: : प्रकरण : : 8
मेरी हालत काफ़ी नाजुक थी. इस स्थिति में मेरे पिताजी मुझे मनोचिकित्सक के पास ले गये थे. मुझे अस्पताल में दाखिल किया गया था. मुझे बिजली के झटके देने पड़ते थे.
उस हालात में मुझे हवा बदली के लिये हिल स्टेशन ले जाने की डोक्टर ने सलाह दी थी.
और मेरी हालत ओर बिगड गई थी.
ईश्वर भी मेरी कौन सी भूल की इतनी बड़ी सजा दे रहा था.
मुझे महाबलेश्वर ले गये थे. एक गेस्ट हाउस में उतरे थे.
दो दिन के बाद एक नया ताज़ा शादी सुदा जोड़ा वहाँ हनीमून के लिये आया था.
वह कोई नहीं बल्कि गरिमा और उस का पति गौरव थे. उन्हें देखकर मेरे घाव ताजे हो गये थे. गौरव दरिया दिल था. उसे मेरे और गरिमा के बारे में मालूम होगा. वह मेरे बारे में क्या सोचता होगा? इस बात से मैं परेशान हो ऱहा था. लेकिन उस का रवईया मुझ से एक दोस्त जैसा था. उन के सहवास में मैं बिल्कुल नोर्मल हो गया था. महाबलेश्वर का खर्चा मेरे गरीब उठाने में समर्थ नहीं थे. इस लिये हम मुंबई लौट जाना चाहते थे.
तब एक भारी खम हादसा हुआ था. घुड़ सवारी करते हुए गरिमा गिर गई थी. और उसे एक पाँव से हाथ धोना पड़ा था.
उस दुर्घटना से मुझे झटका लगा था.
यहाँ मेरी कोई गलती नहीं थी.
फिर भी आदत के कारण मैं अपने आप को दोषित मानने लगा था.
मुझे दोबारा अस्पताल में भारती होने की नौबत आई थी तब गौरव ने ही मुझे संभाला था.
वह कराटे चैंपियन था. उस ने कई बेल्ट हांसिल किये थे.
गरिमा ने बहुत जल्दी अपने आप को संभाल लिया था. और उस ने महिला और अनाथो के लिये एक आश्रम खोला था.
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हमारी बाजु में एक रूम थी, जो मौसी को मिली थी. उन का तो बड़ा बंगला था. उन्हे उस की जरूरत नहीं थी. वह उन्होंने ने किराये पर दे दिया था.
वहाँ एक परिवार वहाँ रहने आया था, घर की मुख्या ललिता बहन थे. वह पहले गाम देवी इलाके में रहते थे, उस का नाम वहाँ बदनाम था. तो वह उसे छोड़कर हमारे बाजू में रहने आये थे.
वह चार लड़कियो और एक बेटे की जनेता थी.
बेटियां आड़े रास्ते चली गई थी.. उस के लिये खुद ललिता बहन जिम्मेदार थे. पांच संतानो की जनेता होते हुए भी उन के चाल चलन ठीक नहीं थे..
वह अनपढ़ थे. मुश्किल से चार चोपड़ी पढे थे.. मा बाप की इकलौती औलाद थी, खूब लाड़ प्यार में परवरिश हुई थी. उस बात का उन्हें बहुत गुमान था. वह कुछ नहीं जानते थे, लेकिन सब कुछ जानने का दावा करते थे. उन की मा को भी अपनी बेटी पर नाज था.
वह पहले गांव देवी इलाके में रहते थे. उन के पति का संदेहात्मक स्थिति में देहांत हुआ था. उन के बारे में जितने मुंह उतनी बात होती थी.
लोग कहते थे उन का पड़ोस में रहने वाले एक सिंधी युवक से नाजायज रिश्ता था. उस ने ही ललिता बहन के पति की हत्या की थी.
वह पांच संतान और बीवी के लिये तनतोड़ मेहनत करता था.. बारह घण्टा काम करता था. रविवार और छुट्टी के दिन भी काम करता था. फिर भी ठीक से निर्वाह नहीं होता था.
इस स्थिति में ललिता बहन पड़ोश के लडके के चककर में आ गये थे. वह पांच संतान की जनेता थी. उस में एक लड़की पड़ोश के वह लडके सुरेश की थी.
यह बात कोई जानता नहीं था, या जानता था तो उस का जिक्र नहीं किया था. लेकिन सुरते यह कहानी बया करती थी.
मा के सारे अवगुण बेटी सुहानी और शैफाली में आये थे. दोनों बहुत ही छोटी उम्र में दो लड़को के चककर में आ गये थे.
सुहानी को अनिकेत से प्यार हो गया था. वह गरीब था. उस के पिता परलोक सिधार गये थे. घर में तीन बहनों की जिम्मेदारी उस पर थी. उस के हालात ना तो उसे सुहानी से ज्यादा नहीं मिलने देते थे ना तो उस के भौतिक सुख पुरे कर सकते थे.
दूसरी तरह संजय नाम का लड़का था जो उस के सारे शौख पुरे करता था. तो वह उस के पीछे भागती थी. उस की यह आदत अनिकेत सह नहीं पाता था, जिस ने उसे शराब का व्यसनी बना दिया था.
उस का यह किस्सा बिल्डिंग में बहू चर्चित हो गया था. लोग पीठ के पीछे बहुत कुछ बोलते थे. किसी की सामने आकर बात करने की हिम्मत नहीं थी.
सुहानी दो लड़को के बीच फसी हुई थी. ऐसे में हालात ख़राब थे. एक मा ऐसी स्थिति में ऱह नहीं पाती थी. इस स्थिति में उन्हें घर बदलने की नौबत आई थी.
वह लोग हमारी बाजु में रहने आये थे. और कुछ ही दिनों में सुहानी अनिश के साथ शुरू हो गई थी.
उन लोगो के आते ही कुछ ही दिनों में अनिश के पिताजी गुजर गये थे. उस वक़्त हमदर्दी जताने के बहाने मा बेटी उस के करीब हो गई थी.
अनिश की सौतेली मा आनंदी बहन के साथ मेरा काफ़ी बनता था. गरिमा के किस्से में थी उन्होंने मेरी मदद की थी. मेरी स्थिति पर हमदर्दी जताते हुए मुझे सीने से लगाया था. अनिश भी मेरा पक्का दोस्त था.
लेकिन ललिता बहन के आने से बहुत कुछ बदल गया था. उन दोनों में बहुत जल्दी दोस्ती हो गई थी. ललिता बहन की संगत में आनंदी बहन भी कुछ बदल गये थे.
मैंने उन के मुंह से कभी किसी की बुराई नहीं सुनी थी. लेकिन बाद में? दोनों सहेलिया देर रात तक बाहर बैठकर लोगो के लडके लड़की की बुराई करते थे और घर के अंदर उन के बच्चे ही उसे सच साबित कर रहे थे.
वह लोग खुल्लम खुल्ला रोमांस करते थे.
ऐसा नहीं सकते थे. ललिता बहन को उस बात का पता नहीं था. वह सब कुछ जानते थे. लेकिन वह क्या बात थी? जो उन्हें बेटी को कुछ भी कहने को रोकती थी?
उन के चेहरे पैर कोई खौफ नजर आता था. उन की बोडी लैंग्वेज यह मानने को मजबूर करती थी. इस बात पर मेरा मानना था. उसे पता था वह अपने पिता की नहीं लेकिन सुरेश भाई की लड़की थी.
00000000000 ( क्रमशः)