रात गहरी और डरावनी थी। आसमान में काले बादल थे। बीच-बीच में बिजली कौंध जाती थी और दूर कहीं बादलों की गड़गड़ाहट सुनाई देती थी। सड़क कच्ची, टेढ़ी-मेढ़ी और घने पेड़ों से ढकी थी। दो शहर के नौजवान जतिन और संजय साथी एक नया खरीदा हुआ ट्रक लेकर मोहनपुर गांव की ओर जा रहे थे। दोनों ने कुछ ही हफ्ते पहले यह काम शुरू किया था। यह उनका पहला बड़ा ट्रिप था और उन्हें शहर से गांव तक सामान पहुंचाना था। संजय देख रहा है यहां तो एकदम घना जंगल है। हेडलाइट के आगे कुछ साफ नहीं दिख रहा। हां जतिन मैं भी यही सोच रहा हूं। पहली बार इस तरफ जा रहे हैं। सुना है यह मोहनपुर गांव बहुत पुराना है। लोग कहते हैं रात में यहां के रास्ते से नहीं निकलना चाहिए। ट्रक की हेडलाइट्स झाड़ियों और पेड़ों को रोशन कर रही हैं। हवा में हल्की सी ठंडक है। जतिन हल्का हंसते हुए डर काहे का संजय? काम तो करना ही है। ग्राहक इंतजार कर रहा होगा। बस गांव पहुंचे सामान उतारें और लौट चलें। इतना सोचने की जरूरत नहीं। भाई तुमको पता है मैं बचपन से ऐसे अंधेरे रास्तों से डरता हूं। यहां पेड़ ऐसे लग रहे हैं जैसे किसी ने हाथ फैला दिए हो। अरे कहानियां तो लोग बहुत बनाते हैं। असली में कुछ नहीं होता। हिम्मत रख। ट्रक धीरे-धीरे आगे बढ़ता है। पहियों के नीचे कंकड़ पत्थरों की आवाज गूंजती है। लगभग आधा घंटा चलने के बाद ट्रक के सामने एक छाया जैसी आकृति दिखाई देती है। हेडलाइट्स में एक सफेद दाढ़ी मूछ वाला बुजुर्ग लाठी लिए सड़क किनारे खड़ा दिखाई देता है। संजय घबरा कर जतिन जतिन देखो कोई खड़ा है रास्ते में। कोई बुजुर्ग लग रहा है। रात के वक्त यहां क्या कर रहा होगा? ट्रक रोकते ही बुजुर्ग धीरे-धीरे आगे आते हैं। दोनों उनका नाम पूछते हैं। उनका नाम होता है रघुनाथ। वह पूछते हैं कि बेटा मोहनपुर जा रहे हो? जी हां बाबा सामान पहुंचाना है। रात लंबी है। रास्ता और लंबा। सावधान रहना। हर चीज वैसी नहीं होती जैसी दिखती है। जतिन और संजय एक दूसरे को देखते हैं। भाई यह क्या बोल रहे हैं? मुझे तो डर लगने लगा। बाबा आप कहां जाएंगे? ट्रक में बैठ जाइए। छोड़ देंगे। नहीं बेटा मैं यहीं रहूंगा। मेरा रास्ता अलग है। लेकिन तुम सावधान रहना। मोहनपुर के ढाबे पर जाना तो पूछना मत। बस खाना खाकर निकल जाना। इतना कहकर बाबा धीरे-धीरे अंधेरे में ओझल हो जाते हैं। ट्रक फिर चल पड़ता है। संजय बार-बार पीछे देखता है। जतिन यह कैसा बाबा था? इतनी रात में जंगल में और कैसी बातें कर रहा था? पुराने लोग हैं शायद गांव के हो। लेकिन तू डर मत संजय अभी ढाबा आएगा तो कुछ खा लेंगे। लेकिन भाई उसने कहा मोहनपुर के ढाबे पर पूछना मत। यह भी कोई बात हुई। छोड़ ना अंधविश्वास होगा। बाहर पेड़ों के बीच से हवा सीटी बजाते हुए निकल रही है। कई घंटों भर चलने के बाद सड़क और सुनसान हो जाती है। दोनों के मोबाइल में नेटवर्क चला जाता है। भाई नेटवर्क भी चला गया। अगर कुछ हो गया तो कुछ नहीं होगा। तुम क्यों डर रहे हो? अचानक ट्रक के सामने एक बड़ा सा नीम का पेड़ गिरा पड़ा मिलता है। जतिन ब्रेक लगाता है। अरे बाप रे पेड़ गिरा पड़ा है रास्ते में। अब क्या करेंगे? तू घबरा मत यार। मैं साइड से ले लूंगा। जतिन ट्रक को साइड से निकल देता है। हवा ठंडी और अजीब सी गंध वाली है। चारों ओर सन्नाटा। पेड़ से बचकर ट्रक थोड़ा आगे बढ़ता है तो दूर एक पुराना ढाबा दिखाई देता है। भाई लगता है यही वो ढाबा है। चलो कुछ खा लेते हैं। बाबा ने कहा था पूछना मत पर भूख भी लगी है। चलो खाना खाकर जल्दी निकल जाएंगे। ट्रक ढाबे के बाहर रोक दिया जाता है। दोनों उतरते हैं। चारों ओर अजीब सी खामोशी है। रात और गहरी हो चुकी थी। दूर कहीं उल्लू की आवाज आती थी। हवा में बांसी खाना और गीली मिट्टी की मिलीजुली गंध है। भाई अजीब सी जगह है। कोई ग्राहक भी नहीं। इतना बड़ा ढाबा और बिल्कुल सन्नाटा। हां पर भूख लगी है। जल्दी खाते हैं और निकलते हैं। जतिन और संजय आपस में गहरी बातचीत कर ही रहे होते हैं कि तभी ढाबे का मालिक गुलाब सिंह मुस्कुराते हुए आता है और पूछता है आओ बेटा आओ। कहां से आ रहे हो? शहर से मोहनपुर तक सामान पहुंचा रहे हैं। कुछ खाने को मिलेगा? मिलेगा क्यों नहीं? यहां ट्रक वालों की सेवा ही तो है। अभी खाना लगवाता हूं तुम दोनों का। थोड़ी ही देर में गुलाब सिंह का नौकर किशन टेबल पर खाना सजा देता है। गुलाब सिंह पास ही खड़ा रहता है और मुस्कुराते हुए कहता है, लो बेटा अब आराम से खाना खा लो। बाकी बातें बाद में कर लेंगे। तुम दोनों पहले खाना शुरू करो। दोनों खाने में लग जाते हैं और कुछ ही मिनटों में अपना खाना खत्म कर देते हैं। तभी गुलाब सिंह मुस्कुराते हुए पूछता है, कैसा लगा बेटा खाना? अरे काका कैसा लगा यह मत पूछो। इतनी रात को पेट भर खाना मिल गया। बस वही बहुत बड़ी बात है। वैसे काका मेरे मन में एक सवाल है। क्या मैं पूछ सकता हूं? अरे हां बेटा क्यों नहीं? बिल्कुल पूछो। अभी तो रात के 3:00 बज रहे हैं और ढाबे पर कोई ग्राहक भी नहीं है। फिर भी आपने ढाबा खोला हुआ है। आप घर नहीं जाते क्या? क्या यहीं रहते हो? अरे बेटा मेरे लिए तो यही ढाबा ही सब कुछ है। मैं और मेरा नौकर हम दोनों यहीं रहते हैं। सामान वगैरह चाहिए होता है तो गांव या शहर से लाकर रख लेते हैं। रही बात ग्राहक ना होने की तो हमें वैसे भी रात को नींद नहीं आती। इसलिए ढाबा खुला ही छोड़ देते हैं। कभी-कभी तुम्हारे जैसे मुसाफिर रात को आ जाते हैं तो उन्हें खाना खिला देता हूं। पर यहां संजय को कुछ अजीब सा और अलग महसूस हो रहा था। वह अब तक चुपचाप दोनों की बातें सुन रहा था। लेकिन मन ही मन हल्की सी घबराहट उसके चेहरे पर झलकने लगी। तभी थोड़ी देर की खामोशी के बाद संजय बोल पड़ा। चल यार अब यहां से निकलते हैं। काफी रात हो चुकी है और हमें तो वापस शहर भी लौटना है। अच्छा चलो काका अब हम चलते हैं। वैसे बताइए खाने के कितने पैसे हुए? अरे बेटा पैसे और तुमसे। कहां जाने वाले हो यहां से? मेरे लिए तो तुम मेहमान हो। इतनी खातिरदारी करना हमारा फर्ज है। मुझे तुमसे कोई पैसे नहीं चाहिए। बस ऐसे ही आते जाते रहना। जतिन ने बार-बार पैसे देने का आग्रह किया। लेकिन गुलाब सिंह हंसते हुए हर बार टाल देता और किसी भी हालत में पैसे लेने को तैयार नहीं हुआ। उधर संजय के मन में कुछ और ही ख्याल उमड़ने लगे। वह सोच रहा था जंगल के इस सुनसान हिस्से में यह ढाबा आखिर आया कहां से? और सबसे अजीब तो यह है कि उसने हमसे पैसे भी नहीं लिए। कुछ तो गड़बड़ है। बहुत अजीब लग रहा है यह सब। दोनों ट्रक में बैठकर आगे की ओर निकल पड़े। रास्ता सुनसान था और रात गहरी होती जा रही थी। तभी संजय ने जतिन की ओर देखा और धीमी आवाज में बोला, जतिन तुझे उस आदमी में कुछ अजीब नहीं लगा। अरे यार उसमें क्या अजीब था। इंसान ही तो था वो भी और तुम भी ना हर बात में डर ढूंढ लेते हो। मुझे तो यह भी नहीं पता था कि तुम इतना डरते हो। अरे यार पर तू भी तो सोच कोई इतनी रात को ढाबा खुला रखे तो जाहिर है पैसे कमाने के लिए ही रखेगा। लेकिन इस आदमी ने तो पैसे लेने से ही मना कर दिया और जब पैसे देने की बात हो रही थी तब वह यह तक कह रहा था तुम यहां से कहां जाने वाले हो? यह सब सुनकर मुझे बड़ा अजीब लग रहा है। जो भी हो जतिन अब तुम ट्रक कहीं भी मत रोकना। अरे यार गांव के लोग ऐसे ही होते हैं। उनका दिल बड़ा होता है। हमें मेहमान समझकर उसने फ्री में खाना खिला दिया। इसमें क्या बुरा है? पर तू भी इतना कह रहा है तो चलो मान लेता हूं। अब ट्रक कहीं पर भी नहीं रोकूंगा। संजय अभी भी थोड़ा सा घबराया हुआ था। दोनों ट्रक में बैठे यूं ही बातें करते हुए आगे बढ़ रहे थे। ट्रक की हेडलाइटें सामने की झाड़ियों को रोशन कर रही थी। जिससे लगता था मानो घने जंगल में कोई अदृश्य परछाइयां रास्ता ताक रही हो। इंजन की घरघराहट और टायरों की चरमराहट उस सन्नाटे को तोड़ रही थी। लेकिन तभी धीरे-धीरे आसमान में काले बादल छा गए। हवा का रुख अचानक बदल गया और गहरा सन्नाटा पूरे माहौल पर हावी होने लगा। अचानक बिजली कड़की। गर्जना इतनी तेज थी कि दोनों एक दूसरे की ओर चौंक कर देखने लगे। अगले ही पल तेज बारिश शुरू हो गई। मोटी-मोटी बूंदे ट्रक की शीशे पर गिरने लगी और वाइपर उन्हें हटाने की जद्दोजहद में लगे थे। बारिश के साथ ही माहौल और भी भयानक हो गया। खूप अंधेरा, बिजली की चमक से झाड़ियों में पड़ती रहस्यमई छायां और सड़क पर छपछपाती बारिश। सब कुछ मिलकर एक डरावना एहसास पैदा कर रहे थे। संजय ने खिड़की से बाहर झांका। चारों ओर सिर्फ काला अंधेरा, बारिश और कभी-कभी बिजली की चमक। उसके चेहरे पर बेचैनी साफ झलक रही थी। संजय धीमी आवाज में जतिन, कुछ ठीक नहीं लग रहा। यह रास्ता पहले कभी इतना डरावना नहीं लगा था। जतिन स्टीयरिंग पकड़ते हुए हंसने की कोशिश करता है। अरे तू हर बात में डर ही ढूंढ लेता है। बस तू ज्यादा सोच मत। बारिश है, तूफान है। सब गुजर जाएगा। लेकिन जतिन की आवाज में भी एक हल्का सा डर साफ महसूस किया जा सकता था। अरे जतिन, अब हमें ट्रक रोक देना चाहिए। इसे ज्यादा आगे नहीं ले जाना ठीक होगा। बारिश कम होने का नाम ही नहीं ले रही। अगर हम आगे बढ़े तो ट्रक लेकर जंगल में फंस सकते हैं। अरे यार तू भी ना रामपुर अब ज्यादा दूर नहीं होना चाहिए। बस दो-ती किमी और चलेंगे तो हम रामपुर पहुंच ही जाएंगे। जतिन संजय की बात नहीं मानता और ट्रक आगे बढ़ा देता है। लेकिन कुछ ही दूरी पर ट्रक रुक जाता है। इंजन तो चालू था और पहिए घूमने की आवाज भी आ रही थी। पर ट्रक आगे नहीं बढ़ पा रहा था। क्योंकि वह गहरे कीचड़ में बुरी तरह फंस चुका था। संजय और जतिन एक दूसरे को देखते हैं और कहते हैं अरे भाई यह ट्रक अब क्यों रुक गया? पता नहीं संजय लेकिन मुझे लग रहा है कि ट्रक कीचड़ में फंस गया है। जतिन मैंने पहले ही कहा था कि ट्रक आगे मत बढ़ाना लेकिन तुमने मेरी बात मानी ही नहीं। अरे एक दूसरे को कोसने से क्या फायदा? चल नीचे उतर कर इसका कोई हल निकालते हैं। दोनों नीचे उतरते हैं। ट्रक का पहिया पूरी तरह कीचड़ में धस चुका था। जतिन को लग रहा था कि अब ट्रक का निकल पाना मुश्किल है। अरे भाई संजय मुझे नहीं लगता कि यह ट्रक अब यहां से निकल पाएगा। इसे निकालने के बस दो ही रास्ते हैं। या तो किसी ट्रैक्टर या जेसीबी की मदद लेनी पड़ेगी या फिर चारप लोग पीछे से जोर लगाएं तो शायद निकल जाए। वरना इस ट्रक को निकालना बहुत मुश्किल है। पर भाई यहां ट्रैक्टर और जेसीबी कहां से मिलेंगे? और इस जंगल में अभी इंसान भी कहां मिलने वाले हैं? हां तू सही कह रहा है। पर देख सामने कुछ रोशनी नजर आ रही है। जैसे वहां किसी का घर हो। हम वहां जाकर मदद मांग सकते हैं। शायद हमें कुछ सहारा मिल जाए। अरे नहीं भाई इतनी रात को किसी के घर जाना ठीक नहीं होगा और वो भी अपना ट्रक यहां छोड़कर। अरे संजय ट्रक को यहां से कौन निकाल कर ले जाएगा? वैसे भी यह कीचड़ में बुरी तरह फंसा हुआ है। किसी इंसान के बस की बात नहीं कि इसे अकेले निकाल सके। यहां बैठे रहने से कुछ होने वाला नहीं है। जतिन की बातें सुनकर संजय तन मने मन से घर की ओर जाने के लिए हामी भर देता है। दोनों धीरे-धीरे कदम बढ़ाते हुए उस घर के पास पहुंचते हैं। लेकिन संजय के मन में अभी भी डर बना हुआ था। घर के पास पहुंचते ही संजय कहता है, अरे जतिन, मुझे क्यों लग रहा है कि हमें इस घर में मदद मांगने नहीं जाना चाहिए। भला इतने गहरे जंगल में कोई कैसे रह सकता है? कुछ ठीक नहीं लग रहा मुझे। अरे यार संजय तूने तो मेरे सिर का दर्द बढ़ा दिया है। बार-बार ऐसी बातें क्यों करता है? चल मेरे साथ कुछ नहीं होगा ऐसा कुछ भी नहीं होता है। दोनों घर के दरवाजे के बाहर जाकर जोर से आवाज लगाते हैं। अंदर अंदर कोई है क्या? कुछ देर बाद ही दरवाजा धीरे से खुलता है। सामने एक लड़की खड़ी थी। उसे देखकर संजय के मन का डर कुछ हल्का हो गया। लड़की धीमी आवाज में पूछती है। अरे तुम लोग कौन हो? और इतनी रात को यहां क्या कर रहे हो? अरे हम लोग शहर से ट्रक पर आए थे रामपुर सामान पहुंचाने के लिए। लेकिन रास्ते में इतनी तेज बारिश हुई कि हमारा ट्रक कीचड़ में बुरी तरह फंस गया। अच्छा तो बताइए मैं आपकी क्या मदद कर सकती हूं? क्या अंदर कोई और है? मतलब आपका भाई या पिताजी अगर दो-तीन लोग और आप सब मिलकर हमारी मदद कर सकते हैं। दरअसल हमें ट्रक को कीचड़ से निकालना है। क्या आप हमारी इसमें कोई मदद कर पाएंगे? नहीं। मैं तो यहां अकेली ही रहती हूं। माफ कीजिएगा। लेकिन ट्रक निकालने में मैं आपकी मदद नहीं कर सकती। अगर किसी और तरह की मदद चाहिए हो तो बता दीजिए। तो क्या आप हमें यहां सुबह तक रुकने दे सकती हैं? बाहर बारिश बहुत तेज हो रही है। सुबह होते ही हम यहां से निकल जाएंगे। ठीक है। अगर सिर्फ आज रात की बात है और तुम लोग सचमुच मुसीबत में फंसे हो तो रुक सकते हो। तुम दोनों नीचे वाले कमरे में सो जाना। मैं ऊपर के कमरे में सो जाऊंगी। अरे बहन जी आपका बहुत-बहुत आभार। अरे इसमें आभार की क्या बात है? वैसे भी यह घर तुम जैसे लोगों के लिए ही तो बना रखा है। लड़की इतना कहकर अपने कमरे में सोने चली जाती है। संजय और जतिन नीचे वाले कमरे में आकर लेट जाते हैं। संजय थका हुआ और डरा हुआ था। उसे तुरंत नींद आ जाती है। लेकिन जतिन अब तक जाग रहा था। उसके मन में कुछ और ही चल रहा था। इसी बीच बाहर की बारिश धीरे-धीरे थमने लगी थी। जतिन मन ही मन चलो अच्छा हुआ। यह डरपोक संजय सो गया। अब ट्रक निकालने में मुझे आसानी होगी। यह साथ जाग रहा होता तो बार-बार कुछ ना कुछ देख लेने की बातें करता। कभी यह कभी वो। अब तो यहां सन्नाटा है और मैं अकेले ही गांव की ओर मदद मांगने जा सकता हूं। वैसे भी बारिश थम चुकी है। मुझे ट्रक निकालने के लिए किसी की मदद ढूंढने निकलना चाहिए। जतिन चुपके से वहां से निकलकर गांव की ओर बढ़ने लगता है। अंधेरे में कुछ दूरी तय करने के बाद उसे सामने सफेद कपड़ों में एक बुजुर्ग नजर आता है। जतिन धीरे-धीरे उसकी ओर बढ़ता है। बुजुर्ग व्यक्ति जतिन को अकेला देखकर ठहरता है और कहता है, अरे बेटा, इतनी गहरी रात को इस जंगल में क्या कर रहे हो? काका, मैं शहर से आया हूं। ट्रक लेकर रामपुर सामान पहुंचाना था लेकिन बारिश की वजह से ट्रक कीचड़ में बुरी तरह फंस गया है। इसी वजह से मैं गांव की ओर मदद मांगने जा रहा हूं। अच्छा तो क्या तुम अकेले ही ट्रक लेकर आए हो? नहीं नहीं काका मैं अकेला नहीं आया हूं। मेरा दोस्त भी साथ था लेकिन वो बहुत डर गया था। इसलिए मैंने उसे जंगल के बीच एक घर में छोड़ दिया। वहां एक लड़की रहती है। फिलहाल वो वहीं ठहरा है और मैं अकेला गांव में मदद मांगने जा रहा हूं। अरे बेटा यह कैसी बात कर रहे हो? जंगल के बीच कोई घर हो ही नहीं सकता। मैंने तो आज तक इस जंगल में कभी कोई घर नहीं देखा। अरे काका घर तो है। मैं अभी-अभी अपने दोस्त को वहीं छोड़कर आ रहा हूं। मुझे लगता है बेटा तुम इस जंगल के छलावे में फंस गए हो। छलावा वो क्या होता है काका? छलावा मतलब वही जो चीज असल में होती नहीं लेकिन दिखती है। इस जंगल की काली आत्माओं ने तुम्हें अपने वश में कर लिया है। यानी छलावे में तुम्हें वही दिखाई दे रहा है जो असल में है ही नहीं। अरे काका अब मैं क्या करूं? इस छलावे से बाहर कैसे निकलूं? मेरा दोस्त घर में फंसा हुआ है और मेरा ट्रक कीचड़ में अटका हुआ है। कृपया कोई रास्ता बताइए जिससे मैं खुद को अपने दोस्त और ट्रक सबको सुरक्षित बाहर निकाल सकूं। इससे बाहर निकलने का बस एक ही रास्ता है। कोई कितना भी प्यार से मीठी बातों में तुमसे कुछ भी कहे पर ध्यान रखना उनकी एक भी बात मत सुनना। अगर तुमने सुन ली तो इस छलावे से कभी बाहर नहीं निकल पाओगे और यहीं फंस जाओगे। सबसे पहले तुम आगे खेतों की ओर निकलो। वहां कई किसान अपने खेतों की रखवाली कर रहे होंगे। क्योंकि रात को जंगली जानवर फसल को नुकसान पहुंचाते हैं। तुम उनसे मदद मांगना। वह जरूर तुम्हारी सहायता करेंगे। उनके साथ मिलकर पहले ट्रक को बाहर निकालना। उसके बाद अपने दोस्त को ले आना। लेकिन याद रखना किसी की बातों पर ध्यान मत देना। सिर्फ बाहर निकलने पर ही ध्यान लगाना। जतिन को अब यकीन हो गया था कि उसके साथ कुछ ना कुछ गड़बड़ जरूर हो रही है। वह उस जगह से आगे बढ़ गया। पीछे छूटा बुजुर्ग धीरे-धीरे अंधेरे में गायब हो गया। जतिन चलते-चलते रास्ता तय करता रहा और कुछ ही देर में उसके सामने खेत नजर आने लगे। एक पेड़ के नीचे दो-तीन किसान बैठे हुए दिखे। जतिन उनके पास पहुंचा और कहा भाइयों मेरी मदद कर सकते हो क्या? हां बिल्कुल। बताइए आपको कैसी मदद चाहिए? और आप आधी रात को यहां इस तरह क्या कर रहे हैं? मैं शहर से रामपुर सामान पहुंचाने आया था। लेकिन बारिश की वजह से मेरा ट्रक कीचड़ में बुरी तरह फंस गया है। उसे बाहर निकालने के लिए ही मुझे आपकी मदद चाहिए। अच्छा भाइयों चलो इस शहरी मेहमान की मदद करते हैं। किसान उसकी मदद करने के लिए राजी हो जाते हैं और उसके साथ चल पड़ते हैं। थोड़ी ही देर में सब ट्रक तक पहुंच जाते हैं। जतिन ट्रक में बैठ जाता है और किसान पीछे से जोर लगाते हैं। कुछ ही धक्कों के बाद ट्रक कीचड़ से बाहर निकल आता है। जतिन उनका तहे दिल से आभार मानता है। किसान मुस्कुरा कर वापस अपने खेतों की ओर लौट जाते हैं। जतिन ट्रक लेकर पुष्कर साइड की तरफ बढ़ता है। जहां संजय उसका इंतजार कर रहा होता है। वहां पहुंचकर जतिन ट्रक साइड में लगाता है और अंदर जाकर धीरे से संजय को कहता है, अरे संजय उठो मैं ट्रक को कीचड़ से बाहर निकाल लाया हूं। इतना सुनते ही संजय उठ जाता है। लेकिन साथ ही कमरे में सो रही वो लड़की भी जाग जाती है। वह उनके कमरे में आकर कहती है, क्या आप लोगों को यहां कोई परेशानी हो रही है? क्यों अभी तक जाग रहे हो आप लोग? नहीं नहीं हमें कोई परेशानी नहीं है। हम तो बस ऐसे ही आपस में बातचीत कर रहे थे ए आप चिंता मत कीजिए और जाकर आराम से सो जाइए। वह लड़की अपने कमरे में लौट जाती है। उसके जाते ही जतिन संजय को साथ लेकर बाहर निकलता है और दोनों ट्रक में जाकर बैठ जाते हैं। तभी संजय पूछता है, जतिन, यह सब क्या हो रहा है? तुमने मुझे बीच में उठाकर क्यों जगा दिया? और देखो हमारे ट्रक के पीछे कुछ परछाइयां सी चल रही हैं। यह सब छलावा है। तू चुपचाप बैठ जा। मैं तुझे सब कुछ समझा दूंगा। काफी देर तक अजीब सी परछाइयां ट्रक का पीछा करती रही। लंबा सफर तय करने के बाद वे धीरे-धीरे पीछे छूटने लगी और अंततः गायब हो गई। इस तरह जतिन और संजय सुरक्षित रामपुर पहुंच गए। सुबह होते-होते वे अपना सामान लेकर गांव पहुंचे। उसके बाद उन्होंने वापसी की और फिर कभी उस रास्ते से नहीं गुजरे।