# रूठी चांदनी
**लेखक: विजय शर्मा एरी**
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## प्रथम भाग: मुलाकात
शहर की भागदौड़ भरी जिंदगी में अर्जुन एक साधारण सॉफ्टवेयर इंजीनियर था। उसका जीवन ऑफिस, घर और कभी-कभार दोस्तों के साथ घूमने तक सीमित था। लेकिन उस शाम कुछ अलग था। ऑफिस से लौटते समय वह अपने पुराने कॉलेज के पास से गुजर रहा था, जहाँ यादों की एक पूरी दुनिया बसी थी।
तभी उसकी नजर एक लड़की पर पड़ी जो कॉलेज गेट के पास खड़ी थी। सफेद कुर्ती और जींस में वह इतनी सहज लग रही थी कि अर्जुन का दिल धड़क उठा। उसके चेहरे पर एक अजीब सी मासूमियत थी, जैसे चांदनी रात में चांद की वह कोमल रोशनी जो सबको छू जाती है पर किसी को जला नहीं सकती।
"एक्सक्यूज मी," अर्जुन ने हिम्मत जुटाकर कहा। "क्या आप किसी का इंतजार कर रही हैं?"
लड़की ने मुस्कुराते हुए कहा, "हाँ, मेरी सहेली को आना था, पर शायद वो भूल गई। आप?"
"मैं यहाँ का पुराना स्टूडेंट हूँ। बस यादें ताजा करने चला आया।"
"ओह! तो आप भी नॉस्टैल्जिक टाइप के हैं," उसने हंसते हुए कहा। "मेरा नाम चांदनी है।"
"अर्जुन," उसने हाथ मिलाते हुए कहा। "वैसे नाम तो बिल्कुल आप पर फिट बैठता है।"
उस दिन के बाद से अर्जुन और चांदनी की मुलाकातें बढ़ती गईं। कभी कॉफी शॉप पर, कभी पार्क में, कभी बुक स्टोर में। चांदनी आर्ट टीचर थी और उसे पेंटिंग का बेहद शौक था। अर्जुन को उसकी बातें सुनना, उसकी हंसी देखना, उसके सपनों के बारे में जानना अच्छा लगने लगा।
## द्वितीय भाग: प्यार का रंग
तीन महीने बीत गए। अर्जुन को एहसास हो चुका था कि वह चांदनी से प्यार करने लगा है। उसकी हर बात, हर अदा, हर मुस्कान उसके दिल में बस गई थी। एक शाम, समुद्र किनारे बैठे हुए, अर्जुन ने हिम्मत करके अपने दिल की बात कह दी।
"चांदनी, मुझे नहीं पता कि यह कहना सही है या गलत, पर मैं तुमसे प्यार करता हूँ। तुम्हारे बिना अब मेरा कोई दिन पूरा नहीं होता।"
चांदनी ने कुछ पल उसकी आँखों में देखा, फिर धीरे से बोली, "मुझे भी तुमसे प्यार है, अर्जुन। पर मुझे डर लगता है।"
"किस बात का डर?"
"इस बात का कि कहीं तुम बदल न जाओ। लोग कहते हैं न, प्यार मिल जाने के बाद लोग बदल जाते हैं।"
अर्जुन ने उसका हाथ थामते हुए कहा, "मैं वादा करता हूँ, मैं कभी नहीं बदलूंगा। तुम मेरे लिए हमेशा वैसी ही रहोगी, जैसी आज हो।"
उस दिन के बाद दोनों की जिंदगी में खुशियों के रंग भर गए। वे साथ समय बिताते, सपने बुनते, और एक दूसरे के लिए जीते। चांदनी अर्जुन के लिए पेंटिंग बनाती, और अर्जुन उसके लिए उसकी पसंद के गाने सुनाता।
## तृतीय भाग: दरार
लेकिन समय के साथ कुछ बदलने लगा। अर्जुन की नौकरी में प्रमोशन मिला और उसकी जिम्मेदारियाँ बढ़ गईं। अब वह पहले की तरह समय नहीं दे पाता था। कभी-कभी चांदनी का फोन भी नहीं उठा पाता। चांदनी समझने की कोशिश करती, पर धीरे-धीरे उसके मन में शिकायतें जमा होने लगीं।
एक दिन चांदनी ने कहा, "अर्जुन, क्या तुम्हें याद है आखिरी बार हमने कब साथ में वक्त बिताया था?"
"मुझे पता है चांदनी, मैं बिजी हूँ। पर यह सब तुम्हारे लिए ही तो कर रहा हूँ।"
"मेरे लिए?" चांदनी की आवाज में दर्द था। "मुझे तुम्हारी सक्सेस नहीं, तुम्हारा वक्त चाहिए। वो अर्जुन चाहिए जो मुझसे घंटों बातें करता था।"
"चांदनी, प्लीज समझो। मैं तुम्हें एक अच्छी जिंदगी देना चाहता हूँ।"
"अर्जुन, अच्छी जिंदगी पैसे से नहीं, साथ से बनती है।"
लेकिन अर्जुन अपनी बात पर अड़ा रहा। उसे लगता था कि वह सही कर रहा है। धीरे-धीरे दोनों के बीच बातचीत कम होती गई। फोन कॉल्स औपचारिक हो गईं। मुलाकातें महीने में एक-दो बार रह गईं।
## चतुर्थ भाग: रूठना
छह महीने और बीत गए। अर्जुन अपने करियर में व्यस्त था और चांदनी अपने दर्द में खोई हुई। एक दिन चांदनी ने अर्जुन को एक पेंटिंग भेजी। उसमें एक लड़की थी जो चांद की तरफ देख रही थी, और चांद धीरे-धीरे गायब हो रहा था।
अर्जुन ने पेंटिंग देखी पर समझ नहीं पाया। उसने चांदनी को फोन किया, पर चांदनी ने फोन नहीं उठाया। उसने मैसेज किया, पर रिप्लाई नहीं आई। तीन दिन बाद चांदनी का एक मैसेज आया:
"अर्जुन, मुझे वक्त चाहिए। मुझे सोचना है कि हमारे रिश्ते में अब बचा क्या है। तुमने वादा किया था कि तुम नहीं बदलोगे, पर तुम बदल गए। वो अर्जुन कहाँ है जो मेरी हर छोटी खुशी का ध्यान रखता था? अब तो तुम्हें मेरी जरूरत भी याद नहीं रहती।"
अर्जुन का दिल डूब गया। उसे एहसास हुआ कि उसने क्या गलती की है। उसने चांदनी को मनाने की बहुत कोशिश की, पर चांदनी ने जवाब नहीं दिया। वह सच में रूठ गई थी।
## पंचम भाग: एहसास
अगले हफ्ते अर्जुन ने ऑफिस से छुट्टी ली और चांदनी के घर पहुंच गया। चांदनी की माँ ने दरवाजा खोला।
"आंटी, चांदनी घर पर है?"
"हाँ बेटा, पर वो तुमसे मिलना नहीं चाहती।"
"प्लीज आंटी, बस एक बार। मुझे अपनी गलती का एहसास हो गया है।"
चांदनी की माँ ने उसे अंदर बुलाया। चांदनी अपने कमरे में थी। अर्जुन ने धीरे से दरवाजा खटखटाया।
"चांदनी, प्लीज एक बार बात तो सुनो।"
चांदनी ने दरवाजा खोला। उसकी आँखें लाल थीं, जैसे बहुत रोई हो।
"क्या बात करनी है अर्जुन? तुम्हें तो अपनी सक्सेस से ही फुर्सत नहीं।"
"मुझे पता है चांदनी, मैंने गलती की। मैं अपने करियर में इतना खो गया कि तुम्हें भूल गया। पर अब मुझे एहसास हो गया है कि तुम्हारे बिना मेरी कोई सक्सेस, कोई खुशी अधूरी है।"
"अर्जुन, मुझे सिर्फ शब्द नहीं चाहिए। मुझे तुम्हारा वक्त चाहिए, तुम्हारा प्यार चाहिए।"
अर्जुन ने एक बैग से कुछ निकाला। वो उसकी पुरानी डायरी थी जिसमें उसने चांदनी के लिए हर दिन कुछ न कुछ लिखा था।
"देखो चांदनी, मैंने तुम्हें कभी भुलाया नहीं। बस दिखा नहीं पाया। पर अब मैं वादा करता हूँ, मैं अपनी प्राथमिकताएं बदलूंगा। तुम मेरे लिए सबसे पहले हो।"
चांदनी की आँखों में आँसू आ गए। "अर्जुन, मुझे डर लगता है कि कहीं फिर से वही न हो जाए।"
"नहीं होगा चांदनी। इस बार मैं पक्का वादा करता हूँ। मैं अपनी जॉब में बैलेंस बनाऊंगा। तुम्हारे बिना मेरी जिंदगी अधूरी है।"
## अंतिम भाग: मनाना
अगले कुछ हफ्तों में अर्जुन ने सच में अपनी जिंदगी में बदलाव किए। उसने अपने बॉस से बात करके काम के घंटे कम कराए। वह रोज चांदनी को कॉल करता, उससे मिलने जाता। धीरे-धीरे चांदनी का दिल पिघलने लगा।
एक शाम अर्जुन चांदनी को उसी समुद्र किनारे ले गया जहाँ उसने पहली बार अपना प्यार जताया था। उसने सैंड पर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा था, "I am sorry, Chandni. I love you."
चांदनी देखकर मुस्कुरा दी। "अर्जुन, तुम पागल हो।"
"तुम्हारे लिए पागल हूँ," अर्जुन ने कहा। "चांदनी, मुझे एक और मौका दो। मैं वादा करता हूँ, इस बार मैं तुम्हें कभी निराश नहीं करूंगा।"
चांदनी ने उसकी आँखों में देखा। वहाँ सच्चाई थी, पछतावा था, और ढेर सारा प्यार था।
"ठीक है अर्जुन, आखिरी मौका। पर अगर इस बार तुमने मुझे निराश किया, तो मैं फिर कभी नहीं लौटूंगी।"
अर्जुन ने उसे गले लगा लिया। "मैं तुम्हें निराश नहीं करूंगा, वादा रहा।"
उस दिन के बाद दोनों ने मिलकर अपने रिश्ते को फिर से संवारा। अर्जुन ने सीखा कि सफलता सिर्फ करियर में नहीं, बल्कि रिश्तों में भी होती है। और चांदनी ने सीखा कि कभी-कभी लोगों को दूसरा मौका देना भी जरूरी होता है।
आज दोनों साथ हैं, खुश हैं। अर्जुन अब अपने काम और प्यार में बैलेंस बनाए रखता है। और चांदनी? वह अब भी वैसी ही है - चांदनी की तरह कोमल, प्यारी और रोशन करने वाली।
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**समाप्त**
*कहानी का सार: प्यार में सिर्फ शब्द नहीं, वक्त और एहसास भी जरूरी होता है। सफलता की अंधी दौड़ में रिश्तों को भूल जाना आसान है, पर उन्हें संभालना ही असली सफलता है।*