Tera Mera Safar - 15 in Hindi Love Stories by Payal Author books and stories PDF | तेरा मेरा सफ़र - 15

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तेरा मेरा सफ़र - 15


अगली सुबह होटल की बालकनी पर धूप हल्की थी, पर कियारा के भीतर कुछ अनजाना उजाला था।

वो चाहकर भी उस terrace वाले पल को भुला नहीं पा रही थी — अयान की वो बातें, वो नज़रे, जो जैसे कुछ कह रही थीं और फिर भी चुप थीं।

काम के बीच वो बार-बार वही ख्याल पकड़ लेती — “क्या सच में उन्होंने भी कुछ महसूस किया था? या मैंने ही ज़्यादा सोचा?”हर बार जब अयान उसके पास आते, उसकी नब्ज़ जैसे रुक जाती।उस दिन दोपहर को hotel

management team का outdoor lunch था।हवा में हँसी थी, पर दोनों की आँखों में वही अधूरी बातें।

कियारा कुछ सहेलियों के साथ बैठी थी, और अयान दूर से casually उन्हें देख रहे थे।उनकी नज़रों में कुछ बदल चुका था — अब वो नज़रे सिर्फ़ admiration नहीं,

एक connection की तलाश में थीं।अचानक कियारा उठी और पास के table से पानी लेने गई।अयान भी वहीं खड़े थे।

दोनों आमने-सामने आए — और बस, कुछ पल के लिए दुनिया थम-सी गई।“आप… कुछ कहने वाले थे?” उसने पूछा।

अयान ने हल्का मुस्कुराते हुए कहा, “कभी-कभी कहना जरूरी नहीं होता… बस महसूस करना काफ़ी होता है।

”कियारा ने हौले से कहा, “पर कुछ एहसास अगर कहे न जाएँ… तो अधूरे रह जाते हैं।”अयान की आँखों में एक हल्की सी झिलमिलाहट थी।

“शायद अधूरापन ही कुछ रिश्तों की पहचान होता है,” वो बोले — पर उनके लहजे में वो यकीन नहीं था, जो शब्दों में दिखता था।

शाम को जब सब लौटे, तो होटल के लॉबी में हल्की बारिश होने लगी।कियारा खिड़की के पास खड़ी थी — बारिश की बूँदें शीशे पर गिर रहीं थीं, और दिल में वही पुराना सवाल गूंज रहा था।

वो सोच रही थी — “क्यों लगता है कि उसकी हर बात अब मुझसे जुड़ गई है? क्या मैं सच में उससे…”वो बात अधूरी ही रह गई,

क्योंकि तभी पीछे से अयान की आवाज़ आई —“बारिश हमेशा कुछ याद दिला जाती है, है ना?”कियारा मुस्कुराई, “या कुछ एहसासों को ज़िंदा कर जाती है।

”अयान पास आए — थोड़ी दूरी पर रुककर बोले,“अगर मैं कहूँ कि मुझे अब silence में भी तुम्हारी आवाज़ सुनाई देती है, तो?”कियारा की साँसें थम-सी गईं।

वो कुछ कहना चाहती थी, पर लफ़्ज़ साथ नहीं दे रहे थे।सिर्फ़ उसकी आँखों में वो सब था — जो शायद अयान ने पहली बार सच में पढ़ा।

वो पल, वो खामोशी, और वो रूह तक उतर जाने वाला एहसास…जैसे दोनों अब एक अनकहे इज़हार की दहलीज़ पर खड़े हों।

रात को कियारा ने अपनी डायरी में लिखा —


 “कुछ खामोशियाँ अब डर नहीं लगतीं,

क्योंकि उनमें उसका सुकून बस गया है।

पहले जहाँ खामोश पल मुझे बेचैन कर देते थे,

आज वही पल सुकून देने लगे हैं — शायद क्योंकि अब उनमें ‘वो’ है।

हर नज़र जो ठहरती है, अब एक कहानी कहती है।

हर मुस्कान जो अनकही रह जाती है, अब किसी जवाब सी लगती है।

शायद ये रिश्ता नाम नहीं माँगता,

क्योंकि नाम देने से पहले ही ये दिलों में मुकम्मल हो चुका है।

कभी-कभी मोहब्बत को अल्फ़ाज़ नहीं चाहिए होते,

बस एक नज़र चाहिए जो बिना कहे सब समझ ले,

और एक दिल चाहिए जो उस नज़र की ख़ामोशी पढ़ सके।

शायद अब मैं डरती नहीं… क्योंकि उसके एहसास ने मेरी तन्हाई को भी अपना घर बना लिया है।”


To Be Continued…

क्या अब ये खामोश एहसास शब्दों का रूप लेंगे,

या वक्त इन्हें फिर किसी मोड़ पर अधूरा छोड़ देगा

?