Yaado ki Sahelgaah - 6 in Hindi Biography by Ramesh Desai books and stories PDF | यादो की सहेलगाह - रंजन कुमार देसाई (6)

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यादो की सहेलगाह - रंजन कुमार देसाई (6)

                     : : प्रकरण : : 6

      उस के बाद मुझे सुनीता में अपनी जीवन साथी की छबि नजर आई थी. वह मेरी पिछ्ली बेंच पर बैठती थी. मेरा रोल नंबर 27 था और उस का 28.

        हमारे बीच कोई बात चीत नहीं हुई थी. केवल इम्तिहान में मैंने उसे कुछ लिखने की मदद की थी.

       कोलेज छूटने के बाद हम एक ही रास्ते पर रोजाना आगे पीछे होते थे.. लेकिन दोनों में से किसीने भी एक दूसरे से बात करने का प्रयास नहीं किया था.

        बस हम दोनों के बीच इतनी ही कहानी थी.

        उस के बाद दो तीन लड़कियो से औपचारिक रूप से बातें हुई थी, उन के बारे में मैंने विशेष रूप से देखा नहीं था.

        उस के बाद एक लड़की मेरी जिंदगी में आई थी.. उसे मुझ में दिलचस्पी थी. वह मुझे हमेशा स्कोलर कहकर बुलाती थी.  

        यह बात मुझे चकित करती थी. मैं तो पढ़ने में कमजोर था, फिर भी वह मुझे स्कोलर नाम से नवाजती थी.

        मेरा एक दोस्त था मनीष. जो मेरी बाजु के बिल्डिंग में रहता था. हम लोगो का साथ में कोलेज में दाखिला हुआ था. उस की एक चचेरी बहन थी.. जिस का नाम पूजा था. वह भी मुझे स्कोलर मानती थी.

        उस का यह शब्द मेरे लिये प्रेरणा स्रोत साबित हुआ था. मैं जिंदगी में पहली बार इंटर आर्ट्स में सेकंड क्लास में पास हुआ था. वह भी सेकंड क्लास में पास हुई थी. यह बात उस का भाई मनीष झेल नहीं पाया था.

       मैं नियमित तौर से उस के घर जाता था. उस के घर में सब लोग मुझे जानते थे, मुझे बड़ी इज्जत देते थे. पूजा के साथ बातचीत का अच्छा सिलसिला शुरू हो गया था. उस की सगाई हो गई थी. उस का मंगेतर और उस का परिवार भी मुझे पहचानता था. 

      वह लोग सूरत में रहते थे. मैं एक दो बार पूजा का संदेश लेकर उन के घर भी गया था.

      ना जाने कब लेकिन मुझे पूजा से अजीब लगाव हो गया. वह प्यार था.  इस बात से मुझे बेचैनी सी हो रही थी. इस स्थिति में मुझे उस से मिलने का मन हुआ था.

       मैंने एक बार रास्ते में मिल जाने पर उसे रोककर कहां था. 

        " कल सुबह मुझे लाइब्रेरी में मिलोगी? "

        मुझे इतना तो विश्वास था. वह बिना कोई सवाल पूछे हां कह देगी. लेकिन यहाँ मेरा विश्वास मार खा गया. उस ने मुझे सवाल किया:

        " क्या बात हैं? जो कुछ कहना हो यहीं कह दो. मैं लाइब्रेरी में नहीं आउंगी. "

        उस के ऐसे जवाब से मुझे बहुत ही बुरा लगा था.

         यह तो तय था, इस बात को वह अपने भाई को बतायेंगी, और मुझे सब कुछ बताना पड़ेगा. मैं उस के लिये तैयार था. मैंने उसे प्यार किया था. उस में कुछ गलत नहीं किया था. और प्यार करना कोई अपराध नहीं हैं.

        मैंने मनिष के सामने अपने प्यार का इजहार कर लिया था. जोगानुजोग दूसरे ही दिन रक्षाबंधन का त्यौहार था. मैंने पूजा से राखी बंधवाकर उस से किनारा कर लिया था.

        उस के घर आना जाना भी बंद कर दिया था.मैं जानता था कोई भी मेरा उस से प्यार था यह बात नहीं मानेगा.

        मेरा शायद यह नसीब था. मेरे हिस्से में किसी का प्यार नहीं लिखा था. फिर भी मैं हिम्मत नहीं हारा था. कोलेज का दूसरा साल पूरा हो गया था.

         जून महिना शुरू हो गया था. साथ में बारिश का मौसम भी शुरू हो गया था. मेरे पिताजी मेरे लिये नया छाता खरीद लाये थे. जो मैंने क्लास में दाखिल होते ही अपनी बेंच के पीछे टांग दिया था.

         रिसेस के दौरान मैं अपना छाता वही रखकर अपने दोस्तों के साथ केंटीन में गया था. लौटकर देखा तो छाता अपनी जगह पर नहीं था. यह देखकर मेरी सांसे अद्धर हो गई थी. मेरे मुंह से चीख सी निकल गई थी..

        " मेरा छाता कहाँ गया? "

        यह सुनकर आगे बैठी हुई कुछ लड़कियो में से किसी ने मेरा छाता हाथ में पकडकर सवाल किया:

        " यह छाता आप का हैं? "

        मैंने हां कहकर उस के हाथों से छाता ले लिया और बेंच के पीछे लटका दिया. 

       छाते की वजह से मुझे इतना टेंशन हो गया था.. रिसेस के पहले हम दूसरी बेंच पर बैठे थे, जिस पर लड़कियों का ग्रुप बैठता था.. अगले period में हमारी जगह बदल गई थी. टेंशन में इस बात ख्याल नहीं रहा तो टेंशन आ गया था.हली नजर में मुझे उस लड़की से प्यार हो गया था. मुझे उस का नाम जानने की इच्छा हुई थी. लेकिन उसे पूछ नहीं पाया तो मैंने लंबा रास्ता अख्तयार किया था.

       " एक्सक्यूज़ मी! आप सब विषय की नोट्स लिखते हो? "

        " हां! "

        " तो फ़िलोसोफी की तो जरूर लिखती होगी? "

        " क्यों नहीं वह मेरा पसंदीदा विषय हैं. "

        " कया बात हैं वह मेरा भी मनपसंद विषय हैं. "

        "वाह क्या बात हैं? "

        " मैं दो दिन से नोट्स लिख नहीं पाया हूं. क्या एक दिन के लिये आप की नोट बुक मुझे दोंगे? "

        " स्योर! आज तो उस का पीरियड नहीं था. तो मेरे पास नहीं हैं. मैं कल आप को दे दूंगी. "

       " ओ के थैंक्स.! "

        " उस में थैंक्स कहने की आवश्यकता नहीं हैं."

        और दूसरे दिन पीरियड खतम होने पर अपनी नोट्स अप डेट कर के मेरे हाथों में दे दी थी.

        " मैं सोमवार को आप की नोट बुक दे दूंगा. "

        नोट हाथ में आते ही मैंने बड़ी उत्सुकता से पहले पेज पर नजर की :

        " गरिमा देसाई. "

        मेरी पहली ख्वाहिश पुरी हुई थी. मैं उस का नाम जान पाया था.

        मैं इस बार पीछे नहीं हटना चाहता था.

        मैं किसी ना किसी बहाने उस से जुड़े रखने की कोशिश करता था.

       सोमवार को मैंने वादे के मुताबिक उस की नोट बुक वापस कर दी थी.

       लेकिन अपने स्वभाव के हिसाब से मैं उस की राह में आगे नहीं बढ़ सका था.

       क्या बात करुं? यह मेरी समस्या थी.

       मैं किसी से सामने से बात नहीं कर सकता था. फिर लड़कियो के बारे में तो क्या कहना?

       मैं चाहते हुए भी गरिमा से बात नहीं कर सकता था.

       मैंने तय कर लिया था.

      अब की बार मैं पीछे नहीं हटूँगा.

      लेकिन ना जाने ईश्वरने मेरे बारे में क्या लिखा था?