुकून और रहस्यमई थी। जिनमें चांद का अक्स चमक रहा था। आरिफ ने अपनी पूरी जिंदगी में कभी किसी लड़की को इतने करीब से नहीं देखा था। वह बचपन से इसी रेगिस्तान के सन्नाटे में पला भरा था। जहां रेत पत्थर और उसके अब्बा के अलावा कोई चौथा वजूद नहीं था। वह हकलाते हुए बोला तू तुम कौन हो? इतने सुनसान रेगिस्तान में आधी रात को क्या कर रही हो? यहां यहां मैं और मेरे अब्बा के अलावा कोई नहीं रहता। उस लड़की के होठों पर एक हल्की सी दिलकश मुस्कान उभरी। मेरा नाम नूरा है। मैं तुम्हारी खामोश फरियाद सुनकर आई हूं। मैं तुम्हारी दोस्त बनना चाहती हूं। आरिफ। क्या तुम मुझसे दोस्ती करोगे? आरिफ को वह लड़की किसी आसमानी फरिश्ते जैसी लगी। उसकी मौजूदगी से जैसे रेगिस्तान की सदियों की उदासी और वहशत एक पल में काफूर हो गई थी। उसने झिंझकते हुए अपनी कांपती हुई आवाज पर काबू पाते हुए कहा, ठीक है, लेकिन तुम यहां इस वीराने में मैं यहीं रहती हूं। नूरा ने उसकी बात काटते हुए रहस्यमई अंदाज में कहा। इसी रेगिस्तान की हवाओं में इन्हीं रेत के जर्रों में मेरा घर है। आरिफ ने उसे अपने और अपने अब्बा के बारे में सब कुछ बता दिया। उसने बताया कि कैसे उसके अब्बा देख नहीं सकते और वह कैसे उनकी देखभाल करता है। कैसे उसकी जिंदगी सपनों और हकीकत के बीच एक अंतहीन संघर्ष बनी हुई है। नूरा की खूबसूरत आंखों में हमदर्दी की एक गहरी चमक दिखाई दी। उसने अपने हाथ से एक छोटी सी रेशमी पोटली निकाली और आरिफ को देते हुए कहा। इसमें खाने का कुछ सामान है। आज तुम और तुम्हारे अब्बा पेट भरकर खाना। आरिफ ने जब पोटली खोली तो उसकी आंखें हैरत से फटी रह गई। उसमें ताजे फल, नरम रोटियां और ऐसी तरकारियां थी जिन्हें उसने सालों से सिर्फ ख्वाबों में ही देखा था। नूरा ने उससे वादा किया। फिक्र मत करो आरिफ। मैं तुम्हारे अब्बा की आंखों की रोशनी वापस ले आऊंगी। यह मेरा तुमसे वादा है। यह सुनना था कि आरिफ की आंखों से आंसुओं की लरी बह निकली। उसे लगा जैसे खुदा ने खुद जमीन पर उतर कर उसकी दुआ कबूल कर ली हो। नूरा ने उससे कहा कि वह फिर उससे मिलने आएगी और पलक झपकते ही हवा में ऐसे ओझल हो गई जैसे कभी थी ही नहीं। आरिफ अपनी झोपड़ी में गया और उसने बड़ी मोहब्बत से खाना बनाकर अपने अब्बा को खिलाया। खाना खाते हुए उसने नूरा के बारे में, उसकी खूबसूरती के बारे में और उसके किए हुए वादे के बारे में सलीम को बताया। यह सुनते ही सलीम के हाथ से रोटी का निवाला छूट गया। उनका चेहरा खौफ से सफेद पड़ गया। जैसे उन्होंने कोई भूत देख लिया हो। उनके हाथ बुरी तरह कांपने लगे और चेहरे पर दशकों पुराना दबा हुआ खौफ एक बार फिर जिंदा हो उठा। वह मनहूस दिन वह कहर की गरी एक फिल्म की तरह उनकी बंद आंखों के सामने घूम गई। दरअसल सलीम की जिंदगी हमेशा से ऐसी बेरंग नहीं थी। कभी उसका भी एक हंसता खेलता परिवार था। वह उसकी प्यारी बीवी सकीना और नन्हा आरिफ इसी रेगिस्तान के किनारे बसे एक छोटे से गांव में रहते थे। सलीम एक गरीब किसान था। पर उसकी मेहनत और सकीना के प्यार ने उसकी छोटी सी दुनिया को जन्नत बना रखा था। एक दिन उसकी मुलाकात नूरा से हुई। नूरा एक नेक और रहम दिल जिन्न थी जो अक्सर भटके हुए और मजबूर इंसानों की मदद करती थी। उसने सलीम की गरीबी देखकर उसकी मदद की और उसकी जादुई ताकत से सलीम के बंजर खेतों में सोना उगलने लगा। सलीम नूरा का बहुत एहसानमंद था। पर जहां नेकी होती है, वहां बद्दी भी अपना साया डालती है। इस कहानी में बद्दी का नाम था जरकान। जरकान एक ताकतवर, मगरूर और शैतानी फितरत का जिन्न था। वह नूरा की बेपनाह खूबसूरती पर फिदा था और उसे किसी भी कीमत पर हासिल करना चाहता था। लेकिन नूरा उसकी शैतानी हरकतों की वजह से उससे सख्त नफरत करती थी। जरकान ने एक उसूल बना रखा था। जो भी इंसान नूरा को देखेगा या उससे बात करेगा वह उसकी आंखों की रोशनी छीन लेगा। यह उसकी हैवानियत थी। उसका गुरूर था और एक शाम सलीम के साथ यही हुआ। जब वह खेत में नूरा से अपनी फसल के बारे में बात कर रहा था। जरकान वहां एक काले बगुले की शक्ल में आ धमका। उसका कहकहा बिजली की करक जैसा था जो रूह को कंपा दे। उसने अपनी जलती हुई लाल आंखों से सलीम को घूरा और एक पल में सलीम की दुनिया में हमेशा के लिए अंधेरा छा गया। इस सदमे को सकीना बर्दाश्त ना कर सकी। वह अंदर ही अंदर घुटने लगी। कुछ साल बाद गम और तकलीफों से लड़ते-लड़ते वह भी इस दुनिया से चल बसी। आरिफ तब बहुत छोटा था। उसे ठीक से कुछ याद भी नहीं। उस दिन के बाद से सलीम अपने बेटे को जरकान के साए से बचाने के लिए गांव छोड़कर इस गहरे रेगिस्तान के सन्नाटे में आकर छिप गया। वह आज भी जरकान के नाम से खौफ खाता था। आरिफ तूने यह क्या कर दिया? सलीम घबराई हुई कांपती आवाज में बोला। वह लड़की नूरा वह हमारी बर्बादी की वजह है। वह शैतान जरकान अब तुझे भी नहीं छोड़ेगा। हमें यहां से भागना होगा। आरिफ हैरान और परेशान था। उसे अपने अब्बा की बातों पर यकीन नहीं हो रहा था। जिस लड़की को वह कोई फरिश्ता कोई उम्मीद की किरण समझ रहा था, उसी की वजह से उसके अब्बा की यह हालत हुई थी। सलीम ने उसे रोते हुए सिसकते हुए अपनी पूरी दर्द भरी कहानी सुनाई। सुनकर आरिफ के पैरों तले जमीन खिसक गई। उसके दिल में नूरा के लिए जो इज्जत और मोहब्बत पैदा हुई थी, वह एक पल में गुस्से और नफरत में बदल गई। सलीम को पता था कि अब चुप बैठना मौत को दावत देना है। उन्हें उस बुजुर्ग बाबा की याद आई जो रेगिस्तान के उस पार एक पोशीदा छुपी हुई गुफा में रहते थे। लोगों का कहना था कि उन बाबा के पास जिन्हों और शैतानों की दुनिया का इल्म था और वह रूहानी ताकतों के मालिक थे। सलीम ने आरिफ को फौरन उस बाबा के पास चलने को कहा। दोनों बाप बेटे उसी रात के अंधेरे में निकल पड़े। आरिफ अपने नाबीना अब्बा को सहारा दिए उस अनजान रास्ते पर चल रहा था। उसके दिल में गुस्सा, डर और कशमकश का एक तूफान उठा हुआ था। कई घंटों की मुश्किल और थका देने वाली यात्रा के बाद वे उस गुफा तक पहुंचे। बुजुर्ग बाबा अपनी इबादत में लीन थे। उनकी दाढ़ी बर्फ की तरह सफेद थी और उनके चेहरे पर एक अजीब सा नूर था जिसे देखकर ही सुकून मिलता था। उन्होंने आंखें खोली तो जैसे सब कुछ पहले से जानते हो। उन्होंने सलीम को देखते ही कहा, सलीम इतने सालों बाद मुझे इल्म था कि तुम एक दिन जरूर आओगे। झरकान का मनहूस साया तुम्हारे बेटे पर मनरा रहा है। बाबा ने आरिफ को अपने पास बुलाया और उसके गले में एक ताबीज पहनाया। यह ताबीज खुदा का कलाम है। यह तुम्हें जरकान की बुरी नजरों और उसके हमलों से बचाएगा। लेकिन याद रखना बेटा शैतान का सामना सिर्फ ताबीज से नहीं हिम्मत और नेक नियति से किया जाता है। जब आरिफ घर लौटा तो उसका दिल भारी था। अगले दिन वादे के मुताबिक नूरा फिर उससे मिलने आई। उसे देखते ही आरिफ का सारा गुस्सा फूट पड़ा। वह चिल्लाया, दूर रहो मुझसे। मुझे तुम्हारी कोई दोस्ती नहीं चाहिए। तुम्हारी वजह से मेरे अब्बा ने अपनी आंखें खो दी। तुम्हारी वजह से मेरी मां मर गई। चली जाओ यहां से। और फिर कभी अपनी मनहूस शक्ल मत दिखाना। नूरा के खूबसूरत चेहरे पर एक गहरी उदासी छा गई। उसकी झील जैसी आंखों में पानी भर आया। उसने बड़ी धीमी और दर्द भरी आवाज में कहा, आरिफ, इसमें मेरी कोई गलती नहीं थी। मैं तो तुम्हारे अब्बा की मदद करना चाहती थी। जरकान एक जालिम है। उसने सिर्फ तुम्हारे अब्बा को ही सजा नहीं दी। उसने मुझे भी अपनी नफरत की कैद में रखा हुआ है। मैं सालों से किसी ऐसे इंसान की तलाश में थी जो पाक दिल और हिम्मत वाला हो जो उसे खत्म कर सके। मैं तुम्हारे अब्बा की आंखें ठीक करना चाहती हूं। पर जब तक जरकान जिंदा है यह नामुमकिन है। नूरा ने बताया कि जरकान को सिर्फ एक इंसान ही खत्म कर सकता है। एक ऐसा इंसान जिसके दिल में नफरत या लालच नहीं बल्कि अपने परिवार के लिए सच्चा और निस्वार्थ प्यार हो और जिसके पास कोई आसमानी हिफाजत हो। बुजुर्ग बाबा का दिया हुआ ताबीज वही हिफाजत थी। आरिफ ने नूरा की आंखों में झांका। उसे वहां कोई फरेब कोई धोखा नजर नहीं आया। उसे सिर्फ सच्चाई, बेबसी और एक गहरी उदासी दिखाई दी। उसका गुस्सा धीरे-धीरे पिघलने लगा। उसे पहली बार एहसास हुआ कि नूरा भी जरकान की सताई हुई एक मजलूम है। उसने एक लंबा और गहरा फैसला किया। यह फैसला सिर्फ उसके अब्बा के लिए नहीं नूरा की आजादी के लिए और अपनी खुद की टूटी फूटी जिंदगी को एक मकसद देने के लिए था। ठीक है। आरिफ ने एक अटल आवाज में कहा, "मैं तैयार हूं। बताओ उस शैतान को कैसे खत्म करना है?" नूरा की आंखों में उम्मीद की एक नई चमक जागी। उसने आरिफ को झरकान का सबसे गहरा और सबसे पोशीदा राज बताया। जरकान अपनी सारी ताकत अपने गुरूर से हासिल करता है। नूरा ने समझाया उसे अपनी ताकतवर और खूबसूरत शक्ल से बेपनाह मोहब्बत है। वह खुद को कायनात की सबसे ताकतवर हस्ती समझता है। लेकिन उसका सबसे बड़ा डर यह है कि वह कभी किसी आईने में अपना अक्स नहीं देखता। उसे खौफ है कि आईने में उसे अपनी असलियत दिख जाएगी। एक बदसूरत, घिनौना और खोखला शैतान। उसकी सबसे बड़ी कमजोरी एक ऐसा आईना है जो झूठ नहीं बोलता जो सिर्फ बाहरी शक्ल नहीं रूह की हकीकत दिखाता है। अगर उसे किसी पाक और साफ दिल वाले इंसान के हाथ में रखे आईने में अपना असली अक्स दिख गया तो उसका गुरूर एक पल में टूट कर चखनाचूर हो जाएगा और वह पत्थर का बन जाएगा। यह सुनकर आरिफ को एक उम्मीद की किरण नजर आई। लेकिन ऐसा आईना कहां मिलेगा? नूरा ने उसकी आंखों में देखते हुए कहा, "ऐसा आईना किसी बाजार में नहीं मिलता। आरिफ, उसे महसूस किया जाता है। तुम्हारे अब्बा के लिए तुम्हारा निस्वार्थ प्यार, तुम्हारी हिम्मत और तुम्हारी नेकी ही वह आईना है। जब तुम बिना डरे पूरे यकीन के साथ उसका सामना करोगे, तो तुम्हारी आंखें ही उसके लिए आईना बन जाएंगी। उसे तुम्हारी आंखों में अपनी असलियत दिख जाएगी। उधर झरकान को अपने जासूसों से यह खबर लग चुकी थी कि आरिफ नूरा से मिल चुका है और उसे खत्म करने का मंसूबा बना रहा है। वह गुस्से से आग बबूला हो गया। एक मामूली इंसान की यह जुर्रत उसने आरिफ को सबक सिखाने की ठान ली। वह रात में भयानक रेत के तूफान भेजता जो उनकी झोपड़ी को उड़ाने पर आमादा होते। वह आरिफ को डरावने ख्वाब दिखाता जिनमें वह उसके अब्बा को तकलीफ देता। वह उनकी झोपड़ी के आसपास एक काले साए की तरह मनराता और डरावनी आवाजें निकालता। बाबा का दिया हुआ तावीज आरिफ की हिफाजत कर रहा था। लेकिन खौफ का माहौल हर गुजरते पल के साथ गहराता जा रहा था। एक रात झरकान ने अपनी सबसे घिनौनी और आखिरी चाल चली। उसने सलीम की आवाज में आरिफ को पुकारा। बेटा आरिफ मुझे बचाओ। आरिफ घबरा कर झोपड़ी से बाहर निकला तो देखा कि उसके अब्बा एक ऊंचे रेत के टीले की चोटी पर खड़े हैं और झरकान एक काले धुएं के रूप में उनके पीछे मनरा रहा है। अगर अपने बाप की जान प्यारी है तो वह ताबीज अपने गले से उतार कर फेंक दे। लड़के झरकान की आवाज पूरे रेगिस्तान में गूंजी। एक पल के लिए आरिफ का खून जम गया। उसका हाथ अपने आप गले में परे ताबीज की तरफ बढ़ा। उसे उतार फेंकना ही सबसे आसान रास्ता लग रहा था। लेकिन तभी उसके कानों में नूरा की आवाज गूंजी। शैतान का सामना सिर्फ तावीज से नहीं हिम्मत से किया जाता है। तुम्हारा प्यार ही वह आईना है। आरिफ ने अपनी आंखें बंद कर ली। एक गहरा सन्नाटा उसके भीतर उतर गया। इस सन्नाटे में उसे अपने अब्बा के साथ बिताया। हर पल याद आया। उनका वो हाथ जो अंधेरे में भी उसे टटोल लेता था। उनकी वो आवाज जो उसे दिन भर की थकान के बाद सुकून देती थी। उसे अपनी मरहूम मां का धुंधला सा चेहरा याद आया जिसके बारे में अब्बा कहानियां सुनाते थे। उसे अपना वो टूटा हुआ सपना याद आया जिसमें वह अपने अब्बा को अपनी बाइक पर बिठाकर शहर घुमा रहा था। यह सब यादें यह सारा प्यार उसकी रगों में एक लावा बनकर दौड़ने लगा। डर की जगह एक अजीब सी हिम्मत ने ले ली। यह लड़ाई अब सिर्फ उसकी या उसके अब्बा की नहीं थी। यह उसके वजूद की लड़ाई थी। आरिफ ने अपनी आंखें खोली। उसकी आंखों में अब डर का कोई निशान नहीं था। उनमें एक अटल निश्चय की फौलादी चमक थी। मैं यह ताबीज नहीं उतारूंगा। आरिफ ने शांत पर मजबूत आवाज में कहा। जरकान ठहाका मारकर हंसा। बेवकूफ लड़का तो फिर अपने बाप को मरते हुए देख। उसने अपना हाथ उठाया जिसकी उंगलियों से काले धुएं के शोले निकलने लगे। वह सलीम की तरफ एक जानलेवा हमला करने ही वाला था। रुको। आरिफ चिल्लाया। वह डरा नहीं, भागा नहीं। इसके बजाय वह धीरे-धीरे कदम दर कदम झरकान की तरफ बढ़ने लगा। रेगिस्तान की ठंडी हवा उसके बालों से खेल रही थी और छांद की रोशनी उसके चेहरे पर पड़ रही थी। उसे इस तरह अपनी ओर आता देख झरकान हैरान रह गया। मेरे करीब आने की हिम्मत मत करना। कि रे झरकान गरजा। लेकिन आरिफ चलता रहा। उसकी नजरें सीधे झरकान की आंखों में थी। वह उस शैतान में कोई खौफ नहीं देख रहा था। वह बस यह सोच रहा था तुम्हारी वजह से मेरे अब्बा ने दुनिया के रंग खो दिए। तुम्हारी वजह से मेरी मां गम में मर गई। तुम्हारी वजह से मेरी जिंदगी एक कैद बनकर रह गई। पर आज मैं तुम्हें तुम्हारी असलियत दिखाऊंगा। जैसे-जैसे आरिफ करीब आता गया, जरकान को एक अजीब सी बेचैनी होने लगी। उसे आरिफ की आंखों में कुछ ऐसा दिखा जो उसने सदियों में नहीं देखा था। उसे अपनी परछाई नजर आने लगी। जब आरिफ उससे बस कुछ ही कदमों की दूरी पर था, वह रुक गया। उसने अपनी पूरी हिम्मत, अपने पूरे प्यार और अपने पूरे वजूद की ताकत को अपनी आंखों में समेट लिया। वे आंखें अब सिर्फ आंखें नहीं थी। वे वो पाक आईना बन चुकी थी जिसके बारे में नूरा ने बताया था। जरकान ने जब उन आंखों में झांका तो उसे अपनी शानदार, ताकतवर शक्ल नजर नहीं आई। उसे एक घिनौना, बदसूरत, अंदर से खोखला और तन्हा शैतान दिखा। उसे अपनी वह असलियत दिखी जिससे वह सदियों से भाग रहा था। उसका गुरूर, उसकी ताकत का सोता एक पल में चखनाचूर हो गया। नहीं, यह मैं नहीं हो सकता। यह झूठ है। वह चीखा। उसकी चीख एक दर्दनाक कराहट में बदल गई। उसका जिस्म कांपने लगा। उसके पैरों से पत्थर बनना शुरू हुआ, जो धीरे-धीरे ऊपर की तरफ बढ़ने लगा। उसकी जलती हुई लाल आंखें बुझने लगी और उनमें सिर्फ खौफ और हैरत बाकी रह गई। आखिरी बार उसने आरिफ को देखा और फिर उसका पूरा जिस्म एक बदशक्ल पत्थर की मूरत में तब्दील हो गया। एक पल के लिए सब कुछ शांत हो गया। फिर एक तेज हवा का झोंका आया और वह पत्थर की मूरत रेत के जर्रों की तरह हवा में बिखर गई। झरकान का वजूद हमेशा के लिए उस रेगिस्तान की मिट्टी में दफन हो चुका था। सलीम जो अब तक बेहोश से थे लड़खड़ा कर नीचे गिरे। आरिफ दौड़ कर उनके पास गया और उन्हें अपनी बाहों में भर लिया। अब्बा अब्बा आप ठीक हैं। उसी पल नूरा वहां प्रकट हुई। उसके चेहरे पर सुकून और आजादी की एक ऐसी मुस्कान थी जो आरिफ ने पहले कभी नहीं देखी थी। आरिफ नूरा की आवाज में ममता और शुक्रगुजारी थी। तुमने कर दिखाया। तुमने ना सिर्फ अपने अब्बा को बल्कि मुझे भी हमेशा के लिए आजाद कर दिया। आरिफ ने नम आंखों से उसकी तरफ देखा। नूरा मेरे अब्बा की आंखें तुमने वादा किया था जरकान की लानत उसके वजूद से बंधी थी। नूरा ने कहा अब जब वह खत्म हो चुका है तो उसकी लगाई हर गांठ खोली जा सकती है। नूरा सलीम के पास बैठी। उसने अपनी हथेली में रात की ओस की कुछ बूंदे और चांद की रोशनी को समेटा। उसने कुछ पाक अल्फाज़ पढ़े और उस रोशनी को धीरे से सलीम की बंद आंखों पर रख दिया। एक हल्की सुनहरी चमक सलीम के चेहरे पर फैली और फिर शांत हो गई। अब्बा आरिफ ने धीरे से पुकारा। उसकी आवाज में उम्मीद और डर दोनों थे। अपनी आंखें खोलिए। सलीम ने धीरे-धीरे कांपते हुए अपनी पलकें उठाई। बरसों से बंद परी आंखों को खुलने में तकलीफ हो रही थी। पहले सब कुछ धुंधला था। फिर धीरे-धीरे आकृतियां साफ होने लगी। सबसे पहले उसे चांद दिखा। फिर रेत के टीले और फिर फिर उसे अपने सामने बैठा अपना बेटा दिखा। वह अब छोटा बच्चा नहीं था। वह एक मजबूत कंधों वाला नौजवान था जिसकी आंखों में आंसू थे। पर चेहरे पर एक फतेह की मुस्कान थी। आरिफ सलीम की आवाज किसी गहरी गुफा से आती महसूस हुई। मेरे बेटे तुम इतने बड़े हो गए। आरिफ अपने अब्बा के गले लगकर बच्चों की तरह रो पड़ा। सलीम ने कांपते हाथों से उसके चेहरे को छुआ। उसकी आंखों को, उसके बालों को जैसे यकीन करना चाहता हो कि यह सपना नहीं है। बाप बेटे सालों बाद एक दूसरे को सच में देख रहे थे। यह सिर्फ आंखों की रोशनी नहीं थी। यह उम्मीद की, जिंदगी की रोशनी थी जो वापस लौटी थी। उस रात के बाद रेगिस्तान में पहली बार सुबह की किरणें उम्मीद का पैगाम लेकर आई। सूरज की रोशनी रेत पर सोने की तरह चमक रही थी और हवा में एक अजीब सा सुकून था। सलीम ने बरसों बाद उगते हुए सूरज को देखा और उसकी आंखों से शुक्राने के आंसू बह निकले। दिन, हफ्ते और महीने बीत गए। रेगिस्तान वहीं था लेकिन अब वह वीरान और खौफनाक नहीं लगता था। वह उनका घर था। सलीम की आंखें लौट आने के बाद उसने फिर से खेतों में काम करना शुरू कर दिया। अब आरिफ अकेला नहीं था। बाप-ब मिलकर मेहनत करते। उनकी मेहनत से पथरीली जमीन में भी हरियाली की उम्मीद जागने लगी थी। नूरा अब उनके साथ ही रहती थी। वह हवा में गायब नहीं होती थी बल्कि उनके परिवार का एक अटूट हिस्सा बन गई थी। उसने अपनी जादुई ताकतों से उस बंजर जमीन में एक छोटा सा नखलिस्तान ओएसिस बना दिया जहां पानी का एक मीठा चश्मा फूट पड़ा और खजूर के कुछ पैर उगाए। उनकी छोटी सी झोपड़ी अब एक मुस्कुराता हुआ घर बन गई थी। नूरा के आने से आरिफ की जिंदगी पूरी तरह बदल गई थी। वह अब कॉलेज या बाइक के सपने नहीं देखता था। उसे अपनी दुनिया में ही जन्नत मिल गई थी। वह और नूरा साथ में रेत के टीलों पर घूमते। रात में तारों की कहानियां सुनते। नूरा उसे जिन्हों की दुनिया के किस्से सुनाती और आरिफ उसे इंसानी जज्बातों के बारे में बताता। एक शाम जब सूरज डूब रहा था और आसमान नारंगी रंग मेंंगा हुआ था। तीनों अपनी झोपड़ी के बाहर बैठे चाय पी रहे थे। सलीम ने आरिफ के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, बेटा मैं हमेशा डरता रहा। मैं जरकान के खौफ में छिप कर जीता रहा। लेकिन तुमने मुझे सिखाया कि सच्ची ताकत जिस्म में नहीं दिल की हिम्मत में होती है। तुम्हारे प्यार और हिम्मत ने उस शैतान को हराया जिसे बड़ी-बड़ी ताकतें नहीं हरा सकी। आरआईएफ ने नूरा की तरफ देखा जिसकी आंखों में उसके लिए बेशुमार प्यार और इज्जत थी। उसने अपने अब्बा को देखा जिनके चेहरे पर अब सुकून और खुशी थी। उसे एहसास हुआ कि जिंदगी की सबसे बड़ी दौलत किसी शहर की चकाचौंध में नहीं बल्कि अपनों के साथ और सुकून में है। रेगिस्तान का सन्नाटा अब उसे डराता नहीं था। बल्कि उसमें एक संगीत सुनाई देता था। वह हवा जो कभी उसे बर्फीली लगती थी, अब एक दोस्त की तरह उसके बालों को सहलाती थी। नूरा के आने से, उसके अब्बा की आंखों के लौट आने से और झरकान के खत्म हो जाने से आरिफ का रेगिस्तान सच में एक गुलजार नखलिस्तान बन चुका था।