1. पहली रात
दिल्ली की ठंडी सर्दियों वाली रात थी।
सड़कें कोहरे में लिपटी थीं और हवा में अदृश्य सी नमी थी।
नेहा ने बस से उतरकर अपने कोट का कॉलर ठीक किया और ठंडी साँस छोड़ी।
शहर में उसकी पहली सुबह एक इंटरव्यू की थी, लेकिन रात कहीं रुकना ज़रूरी था।
रिसेप्शन पर पुराना लकड़ी का बोर्ड झूल रहा था —
Hotel Sapphire Residency.
नीचे लिखा था — "Since 1978."
अंदर जाते ही उसे सीलन और पुरानी परफ्यूम की मिली-जुली गंध ने घेर लिया।
रिसेप्शनिस्ट — लगभग पचास के आसपास का आदमी — बिना मुस्कुराए बोला,
“सिंगल रूम चाहिए, मैडम?”
नेहा ने सिर हिलाया।
“कमरा 203 खाली है,” उसने चाबी थमाते हुए कहा, “पर... लोग ज़्यादा दिन वहाँ नहीं रुकते।”
नेहा ने हँसकर जवाब दिया — “मैं भी बस एक रात रहूँगी।”
उसने सोचा, शायद पुराने होटल के लिए यह सामान्य बात हो।
वो सीढ़ियाँ चढ़ते हुए नहीं जानती थी, ऊपर जाते हर कदम की चरमराहट उसकी रात को बदलने वाली थी।
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2. पुरानी दीवारें
कमरे में दाख़िल होते ही ठंडी हवा का झोंका उसके चेहरे से टकराया।
खिड़की बंद थी, फिर भी परदे हल्के से हिल रहे थे।
बिस्तर पर सफ़ेद चादरें बिछी थीं, लेकिन उन पर पुरानी धूल का हल्का निशान था।
टेबल पर एक पुरानी डायरी रखी थी —
कवर पर उभरे सुनहरे अक्षरों में लिखा था:
"Aarav Mehta, 2016"
नेहा ने जिज्ञासा से डायरी खोली।
पहले पन्ने पर स्याही हल्की फैल चुकी थी, पर शब्द साफ़ थे:
> “अगर ये डायरी किसी के हाथ लगे,
तो कृपया 203 से बाहर मत निकलना —
रात के 2 बजे तक नहीं।”
नेहा मुस्कुराई — “कितनी फ़िल्मी बातें! शायद किसी की मज़ाक वाली कहानी होगी।”
पर उसके अंदर हल्की बेचैनी सी जागी।
उसने सोचा, ‘चलो, थोड़ा पढ़ ही लेती हूँ।’
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3. आरव की कहानी
आरव मेहता — एक पत्रकार था, और शायद जिज्ञासु भी।
डायरी में लिखा था कि वो यहाँ एक मर्डर केस की रिपोर्टिंग के लिए रुका था —
तीन साल पहले, इसी कमरे में एक लड़की की मौत हुई थी।
लोग कहते थे, उसने खुदकुशी की, पर आरव को उस पर शक था।
हर रात उसे कुछ आवाज़ें सुनाई देती थीं —
> “दीवारों से फुसफुसाहट, आईने में परछाईं,
और दरवाज़े पर दस्तक…”
एक पन्ने पर उसने लिखा था:
> “मैं यहाँ सच्चाई जानने आया था,
लेकिन शायद सच्चाई मुझसे ज़्यादा जिंदा है।”
और आख़िरी एंट्री में लिखा था:
> “अगर मैं कल सुबह ज़िंदा ना रहूँ,
तो समझना — वो मुझे लेने आ गई।”
नेहा के हाथ ठंडे पड़ गए।
उसने घड़ी देखी — 1:47 AM।
बाहर हवा चल रही थी, पर खिड़की अब भी बंद थी।
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4. दस्तक
“ठक... ठक...”
हल्की दस्तक हुई।
नेहा ने कान लगाया — कोई था।
उसने दरवाज़ा खोला — बाहर कोई नहीं।
सन्नाटा।
वो वापस मुड़ी — तो देखा डायरी ज़मीन पर पड़ी है।
पन्ने अपने आप पलट रहे थे, मानो किसी अदृश्य हाथ ने उसे छुआ हो।
पन्ना वहीं थमा जहाँ लिखा था:
> “अब तुम्हारी बारी है।”
नेहा का दिल ज़ोर से धड़कने लगा।
उसने तुरंत लाइट ऑन करनी चाही — पर अचानक बिजली चली गई।
पूरा कमरा अंधेरे में डूब गया।
सिर्फ़ बाहर से हवा की हू-हू और किसी के कदमों की धीमी आहट...
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5. आईने में चेहरा
नेहा ने काँपते हाथों से मोबाइल की टॉर्च ऑन की।
टॉर्च की हल्की रोशनी आईने पर पड़ी — और वह जम गई।
आईने पर धुंधला चेहरा उभर रहा था —
एक लड़की का।
बाल भीगे हुए, आँखें खाली, होंठ नीले, और चेहरा... बस शून्य।
आईने के नीचे किसी ने खुरचकर लिखा था — “203 से निकल जाओ... वरना देर हो जाएगी।”
नेहा ने काँपते हाथों से दरवाज़ा खोलने की कोशिश की —
पर दरवाज़ा अंदर से बंद था।
कुंडी अपने आप हिलने लगी।
कमरा जैसे ज़िंदा हो गया हो।
अब उसे एक धीमी रोने की आवाज़ सुनाई दी —
पास से। बहुत पास से।
> “क्यों आई तुम यहाँ...?”
वो पीछे मुड़ी — पर वहाँ कोई नहीं था।
बस आईना था... और उसके पीछे वही चेहरा, जो अब मुस्कुरा रहा था।
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6. सुबह की खामोशी
अगली सुबह जब रिसेप्शनिस्ट ने दरवाज़ा खोला,
तो अंदर सन्नाटा था।
बिस्तर ठीक, बैग, कपड़े सब वैसे ही रखे थे।
सिर्फ़ डायरी खुली थी — और आख़िरी पन्ने पर नई लिखावट:
> “नेहा शर्मा — 30th October 2025.
वो अब चैन में है।”
उस आदमी ने डरते हुए पन्ना बंद किया और बुदबुदाया,
“एक और चली गई...”
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7. दो साल बाद
दो साल बाद, Hotel Sapphire Residency का नाम एक नए ब्लॉग में आया —
“Haunted Hotels of Delhi.”
ब्लॉगर ने लिखा:
> “जब मैं Sapphire Residency के कमरे 203 में ठहरा,
तो एक लड़की दिखी — गीले बालों के साथ, हल्की मुस्कान लिए।
उसने कहा — ‘अब कोई डरने की ज़रूरत नहीं, मैं यहाँ हूँ।’
और फिर हवा में घुल गई।”
उसने आख़िर में लिखा —
“वो कौन थी, कोई नहीं जानता।
पर लोग कहते हैं, 203 अब शांत है —
क्योंकि नेहा अब वहाँ रहती है,
किसी को डराने नहीं... किसी को बचाने।”
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समाप्त
-Tanya Singh