Unique journey in Hindi Adventure Stories by Vijay Erry books and stories PDF | अनोखी यात्रा

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अनोखी यात्रा

अनोखी यात्रा 

**लेखक: विजय शर्मा एरी**

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सुबह की पहली किरण जब गौरव की खिड़की से होकर उसके कमरे में दाखिल हुई, तो वह पहले ही जाग चुका था। आज का दिन उसके जीवन का सबसे महत्वपूर्ण दिन था। आज वह उस यात्रा पर निकलने वाला था, जिसे हर कोई नामुमकिन बताता था।

गौरव एक साधारण परिवार से था। पिता एक छोटी सी दुकान चलाते थे और माँ गृहिणी थी। लेकिन गौरव के सपने साधारण नहीं थे। वह हिमालय की सबसे खतरनाक चोटी 'कालरात्रि' पर चढ़ना चाहता था - वह चोटी जिस पर अब तक केवल तीन लोग ही चढ़ पाए थे, और दो वापस नहीं लौटे थे।

"गौरव, यह पागलपन है," उसके पिता ने कहा था जब उसने पहली बार अपने सपने के बारे में बताया था। "हमारे पास इतने पैसे नहीं हैं, और तुम्हारे पास न तो अनुभव है, न ही प्रशिक्षण।"

लेकिन गौरव ने हार नहीं मानी। उसने तीन साल तक दिन में काम किया और रात में पर्वतारोहण के बारे में पढ़ा। उसने हर रुपया बचाया। सुबह चार बजे उठकर वह दस किलोमीटर दौड़ता था। वजन उठाता था। योग करता था। अपने शरीर को उस नामुमकिन सफर के लिए तैयार कर रहा था।

आखिरकार वह दिन आ गया।

बेस कैंप पर पहुंचते ही गौरव को एहसास हुआ कि यह सफर कितना कठिन होने वाला है। बर्फीली हवाएं इतनी तेज थीं कि उसका तंबू हिल रहा था। तापमान माइनस बीस डिग्री था, और यह तो बस शुरुआत थी।

"तुम अकेले जा रहे हो?" एक अनुभवी पर्वतारोही ने पूछा। उसका नाम विक्रम था, और वह पिछले पंद्रह साल से पहाड़ों पर चढ़ रहा था।

"हाँ," गौरव ने जवाब दिया।

विक्रम ने सिर हिलाया। "कालरात्रि पर अकेले जाना आत्महत्या है, भाई। वहाँ मौसम एक पल में बदल जाता है। बर्फ के तूफान आते हैं जो तुम्हें दफन कर सकते हैं। और अगर तुम गिर गए तो तुम्हें बचाने वाला कोई नहीं होगा।"

"मुझे पता है," गौरव ने कहा। "लेकिन मैंने तीन साल इस दिन के लिए तैयारी की है। मैं वापस नहीं लौट सकता।"

पहला दिन अपेक्षाकृत आसान था। गौरव ने धीरे-धीरे चढ़ाई की, अपनी सांस को नियंत्रित रखते हुए। उसने छोटे-छोटे पड़ाव बनाए, पानी पिया, और अपने शरीर को ऊंचाई के साथ तालमेल बिठाने का समय दिया।

दूसरे दिन चुनौतियां शुरू हो गईं। एक संकरी चट्टान पर से गुजरते समय उसका पैर फिसला। एक पल के लिए उसे लगा कि यह उसका अंत है। लेकिन उसकी रस्सी ने उसे पकड़ लिया। दिल जोर से धड़क रहा था, हाथ कांप रहे थे। लेकिन उसने खुद को संभाला और आगे बढ़ता रहा।

तीसरी रात सबसे भयावह थी। एक बर्फीला तूफान आया जो इतना भयंकर था कि गौरव को अपना हाथ भी नहीं दिख रहा था। उसने एक छोटी गुफा में शरण ली। ठंड इतनी थी कि उसके होंठ नीले पड़ गए थे। उसने अपने बैग से मोबाइल निकाला - कोई सिग्नल नहीं था। वह पूरी तरह से अकेला था।

उस रात, जब मौत इतनी करीब लग रही थी, गौरव ने अपने परिवार के बारे में सोचा। माँ की चिंतित आँखें, पिता का कठोर लेकिन प्यार भरा चेहरा, छोटी बहन की मासूम हंसी। क्या यह सब इस सफर के लायक था?

"नहीं," उसने खुद से कहा। "मैं यहाँ अपनी मौत के लिए नहीं आया हूँ। मैं यहाँ जिंदगी के लिए आया हूँ। यह साबित करने के लिए आया हूँ कि नामुमकिन कुछ नहीं होता।"

चौथे दिन सुबह जब तूफान थमा, तो गौरव ने फिर से चढ़ाई शुरू की। उसके हाथ-पैर सुन्न हो चुके थे, लेकिन उसका इरादा मजबूत था। हर कदम एक संघर्ष था, हर सांस एक लड़ाई।

और फिर वह पल आया।

पांचवें दिन की दोपहर, जब सूरज अपनी पूरी चमक में था, गौरव ने कालरात्रि की चोटी पर अपना कदम रखा। वह चौथा व्यक्ति था जो यहाँ तक पहुंचा था, और पहला जो अकेले आया था।

उसने चारों ओर देखा। बादल उसके नीचे थे। पूरी दुनिया उसके पैरों में थी। आंसू उसकी आंखों में आ गए - खुशी के आंसू, गर्व के आंसू।

उसने अपने बैग से एक छोटा सा भारतीय झंडा निकाला और उसे चोटी पर गाड़ दिया। फिर उसने एक तस्वीर खींची - वह तस्वीर जो बाद में पूरे देश में वायरल हुई।

लेकिन गौरव जानता था कि असली चुनौती अभी बाकी थी। ऊपर जाना आधा काम है, वापस आना उतना ही महत्वपूर्ण है।

उतरते समय उसे फिर से कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा। एक बार उसका ऑक्सीजन सिलिंडर खाली हो गया और उसे बिना ऑक्सीजन के दो घंटे चलना पड़ा। एक बार एक हिमस्खलन इतने पास से गुजरा कि उसे लगा अब सब खत्म हो गया। लेकिन हर बार किस्मत ने उसका साथ दिया।

सातवें दिन, जब गौरव बेस कैंप पर पहुंचा, तो वहां मौजूद सभी पर्वतारोहियों ने उसे तालियों से नवाजा। विक्रम ने उसे गले लगा लिया।

"तुमने वह कर दिखाया जो मैं कभी नहीं कर सका," उसने कहा। "तुमने साबित कर दिया कि इरादे मजबूत हों तो कुछ भी नामुमकिन नहीं है।"

जब गौरव घर पहुंचा, तो पूरे मोहल्ले ने उसका स्वागत किया। उसके पिता की आंखों में गर्व था, माँ रो रही थी, और छोटी बहन उसके गले लगी हुई थी।

"तुमने हमें गलत साबित कर दिया, बेटा," पिता ने कहा। "मुझे माफ कर दो कि मैंने तुम पर भरोसा नहीं किया।"

"आपने भरोसा नहीं किया इसलिए मुझे खुद पर और ज्यादा भरोसा करना पड़ा, पापा," गौरव ने मुस्कुराते हुए कहा।

उसके बाद के महीनों में गौरव एक प्रेरणा बन गया। स्कूलों में, कॉलेजों में, उसे बुलाया जाने लगा। वह युवाओं को बताता कि सपने देखना जरूरी है, लेकिन उन सपनों के लिए मेहनत करना और भी जरूरी है।

"नामुमकिन सिर्फ एक शब्द है," वह कहता। "असली नामुमकिन तो तब होता है जब आप कोशिश करना ही बंद कर दें। मैं कोई सुपरमैन नहीं हूँ। मैं आप सबकी तरह ही एक साधारण इंसान हूँ। फर्क बस इतना है कि मैंने अपने डर से बड़े अपने सपने को माना।"

आज, दो साल बाद, गौरव एक सफल पर्वतारोहण प्रशिक्षक है। उसने एक संस्था खोली है जहां वह गरीब बच्चों को मुफ्त में पर्वतारोहण सिखाता है। उसका मानना है कि हर बच्चे को अपने सपने पूरे करने का मौका मिलना चाहिए, चाहे उसकी आर्थिक स्थिति कैसी भी हो।

कालरात्रि की वह तस्वीर अब भी उसके कमरे में टंगी है - एक याद के तौर पर कि जब इरादे बुलंद हों, तो रास्ते खुद बन जाते हैं। नामुमकिन सफर भी मुमकिन हो जाता है।

गौरव की कहानी हमें सिखाती है कि जीवन में सबसे बड़ी बाधाएं हमारे मन में होती हैं। जब हम अपने डर को, अपनी सीमाओं को पार कर लेते हैं, तो हम खुद के लिए नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक मिसाल बन जाते हैं।

क्योंकि अंत में, यह सफर सिर्फ एक पहाड़ पर चढ़ने का नहीं था। यह खुद के भीतर के उस पहाड़ पर चढ़ने का सफर था, जो कहता है - "तुम नहीं कर सकते।" और गौरव ने साबित कर दिया - "मैं कर सकता हूँ। हम सब कर सकते हैं।"

**समाप्त**

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*© विजय शर्मा एरी*